Book Title: Kaise kare Vyaktitva Vikas
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 19
________________ कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने गर्भस्थ काल में भी काफी सक्रिय होते हैं। उनकी सक्रियता का एहसास उनके हलन-चलन से स्वयं माँ को भी होता है। कहा जाता है कि महावीर जब गर्भस्थ शिशु थे, उनकी गत्यात्मकता और कर्मठता का एहसास तभी से माँ को होने लग गया था। वे माँ के पेट में ही काफी हिला-डुला करते थे। कहते हैं कि उन्होंने एक दिन यह सोचकर अपनी हलन-चलन बन्द कर दी कि उनके हिलने-डुलने से शायद माँ को तकलीफ होती हो। पर महावीर के इस कार्य से उनकी माता पर बुरी प्रतिक्रिया हुई। परिणामस्वरूप महावीर पुनः सक्रिय हो गए। यह सब माता और गर्भस्थ शिशु का संवेगात्मक व्यवहार है। हम जिसे संवेग-व्यवहार कहते हैं, महावीर ने उसे 'संज्ञा' कहा है। महावीर के अनुसार हर बच्चे में चार संज्ञाएँ होती हैं-आहार, भय, संग्रह और मैथुन। वैसे निद्रा भी एक संज्ञा है। शिशु जब गर्भ में रहता है तब भी आहार करता है और बाहर निकलने पर भी आहार करता है। आहार-पानी के लिए ही वह चीखता-चिल्लाता है, हाथ-पाँव मारकर संघर्ष भी करता है। यह चीखना केवल आहार के लिए ही नहीं होता है। सच तो यह है कि उसके चीखने और साँस लेने से ही उसकी श्रवणशक्ति का पर्दा खुलता है। ___ जन्म के दस दिन बाद तक शिशु में केवल आहार एवं निद्रा-संज्ञा ही रहती है। भय, संग्रह और मैथुन-संज्ञा धीरे-धीरे विकसित होती है। किसी पेन-पेंसिल को पकड़ने के लिए मचलना संग्रह-संज्ञा है। आँख दिखाने या किसी चीज के गिरने से हुई ऊँची आवाज के कारण डर जाना भय-संज्ञा है। काम-प्रवृत्ति से जुड़ी मैथुन संज्ञां का स्वाभाविक विकास तो किशोरावस्था में होता है, किन्तु बच्चे के द्वारा अपने अंगूठे को चूसकर आनन्द-प्राप्ति की अनुभूति करना भी मैथुन-संज्ञा है। इन संज्ञाओं और संवेगों के अतिरिक्त नवजात शिशु में क्रोध और प्रेम के संवेग भी होते हैं। जब शिशु की स्वाभाविक क्रिया या शारीरिक हलनचलन में किसी तरह का अवरोध होता है तो उसमें क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध की अभिव्यक्ति वह चीख-चिल्लाकर, हाथ-पैर चलाकर या शरीर से ---- कैसे करें व्यक्तित्व-विकास - - - - - - - - - - - - - - - १२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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