Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 61
________________ होंगी ही। पहाड़ से फूटा झरना तो बहेगा ही। यह अलग बात है कि उसे और बढ़ने के लिए कैसी राह मिलेगी। राह सीधी भी मिल सकती है, टेढ़ी-मेढ़ी भी । वह उसे विकृत भी कर सकती है और संस्कारित भी । यदि उसे रोकने और दबाने का प्रयास किया गया तो वह दमित भी हो सकती है । पर एक बात तय है कि किसी प्रवृत्ति का दमन उसके प्रकटन से ज्यादा खौफनाक है। यद्यपि मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्तियाँ मन: शारीरिक होती हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि बुद्धि और चेतना का उनमें पूर्णतया अभाव रहता है। मूल प्रवृत्ति का विकास और उसकी अभिव्यक्ति हमारे शारीरिक विकास पर आधारित है। मूल प्रवृत्यात्मक कार्य वास्तव में आयु और वातावरण पर आधारित होते हैं । प्राय: यह देखा जाता है कि मनुष्य की मूल प्रवृत्ति जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेती है, तब तक समाप्त नहीं होती है। चाहे उसका निरोध किया जाए या विरोध, वह आज नहीं तो कल अपने उद्देश्य को प्राप्त करना ही चाहेगी। पर हाँ, अगर उन प्रवृत्तियों का शोधन कर दिया जाए तो न केवल वे परिवर्तित हो जाती हैं, बल्कि उस प्रवृत्ति की शक्ति से कोई उच्च कोटि का कार्य भी सम्पन्न हो सकता है। प्रवृत्तियाँ तो मनुष्य और पशु सब में एक-सी ही रहती हैं, पर मनुष्यों की मूल प्रवृत्तियों में परिवर्तन सम्भावित है। पशु की प्रवृत्तियों का दमन तो किया जा सकता है, पर परिवर्तन नहीं। मानवीय प्रवृत्तियाँ पशुओं की अपेक्षा अधिक परिवर्तनशील होती हैं। मनुष्यों और पशुओं की मूल प्रवृत्तियों की चर्चा के दौरान यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि मनुष्य की प्रवृत्तियों की अपेक्षा पशुओं की प्रवृत्तियों का विकास जल्दी होता है । मानवीय शिशु जहाँ एक साल का होने पर चलने में सक्षम होता है, वहीं गाय का बछड़ा एक सप्ताह में ही । इस विकास-भेद का प्रमुख कारण मनुष्य और पशु का आयुष्य-भेद है। यदि किसी पशु का सम्पूर्ण आयुष्य ही दस साल का है तो उसकी प्रवृत्तियाँ भी उसी गति के साथ विकसित होंगी। चूँकि पशुओं में ५४ Jain Education International कैसे करें व्यक्तित्व - विकास For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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