Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 78
________________ मनोवृत्ति हो जाती है, उनको वे सबसे श्रेष्ठ मानने लग जाते हैं और जिनके प्रति उनकी प्रतिकूल मनोवृत्ति होती है, उनको वेगलत और निकृष्ट साबित करने की कोशिश करते हैं। एक मुस्लिम बच्चे द्वारा कुरआन को श्रेष्ठ या रामायण को साधारण कहने अथवा किसी हिन्दू बच्चे द्वारा रामायण को श्रेष्ठ या कुरआन को साधारण बताना वास्तव में इस अनुकूल-प्रतिकूल मनोवृत्ति का ही परिणाम है। पर ये सब व्यक्तिगत प्रेरक वृत्तियाँ हैं। कुछ वृत्तियाँ ऐसी होती हैं जो सार्वभौम होने के कारण सामाजिक कही जाती हैं। अस्तित्व के हर अंश में सामुदायिकता या सामाजिकता का स्पष्ट व्यवहार नजर आता है। बच्चे के मन में इस प्रेरक वृत्ति का जन्म आश्रितता के फलस्वरूप होता है। सामुदायिकता के विकास का सूत्रपात माँ से होता है और धीरे-धीरे समुदाय या समाज उसके जीवन की वह अनिवार्य कड़ी बन जाता है जिसके साथ मिल-जुलकर काम करना उसे सुहाता है। सामाजिक परिवेश में जीने के कारण मनुष्य के मन में यह प्रेरणा उत्पन्न होती है कि वह औरों के बीच अपनी स्थापना कैसे करे? मनुष्य की वह वृत्ति ही वास्तव में आत्म-गौरव कहलाती है। इस वृत्ति से आन्दोलित होकर ही व्यक्ति दूसरों पर अपना अधिकार जमाना चाहता है, समाज का नेतृत्व करना चाहता है और औरों के बीच अपनी प्रतिष्ठा कायम करना चाहता है। हमारे मन में जगने वाली प्रेरक वृत्तियों के अनेकानेक व्यावहारिक लाभ भी हैं। प्रेरक वृत्ति के प्रभाव-स्वरूप ही समस्त शारीरिक तथा मानसिक क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। अपने उद्देश्य की आपूर्ति के लिए मनुष्य की प्रेरक वृत्तियाँ जहाँ उसमें शक्ति का संचार करती हैं, वहीं सफल होने पर वे उसे गौरवान्वित भी महसूस करवाती हैं। व्यक्ति या बच्चा जो भी क्रियाएँ करता है, वह निश्चित तौर पर किसी-न-किसी आवश्यकता से अनुप्रेरित होकर ही करता है। आवश्यकता की पूर्ति ही वास्तव में उद्देश्य की पूर्ति है। आखिर आवश्यकता के कारण ही तो उसके व्यवहारों एवं कार्यों का उद्देश्य बच्चों को दीजिए बेहतरीन प्रेरणा ७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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