Book Title: Nitishastra
Author(s): Shanti Joshi
Publisher: Rajkamal Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ समन्वय : मनुष्य का स्वभाव-स्वार्थी, आत्म-संरक्षण और सुख का इच्छुक : वैयक्तिक-सामाजिक सुख का प्रश्न : नैतिक आदेश-प्रावश्यक और उपयोगी : भ्रान्तिपूर्ण मनोविज्ञान : सिद्धान्त की विशिष्टता। परार्थ सुखवाद : उपयोगितावाद सामान्य परिचय : परार्थ सुखवाद के प्रमुख प्रवर्तक । बेन्थम सुख ही एकमात्र वांछनीय ध्येय-नैतिक-मनोवैज्ञानिक सुखवाद का समन्वय : स्वार्थ से परार्थ की ओर : उपयोगितावाद : नैतिक आदेश द्वारा सामूहिक सुख की प्राप्ति : प्रेरणा, परिणाम, उद्देश्य : परिमाण–सुखवादी गणना : व्यापकता : त्रुटियाँ-विशेषता। मिल उपयोगितावाद के प्रचारक के रूप में : मिल का उपयोगितावादउसकी विशिष्टता : नैतिक ध्येय-सुख; नैतिक-मनोवैज्ञानिक सुखवाद : नैतिक मापदण्ड -सामान्य सुख : तार्किक युक्ति द्वारा पुष्टि : मनोवैज्ञानिक प्रमाण-स्वार्थ से परमार्थ : आन्तरिक प्रादेश-सजातीय भावना : उपयोगितावाद-उच्च आदर्श का पोषक : सुख की क्रमिक व्यवस्था-गुणात्मक भेद : मिल की सफलता और असफलता। . नैतिक सुखवाद की आलोचना मनोवैज्ञानिक सुखवाद से अधिक व्यापक-दोहरी कठिनाई : स्वार्थ और परार्थ का विरोधपूर्ण सामंजस्य : नैतिक कर्तव्य तथा सद्गुण के लिए स्थान नहीं है : सुखवादी गणना असम्भव । अध्याय १२ : सुखवाद (परिशेष) १६५-१७६ ___ सहजज्ञानवादी उपयोगितावाद सिजविक : नैतिक सिद्धान्त का लक्ष्य : आलोचनात्मक पक्ष-सहजज्ञानवाद और सुखवाद का समन्वय : बौद्धिक उपयोगितावाददार्शनिक सहजज्ञानवाद : सुख ही परम शुभ है : सुख वितरण की समस्या-न्याय, प्रात्मप्रेम, परोपकारिता। [६] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 372