Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 89
________________ बैठते हैं। परिणाम यह होता है कि उसकी जिज्ञासा का दमन हो जाता है और वह धर्म - विमुख होकर धार्मिक व्यवहारों को कोरा पाखण्ड मानने लगता है। वास्तव में बच्चों को डाँट नहीं, वरन् अपने प्रश्नों का समाधान चाहिए। उचित तो यह है कि धार्मिक ज्ञान के अभाव में माता-पिता यदि उन्हें संतोषजनक उत्तर न दे सकें तो उन्हें प्रबुद्ध लोगों से प्रश्न पूछने की सलाह दें। बच्चों को उनके प्रश्नों के धार्मिक समाधान के लिए कुछ सम्बन्धित पुस्तकें दी जाएँ ताकि वे खुद छानबीन कर स्वयं सन्तुष्ट हो सकें । धार्मिक दृष्टि से बालकों की पन्द्रह से सत्रह वर्ष की अवस्था और बालिकाओं की चौदह-पन्द्रह वर्ष की अवस्था वास्तव में अन्तर्द्वन्द्व की अवस्था है। वे भटकाव की स्थिति से गुजरें, उससे पहले धार्मिक विकास एक निश्चित और आदर्श रूपरेखा तैयार हो जानी चाहिए ताकि जीवन का मार्ग निष्कंटक और प्रशस्त होने में सुविधा रहे। वैज्ञानिक और बुद्धिगम्य धर्म ही आचरित हो पाता है। इसलिए धर्म के किसी भी विचार, सिद्धान्त या दृष्टि को स्थापित करने से पहले उसकी वैज्ञानिकता और व्यावहारिकता अवश्य तोल लेनी चाहिए। अंधश्रद्धा प्रबुद्ध मानवता के द्वारा सम्भव नहीं है। इंसान होकर इंसान के काम आना, दीनदुःखियों की सेवा करना धर्म का व्यावहारिक स्वरूप है तो मन के दोषों व विकारों को दूर करना धर्म का मूल स्वरूप है। जीवन में श्रेष्ठता, शुद्धता अर्जित करने के लिए हमें धर्म के इन दोनों मापदण्डों को जीना चाहिए। 000 ८२ Jain Education International कैसे करें व्यक्तित्व - विकास For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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