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लोग मुझे कहा करते थे, यह मंदबुद्धि लड़का है, लेकिन व्यक्ति मंदबुद्धि मानता रहता है । जिस दिन वह अपनी ज्ञान की चेतना को जगा लेता है, चमत्कार घटित होता है। पेंसिल को तीखा करने के लिए चाकू चलाना पड़ेगा और मेरी पेंसिल को तीखा करने के लिए जो चाकू चले हैं, उसी का यह परिणाम है कि आज देश भर
मुझे पढ़ा और सुना जा रहा है। अपनी जिंदगी बड़ी मूल्यवान है। अपने भीतर के ज़ज़्बों को हमें जगाना होगा और जिंदगी को ऊँचाइयों तक ले जाना होगा । आगे से आगे तक बढ़ना होगा ।
सफलता तो एक सफ़र है, मंज़िल नहीं है । यह तो लगातार बढ़ते रहने का, पाते रहने का नाम है । अगर आपने एक संस्थान खोल लिया है तो वहाँ तक सीमित मत रहो, उसको और आगे बढ़ाओ । यह मत सोचो कि एक दिन मर जाना है, और मरेंगे तो सब यहीं छोड़-छुड़ाकर चले जाना है। मृत्यु की बात मत सोचो, केवल जिंदगी की बात करेंगे। जब तक ज़िंदा हो तब तक अंतिम श्वास तक सृजन करते रहो । सृजन करते रहोगे तो जीवन में जीने का लक्ष्य रहेगा और सृजन ही अगर बंद कर दोगे तो आज मरे या कल मरे क्या फ़र्क पड़ना है। कल भी सुबह उठे थे, फ्रेश हुए, दुकान चले गए, फिर वही कार्य किया, शाम को लौट कर आए और सो गए। कल भी यही किया, आज भी यही कर रहे हैं, कल भी वही करेंगे। अगर हमारे पास कुछ लक्ष्य नहीं है, कुछ और नया करने के लिए नहीं है तो क्या फ़र्क पड़ता है, कल तक जिए, आज तक जिए, दस-बीस साल और जीकर चले गये। मरने की कौन सोचे, यहाँ पर हम तो जिंदगी के गीत गाते हैं, जिंदगी की सोचते हैं। ऊपर वाले स्वर्ग-नरक की कौन चिंता करता है । हम तो अपनी ही धरती को, अपने ही जीवन को स्वर्ग बनाने की कोशिश करते हैं । इसीलिए मैंने कहा था - 'तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर । '
तुम्हारी ज़िंदादिली की, जिंदगी की कसौटी इसी में है कि हम लोग, हमेशा जीत पर विश्वास करें, हमेशा आगे बढ़ने पर विश्वास करें। आगे बढ़ते-बढ़ते विफल हो भी जाएँ तो कोई ग़म नहीं । हो गए तो हो गए। जो आदमी चलेगा, वही तो ठोकर खाकर नीचे गिरेगा। जो चलेगा ही नहीं, वह कहाँ गिरेगा? माना मैं यहाँ से वहाँ तक जाऊँगा । जाऊँगा तो खतरा तो है कि कहीं पाँव फिसलकर गिर सकता हूँ। अगर मैं यह सोचूँगा कि कौन खतरा मोल ले पाँव फिसलने का, तो मैं यहीं बैठा रहूँगा । यहाँ बैठा निठल्ला आदमी न तो गिरेगा और न कहीं पहुँचेगा। अगर
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