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हुए कहा, 'बदतमीज ! चोरी करता है? बच्चे ने कहा, 'मेरे पापा चोरी करते हैं तो मैं तो करूँगा ही ।'
दूसरे प्रसंग में अध्यापक ने बच्ची से पूछा, 'तुम सबके साथ इतनी आत्मीयता, सम्मान और विनम्रता से पेश आती हो, आखिर इसका कारण क्या है ?" बच्ची ने कहा, 'यह कोई नई बात नहीं है । मेरे परिवार में सभी लोग एक-दूसरे के साथ ऐसे ही पेश आते हैं।' जैसा वातावरण, व्यक्ति की मानसिकता एवं चिन्तन पर वैसा ही प्रभाव । आखिर उसे तदनुरूप ही अनुभव भी होंगे जो कि उसकी चिन्तन- धार को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त आधार बन जाते हैं ।
व्यक्ति या बच्चे में चिन्तन और तर्क का भली-भाँति विकास एवं समन्वय हो, इसके लिए प्रयत्न और सावधानी अपेक्षित है। बच्चे के किसी समस्या पर खुद सोचने के लिए अवसर दिया जाए। उसके मस्तिष्क में वैज्ञानिक, गणितीय और व्यावहारिक विकास हो, ऐसा प्रयत्न किया जाए। उससे प्रश्न - प्रतिप्रश्न किए जाएँ, समय-समय पर उससे सलाह मांगी जाए, ताकि वह खुद सोचने में सक्षम हो सके, चिन्तन में निरन्तरता आ सके। समस्याओं के समाधन के लिए वह स्वयं मौके-बे-मौके अपना निर्णय ले सके। बच्चे द्वारा की जाने वाली जिज्ञासा की उपेक्षा न करें। बच्चे की जिज्ञासा चिन्तन का उदय है। हम उसकी जिज्ञासा का सन्तोषजनक समाधान करें । चिन्तन-शक्ति का विकास सफल व्यक्तित्व श्रेष्ठ आधार है।
चिंतन शक्ति का तार्किक विकास
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