________________
DAAS
संयम रखें, क्रोध के संवेग पर
मानवीय संवेगों के कई रूप होते हैं - कर्कश भी और मधुरिम भी। क्रोध, भय, ईर्ष्या, चिन्ता, प्रेम, करुणा ये सब संवेगों के ही खट्टे-मीठे अनुभव हैं। जीवन में संवेगों की अपनी आवश्यकता है, किन्तु अनियंत्रित संवेग व्यक्ति के लिए वैसे ही अहितकर होते हैं, जैसे किसी सारथी के लिए बेलगाम घोड़ा। ___ यद्यपि संवेग अपनी कई मुखाकृतियाँ लिए हुए हैं, पर संवेग की चर्चा चलते ही उसका क्रोध से ही सपाट सम्बन्ध जुड़ जाता है। क्रोध और कामातुरता में ही संवेग की वास्तविक तीव्रता का एहसास होता है। कामसंवेगों का विकास तो जीवन में एक खास उम्र आने पर होता है, पर क्रोध तो मानो तभी से पिछलग्गू हो जाता है जब धरती पर वह अपनी पहली अंगड़ाई भरता है। मनुष्य के जन्मते ही क्रोध भी जन्म जाता है, या इसे हम यों कहें कि जीवन-क्षमता के साथ ही क्रोध के संवेग भी विकसित और उद्दीप्त होने लग जाते हैं। - - - - - - - - संयम रखें, क्रोध के संवेग पर
-
-
-
-
-
-
-
-
--
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org