Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 9
________________ जीवन में जो कुछ होना होता है, उसका बीजारोपण उसकी आठ साल की उम्र तक हो जाता है जिसे हम शैशव या बाल्यकाल कहते हैं। सच तो यह है कि जीवन का पूरा रूप उस अवस्था में तैयार हो जाता है। फ्रायड तो यह मानते थे कि मनुष्य चार-पाँच साल की उम्र में जो बनने को होता है, बन जाता है। बाल्यकाल वास्तव में जीवन का 'शिक्षण-काल' है। मातृ-भाषा का सहज आविष्कार इसी वय में ही होता है। मनुष्य अपने बाल्यकाल में भाषा और कौशल का जैसा अभ्यास करता है और जैसा सामाजिक ज्ञान सीखता है, वही आगे चलकर विश्व-ज्ञान में परिणत होता है। यदि बाल्यकाल में जीवन की सही पगडण्डी हाथ लग जाए तो व्यक्तित्व के विकास में कहीं कोई खतरा नहीं है। बालक कैसा है, यह एक अलग बात है। उसे कैसा होना चाहिए, यह जीवन का मूल मुद्दा है। बालविकास का मूल सम्बन्ध उसकी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के विकास से है। बालक के व्यक्तित्व का हर दृष्टि से समुचित विकास होना चाहिए।शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक और चारित्रिक पहलुओं को हमें बाल-विकास के साथ मुख्यतया जोड़ना चाहिए। विकास के ये द्वार तब तक खुले रहने चाहिए जब तक वह 'बालक' है। बाल्यावस्था से अभिप्राय जन्म से बारह वर्ष तक ही नहीं है, वरन तब तक है, जब तक उसके शारीरिक और मानसिक उद्वेगों में परिवर्तन और विकास संभावित है। बालक का विकास तो गर्भ से ही प्रारम्भ हो जाता है और ठेठ किशोरावस्था तक चालू रहता है। इसलिए गर्भकाल से लेकर इक्कीस वर्ष की उम्र तक जीवन की मूल बुनियाद स्थापित होती है, पर पन्द्रह वर्ष से इक्कीस वर्ष की उम्र तक किशोरावस्था एक ऐसी महत्त्वपूर्ण अवस्था है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन और व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इस उम्र में हमारे यौन-केन्द्रों का जिस ढंग से विकास होता है, उसके चलते हमारी क्रिया-प्रतिक्रियाओं में, मनोवृत्तियों में, जीवन-पद्धति में - - - - - कैसे करें व्यक्तित्व-विकास - - - - - - - - - - - - - - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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