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पालोचना विधान की धारणा वैराग्यवाद की विरोधी : समन्वयात्मक सिद्धान्त -धर्म का प्राधान्य : परम स्वार्थवाद का मनोवैज्ञानिक खण्डन : अन्तर्बोध का अनिश्चित प्रयोग : अन्तर्बोध और.मात्मप्रेम के सम्बन्ध को समझाने में असफल : व्यक्तिवाद और उत्तरदायित्व : आधुनिक विचारधारा पर प्रभाव : उपयोगितावाद : अन्तर्बोध के आदेश की प्रामाणिकता।
अध्याय १८ : पूर्णतावाद
. २६६-२७७ आत्मा का स्वरूप : बुद्धि-भावना का योग : प्रात्मा और समाज : दोनों का सम्बन्ध अनन्य : स्वार्थ-परमार्थ का प्रश्न : पूर्णतावाद का परिचय ।
प्राचीन काल : प्लेटो और अरस्तू . बौद्धिक और अबौद्धिक प्रात्मा का प्रश्न : वस्तुगत शुभ की धारणा : मानवतावाद : सद्गुणों का स्वरूप : प्लेटो और अरस्तू की प्रणाली।
अर्वाचीन पूर्णतावाद प्रवेश : नैतिक विकास का अर्थ : पूर्णतावाद और अन्य सिद्धान्त : विरोधों में सामंजस्य : कल्याणकारी मार्ग की ओर ।
अध्याय १६ : मूल्यवाद
२७८-२६० प्रवेश : शुभ और मूल्य : मूल्यवाद तथा अन्य विचारक : मूल्य की समस्या : मूल्य का आर्थिक प्रयोग : मूल्य के दो रूप : अर्बन द्वारा मूल्यों का विश्लेषण : मूल्यों के विभिन्न स्तर : प्राभ्यन्तरिक शुभ वैयक्तिक भी है : मूल्यों का उत्तरोत्तर विकास-तुलनात्मक स्थिति : प्राभ्यन्तरिक मूल्य : शुभ, नैतिक शुभ और परम शुभ : शुभ
और औचित्य-प्रात्मगत और वस्तुगत औचित्य : शुभ अशुभं से परे : मूल्यवाद का स्थान ।
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