________________
और परोक्ष । जैन न्याय के पितामह आचार्य सिद्ध- जान लेना, केवलज्ञान । प्रस्तुत ग्रन्थ में अवधि, मनः सेन दिवाकर ने अपने नारिकात्मक न्यायावतार पर्याय और केवल का अलग लक्षण नहीं दिया है । प्रन्थ में प्रमाण के सीधे तीन भेद किये हैं-प्रत्यक्ष, केवल भेदों की गणना की है। अनुमान और आगम । प्रतीत होता है, कि न्याया- परीक्षामुख में द्वितीय समुहेश्य में १२ सूत्र वतार पर सांख्य मत का प्रभाव है। प्रमाण के इस हैं। उनमें प्रत्यक्ष के भेद-प्रभेद दिए गए हैं। प्रकार के भेद अन्य किसी दिगम्बर तथा श्वेताम्बर पारमाथिक के भेद तो किए हैं लेकिन उनके आचार्य ने नहीं किये। अतः ये भेद जंन न्याय में स्वतन्त्र लक्षण नहीं दिए गए है। यहां पर न्याय स्थान न पा सके। क्योंकि जन न्याय की अपनी रत्नसार ने परीक्षामुख सूत्र अनुसार किया है। प्रकृति अलग थी । इस पद्धति का किसी भी आचार्य
प्रमाणनयतत्वालोक में वादिदेव सूरि ने प्रमाण ने अनुकरण अथवा अनुसरण नहीं किया।
के प्रत्यक्ष और परोक्ष भेद करके सांव्यवहारिक ___ न्यायरत्नसार में प्रमाण के दो भेद हैं- के भेद-प्रभेद दिए है, और अलग-अलग लक्षण भी प्रत्यक्ष और परोक्ष । प्रत्यक्ष क्या है ? जिस ज्ञान दिए । अवग्रह मादि के भेदों के लक्षण भी दिए
। स्पष्ट प्रतिभास होता है, वह है। पारमार्थिक प्रत्यक्ष के भेद-प्रभेद भी दिए हैं। प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रत्यक्ष को दो भेद हैं-सांव्यव- अवधि, मनःपर्याय और केवलज्ञान के लक्षण हारिक और पारमाथिक । सांव्यवहारिक किसको बहतही सन्दर दिए हैं। प्रमाण के दो भेद-प्रत्यक्ष कहते हैं ? संव्यवहार का अर्थ है-लोकानुकूल और परोक्ष मानने की परम्परा जैनों की अपनी व्यवहार। मंत्र आदि इन्द्रिय और मन के द्वारा पद्धति है। दो भेदों में सब प्रमाणों को समेट पदार्थ का जो एकदेश निर्मल ज्ञान होता है, वह लिया गया है। प्रमाणों को संख्या सबवी भिन्नसांव्यवहारिक प्रत्यक्ष है। इसके दो भेद हैं- भिन्न है। इन्द्रियजन्य और मनोजन्य । इन्द्रियजन्य सांध्यब- चार्वाक-एक प्रत्यक्ष । बौर दो-प्रत्यक्ष और हारिक प्रत्यक्ष में इन्द्रियों की प्रधानता रहती है अनमान । वैशेषिक तीन-प्रत्यक्ष, अनुमान और
और मनोजन्य सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष में मन को आमम । नैयायिक चार---प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम प्रधानता रहती है। न्यायरत्नसार के द्वितीय ।
और उपमान । प्राभाकर मीमांसक पांच-प्रत्यक्ष, अध्याय के छठे सूत्र में ज्ञानेन्द्रिय के पांच भेद हैं।
अनमान, आगम, उपमान और अर्थापत्ति । सातवें सूत्र में इन्द्रियों के दो भेद हैं-द्रव्य और
भाट्ट मीमांसक छह-प्रत्यक्ष, अनुमान,आगम, उपभाव 1 सूत्र ८ में सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष के चार भेद
मान,अर्थापत्ति और अभाव । जैन दो-प्रत्यक्ष और हैं-- अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा । अध्याय २
परोक्ष । भारतीय दार्शनिकों के समस्त विचारों सुत्र १४ में पारमार्थिक प्रत्यक्ष के दो भेद है-सकल
का सार इन विभागों में आ जाता है। बौद्ध भी और विकल । विकल के दो भेद हैं—अवधि और
दो प्रमाण मानते हैं । परन्तु दूसरा अनुमान मानते मनःपर्याय । सकल का अर्थ है- केवलज्ञान | वह
हैं । लेकिन यह विभाजन अधूरा है। क्योंकि उपएक ही होता है।
___ मान और आगम आदि का समावेश अनुमान में __ अवधिपूर्वक रूपो पुद्गल का ज्ञान, जो कि कैसे होगा? परोक्ष में तो समावेश हो जाता है। इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना होता है, अन्य भी सम्भव आदि प्रमाण परोक्ष में समाहित वह अबधिज्ञान है। दूसरे के मनोगत भावों को हो जाते हैं। स्पष्ट जान लेना, मनःपर्याय शान है । समस्त द्रव्यों आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने अपनी प्रमाण मीमांसा को, उनके गुणों को, उनकी पर्यायों को युगपत् में प्रमाण के दो भेद किए हैं--प्रत्यक्ष और परोक्ष ।