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बच्चों की टोली हो जाती है और इस प्रकार धीरे-धीरे उनका सामाजिक विकास होने लगता है। ___ बच्चे का विद्यालय में जाना, लिखना, पढ़ना, चित्र बनाने के लिए लकीरें खींचना, दौड़ना, कूदना, खेलना, ये सब क्रियात्मक योग्यताओं के विकास के ही परिणाम हैं।
धीरे-धीरे बच्चा अपनी आत्म-उपलब्धियों से प्रसन्न होने लगता है। वह स्वयं ही अस्मिता को समझने और स्वीकार करने लगता है और इस प्रकार अपने हमउम्र साथियों की तुलना में कुछ अधिक कर दिखाना चाहता है। वह अपनी योग्यताओं को दूसरों की योग्यताओं से अधिक परिपक्व करना चाहता है। वह उन्हें प्रदर्शितभी करना चाहता है। दूसरे सहपाठी को कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ देखकर उसकी सुषुप्त क्रियात्मक योग्यता जगजाती है। नतीजन वह भी अपने-आपको आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय हो जाता है। उसे देखकर औरों को प्रेरणा मिलती है। वह औरों का आदर्श बनता है।
क्रियात्मक योग्यताओं के विकास में यदि विलम्ब होता है तो उसका मुख्य कारण शारीरिकहीनता, बुद्धिहीनता, भयप्रद-वातावरण और प्रोत्साहन का अभाव है। बालक को कोई रोग हो, वह जन्म से अन्धा या बधिर हो, उसकी ग्रन्थि-प्रणाली में दोष हो या वह अपेक्षाकृत अधिक मोटा या पतला हो तो उसकी क्रियात्मक योग्यताओं का सन्तुलित रूप से विकास नहीं हो पाता। यदि बच्चे को घर में या विद्यालय में छोटी-छोटी सी बात में भी डराया-धमकाया जाता है तो उसकी क्रियात्मक योग्यताओं के विकास में बाधाएँ आती हैं। उसकी योग्यताएँ कुण्ठित और अवरुद्ध हो जाती हैं। इसलिए बात-बेबात में बच्चों के साथ रोका-टोकी न करें। उन्हें अपनी गलती सुधारने का अवसर दें।
क्रियात्मक योग्यता और उसके कौशल के विकास में अभ्यास, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन इन तीन चीजों की सर्वाधिक भूमिका रहती है। बालक को अपेक्षित क्रिया का समुचित अभ्यास करना चाहिए, उसका
--------- सफल जीवन के लिए जरूरी : सक्रिय बचपन
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