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पञ्चास्तिकाय परिशीलन आत्मा आत्मा को आत्मा के द्वारा आत्मा के लिए, आत्मा में से आत्मा में जानता है। ऐसे अनन्यपने में भी कारक व्यपदेश होता है।
अन्यपने में संस्थान का उदाहरण ह्र 'ऊँचे देवदत्त की ऊँची गाय', अनन्यपने में संस्थान का उदाहरण ह्न विशाल वृक्ष का विशाल शाखा समुदाय । अन्यपने में संख्या का उदाहरण जैसे ह्न देवदत्त की दस गायें। इसीप्रकार सर्वत्र लगा लेना चाहिए।
जयसेनाचार्य इस गाथा के स्पष्टीकरण में कहते हैं कि ह्र व्यपदेश (कथन), संस्थान, संख्या, विषय ह्न इन चार भेदों से द्रव्य व गुणों में सर्वथा प्रकार भेद दिखाते हैं।
व्यपदेश, संख्या, संस्थान एवं विषय चारों प्रकार के भाव अभेद में भी हैं और भेद में भी हैं। इनकी दो प्रकार की विवक्षा है। जब द्रव्य की अपेक्षा से कथन करते हैं तब तो वे चारों भाव अभेद कथन की अपेक्षा कहे जाते हैं और जब अनेक द्रव्य की अपेक्षा कथन किया जाये तो ये ही चारों भेद कथन की अपेक्षा से कहे जाते हैं। जैसे पुरुष की गाय' कहना ह्न यह भेद कथन है और 'वृक्ष की शाखा' कहना अभेद का दृष्टान्त है। इसीतरह यही व्यपदेश षट्कारक पर भी लगा सकते हैं। इसी बात को हीरानन्दजी कहते हैं ह्र
(सवैया इकतीसा) कारक बखान वस्तु भेद औ अभेद माहि,
सोई व्यवदेस नाम द्रव्य-गुण विर्षे है। आकृति विशेष वस्तुरूप संस्थान लसै,
___संख्या गणना प्रकार भला भेद विषै हैं। द्रव्य है आधार तथा गुण है अधेयता मैं,
ऐसा वस्तु भेद नाम वस्तु एक सिखै है। तातै व्यवदेस आदि भेदभाव दिखै तो भी,
देसभेद सधै नाहिं स्याद्वाद लिखे है ।।२३५ ।।
जीव द्रव्यास्तिकाय (गाथा २७ से ७३)
वस्तु के अभेद षट्कारक जैसे आत्मा आत्मा को आत्मा के द्वारा आत्मा के लिए आत्मा में से आत्मा में स्थिर होता है तथा भेद षट्कारक दो भिन्न-भिन्न द्रव्य में उपर्युक्तानुसार लगते हैं। इसी प्रकार व्यपदेश संस्थानसंख्या, विषय में भी द्रव्य व गुणों में भेद व अभेद दिखाते हैं। ___ इन काव्यों का अर्थ आचार्य अमृतचन्द्र की टीका में वहुत विस्तार से स्पष्ट रूप से आ गया है, इस कारण इन काव्यों का अर्थ पुनः लिखना विष्टपेषण सा लगा अतः पुनः विस्तार से नहीं लिखा गया है। ___ गुरुदेव श्री कानजीस्वामी कहते हैं कि ह्र “ये व्यपदेश आदि के भाव जो चार प्रकार कहे हैं, वे भेद व अभेद कथन से कहे हैं, उनका अर्थ यह है कि जब एक द्रव्य की अपेक्षा से कथन किया जाय तब अभेद कथन की अपेक्षा समझना और जब अनेक द्रव्यों की अपेक्षा से कथन हो तब व्यपदेश आदि चारों भाव भेद कथन की अपेक्षा कहे ह्र ऐसा समझना।
मकान, रुपया आदि भेद के या अन्यत्व में उदाहरण कहे हैं तथा वृक्ष की शाखा का उदाहरण आत्मा के गुण-गुणी आदि अभेद (अनन्यत्व) के लिये दिया है। ___कर्मों को आत्मा का कहना कथन मात्र है; क्योंकि कर्मों का नाश होने पर आत्मा का नाश नहीं होता। इसलिए आत्मा व कर्म जुदे-जुदे हैं। इसलिए जब ऐसा कथन आवे तब आत्मा को कर्म से भेदरूप जाने तो वह धर्म है। इसप्रकार आत्मा को परद्रव्य से भेदरूप जानना धर्म है।"
इस गाथा के सम्पूर्ण कथन का तात्पर्य यह है कि - एक ही द्रव्य में अभेद षट्कारक होते हैं एवं भेद षट्कारक दो भिन्न-भिन्न द्रव्य लगते हैं। ___ इसीप्रकार व्यपदेश अर्थात् कथन, संस्थान, संख्या और विषय में भी द्रव्य व गुणों में भेद व अभेद दिखाये हैं। 'पुरुष की गाय' यह भेद कथन है तथा वृक्ष की शाखा है यह अभेद का कथन है।
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१.श्री सद्गुरु प्रवचन प्रसाद नं. १४०, पृष्ठ १११३, दिनांक ११-३-५२