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जीवन में प्रेम और मिठास घोलने के लिए, रिश्तों को एक-दूसरे के क़रीब
लाने के लिए अगर कोई रास्ता हर हाल में, हर रूप में, हर परिस्थिति में हम लोगों को अख्तियार कर लेना चाहिए तो वह है सकारात्मक सोच का रास्ता । अगर बड़े-बुज़र्ग डाँट दे तो बुरा मत मानना । अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा? अब अगर ग़लती होने पर मुझे मेरी मम्मी नहीं डाँटेगी तो क्या सड़क चलता हुआ कोई दूसरा आदमी हमें टोकेगा । हमारी ग़लतियों को सुधारने का काम तो हमारे अभिभावक और बुजुर्ग ही करेंगे। हाँ, अगर नकारात्मक सोच ला बैठे तो घर टूट जायेगा, रिश्तों में खटास आ जाएगी, सासू और बहू के बीच में कैंचियाँ चलने लग जाएँगी और तब लगेगा कि जब देखो तब मम्मी हमेशा टू-टू, टीं-टीं कुछ-न-कुछ करती रहती है। प्रभु मेरे, बड़े अगर डाँटें तो सकारात्मक सोच रखिये कि अब अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेंगा ? अगर छोटे बच्चों से ग़लती हो जए तो सीधा थप्पड़ मारने की बजाय सकारात्मक सोच रखिएगा कि अब छोटे बच्चों से ग़लती नहीं होगी तो किससे होगी।
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छोटे बच्चों से, बहूरानियों से ग़लती होनी स्वाभाविक है । अब आपकी बहू कोई सासू माँ तो है नहीं, 60 वर्ष का उसके पास अनुभव नहीं है। आपका बच्चा 18 साल का बच्चा है। हम उसकी 60 साल के साथ तुलना क्यों करते हैं? आपके पास जितना अनुभव है उतना उसके पास थोड़े ही है। छोटे बच्चों की ग़लतियों को माफ़ कर दो और बड़े अगर डाँट दें तो उनके प्रति सहज भाव लाओ कि बड़े बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा। ये जो दोनों हालातों में हमारी सोच को ठीक रखने का काम है, इसी का नाम है 'सकारात्मक सोच' । सकारात्मक सोच यानी बड़ी सोच और बड़ी सोच का जादू हमेशा बड़ा ही होता है ।
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लोग अगर सकारात्मक सोच के इस एक पथ को अपना लेते हैं तो तन-मनजीवन सब पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। सबसे पहले तो हमारी सेहत, हमारे स्वास्थ्य, हमारी मानसिकता पर सकारात्मक सोच का सीधा प्रभाव पड़ता है । गुस्सा करोगे तो क्या होगा ? आँखें लाल होंगी, स्मरण शक्ति कमज़ोर होगी, पेट की पाचन क्षमता दुर्बल हो जाएगी। ये सब हैं नकारात्मक सोच के परिणाम और नकारात्मक सोच ने हमारे स्वास्थ्य पर सदा दुष्प्रभाव ही डाला है। चिंता, तनाव, क्रोध, डिप्रेशन, भूलने की आदत - ये सब नकारात्मक सोच के परिणाम हैं। अगर इंसान अपने दिमाग से नकारात्मक सोच को हटाने में सफल हो जाए तो दुनिया की
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