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इन विजयचंद्राचार्य की उत्पत्ति ऐसे है। मंत्री वस्तुपाल के घर में विजयचंद्र नामा दफतरी धा। वो किसी अपराध से जेलखाने में कैद हुआ, तब देवभद्र उपाध्याय ने दीक्षा की प्रतिज्ञा करवा कर छुडा दिया। पीछे तिसने दीक्षा लीनी। सो बुद्धिबल से बहुश्रुत हो गया नब मंत्री वस्तुपाल ने कहा कि ये अभिमानी है, इस वास्ते सूरि पद के योग्य नहीं हैं। इस तरह मना करने पर भी जगचंद्र सूरि जी ने देवभद्र उपाध्याय के कहने से सूरि पद दे दिया। यह देवेन्द्रसरि का सहायक होवेगा, ऐसा जान कर सूरि पद दिया। पीछे वह विजयचंद्र बहुत काल तक देवेंद्र सूरि के साथ विनयवान् शिष्य की तरह वर्त्तता रहा। परन्तु जब मालव देश से देवेंद्र सूरि आये, तब वंदना करने को भी नहीं आया। तब देवेंद्र सूरिजी ने कहला भेजा कि एक वस्ती में तुम बारह वर्ष कैसे रहे ? तब विजयचंद्र ने कहा कि शांत दांतों को बारह पई एक जगह में रहने से कुछ दो नहीं। सवित्रसाधु सर्व देवेंद्रसूरि के साथ रहे, और देवेंद्र सूरिजी नो अनेक संविग्न साधु समुदाय के साथ उपाश्रयमें ही रहे। तब लोकोने वहीशाला में रहने से विजयचंद्र सूरि के समुदाय का नाम वृद्ध पौशालिक रमवा और देवेंद्र सूरिजी के समुदाय का लघुपौशालिक नाम दिया। और स्थंभतीर्थ के चौक में कुमारपाल के विहार में धर्मदेवानामें मंत्री वस्तुपाल ने चारों वेदों का निर्णयदायक, स्वसमय परसमय के जानकार देवेंद्र सूरिजी को वंदना दे के बहुमान दिया। और देवेंद्रसूरिजी विजयचंद्र की उपेक्षा करके विचरते हुये क्रम से पाल्हणपुर में आये। तहां चौरासी इभ्य सेठ अनेक पुरुषों के साथ परिवरे, सुखासन ऊपर बैठे हुये, शास्त्र के बड़े श्रोता व्याख्यान सुनने आते थे। और पालनपुर के विहार में रोज की रोज एक मूढक प्रमाण अक्षत और सोलह मन सोपारी दर्शन करने वाले श्रावकों की चढाई चढती थी, इत्यादि। बडे धर्मी लोगों ने गुरु को विनति करी कि 'हे भगवन् ! यहां आप किसी को आचार्य पदवी देकर हमारा मनोरथ पूरा करो। तब गुरु ने उचित जान के पालनपुर में विक्रम संवत् १३२३ में विद्यानंद सूरि नाम दे के वीरधवल को सूरिपद दीना; और तिस के अनुज भीमसिंह को धर्मकीर्ति उपाध्याय की पदवी दीनी। तिस अवसर में प्रह्लादन बिहार के सौवर्ण कपिशीर्ष मंडप से कुंकुम की वर्षा हुई, तब सर्व लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। श्री विद्यानंद सूरि ने विद्यानंद नाम नवीन व्याकरण बनाया, यदुक्तम्
'विद्यानंदाभिधं येन कृतं ज्याकरणं नवम्। भाति सर्वोत्तम स्वल्पसूत्रं बर्थसंग्रहम् ।। पीछे श्री देवेंद्र सूरिजी फिर मालवे को गये। देवेंद्र सूरिजी के करे हुये ग्रंथो का नाम लिखते हैं:-१. श्राद्धदिनकृत्पसूत्रवृत्ति, २. नव्यकर्मग्रंथपंचकसूत्रवृत्ति, ३, सिद्धपंचाशिकासूत्रवृत्ति, ४. धर्मरत्नवृत्ति, ५, सुदर्शनचरित्र, ६. तीन भाष्य, ७. वृंदारवृत्ति, ८, सिरिउस्सहबद्धमाण प्रमुख स्तवन । कोई कहते हैं कि श्राद्धदिनकृत्यसूत्र नो चिरंतन आचार्यों का करा है। विक्रम संवत् १३२७ में मालवदेश में देवेंद्र सूरि स्वर्गवास हुए।