Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 55
________________ खड़े हो जाते हैं। इतिहास उन उदाहरणों से भी अभिसिंचित होता रहा है, न केवल जिनकी याद सुखद है, वरन् चर्चाओं में उनका जिक्र कर हम उनके आदर्श स्वरूप को खुशी से इजहार भी करते हैं। __ मनुष्य की अध:पतित हुई सोच उसका कुण्ठित संवेग है। वहीं उस सोच का निखार और परिसंस्कार ही चिन्तन है। जब हम मानसिक-विकास की बात करते हैं तो उसका अभिप्राय चिन्तन-विकास ही है। तेइयार-दे-शार्दैन' और 'बेर्नाद्स्की ' ने चिन्तन-मण्डल के बारे में अपना जो विज्ञान प्रस्तुत किया है, उसके अनुसार मनुष्य के अन्तरिक्ष में प्रवेश करने और ग्रह के अन्दर गहराई तक पहुँचने के बदौलत चिन्तनमण्डल में अविराम रूप से फैलते रहने की प्रवृत्ति होती है। जन्मत: तो मनुष्य का मस्तिष्क 'कोरी-स्लेट' की तरह होता है। जोन लॉक ने इसे 'टेबुला रसा' की संज्ञा दी है। मनुष्य अपने जीवन के शैशव में जो क्रियाएँ करता है, वे वास्तव में मस्तिष्क की गतिविधियाँ न होकर स्वाभाविक और प्रत्यावर्तित प्रतिक्रियाएँ हैं। इन्हीं क्रियाओं के द्वारा मानसिक-विकास की शुरुआत होती है। तेज आवाज किये जाने पर बच्चे का चौंक जाना, हाथ में दी हुई वस्तु का दबा लेना, शरीर को हिलानाडुलाना, हिचकी लेना, भोजन या मल विसर्जन करना ये सब वे क्रियाएँ हैं, जो स्वाभाविक और प्रत्यावर्तित प्रतिक्रिया होकर भी बच्चे को नये वातावरण के प्रति सचेत करती हैं और समायोजन के लिए प्रेरित भी। धीरे-धीरे यह सचेतता, प्रेरणा और सक्रियता ही बच्चे के मानसिक और बौद्धिक विकास की आधारभूमिकाएँ बनती हैं। बालक के मानसिकव्यवहार का विकास समय की अपेक्षा रखता है। जन्म के प्रथम सप्ताह में जो शिशु चमक और जोर से किसी भी शब्द या आहट को पसन्द नहीं करता है, वही एक वर्ष का होने पर खुद शब्दों का उच्चारण करना प्रारम्भ कर देता है। वह मम्मी-पापा की क्रियाओं का अनुकरण करने लगता है। वह समझने लगता है कि चॉकलेट पर चिपका हुआ कागज कैसे अलग किया जाता है। चिन्तन का विकास बचपन की ----------------- कैसे करें व्यक्तित्व-विकास ४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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