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चलेगा। कौन व्यक्ति ऊँचा है और कौन गया बीता है यह इंसान की जुबान के आधार पर ही पता चलेगा। आदमी का स्टैण्डर्ड कैसा है? लोग अपने मकानों को बड़ा सजा-धजा कर रखते हैं। अरे भाई, मकान पर स्टैण्डर्ड बना लिया, अच्छी बात है बनाना चाहिए, पर अपनी जिंदगी का स्टैण्डर्ड भी तो बना लो, और इसके लिए अपनी जुबान ठीक करें । जुबान के प्रति सावधान हों, जुबान को मिठास से उपयोग करने का संकल्प हो। भाषा हो इष्ट यानी प्रिय। भाषा हो शिष्ट यानी शालीन और मर्यादा वाली। भाषा हो मिष्ट यानी मीठी-मधुर, नरम । __ऐसा हुआ। मैं अपने मोहल्ले की बात बताता हूँ, हमारे मोहल्ले में एक भाभी थी। थोड़ा-सा डेढ़ आँख से देखती थी। डेढ़ आँख से देखती थी मतलब एक आँख आधी बंद रहती थी। कइयों को लगता था जैसे आँख मारती हो। पर बिचारी करे तो क्या करे, उसकी बीमारी थी। वो डेढ़ आँख से देखती थी। उसका देवर उसे बड़ा छेड़ता था। पता है देवर किसे कहते हैं? जो भाभी को वर दे उसका नाम देवर । उसका देवर थोड़ा शैतान प्रकृति का था। वो हमेशा उसे काणी भाभी कहता था। इस टिप्पणी से उसका जी बड़ा दुखता था। वो हमसे कहती थी, अब मैं क्या करूँ ये जैसा कहते हैं मैं वैसा करने को तैयार हूँ पर जैसे ही दस लोग बैठे रहते हैं, ये स्पेशली मुझे छेड़ता है और कहता है काणी भाभी । मैंने कहा कोई भी आदमी तभी तक छेड़ता है जब तक हम उस छेड़खानी को झेलते हैं। एक बार थोड़ा पलटकर जवाब दे दोगे तो अपने आप टेढ़ा बोलना भूल जाएगा।
एक दफ़ा की बात है हम लोग उसके घर बैठे हुए थे। इतने में वो देवर आया और कहने लगा ए काणी भाभी! भाभी बोली- जी। देवर बोला - थोडी छाछ तो पिला। वो बिचारी अन्दर जा रही थी। मुझे बोली - देखा न्! अभी भी दस लोगों के सामने इन्होंने मुझे काणी कहा। मैंने कहा, भाभीजी! आप भी थोड़ा-सा खेल खेल लो। आदमी को जिंदगी में गोटियाँ खेलनी आनी चाहिए। मैंने कहा - अन्दर जाइए। बोली - क्या करना है? मैंने कहा - छाछ के ऊपर का पानी ले आइए । बोली – कहीं कोई मुश्किल खड़ी न हो जाए। मैंने कहा - घबराती क्यों हो? ले आओ। इसे हम अच्छी तरह जानते हैं। दोस्त है हमारा । वो अन्दर गई। सुबह की बनी हुई थी छाछ । उसने छाछ के ऊपर का पानी एक गिलास भरा और लेकर के आ गई। उसने वह पानी देवर को दिया। देवर ने जैसे ही छाछ का पानी देखा कि आगबबूला हो उठा। उठाकर ज़मीन पर फेंक दिया और कहा कि यह छाछ है कि पाणी? मैंने कहा - जैसी तेरी वाणी, वैसा छाछ में पाणी तु
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