Book Title: Karmagranthashatkavchurni
Author(s): Gunratnasuri, Mahabodhivijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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शतकनामा पञ्चमः कर्मग्रन्थः
ननु क्षयोपशमोऽपि उदिते काँदो क्षीणेऽनुदिने चोपशान्ते, उपशमोऽप्येवं तनः को विशेषः ? आह- क्षयोपशमे नदावरणकर्मणः प्रदेशताऽनुभवोऽस्ति, उपशमे तु स न विद्यते । यतः - 'एइ संतकम्म खओक्समिएत्य नाणुभावं सो उपसंतकसाओ पुण वेएइ न संतकम्मपि।
[विशे० गा० १२९३] ॥९८॥ अणमिच्छमीससम्म तिआउइगविगलथीणतिगुज्जोयं । तिरिनस्यथावरदुगं साहारायवअडनपुत्थी ।।९।।
अण. त्ति आउ' ति देवनारकतिर्यगरूपमायुत्रिकम् । 'अड' नि अप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणरूपं कषायाष्टकम् ॥९९||
छगपुमसंजलणादोनिदाविग्धवरणखए नाणी । देविंदसूरिलिहियं सयगमिणं आयसरणट्ठा ॥१०॥ छगः हास्यरत्यरतिशोकभपजुगुप्सारूपं हास्यषट्कम् ।।१००॥
॥ इति शतकावचूरिः ॥

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