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देना। वुडवर्थ ने ठीक ही लिखा है- 'प्रेरक-वृत्ति व्यक्ति की वह अवस्था अथवा तत्परता है जो उसे किसी व्यवहार को करने के लिए एवं किन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित करती है।'
प्रेरक वृत्तियाँ वास्तव में दो प्रकार की होती हैं, जिनमें एकतोजन्मजात होती है और दूसरी समाज द्वारा अर्जित की जाती है। जन्मजात प्रेरकवृत्तियों से अभिप्राय उन वृत्तियों से है जो व्यक्ति में जन्म से पायी जाती हैं। ऐसी वृत्तियों की तृप्ति व्यक्ति अनिवार्यत: चाहता है क्योंकि ये शारीरिक वृत्तियाँ होती हैं। जैसे भूख, प्यास, नींद, काम, मल-मूत्र विसर्जन आदि। वृत्तियाँ वास्तव में जीवन की अति-आवश्यक शरीरजनित प्रेरक वृत्तियाँ हैं जिनकी पूर्ति के अभाव में जैविकीय प्रश्न-चिह्न लग जाता है।
भूख वह वृत्ति है जिसका जन्म न केवल मनुष्य में, वरन् प्राणिमात्र में होता है। भोजन मनुष्य की आवश्यकता है, प्राणिमात्र की आवश्यकता है। शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा लगातार कार्य करते रहने पर शरीर की जो शक्ति नष्ट हो जाती है, उसे दुबारा प्राप्त करने के लिए आहार की जरूरत हो जाती है, उसे दुबारा प्राप्त करने के लिए आहार की जरूरत पड़ती है। ___भूख की प्रवृत्ति एक बड़े व्यक्ति की अपेक्षा एक बच्चे में ज्यादा होती है। एक व्यक्ति अपनी भूख को कई घण्टों तक बर्दाश्त कर सकता है, कई दिनों तक उपवास कर सकता है, पर बच्चे के लिए यह सब संभव नहीं है। बच्चे में भूख की प्रवृत्ति बड़ी उग्र होती है। उसे थोड़ी-थोड़ी देर में ही भूख लग जाया करती है। कई माता-पिता बच्चे की इस प्रवृत्ति से तंग हो उठते हैं जबकि बच्चे को उसकी भूख के मुताबिक प्रेमपूर्वक खाना-पीना देना चाहिए। अगर बच्चे के लिए यह नियम बना दिया जाए कि उसे चार-पाँच बार भोजन देना है तो और भी अच्छा रहेगा। इसके द्वारा उसके शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ नियम और अनुशासन की प्रवृत्ति भी जागृत हो सकती है। ___प्यास हमारी दूसरी प्रेरक-वृत्ति है। इस वृत्ति के कारण ही व्यक्ति जल चाहता है। हम जो जल पीते हैं वह पसीना, पेशाब और श्वास के द्वारा
बच्चों को दीजिए बेहतरीन प्रेरणा
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