Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 58
________________ - - मूल प्रवृत्तियों को दीजिए बेहतर दिशा हमारा मानवीय जीवन पुरुषार्थ का उपक्रम है। जीवन में जहाँ कामयाबी बटोरने के लिए मेहनत करनी पड़ती है, वहीं कुछ मूल प्रवृत्तियाँ ऐसी हैं जिनकी उपलब्धि अनायास होती है। जहाँ प्रतिभा जन्मजात होती है, वहीं प्रवृत्तियों का सम्बन्ध भी जन्म से ही होता है। जीवन में नई प्रवृत्तियाँ भी उपार्जित होती हैं, परन्तु जीवन का सारा फैलाव जन्म से प्राप्त प्रवृत्तियों पर ही केन्द्रित होता है। प्राय: यह पाया जाता है कि मनुष्य में जो जन्मजात प्रवृत्तियाँ होती हैं, मनुष्य के सारे संवेग और परिवर्तन उन्हीं से सम्बन्धित रहते हैं। मूल प्रवृत्तियों का जन्म बालक के जन्म के साथ ही हो जाता है परन्तु उनका विकास शरीर और उम्र के विकास के अनुसार होता है। __हमारे बाल्यजीवन में कुछ क्रियाएँ इतनी नैसर्गिक होती हैं कि उन्हें सीखने के लिए किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण की जरूरत ही नहीं होती। बच्चा अपनी जैविकीय एवं प्राणी-शास्त्रीय आवश्यकताओं को पूरा करने मूल प्रवृत्तियों को दीजिए बेहतर शिक्षा ----- ५१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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