________________
( १४ ) देख-सुनकर अनुमान तक न हो सकता था कि इस चोले मे इतने अलौकिक गुण छिपे है । उनकी सादगी सभा-सोसाइटियो मे उनके प्रति अशिष्ट व्यवहार का कारण बन जाती थी। इसकी बदोलत उन्हे कभी-कभी धक्के तक खाने पड़ते थे । प्लेटफार्म की सीढियो पर मुश्किल से बैठने पाते थे। इस जीवनी में ऐसे कई प्रसङ्गो का उल्लेख है । इस प्रकार की एक घटना उन्होने स्वय सुनायी थी
मथुराजी मे स्वामी रामतीर्थजी महाराज आये हुए थे । खबर पाकर सत्यनारायणजी भी दर्शन करने पहुंचे। स्वामीजी का व्याख्यान होने को था; सभा मे श्रोताओ की भीड़ थी, व्याख्यान का नान्दी पाठ-मंगलाचरण हो रहा था। अर्थात् कुछ भजनीक भजन अलाप रहे थे । सद्यःकवि लोग अपनी-अपनी ताजी तुकबन्दियाँ सुना रहे थे । सत्यनारायणजी के जी में भी उमङ्ग उठी; ये भी कुछ सुनाने को उठे। व्याख्यान-वेदि की ओर बढ़े आज्ञा माँगी, पर 'नागरिक' प्रबन्धकर्ताओं ने इस "कोरे सत्य, ग्राम के वासी" को रास्ते में ही रोक दिया । दैवयोग से उपस्थित सज्जनों मे कोई इन्हे पहचानते थे। उन्होंने कह-सुनकर किसी तरह ५ मिनट का समय दिला दिया। श्रीकृष्णभक्ति के दो सवैये इन्होने अपने खास ढग में इस प्रकार पढ़े कि सभा में सन्नाटा छा गया; भावुक शिरोमणि श्रीस्वामी रामतीर्थजी सुनकर मस्ती में झूमने लगे, ५ मिनट का नियत समय समाप्त होने पर जब ये बैठने लगे तब स्वामीजी ने आग्रह और प्रेम से कहा कि अभी नहीं, कुछ और सुनाओ। ये सुनाते गये और स्वामीजी अभी और, अभी और, कहते गये; व्याख्यान सुनाना भूल कर कविता सुनने में मग्न हो गये । ५ मिनिट की जगह पूरे पौन घंटे तक कविता-पाठ जारी रहा। मथुरा की भूमि, ब्रजभाषा मे श्रीकृष्णचरित की कविता, भावुक भक्त-शिरोमणि स्वामी रामतीर्थ का दरबार, इन्हें और क्या चाहिये था:
"मद्भाग्योपचयादयं समुदित: सर्वोगुणानां गणः ।"