Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 41
________________ सकती। वह दम घोटू जिन्दगी भी कोई जिन्दगी है जिसमें जिन्दगी के नाम - पर तनाव और कुण्ठाएँ पोषित - पल्लवित होती हैं। प्रेम ही तो जीवन का चमन है, जहाँ फूल खिलते हैं, गुलशन गुलशना मौसम होता है सदाबहार | रिश्ते होते हैं खुश - मिजाज । हमारे देश की सोच प्रेम के प्रति ऐसी संकीर्ण रही है, जहाँ प्रेम की चर्चा भी अमर्यादित लगने लगती है जबकि प्रेम पवित्रता है जीवन की । प्रेम-भावना को बढ़ावा देना विश्व को एक-दूसरे के करीब लाना है। जहाँ प्रेम में लैला-मजनूं की व्यथा कथा, हीर का प्यार, रांझा का शृंगार, शीरीं के अन्दाज और फरहाद के ख्वाब हैं, वहीं यशोदा का वात्सल्य, राधा की लीला, कृष्ण-सुदामा की मित्रता, राम-लक्ष्मण का भ्रातृत्व, हुमायूं - कर्मावती का राखी - रिश्ता, राजुल की विरह वेदना और मीरा के समर्पण की सद्भावना है। प्रेम कोई दिखावा नहीं है, किन्तु दिल का बयान है । उस प्रेम के सदा मधुर परिणाम होंगे जो व्यक्ति विशेष से आबद्ध न होकर सृष्टि समग्रता से जुड़ने को तैयार है । प्रेम का मूल्य है। जीवन मूल्यों की आधार शिला प्रेम ही है। प्रेम की विराटता से ही नैतिकता और मानवता के पाठ रचे गए हैं। बगैर प्रेम का जीवन जंगल में खड़ा मिट्टी का मकान है। प्रेम का विस्तार हो । जन्म से मृत्यु तक प्रेम का स्वीकार हो । किसी को कुछ दो तो प्रेम से, लो तो प्रेम से। कहीं जाओ तो प्रेम से, किसी को बुलाओ तो प्रेम से । प्रेम से थोड़ासभी करोगे तो वह उसे भर देगा। किसी को बहुत दिया तो क्या दिया अगर बे-मन से दिया । < · ३४ प्रेम से दिया गया विष भी अमृत हो जाता है और बे-मन से दिया या अमृत भी जहर हो जाता है । लक्ष्य तो अमृत का ही होना चाहिए। अमृत न पिला सकें, कम-से-कम किसी के लिए विष-पान की नौबत तो न लाएँ । Jain Education International प्रेम जीवन का पहला संवेग, पहला संगीत है। इसके तार न ज्यादा कसें, न ज्यादा ढीले छोड़ें, साधे हुए रखें, बुद्ध के परमज्ञान में निमित्त बनने कैसे करें व्यक्तित्व - विकास - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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