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प्रेरणा और कार्यारम्भ
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के वाचना- प्रमुखत्व और युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ के निर्देशन में आगम-संपादन के क्षेत्र में तीन दशकों से निरन्तर कार्य हो रहा है । उसी श्रृंखला में विक्रम संवत् २०३७ चैत्रशुक्ला त्रयोदशी के दिन 'आगमकोष' के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण कार्य प्रारंभ हुआ । इस कार्य में अनेक साध्वियां, समणियां और मुमुक्षु बहिनें व्यापृत हुईं ।
प्रस्तुति
'आगम-कोश' का निर्माण मुख्य था, किन्तु इसके अन्तर्गत अनेक उपकोशों का निर्माण कार्य भी हाथ में ले लिया गया। वे कोश इस प्रकार हैं
१. एकार्थक कोश
२. निरुक्त कोश
३. देशीशब्द कोश ।
कार्य द्रुतगति से चला और लगभग तीन वर्षों की अल्पावधि में इन तीन कोशों के लिए पर्याप्त सामग्री संकलित कर ली गई । यद्यपि इन तीन वर्षों की अवधि में कार्य करने वालों की संख्या में एकरूपता नहीं रही, पर कार्य की निरन्तरता सदा बनी रही। इसी कारण से लगभग सौ ग्रंथों ( आगम तथा आगमेतर) से सामग्री का संचयन करने में सफल हो सके । इनमें मूल आगम, निर्युक्तियां, भाष्य, चणियां, टीकाएं तथा अन्यान्य ग्रन्थ भी सम्मिलित
हैं ।
निरुक्त कोश में काम आने वाले हजारों शब्दों के भिन्न-भिन्न कार्ड तैयार कर लिए । इस कार्य को अंतिम रूप देने से पूर्व सभी ग्रन्थों के निरुक्तस्थलों का पुनर्निरीक्षण करना अनिवार्य था । बड़ी तत्परता और उत्साह के साथ दो मास की अवधि में यह कार्य सम्पन्न कर लिया गया । इससे मूल निरुक्त पाठ, उनके प्रमाण-स्थल और अधिक प्रामाणिक हो गए । यत्र-तत्र अवशिष्ट निरुक्त भी संगृहीत कर लिए गए । अब कार्य को अंतिम रूप देना
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