Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 67
________________ - अनुभूतिजन्य चिन्तन ही हमारी तर्क शक्ति को पौष्टिकता देता है। तर्क अतीत के अनुभवों को इस प्रकार मिलाता है कि समस्या का समाधान हो जाए । तर्क चिन्तन को परिणाम के और नजदीक ले जाता है। तर्क के लिए सोच जरूरी है। स्मृति और निरीक्षण के द्वारा तर्क समस्या का समाधान निकालने में कारगर होता है। चिन्तन तो मात्र विचार करना है, जबकि तथ्यों में पारस्परिक मेल बैठाना तर्क का काम है। जिसकी बुद्धि जितनी कुशाग्र होगी, उसका चिन्तन और तर्क उतना ही प्रखर होगा । चूँकि बच्चे का बौद्धिक विकास परिपूर्ण नहीं हो पाता है इसलिए यह स्वाभाविक है कि वयस्क की अपेक्षा उसकी तार्किक और वैचारिक शक्ति सीमित होगी। बच्चे का चिन्तन आत्म- केन्द्रित होता है जबकि वयस्कों का चिन्तन भी वस्तुगत होता है और उसका सम्बन्ध भी सारे वातावरण से होता है । चिन्तन के स्तर में भी दोनों में फर्क होता है। समस्या को हल करने की प्रवृत्ति भी बच्चे की अपेक्षा वयस्क की ज्यादा तीव्र होती है। बच्चे की चिन्तन- क्षमता की जो सबसे बड़ी कमी होती है, वह यह है कि उसकी सोच का सम्बन्ध केवल वर्तमान से होता है, जबकि बड़े होने पर वह भूत और भविष्य का भी चिन्तन और कल्पना कर सकता है। वयस्क होने पर उसका चिन्तन सूचना, अनुभव तथा ज्ञान पर आधारित होता है। शिक्षा, वातावरण और अनुभव - चिन्तन-शक्ति के विकास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए बच्चे की श्रेष्ठ शिक्षा के लिए हमें भरपूर प्रयास करना चाहिए। आज का शिक्षित बालक कल के परिवार और समाज का शिक्षित आधार होगा । बेहतर होगा कि घर-परिवार का वातावरण हम इतना प्रेम और सम्मान से भरा रखें कि बच्चे के चिन्तन पर कभी दूषित प्रभाव न पड़े। हम भाई-बहिन, पति-पत्नी यदि आपस में झगड़ेंगे, गाली-गलौच करेंगे या गलत आदतों के शिकार होंगे तो यह मान कर चलिये कि बच्चे पर भी उसका असर पड़े बिना न रहेगा। एक प्रसंग में अध्यापक ने छात्र को डाँटते कैसे करें व्यक्तित्व - विकास ६० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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