Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 75
________________ निष्कासित हो जाता है। पानी के अभाव में व्यक्ति बेचैनी और व्यग्रता महसूस करने लगता है। उचित तो यह रहता है कि हम वैसा आहार करें जिसमें पानी की मात्रा या आर्द्रता पर्याप्त हो। पानी के अतिरिक्त दूध और विभिन्न सब्जियों एवं फलों में भी पानी की पर्याप्त मात्रा होती है। भूख और प्यास की तरह नींद भी हमारी एक जन्मजात शारीरिक वृत्ति है। नींद प्राणी-मात्र के लिए उतनी ही जरूरी है जितना जीने के लिए भोजन। यह हर प्राणी की प्राकृतिक आवश्यकता है। शारीरिक और मानसिक थकान दूर करने के लिए नींद ली जाती है। वयस्कों की अपेक्षा बच्चे ज्यादा नींद लिया करते हैं। नवजात शिशु बीस से बाईस घण्टे तक सोते हैं। वे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, वैसे-वैसे उनके नींद लेने का समय कम होता जाता है। एक वर्ष की आयु वाला बालक प्रतिदिन चौदह से पन्द्रह घण्टे सोता है। सात वर्ष का बालक ग्यारह घण्टे, दस वर्ष का नौ-दस घण्टे जबकि अठारह वर्ष के बालक को सात-आठ घण्टे सोने की आवश्यकता होती है। जो बच्चा अपनी उचित मात्रा में नींद ले लेता है, उसे शारीरिक या मानसिक थकान महसूस नहीं होती और उसके जीवन में स्वास्थ्यकर प्रगति होती है। मनुष्य की जन्मजात प्रेरक वृत्तियों में काम-प्रवृत्ति बड़ी प्रबल होती है। फ्रायड ने तो एकमात्र इसी प्रवृत्ति के आधार पर जीवन के सम्पूर्ण मनोविज्ञान का विश्लेषण किया है। उनके अनुसार बच्चे द्वारा माँ का स्तन या अपना अंगूठा चूसना भी उसकी काम-प्रवृत्ति का ही परिचायक है। उम्र की बढ़ोतरी के साथ काम-प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति में भी फर्क आ जाता है। बचपन में माँ से प्रेम करने वाला बालक किशोर होने पर विपरीत लिंग को अपने प्रेम का पात्र बना लेता है। कभी-कभी किशोर मान्य प्रथाओं तथा परम्पराओं का अतिक्रमण कर गुप-चुप एक-दूसरे से मिलकर अपनी बेचैनी दूर कर लेते हैं। प्रेम-पत्रों, प्रेम-सन्देशों या प्रेमोपहारों द्वारा भी व्यक्ति अपनी काम-प्रवृत्ति की तृप्ति कर लेता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार काम-प्रवृत्ति का दमन हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ------------- ६८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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