Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

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Page 12
________________ जीवन : आलोचनात्मक परीक्षण : सुकरात से थोथा साम्य : विश्वनागरिकतावाद स्वार्थवाद है : अभावात्मक पक्ष प्रमुख है : अनेक दुर्बलताओं से युक्त : वैराग्यवाद की प्रथम अभिव्यक्ति : स्टोइक्स : सद्गुण : व्यावहारिक नैतिकता : ज्ञान, सद्गुण, शुभ-अशुभ : भावहीनता की स्थिति : विश्व-नागरिकतावाद । पालोचना व्यक्तिवाद : जीवन की सारहीनता : कर्तव्य का सम्प्रदाय : सुख का स्थान : महानता। अध्याय १५ : बुद्धिपरतावाद (परिशेष) २१६-२३४ अर्वाचीन उग्र बुद्धिपरतावाद—काण्ट जीवन में नियमनिष्ठता का प्राधान्य : नैतिक अनुभव : मनुष्य स्वशासित है : स्वशासित जीवन में भावना के लिए स्थान नहीं है; सुखवाद अनैतिक है : नैतिक आदेश-निरपेक्ष आदेश : शुभ संकल्प : कर्तव्य और प्रवृत्ति : सद्गुण और आनन्द : नैतिक नियम रूपात्मक हैं : आचरण-विधियाँ । पालोचना नीतिवाक्य असन्तोषप्रद हैं : बाध नियम की सीमाएँ : भावना का नैतिक मूल्य : भ्रान्तिपूर्ण मनोविज्ञान : सिद्धान्त में अस्पष्टताभावनाएं आत्म-सन्तोष का अंग : नैतिक जीवन में कर्तव्य का अर्थ : वैराग्यवाद अपने-आपमें अपूर्ण : सुखवादी भूल : एकमात्र प्रेरणा को महत्त्व देना अनुचित है : काण्ट के कठोरतावाद का व्यावहारिक मूल्य : निरपेक्ष नैतिक आदेश का महत्त्व : इतिहास को बुद्धिपरतावाद की देन । अध्याय १६ : सहजज्ञानवाद २३५-२४५ सहजज्ञानवाद और अन्तर्बोध प्रवेश : सहजज्ञान का व्यापक अर्थ : प्रकृतिवाद तथा सहजज्ञानवाद का ऐतिहासिक विवाद। [११] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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