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तृतीय भाग
पाश्चात्य नीतिज्ञ : मार्क्स और नीत्से अध्याय २० : कार्ल मार्क्स
२६३-३०५ जीवनी : हीगल की द्वन्द्वात्मक प्रणाली : द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद : मार्क्स और हीगल में भेद : ऐतिहासिक दृष्टान्त द्वारा स्पष्टीकरण : समाज का विश्लेषण-विरोधी वर्ग : सामाजिक नैतिकता वर्ग नैतिकता है : आर्थिक व्यवस्था विभिन्न विचारों की जन्मदात्री : नैतिक विचारों की प्रसत्यता का स्पष्टीकरण : नैतिक सापेक्षवाद : स्वतन्त्रता का अर्थ : साम्यवाद तथा साध्य और साधन की समस्या।
पालोचना प्रार्थिक मूल्यांकन : साध्य-साधन का प्रश्न : प्रान्तरिक चेतना अनिवार्य : जीवन के दो पक्ष-ऊर्ध्व और समतल : व्यक्ति नगण्य : नैतिकता का अर्थ : विरोधाभास ।
अध्याय २१ : फ्रेडरिक नीत्से
३०६-३२२ जीवनी : सिद्धान्त का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण' : अतिमानव का सिद्धान्त : यूनानी सभ्यता का प्रभाव-समस्त मान्यताओं का पुनमल्यीकरण : ईसाई धर्म का खण्डन : उपयोगितावादी नैतिकता : सोद्देश्य नैतिकता-संकल्प स्वतन्त्र नहीं है : नंतिक सापेक्षता : शुभअशुभ की परिभाषाएँ -सुख-दुख का अर्थ : नीसे के सिद्धान्त का भावात्मक पक्ष-अतिमानव का सिद्धान्त, उसकी पुष्टि : प्रभुत्रों और दासों की नैतिकता।
आलोचना मानवता के ध्वंस की ओर : श्रेष्ठता के नाम पर दानवता : असमानता अनैतिक है : तर्कहीन असंस्कृत सिद्धान्त ।
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