Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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गाथा ४६, ५०,५१
१८७-१९५ एकेन्द्रियादि जीवों की अपेक्षा स्थितिबंध में अल्पबहुत्व का विचार
१८६ गाथा ५२
१६६-१६६ स्थितिबंध के शुभत्व और अशुभत्व का कारण
१६६ स्थितिबंध और अनुभागबंध सम्बन्धी स्पष्टीकरण १९७ गाथा ५३, ५४
१६६-२०६ योग और स्थितिस्थान का लक्षण
२०० जीवों की अपेक्षा योग के अल्पबहुत्व और स्थितिस्थान का विचार
२०२ गाथा ५५
२०६-२०८ अपर्याप्त जीवों के प्रतिसमय होने वाली योगवृद्धि का प्रमाण
२०६ स्थितिबंध के कारण अध्यवसायस्थानों का प्रमाण २०७ गाथा ५६, ५७
२०८-२१३ पंचेन्द्रिय जीव के जिन इकतालीस कर्म प्रकृतियों का बंध अधिक से अधिक जितने काल तक नहीं होता, उन प्रकृतियों और उनके अबन्ध काल का निरूपण
२०६ गाथा ५८
__ २१४-२१५ उक्त इकतालीस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अबन्धकाल का
स्पष्टीकरण गाथा ५६, ६०, ६१, ६२
२१६-२२४ अध्र वबंधिनी तिहत्तर प्रकृतियों के निरन्तरबंध काल का
निरूपण गाथा ६३, ६४
२२४-२३३ शुभ और अशुभ प्रकृतियों में तीव्र तथा मन्द अनुभाग . बंध का कारण
२२४
२१४
२१८
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