Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 17
________________ अन्त:-ग्रन्थियों में कोई विकृति तो नहीं है, कोई विरूप जीवाणु तो नहीं है । गर्भस्थ शिशु के विकास पर माँ के रोग और स्वास्थ्य का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। सुजाक से पीड़ित महिलाओं के या तो गर्भपात हो जाता है या फिर शिशु में बुद्धिहीनता, अन्धापन या बहरापन आ जाता है। तपेदिक या मधुमेह हो तो गर्भस्थ शिशु का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता। एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए माँ का स्वस्थ होना अपरिहार्य है। माता को चाहिए कि वह भोजन भी इतना सन्तुलित और संयमित करे कि गर्भस्थ शिशु को किसी प्रकार के कुपोषण का शिकार न होना पड़े । सन्तुलित आहार की कमी के कारण ही गर्भस्थ शिशु का वजन और कद दोनों ही कम हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उसकी हड्डियाँ भी कमजोर हो जाती है। गर्भस्थ शिशु पर माता की मादकता तथा व्यसनशीलता का सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है। जो महिलाएँ धूम्रपान करती हैं, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सिगरेट में 'निकोटीन' होता है। यह एक ऐसा विषैला पदार्थ है जिसके उपयोग से रक्तचाप / ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। तम्बाखू का सेवन करने से हृदयगति में बाधा आती है। एक स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए माता-पिता का स्वस्थ एवं व्यसनमुक्त होना अनिवार्य शर्त है । गाँवों में छोटी उम्र में ही शादी-विवाह हो जाते हैं। मैंने इस सन्दर्भ में जब जाँच-पड़ताल की तो यह बात स्पष्ट हो गई कि परिपक्व उम्र के मातापिता के बच्चे कच्ची उम्र के माता-पिता के बच्चों की अपेक्षाकृत अधिक बुद्धिमान होते हैं। माता के संवेगों और व्यवहारों का भी गर्भस्थ शिशु पर बहुत अधिक असर पड़ता है। माता का क्रोधित, चिन्तित य तनाव ग्रस्त होना बच्चे के मस्तिष्क की संरचना को कमजोर करता है । क्रोध और चिन्ता के कारण गर्भस्थ शिशु को संकुचित आहार मिलता है। माता का रक्त ही उसका भोजन होता है और निश्चित तौर पर एक क्रोधित माँ का रक्त उत्तेजनापूर्ण ही होगा। एक चिन्तित माँ का रक्त सुप्त और शिथिल होगा । उसकी गति कैसे करें व्यक्तित्व - विकास १० Jain Education International For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org

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