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मोक्षमार्गकी पूर्णता
जीव द्रव्य में भी अनुजीवी गुण, प्रतिजीवी गुण, सामान्य गुण, विशेष गुण इसतरह गुणों के भेद-उपभेद सहित गुण अनंत हैं। पुद्गलद्रव्य में भी गुण अनंत हैं।
४. प्रश्न - जीव का मूल प्रयोजन क्या है? उत्तर-जीव का मूल प्रयोजन मात्र सुख होवें और दुख न होवें, यह
इस कारण इस कृति में जीव के जिन गुणों के विपरीत या विभावरूप परिणमन से जीव को दुःख होता है और स्वभाव/सम्यक्प परिणमन से सुख होता है; उनकी ही अर्थात् श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र गुण की ही मुख्यता से चर्चा की है।
५. प्रश्न-पुद्गल के गुणों का जीवके सुख-दुःख से क्या संबंध है?
उत्तर - पुद्गल के भी जिन गुणों का संबंध जीव के सुख-दुख से हैं; उनकी ही चर्चा जिनवाणी में आयी है। जैसे___ पुद्गल के स्पर्श, रस, गंध और वर्ण इन गुणों का संबंध जीव के स्पर्शनेन्द्रिय आदि चार इन्द्रियों से है। अर्थात् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श है, रसनेन्द्रिय का विषय रस है, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध है एवं चक्षुरेन्द्रिय का विषय वर्ण है। - पुद्गल के गुण, जीव के सुख-दुःख में निमित्त नहीं है वे तो ज्ञेय हैं। जीव उनको विषय बनाकर दुःखी होता है।
जीव इन इंद्रिय-विषयों में आसक्त रहता है अर्थात् स्पर्शादि विषयों में सुख-दुःख की कल्पना करके संसार में दुःख भोगता हुआ भटकता है और जब वस्तुस्वरूप को यथार्थ जानकर स्पर्शादिसे विरक्त हो जाता है, तब वह जीव मोक्षमार्गी होकर सिद्ध बन जाता है। १. मोक्षमार्गप्रकाशक अध्याय नौवें के प्रारम्भ के दो पृष्ठ, आत्मानुशासन श्लोक-२