________________
अपने साथ लेकर आते हैं और सारे घर-परिवार को अपनी खुशियों में शरीक कर लेते हैं ।
बालक का विकास उसकी सक्रियता से जुड़ा हुआ है। बालक को बालक के योग्य सक्रिय किया जाए तो बालक में अन्तर्निहित योग्यताओं और क्षमताओं का आविष्कार हो जाता है। बालक का क्रियात्मक विकास निश्चय ही जितना अधिक प्रबल होता है, उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति उतनी ही सुदृढ़ होती है। अपनी क्रियात्मकता और कर्मठता में शिथिल होना आत्मविश्वास की ही कमी है। जो लोग अपने बच्चों के क्रियात्मक विकास के लिए सचेत रहते हैं, वे उन्हें आत्म-निर्भर, सक्रिय और सशक्त बनाने की पहल करते हैं। बच्चे को गमला संस्कृति की बजाय क्यारीसंस्कृति से जोड़ना चाहिए। गमले में केवल एक अकेला पौधा रहता है। पानी डालो तो वह फलता है वरना कुम्हला जाता है। क्यारी में लगा पौधा सबसे जुड़ा रहता है। उसे उसके नैसर्गिक विकास का मौका मिलता है। क्यारी में लगे पौधे की सक्रियता अधिक होती है। जो व्यक्ति अपने बाल्यकाल में सक्रिय हो उठता है, वह जीवन में अवश्यमेव अनूठी सफलताएँ अर्जित करता है ।
बच्चों में क्रियात्मक योग्यताओं का विकास सामान्य से विशेष की ओर होता है। उनके विकास की यात्रा सिर से पाँव की ओर होती है। जन्म के समय बालक का मस्तिष्क समस्त क्रियाएँ नहीं कर पाता है । मस्तिष्क हर क्रिया-प्रक्रिया में सक्षम हो, इसके लिए उसे २० वर्ष तो लग ही जाते हैं। जन्म के समय बालक के मस्तिष्क का भार लगभग ३५० ग्राम होता है । बाद में वही बढ़ते-बढ़ते १२०० से १४०० ग्राम हो जाता है। यह बात सही है कि बालकों के मस्तिष्क का विकास बाल्यावस्था में तीव्रगति से होता है, पर बाद में वही गति मन्द पड़ जाती है। छोटी उम्र में बालक के व्यवहार मस्तिष्क के निचले केन्द्रों और सुषुम्ना नाड़ी द्वारा संचालित होते हैं, मगर बड़े होने के बाद वे वृहत् मस्तिष्क जैसे उच्च केन्द्रों के द्वारा
सफल जीवन के लिए जरूरी : सक्रिय बचपन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
१५
www.jainelibrary.org