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नियंत्रण करें प्रतिकूल संवेगों पर
मनुष्य के भावनात्मक संवेग ही किसी भी कार्य को मूर्तरूप देने के लिए सबसे ज्यादा प्रेरणा देते हैं। माना कि जीवन एक कर्तव्य है और अपने कर्तव्यों के लिए मर-मिटना व्यक्ति की जीवन्त जागरूकता है, किन्तु मनुष्य अपने कर्तव्यपालन के लिए तब तक उत्सुक नहीं होगा जब तक उसकी भावनात्मक तैयारी न हो। संवेग वह भावनात्मक तीव्रता है जो व्यक्ति को अपना कार्य और कर्तव्य पूरा करने के लिए कृतसंकल्प बनाती है।
मनुष्य के जीवन में जो प्रवृत्तियाँ होती हैं, उनमें कुछ का सम्बन्ध तो ज्ञान से होता है तो कुछ का संवेग से। कुछ प्रवृत्तियाँ ऐसी भी होती हैं जो क्रियात्मक होती हैं। ज्ञान, संवेग और क्रियाकी अभिव्यंजनाएँ भले ही हों, पर जो बात संवेग से बनती है, उसके चलते तो ज्ञान का प्रशिक्षण और क्रिया की प्रेरणा तथा परिपक्वता सम्भव होती है।
मनुष्य अपने भावों का सहचर है। जब तक वह भावनात्मक रूप से
नियंत्रण करें प्रतिकूल संवेगों पर
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