Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 43
________________ मानसिकता स्वस्थ है तो छिपकर मिलना क्यों ? यदि युवक-युवतियाँ अपने माता-पिता और भाई-बहिनों की उपस्थिति में मिलें तो हमारे प्रेम की अभिव्यक्ति और उसकी स्वस्थता में कोई भी प्रश्न-चिह्न नहीं लगाएगा । आज वास्तव में इस बात की जरूरत है कि माता-पिता या घर के अभिभावक अपने बच्चों की मानसिकता को परिपक्क करने में सहयोगी बनें। उन्हें अपना मित्र मानकर उचित स्नेह, सहयोग, प्रोत्साहन और मार्ग - दर्शन दें। युवा वर्ग को भी चाहिए कि वह सिनेमा के रंगीन और चमकते घेरे से बाहर निकलें तथा अपनी स्वस्थ मानसिकता से प्रेम और मित्रता के पवित्र बन्धन को निभाएँ । इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रेम समाज का सेतु है, जीवन की भावनात्मक शक्ति है, परन्तु इसके क्षेत्र का सीमित रहना प्रेम का दमन है । नतीजा यह निकलता है कि बच्चा अपने माता-पिता या भाई-बहिन से प्रेम करने लगता है, परन्तु अन्य आयामों के प्रति उपेक्षित और उदास रहता है। उसमें विश्व बन्धुत्व के कोमल भाव अंकुरित और प्रफुल्लित नहीं हो पाते जिसकी प्रत्येक से आशा की जाती है । हमारा प्रेम ऐसे व्यक्ति, वस्तु या विचार के प्रति भी गिरवी नहीं होना चाहिए जो समाज -विरोधी हो । हमारा संवेग या भाव चाहे प्रेम के रूप में हो या किसी अन्य रूप में, इसकी सार्थकता, संदिग्धता के घेरे मे न आए। प्रेम की विराटता को साकार करने के लिए ही बच्चों को यह प्रतिज्ञा और भावना प्रदान की जाती है कि भारत मेरा देश है और सभी भारतीय मेरे भाई-बहिन है। माता-पिता, अभिभावक व शिक्षकों का परम कर्तव्य हो जाता है कि वे अपने बच्चे को ऐसे प्रेम, मित्रता और भाईचारे के लिए प्रोत्साहन दें ताकि वह एक सुयोग्य नागरिक बनकर सम्पूर्ण मानवता का हिमायती हो, विश्व बन्धुत्व एवं विश्व - प्रेम का अनुमोदक हो । वह सम्पूर्ण विश्व को एक वृहत् परिवार समझे, साथ ही सक्रिय योगदान दे सके मानवसमाज के कल्याण में, विश्व - शान्ति के अभियान में । ३६ - Jain Education International - For Personal & Private Use Only 000 कैसे करें व्यक्तित्व - विकास www.jainelibrary.org

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