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कम दो सौ से तीन सौ शब्दों का ज्ञान हो जाता है। ३ वर्ष की आयु में तो उसकी पहुँच हजार शब्दों तक हो जाती है।
भाषा की परिपक्वता और शब्दों का बाहुल्य वास्तव में बच्चे के विद्यालय जाने के बाद ही प्रारम्भ होता है। पाठ्य-पुस्तकों को पढ़ने से, कहानियों अथवा समाचार-पत्रों को वाँचने या रेडियो और टेलीविजन के जरिए उसे अनेकानेक नये-नये शब्दों का ज्ञान होता है। वह बोल-बर्ताव में उनका संगीन प्रयोग करने लगता है। मेकर्थी और स्मिथ ने जो मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन किया, वह तो बड़ा चौंकाने वाला है। उनके अनुसार प्रथम कक्षा में बीस-पच्चीस हजार, छठी कक्षा में पचास हजार और हाई स्कूल में बालक को अस्सी हजार शब्दों का ज्ञान हो जाता है। वह उन्हें समझने लग जाता है अथवा बातचीत में उनका उपयोग भी करने लग जाता है। पूर्ण विकसित मनुष्य को एक समय में पाँच लाख शब्द याद रहते हैं।
जीवन में भाषा-विकास के लिए केवल शब्द-भण्डार ही पर्याप्त नहीं है अपितु व्यवहार में उनका समुचित प्रयोग भी आवश्यक है। एक मृदु भाषी व्यक्ति जितना सामाजिक हो सकता है, उतना अनर्गल संवादी नहीं। संस्कृति और सभ्यता का विकास वास्तव में भाषा के सम्यक् व्यवहार की भित्ति पर ही आधारित है। इसलिए भाषा के विकास का इतिहास वास्तव में संस्कृति और सभ्यता के विकास का ही इतिहास है। इसे हम दूसरे शब्दों में बुद्धि-विकास का इतिहास कह सकते हैं।
परीक्षण से तो यह पता चलता है कि भाषा औ सभ्यता दोनों का विकास साथ-साथ होता है। भाषा का जैसे-जैसे सम्यक् विकास होता है, जीवन में मानवीय सभ्यता उसी त्वरा से अभिवर्धित होती है। आखिर हमारी सभ्यता हमारी भाषा में ही तो व्यक्त होती है। हमारी भाषा ही हमारी सभ्यता का परिचय देती है। यदि किसी व्यक्ति की बौद्धिक योग्यता को परखना है तो भाषा और भाषा-शैली ही उसका कारगर मापदण्ड है। ----------------
कैसे करें व्यक्तित्व-विकास
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