Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 92
________________ थोड़ा-सा भी ग़लत इस्तेमाल किया तो यह बत्तीसी बाहर निकल आएगी। चौराहे पर दो युवक आपस में गुत्थम-गुत्था हो रहे थे। एक ने तैश में आकर कहा - अब अगर तू कुछ बोला तो ऐसा चूसा मारूँगा कि बत्तीसी बाहर निकल आएगी। दूसरे ने कहा – जा रे जा! तू क्या बत्तीसी बाहर निकालेगा। मैंने अगर चूंसा मारा तेरी चौसठी निकल आएगी। तीसरे ने तभी बीच में टोकते हुए कहा - भाई दाँत ही बत्तीस होते हैं तो तू चौसठ कैसे तोड़ेगा? उसने कहा - मुझे पता था तू ज़रूर बीच में बोलेगा।सो बत्तीस इसके और बत्तीस.....! सावधान! जुबान के प्रति सावधान।शरीर विज्ञान की व्यवस्था देखो कि जीभ पर लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है, पर जीभ से लगी चोट सबसे देरी से ठीक होती है। हमें जीवन की बुनियादी सीख ले लेनी चाहिए कि इंसान की जुबान में ही अमृत होता है और इंसान की जुबान में ही ज़हर होता है। इंसान की जुबान में ही गुलाब के फूल खिलते हैं और इंसान की जुबान से ही काँटे बोए जाते हैं। सरदारों की कटार कमर में लटकती होगी, पर इंसानों की कटार तो इंसानों की जुबान पर ही रहा करती है। कटार का घाव शायद दो-पाँच, दस दिन में मिट सकता है, पर जुबान का घाव सौ साल बीत जाए तब भी इंसान अपने जिगर से निकाल नहीं पाता। माँगने के नाम पर केवल दो वचन ही माँगे थे कैकयी ने, लेकिन जब तक भरत जिया भरत की आत्मा में उनके वे दो वचन तब तक हमेशा सालते रहे, जलाते रहे, जीते-जी उसकी आत्महत्या करवाते रहे। आज जब हम लोग अपना केरियर बना रहे हैं तो केरियर निर्माण का पहला दृष्टिकोण यही है कि धर्म की बात, अध्यात्म की चर्चा हम बाद में करेंगे, पहले इंसान अपने घर में पलने वाली ग़रीबी को तो दूर कर ले, अपने जीवन में समृद्धि के ख़ज़ाने तो खोल ले, पहले इज़्ज़त की जिंदगी तो बना ले। भला जब समाज में ही अपने को कोई नहीं पूछता, तो भगवान की डगर पर कौन पछेगा? तो पहले अपन लोग अपनी नींव ठीक कर लेते हैं। क्योंकि मंदिर में आदमी चौबीस घंटे नहीं रहता, पर परिवार और समाज में आदमी चौबीस घंटे रहता है। भगवान के घर में बाद में इज़्ज़त बनाएँगे, पहले लोगों के बीच में इज़्ज़त कमा लें। इसलिए व्यक्तित्व-निर्माण के लिए आज जिस बिन्दु पर आपको केन्द्रित कर रहा हूँ, वो है बोलने की कला। मनुष्य और चिंपाजी दोनों के जींस बिल्कुल एक जैसे हैं। जब वैज्ञानिकों ने | 93 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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