Book Title: Nitishastra Author(s): Shanti Joshi Publisher: Rajkamal Prakashan View full book textPage 7
________________ वैज्ञानिक विधि : अमनोवैज्ञानिक विधि : मनोवैज्ञानिक विधि : दार्शनिक विधि : आलोचना - नैतिक विधि की ओर : नीतिशास्त्र में दोनों प्रणालियाँ परस्पर निर्भर : नैतिक प्रणाली — समन्वयात्मक | अध्याय ४ : नीतिशास्त्र और अन्य विज्ञान ५१-६० नीतिशास्त्र का अन्य शास्त्रों से सम्बन्ध : समाजशास्त्र : राजनीति : ईश्वरविद्या : तत्त्वदर्शन | अध्याय ५ : नीतिशास्त्र का मनोवैज्ञानिक आधार तथा नैतिक निर्णय का विषय ६१-७४ मनोवैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता : मनोविज्ञान से सम्बन्ध : नैतिक निर्णय का विषय - श्राचरण : दो प्रकार के कर्म – इच्छित और अनिच्छित : अभ्यासगत कर्म भी इच्छित हैं : श्राचरण का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण - पशु और मनुष्य के कर्मों में भेद : निर्णीत कर्म के निर्माणात्मक अंग : इच्छा का महत्त्व : नैतिक कर्म की समस्या : श्राचरण के दो रूप -- बाह्य और आन्तरिक : प्रेरणा : उद्देश्य : प्रेरणा और परिणाम के विवाद का निष्कर्ष । श्रध्याय ६ : नैतिक प्रत्यय ७५-८६ कर्तव्य, अधिकार - सामान्य अर्थ : नैतिक अर्थ : कर्तव्य और नैतिक बाध्यता : कर्तव्य की पूर्ण और अपूर्ण बाध्यता : कर्तव्य और सद्गुणदुर्गुण : सद्गुण - परम्परागत और विवेक सम्मत पाप और पुण्य : संकल्प-स्वातन्त्र्य और उत्तरदायित्व : नैतिकता की तीन मूलभूत श्रावश्यकताएँ - संकल्प की स्वतन्त्रता, आत्मा की अमरता तथा ईश्वर का अस्तित्व । श्रध्याय ७ : संकल्पशक्ति की स्वतन्त्रता ८७-६७ - स्वतन्त्र संकल्पशक्ति - आवश्यक नैतिक मान्यता : नियतिवाद : अनियतिवाद : विवाद का मूल प्रेरणा : एकांगी दृष्टिकोणों का परिणाम - नैतिकता अर्थशून्यः श्रात्मम निर्णीत कर्म : नियतिवाद और नियतिवाद | Jain Education International [ ६ ] For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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