Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 50
________________ महीने तो ऐसे-वैसे ही छुट्टियाँ हो जाती है, बचे दिनों में दो-चार घण्टे काम कर लो और सेलेरी' पक्की। यह सोचव्यक्ति की कमजोर मानसिकता है। नतीजा यह होता है कि सरकारी नौकरी से होने वाली आय से उतना कुछ सध नहीं पाता जितने कि वह मंसूबे बाँधता है। फिर वह या तो रिश्वतखोरी या गफलेबाजी करेगा, या कोई अन्य गलत साधनों का सहारा लेगा। बुद्धिमान व्यक्ति कर्मठता में विश्वास करता है। अकर्मण्यता उसके लिए ना-इंसाफी है। उसके प्रयास ईमानदार होंगे और वह अपने प्रयासों के परिणाम भी ईमान भरे चाहेगा। यह सब तो बात हुई बुद्धि और रोजगार के सन्दर्भ में। सत्य तो यह है कि जीवन का हर क्षेत्र बौद्धिकता की अपेक्षा रखता है। कुछ छात्र अपनी योग्यता के बल पर उत्तीर्ण होना चाहते हैं, जबकि कुछ छात्र नकल करके आगे बढ़ना चाहते हैं। आखिर नकल, नकल है और अकल, अकल। मौलिक विकास नकल से नहीं, अकल से सम्भावित है। गणित और विज्ञान के सारे आयाम और अनुसंधान-परीक्षण भी हमारे बौद्धिक व्यक्तित्व की ही अपेक्षा रखते हैं। बुद्धि मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है। बुद्धिमान प्राणी होने के नाते ही वह अन्य प्राणियों से अपनी श्रेष्ठता की अलग पहचान रखता है। बुद्धि वह प्रत्यय है जिससे समस्त अर्थवत्ताएँ प्रभावित हैं। आखिर यह बुद्धि है क्या? बुद्धि वास्तव में हमारे मन और मस्तिष्क से जुड़ी हुई एक अमूर्त शक्ति है। इस शक्ति-विशेष का ह्रास ही बौद्धिक अयोग्यता है और इसका विकास ही उसकी योग्यता का मापदण्ड है। बुद्धि विद्युत् के समान है। अदृश्य होते हुए भी उसका सशक्त अस्तित्व है। बुद्धि ही तो वह तत्त्व है जो नयी परिस्थितियों से समायोजन करता है। बुद्धि अतीत अनुभवों का प्रयोग करती है और विभिन्न कार्यों को विशाल दृष्टिकोण से देखती है। बुद्धि एक योग्यता है वातावरण के प्रति अभियोजन की, सीखने की, अमूर्त चिन्तन की। हर प्रकार की जटिलता, अमूर्तता, सोद्देश्यता, सामाजिक महत्ता तथा मौलिकता बुद्धि के द्वारा ही सम्पादित बौद्धिक विकास के मापदण्ड ४३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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