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बाल-मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं को मुख्यतया अभिभावकों को ध्यान में रखना चाहिए। बालक की हर गतिविधि और व्यवहार को उन्हें समझना चाहिए।आखिर व्यवहार ही तो वह माध्यम है जिसके द्वारा हम उसके स्वभाव को समझ सकते हैं। मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण मुख्यतया उसके स्वभाव पर ही आधारित है। किसका स्वभाव कैसा है, अगर यह जानना है तो पहले हम यह जानें कि उसका व्यवहार-बर्ताव कैसा है?
हम इस बात पर ध्यान दें कि बालक अपनी बात न माने जाने पर चीखता-चिल्लाता है, या समझाने पर मान जाता है; हाथ में आये हुए पैसे की बचत करता है या फिजूल-खर्ची में उसका उपयोग कर बैठता है। किताबों से प्रेम करता है या उन्हें फाड़ने की कोशिश करता है। कुछ बच्चे इशारे मात्र से समझ जाते हैं, तो कुछ पीटे जाने पर भी नहीं सुधरते। बच्चे का इस हर तरह का उपक्रम हमें उसके स्वभाव का अहसास कराता है। ____ वातावरण, शिक्षा और अनुभव-ये तीन तत्त्व ही बालक के व्यक्तित्व के आधार बनते हैं। बालक का सबसे ज्यादा सम्बन्ध वातावरण और पर्यावरण से होता है। वह वातावरण से प्रभावित होकर ही संवेदना की प्रतीति करता है। संवेदना उसकी उत्सुकता को जगाती है। उसी से प्रत्यक्षीकरण की क्रिया होती है जिससे उसे वातावरण का ज्ञान होता है। इस ज्ञान से उसे सुख या दुःख की अनुभूति होती है। वह उस ज्ञान की स्मृति एवं पुनरावृत्ति करता है जिसे उसने प्राप्त किया है। वह नयी वस्तु की कल्पना करता है और प्राप्त ज्ञान के बारे में खुद-ब-खुद चिन्तन करता है। वह चिन्तन उसके भीतर तक शक्ति का संचार करता है। इस सारी प्रक्रिया से गुजरने के बाद वह जिस निष्कर्ष पर पहुँचता है, वही निर्णय कहलाता है। यही उसकी अनुभूतिजन्य मानसिक क्रिया है।
बालक का सही मानसिक विकास हो, अभिभावक और परिवारजनों को इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए। प्रत्येक बालक अपने विकास की आखिरी ऊँचाई को छू सकता है। बालक के लिए उसका परिवार, वातावरण -- -------------
कैसे करें व्यक्तित्व-विकास
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