Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 39
________________ भावनाओं का ध्यान रखें। उनसे उनकी क्षमता से ज्यादा काम भी नहीं लेना चाहिए और न ही बेवजह जरूरत से ज्यादा दण्डित करना चाहिए। घर के प्रेमपूर्ण वातावरण से बच्चे की अन्तश्चेतना में अक्रोध का भाव बनता है । बच्चे को क्रोध - मुक्त रखने के लिए परिस्थितियों को प्रतिकूल न होने देना बेहतर है। घर-परिवार की प्रसन्नता बच्चे को खुश मिजाज रखती है और बच्चे की खुश मिजाजी घर-परिवार को हँसता - खिलता चमन बनाती है। क्रोध की उत्पत्ति का कारण जो भी हो, उसका हमारे मन, मस्तिष्क, शरीर और व्यवहार पर हमेशा बुरा असर ही पड़ेगा। छोटी-छोटी-सी बातों पर चिड़चिड़ा उठना, आग बबूला हो जाना या हो-हल्ला करने लगना जहाँ हमारे व्यक्तित्व की ख़ामी है, वहीं ये हमारी व्यावहारिक लोकप्रियता को भी आघात पहुँचाते हैं। यह बात सही है कि कभी-कभी विशेष परिस्थितियों के साथ समायोजन स्थापित करने में क्रोध से कुछ मदद मिलती है । अन्याय के विरोध में भी क्रोध अपनी कुछ भूमिका निभा सकता है। कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में कभी-कभी क्रोध भी साहस और शक्तिवर्धक हो जाता है, किन्तु आमतौर पर तो क्रोध और उसकी किसी भी अभिव्यक्ति की प्रबुद्ध मानवता द्वारा भर्त्सना ही की जाती है। मानसिक क्रोध कभी-कभी अच्छा फल भी दे देता है, पर उसे अच्छा कैसे कहा जाए जिससे व्यक्ति अपना आपा खो बैठे। जीवन के लिए आत्मविस्मृति से बड़ा जघन्य अपराध क्या होगा, और सच तो यह है कि अपना आपा खोना वास्तव में आत्म विस्मृति से ही साक्षात्कार है। यदि आप चाहते हैं कि आपका और आपके बच्चे का हृदय और मस्तिष्क स्वस्थ तथा सुरक्षित रहे, तो क्रोध से बचिए। क्रोध के समय माँ अगर बच्चे को दूध पिलाती है तो वह दूधपान भी विष के समान होता है। क्रोध से बचना, स्वभाव को शान्त और मृदु रखना अपनी आत्म - ऊर्जा को बचाने का सहज-सरल उपाय है । I m ३२ - Jain Education International 000 कैसे करें व्यक्तित्व - विकास For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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