Book Title: Karmagrantha Part 5 Shatak
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स्थितिबन्ध का प्रमाण द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थितिबन्ध का प्रमाण आयुकर्म की उत्तर प्रकृतियों की जघन्य स्थिति
१५४ गाथा ३६
१५५-१५६ जघन्य अबाधा का प्रमाण तीर्थंकर और आहारकाद्वक नामकर्म की जघन्य स्थिति के
सम्बन्ध में मतान्तर गाथा ४०, ४१
१५७-१६० क्षुल्लकभव के प्रमाण का विवेचन
१५८ गाथा ४२
१६०-१६८ तीर्थंकर, आहारकद्विक और देवायु के उत्कृष्ट स्थितिबंध के स्वामी व तत्सम्बन्धी शंका-समाधान
शेष प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध के स्वामी गाथा ४३, ४४, ४५
१६८-१७६ चारों गति के मिथ्यादृष्टि जीव किन-किन प्रकृतियों के उत्कृष्ट स्थितिबंध के स्वामी हैं ? जघन्य स्थितिबंध के स्वामियों का कथन
१७४ गाथा ४६
१७६-१८० मूल कर्म प्रकृतियों के स्थितिबंध के उत्कृष्ट आदि भेदों में सादि वगैरह भंगों का विचार
१७७ गाथा ४७
१८०-१८३ उत्तर कर्म प्रकृतियों के स्थितिबंध के उत्कृष्ट आदि भेदों ।
में सादि वगैरह भंगों का विचार गाथा ४८
१८४-१८७ गुणस्थानों की अपेक्षा स्थितिबंध का विचार .
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