Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 33
________________ प्रस्तुत नहीं होता, किसी भी कार्य को करने के लिए वह अपने आपको उत्सुक और सक्रिय नहीं कर पाता। जीवन बस एक भावना है। भावों में और भावों के अनुरूप जीना ही जीना लगता है। भावात्मक ह्रास जहाँ व्यक्ति की अन्तश्चेतना को कुण्ठित करता है, वहीं उसका विकास जीवन को सदाबहार तरोताजगी से सराबोर कर देता है। संवेग अगर चैतन्य-अनुभूति या भावनात्मक प्रस्तुति है तब तो ठीक है। यदि संवेग उत्तेजन बनकर मुखर हुए हैं तो वे व्यक्ति के लिए तनाव, कुण्ठा, ईर्ष्या और क्रोध का कारण बनते हैं। नतीजन वे संवेग व्यक्ति के लिए कष्टकारी हो जाते हैं, जबकि उन्हें होना चाहिए खुश-मिजाज। आनन्ददायक। संवेग व्यक्ति की मानसिकता का तो प्रतिनिधित्व करते ही हैं, शारीरिक परिवर्तन तथा प्रतिक्रियाओं का नेतृत्व भी करते हैं। वह शारीरिक क्रियाओं की चेतन-अनुभूति है। वुडवर्थ का वचन है कि संवेग प्राणी की उत्तेजित या तीव्र अवस्था है। 'इमोशन इज ए मूव्ड ऑरस्टीरर्ड अप स्टेट ऑफ आर्गेनिज्म'। वास्तव में संवेग व्यक्ति की उत्प्रेरणा है जो उसे कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। संवेग वास्तव में क्रियाशीलता का प्रेरक है। ____ यद्यपि संवेग का सम्बन्ध भावात्मक है, पर संवेग व्यक्ति को उत्तेजित करते हैं और भाव उसे उत्साहित। एक बालक में संवेगात्मक व्यवहार की संभावना ज्यादा है। बालकों और वयस्कों के संवेगात्मक व्यवहारों में काफी कुछ फर्क होता है। बालक संवेग के जन्म लेते ही उसे हर हालत में प्रकट कर देता है जबकि वयस्क उन पर नियंत्रण भी कर सकता है। वयस्क व्यक्ति के संवेग स्थायी भी रह सकते हैं, परन्तु बच्चे के संवेग तो चिनगारी की तरह उठते हैं और उसी तीव्रता के साथ मन्द भी पड़ जाते हैं। जहाँ जीवन के प्रारम्भ में संवेगात्मक विकास जरूरी होते हैं, वहीं वयस्क या पक्की उम्र के होने पर उन पर नियंत्रण करना भी आवश्यक है। __चूँकि बालक अपने संवेगों का नियंत्रण नहीं कर पाता, इसलिए उनमें उग्रता का अनुपात अपेक्षाकृत ज्यादा होता है। बच्चा जिस चीज को चाहता ------------- २६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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