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प्रवृत्ति का दमन न करें। वे उसकी पढ़ाई पर जितना ध्यान देते हैं, उसके समान ही उसके खेल-कूद और मनोरंजन पर भी ध्यान दें।
बाल-मनोविज्ञान का आपघरेलू जीवन में भी उपयोग कर सकते हैं। आप यह जानने का प्रयास करें कि हमारे बच्चों में किन-किन वस्तुओं के प्रति अभिरुचि है ? वे किनसे मिलना-जुलना पसन्द करते हैं और किस प्रकार का खेल खेलते हैं ? वे उदास है या मिलनसार हैं, या वे किन वस्तुओं से भय खाते हैं? बालक के स्वभाव ने जिन मार्गों को चुना है, यदि वे व्यावहारिक या नैतिक हैं तो उन्हें उन मार्गों पर बढ़ने के लिए और अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए। उनकी आदतें, व्यवहार या शौक गलत महसूस हों तो उन्हें सुधारने के लिए इतना सौहार्द और सौजन्यपूर्ण परामर्श देना चाहिए कि उन्हें आपका सुधार-अभियान आत्म-दमन न लगे। हर बालक का विकास होना चाहिए, पर उसी दिशा में, जो प्रगतिशील हो। ___ बालकों को अपने विकास के लिए सही मार्ग मिले, इसके लिए हमें उनका मार्गदर्शन करना चाहिए और उनकी बुरी आदत न पड़ जाए इसलिए उन पर नियंत्रण भी रखना चाहिए। उसके अमुक व्यवहार या स्वभाव को देखकर ही यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि इस बालक की आगे चलकर चिन्तक, चिकित्सक, वैज्ञानिक, व्यापारी या अमुक व्यक्ति बनने की संभावना है। __कुछ बालक ऐसे होते हैं जिनका विकास अनायास हो जाता है। कुछ के लिए परिश्रम करना पड़ता है, पर कुछ ऐसे भी होते हैं जिन पर मेहनत भी रंग नहीं लाती। यह सब बालक-विशेष पर ही निर्भर करता है। यदि श्रम करने के बावजूद बच्चे में सुधार या विकास न आ सके तो अभिभावकों को चाहिए कि वे चिकित्सकों या बालमनोवैज्ञानिकों से सम्पर्क कर उनसे परामर्श लें।
टर्मन ने अपने अनुसन्धान का जो निष्कर्ष निकाला, वह काफी महत्त्वपूर्ण है। टर्मन के अनुसार जो बच्चे तेरह महीने में चलना-फिरना
कैसे करें व्यक्तित्व-विकास
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