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द्रव्य का स्वरूप
६. प्रश्न - आपने कर्णेन्द्रिय के विषय के संबंध में तो कुछ बताया ही नहीं; क्या कर्णेन्द्रिय के विषय में आसक्ति दुःख का कारण नहीं है?
उत्तर - क्यों नहीं, कर्णेन्द्रिय का विषय, शब्द भी तो जीव को संसार में अटकने-भटकने में निमित्त बनता ही है। . ___ शब्द, पुद्गल द्रव्य की समानजातीय द्रव्यपर्याय है और वह कर्णेन्द्रिय का विषय है। इसलिए शब्दरूप पुद्गल का भी शास्त्र में ज्ञान कराया है। द्रव्यसंग्रह गाथा सोलह में पुद्गल द्रव्य की पर्यायों में सर्वप्रथम शब्दरूप पुद्गल-पर्याय का ही उल्लेख किया है।
पुद्गल के विशेष गुणों के कथन में भी जीव स्पर्शादि विषयों में असक्त होकर दुःखी न हो; इस प्रयोजन (उद्देश्य) से ही स्पर्शादिगुणों का एवं शब्दादि पर्यायों का कथन किया है।
इसीप्रकार जिसमें चेतना अर्थात् ज्ञान-दर्शन पाया जाता है, उसे जीवद्रव्य कहते हैं- इस लक्षण में तोजीवके मात्र दोही गुणों की चर्चा है।
जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में श्रद्धा, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य, क्रियावती-शक्ति आदि विशेष गुण भी बताये हैं। समयसार में भी आत्मा की ४७ शक्तियों का वर्णन आया है।
क्षुल्लक सहजानन्दजी वर्णी ने भी अन्य अनेक गुणों का कथन किया है। आध्यात्मिकसत्पुरुष श्री कानजीस्वामी ने भी अपने प्रवचनों में आत्मा को अनन्त गुणों का गोदाम, शक्तियों का संग्रहालय कहा है। ___ एक द्रव्य में कितने गुण होते हैं, इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि
जीवद्रव्य अनन्त हैं,जीवसेअनन्तगुणे अधिकपुद्गलद्रव्यहैं, पुद्गल से अनन्तगुणे अधिक तीन काल के समय हैं, तीन काल के समय से अनन्तगुणे अधिक आकाश के प्रदेश हैं और आकाश के प्रदेशों से भी अनन्तगुणे अधिक किसीभीएक अर्थात् प्रत्येकद्रव्य में गुणपायेजाते हैं।
या है।