Book Title: Nitishastra Author(s): Shanti Joshi Publisher: Rajkamal Prakashan View full book textPage 8
________________ द्वितीय भाग नैतिक सिद्धान्त अध्याय ८ : नियम विधान के रूप में नैतिक मानदण्ड । १००-११४ विषय-प्रवेश : नियम और ध्येय की समस्या : यह समस्या मिथ्या है : नैतिक आदेश बाह्य आदेश एवं नियम अथवा बाह्य विधान के रूप में प्रकट हया-प्राकृतिक और दैवी शक्ति : ऐतिहासिक स्पष्टीकरण --- अस्थिर जीवन : स्थिर जीवन; नियमों का जन्मदाताप्रचलित नैतिकता : उसके विभिन्न रूप : प्रचलित नैतिकता का मानव-जाति चेतना : राज्यसत्ता तथा ईश्वरीय नियम : प्रचलित नैतिकता की दुर्बलताएँ-अबौद्धिक और विवेकशून्य आचरण : अनैतिक नियम : कमियों को दूर करने का प्रयास : बौद्धिक जागरण : आन्तरिक नियम एवं आन्तरिक विधान का बोध : अन्तर्बोध की स्थिति : प्रान्तरिक नियम की अच्छाइयाँ और बुराइयाँ : नैतिक नियम का स्वरूप-अान्तरिक होते हुए भी वस्तुगत और सार्वभौम : ध्येय की धारणा उन्हें सार्वभौमिक प्रामाणिकता देती है। प्रध्याय ६ : सामान्य निरीक्षण ११५-१२१ (क) विभिन्न नैतिक सिद्धान्त नैतिक आदर्श : विवाद का केन्द्र-व्यक्ति का स्वभाव : भावनासुखवाद : बुद्धि-बुद्धिपरतावाद : विरोध की प्रगति-समन्वय की ओर : पूर्णतावाद । (ख) सुकरात · सोफिस्ट्स की आलोचना- शुभ वस्तुगत है : सद्गुण, ज्ञान, प्रानन्द __ एक ही हैं। (ग) उत्तर-सुकरात युग शुकरात का प्रभाव : सुकरात पन्थ : भिन्न शाखाएँ । अध्याय १० : सुखवाद १२२-१३३ भूमिकां। [७] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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