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बच्चों को सिखाएँ बेहतर भाषा
भाषा हमारे सामाजिक सम्बन्धों को परस्पर जोड़ने वाला सेतु है। मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है, पर बगैर भाषा के उसकी बुद्धिमत्ता की कोई अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। भाषा तो भाषा ही है, फिर चाहे वह व्यक्त हो या अव्यक्त। अव्यक्त भाषा चिन्तन कहलाती है और व्यक्त भाषा अभिव्यक्ति।
भाषा का प्रथम संस्कार मनुष्य के शैशवकाल में ही निष्पन्न हो जाता है। वह भाषा बचपन की भाषा कहलाती है। उस समय उसका स्वरूप स्पष्ट नहीं, वरन् बबलाता, तुतलाता होता है। कोई व्यक्ति किसी विश्वविद्यालय का कुलपति भी क्यों न बन जाए, पर बचपन में तो वह भी तुतलाता ही था। आयु का विकास, भाषा को विस्तार देना है। बच्चा ज्योंज्यों बड़ा होता है, उसका शब्द-भण्डार बढ़ता चला जाता है और उसकी भाषा परिपक्व होती चली जाती है। डेढ़ वर्ष की आयु में बालक मात्र दसबारह शब्दों को बोल पाता है पर दो-ढाई वर्ष का होते-होते उसे कम-से
बच्चों को सिखाएँ बेतहर भाषा
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