________________
२४]
हुआ था कि साधारण मनुष्य इनसे पिंड छुड़ा पाता । विज्ञान की इतनी प्रगति होजाने पर भी आज भी करोड़ों आदमी इसके शिकार हैं और विद्वान कहलानेवाले भी शिकार हैं। इसलिये उस युग में भी ये रहे । इस पर कुछ प्रकाश ४८ वे मंन्त्रतन्त्र प्रकरण में डाला गया हैं।
२५- महावीर युग में मगध में गणतन्त्र था, फिर भी म. महावीर की सहानुभूति साम्राज्यों की तरफ है गणतन्नों की तरफ नहीं । जैन शास्त्रों में साम्राज्यों की या चक्रवर्तियों की काफी प्रशंसा है, यह सब क्यों है इसका विवेचन गणतन्त्र राजतन्त्र शीर्पक ४१ वे प्रकरण से लगता है। .
२२- ५०, ५५ वे प्रकरण शास्त्रोक्त हैं। उनका चित्रण इस तरह किया गया है कि जैन साधुओं के एक आचार पर प्रकाश पड़ता है, और सत्य के आग व्यक्तित्व को कैसे झुकना पड़ता है इसपर भी प्रकाश पड़ता है।
२३- सर्वज्ञता त्रिमंगी सप्तभंगी का विवेचन ५२-५३-५४ वें प्रकरण में इस तरह किया गया है कि वह वैज्ञानिक और पूर्ण सार्थक बनगया है। जैन शास्त्रों का विवेचन इस विषय में कितना भूलभरा है इसकी दार्शनिक मीमांसा बड़े सरल तरीके से होजाती है।
२४-५५ वे प्रकरण में नीरस आहार की घटना शास्त्रोक्त है। उसमें दासता का विरोध भी है । पर उसमें इतना रंग और भी दिया गया है कि म. महावीर दासता के विरोध के किये कितन प्रयत्नशील थे।
२५- जैनशास्त्रों में संगम देव के द्वारा किये गये उप. सर्गों का वर्णन वड़ा भयंकर है। स्वर्ग लोक में महावीर चर्चा, संगम देव का क्षुब्ध होना. और फिर ऐसे उपलर्ग करना जो