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( १६ ) आवश्यक था। पर अभी निरुक्तों के हिन्दी अनुवाद का कार्य अवशिष्ट था। उसे पूरा करना जरूरी था। सभी ग्रंथों के संदर्भ देख-देख कर उन शब्दों का हिन्दी अनुवाद हो सके, इसलिए अब अंतिम दायित्व हम दो साध्विों को सौंपा गया। हमने यह कार्य प्रारम्भ किया। हमारे सम्पूर्ण कार्य का निरीक्षण मुनिश्री दुलहराजजी ने किया। उन्होंने लम्बी अवधि तक अपने अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों को गौण कर हमारा मार्ग-दर्शन किया। इस प्रयत्न के बाद भी कुछेक शब्द ऐसे थे जिनके अर्थ-निर्धारण में मूल ग्रंथ तथा सहायक ग्रन्थ अपर्याप्त सिद्ध हो रहे थे। ऐसे शब्दों के अर्थ-निर्धारण में युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने हमें समय प्रदान किया और हमारा अवरोध समाप्त हो गया। वे कुछेक शब्द ये थेबादर, वडार, सेना आदि-आदि । निरुक्तकोश की रूपरेखा
निरुक्त कोश में मूल शब्द प्राकृत भाषा के हैं। वे मोटे व गहरे टाइप में क्रमांक से अनुगत हैं। उनके सामने कोष्ठक में संस्कृत छाया दी गई है। देश्य शब्दों का संस्कृत रूपान्तर नहीं होता। ऐसे देशी शब्दों को हमने कोष्ठक में 'दे' से निर्दिष्ट किया है। कुछ शब्द ऐसे भी हैं, जिनका एक अंश देशी है
और शेष संस्कृत का है। ऐसे शब्दों की छाया में देशी अंशों को ' ' इस चिन्ह के अन्तर्गत दिया है। मूल शब्द और संस्कृत छाया के निर्देश के पश्चात् उसका निरुक्त गहरे छोटे अक्षरों में निर्दिष्ट है । निरुक्त प्राकृत और संस्कृतदोनों भाषाओं में है। निरुक्त के सामने कोष्ठक में उसके प्रमाण-स्थल का निर्देश है। सभी प्रमाण-स्थलों का निर्देश एब्रिविएसन में किया गया है । उनकी विस्तृत जानकारी 'प्रयुक्त ग्रन्थ-संकेत सूचि' के अन्तर्गत उपलब्ध है । एक शब्द में, एक ही स्थल के दो भिन्न-भिन्न निरुक्तों का प्रमाण-स्थल का निर्देश एक साथ दिया गया है । एक ही शब्द में जहां अनेक प्रकार के निरुक्त उपलब्ध हैं, उनका निर्देश ग्रंथ के कालक्रम से किया गया है। सभी निरुक्तों, मूलगत तथा पाद-टिप्पणगत, का हिन्दी अनुवाद किया गया है। जहां एक ही भाव के संवादी दो या अधिक निरुक्त हैं, केवल वाक्य रचना में भेद अथवा अर्थ की स्पष्टता मात्र है, ऐसे निरुक्तों का अनुवाद एक साथ दिया गया है। इसके लिए 'आवस्सग', 'ओहि', 'कल्याण', 'कुंभ' आदि शब्द द्रष्टव्य हैं।
ऐसे शब्द जिनका प्राकृत रूप एक होने पर भी संस्कृत रूपान्तर भिन्न है, उनका अनुक्रम एक साथ न होकर अलग-अलग है, जैसे-आस (अश्व), आस (आस्य)। कुछ ऐसे शब्द, जिनका प्राकृत और संस्कृत रूप एक है, पर
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