Book Title: Kaise Khole Kismat ke Tale
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सफलता का रास्ता श्री चन्द्रप्रभ कैसे खोलें किस्मत के ताले ポ जीवन को चार्ज करने वाली एक ऊर्जावान पुस्तक Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे खोलें क़िस्मत के ताले श्री चन्द्रप्रभ $ TELEFIC जीवन को चार्ज करने वाली एक ऊर्जावान पुस्तक For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे खोलें क़िस्मत के ताले श्री चन्द्रप्रभ प्रकाशन वर्ष : जुलाई 2012 प्रकाशन : श्री जितयशा फाउंडेशन बी-7, अनुकम्पा द्वितीय, एम.आई. रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : चौधरी ऑफसेट, उदयपुर मूल्य : 30/ For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवेश हर व्यक्ति इस कोशिश में लगा हुआ है कि वह अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छुए। ऐसा करने के लिए व्यक्ति परिश्रम भी करता है लेकिन कोई एक चीज ऐसी है जो बार-बार रोड़ा अटका देती है। वह चीज है इंसान की अपनी किस्मत। यह पुस्तक इंसान की उसी बंद किस्मत के ताले खोलती है और व्यक्ति को देती है एक ऐसी राह जो उसे आसमानी ऊँचाइयाँ देती है। महान राष्ट्र-संत पूज्य श्री चन्द्रप्रभ के अत्यंत प्रभावी प्रवचनों की यह पुस्तक 'कैसे खोलें किस्मत के ताले नई पीढ़ी के लिए किसी वरदान की तरह है। उनके प्रवचन हमारे भीतर एक TRY & TRY YOU WILL TOUCH THE SKY. For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नई ऊर्जा और उमंग का संचार करते हैं। उनके विचार सशक्त, तर्कयुक्त, परिमार्जित एवं सकारात्मकता की आभा लिए हुए हैं। उनके विचारों में कृष्ण का माधुर्य, कबीर की क्रांति, आइंस्टीन की वैज्ञानिक सच्चाई और स्वयं की मौलिक जीवन-दृष्टि है। वे कहते हैं - किस्मत उस गाय की तरह होती है जो दूध देती नहीं है बल्कि बूंद दर बूँद हमें दूध निकालना होता है। सकारात्मक सोच और पूरे आत्मविश्वास के साथ यदि प्रयास किया जाए तो इंसान की प्रतिभा उसे महान सफलताओं का वरदान दे सकती है। श्री चन्द्रप्रभ की बातें जादुई चिराग की तरह हैं जिनका इस्तेमाल कभी व्यर्थ नहीं जाता। यह पुस्तक निश्चय ही आपके अन्तरमन में एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगी। इसे आप नई पीढ़ी के लिए नये युग की गीता समझिए। -शांतिप्रिय For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम 1.आखिर कैसे खोलें किस्मत के ताले 2. सिर्फ एक मिनट में बदल सकती है जिंदगी 3.प्रतिभा को निखारें पेंसिल की तरह 4.जितनी बड़ी सोच, उतना बड़ा जादू 5. बोलिए ऐसे कि बन जाए हर काम 6.आत्म-विश्वास से छुएँ आसमां 9-28 29-48 49-69 70-90 91-113 114-130 For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे खोलें किस्मत के ताले - ASIANRNESS तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर। दुनिया में हर व्यक्ति का यह सपना होता है कि वह सफलता की आसमानी ऊँचाइयों को छुए। सपना देखना अच्छी बात है, पर उन सपनों को पूरा करने के लिए लग जाना सफलता की असली बुनियाद है। इंसान को अपनी सफलता के लिए जिस पहली चीज़ की ज़रूरत है, वह है : विजय का विश्वास, जीत का ज़ज़्बा। मैं अपनी जीत के लिए, अपनी सफलता के लिए सौ में से पूरी सौ प्रतिशत ताक़त झोंक दूंगा, जीत का यह मनोबल ही इंसान की सफलता की आधार-शिला है। माना कि मिट्टी को जन्म देना कुदरत का काम है, लेकिन मिट्टी में से रोशनी पैदा करने वाले दीयों का निर्माण कर लेना इंसान की सफलता की कहानी है। बीजों को पैदा करना कुदरत का काम है, लेकिन उन बीजों में से वट-वृक्षों को लहरा देना इंसान की दास्तान है। इंसान को इंसान का शरीर देना प्रकृति का काम है, लेकिन इंसान का शरीर मिलने के बाद जीवन को आसमान जैसी ऊँचाइयाँ देना स्वयं इंसान के पुरुषार्थ का परिणाम है। 'क' से ही करोड़पति होता है और 'क' से ही कर्मफूटा। आप चाहें तो ऐसे कर्म कर सकते हैं जिनसे क़िस्मत के बंद ताले खुलते हैं और चाहे तो ऐसे कर्म भी For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर सकते हैं जिनसे खुले द्वारों पर भी हथकड़ी और बेड़ियाँ लग जाती हैं । भला जब 'क' से कृष्ण और 'र ' से राम हो सकता है तो फिर 'क' से कंस और 'र' से रावण बनने की बेवकूफ़ी क्यों करें? कर्म तो इंसान के लिए कामधेनु और कल्पवृक्ष है। इससे हम वही फल चाहें जिनकी मिठास हम ही नहीं, हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी लें। कहते हैं, दुनिया के एक बाल मेले में अलग-अलग तरह की दुकानें लगी हुई थीं। लालीपॉप, चॉकलेट, तरह-तरह के फल, नमकीन और मिठाइयों की दुकानों के बीच एक तरफ कोने में एक व्यक्ति ठेलागाड़ी लगाए हुए खड़ा था, जिस पर आसमान को छूने वाले गुब्बारे थे। अलग-अलग तरह के रंग-बिरंगे गुब्बारे। कोई लाल, कोई पीला, कोई नीला, कोई हरा, कोई सफ़ेद। जब भी उस दुकानदार को लगता कि ग्राहक कम हो गए तो झट से दस-बीस की तानें तोड़ता और आसमान में छोड देता। मेले में आने वाले बच्चे उन गुब्बारों को देखते, रंगों से आकर्षित होते और उस गुब्बारे की दुकान पर चले जाते। एक बच्चा पन्द्रह मिनट से इन गुब्बारों को देख रहा था, आसमान को छूते हुए। वह गुब्बारे बेचने वाले के पास आया और कहने लगा कि अंकल, आपकी दुकान पर कई तरह के गुब्बारे हैं लाल, पीले, हरे, नीले। ये सारे गुब्बारे आसमान तक पहुँच रहे हैं, पर ज़रा आप मुझे बताइये कि क्या काले रंग का गुब्बारा भी इसी तरह आसमान तक पहुँच सकता है? गुब्बारे वाले ने उस बच्चे को देखा, काला रंग, हब्सी जैसा चेहरा, घुघराले बाल, सामान्य कपड़े पहने हुए। फटी निकर, फटा पुराना शर्ट और लड़के के चेहरे को देखकर गुब्बारे बेचने वाला समझ गया कि वह बच्चा आखिर पूछना क्या चाहता है? उसने बच्चे के माथे पर हाथ फेरा और कहा कि बेटा ! इस बात को जिंदगी भर याद रखना कि कोई भी गुब्बारा अपने रंग, रूप और जाति के कारण आसमान की ऊँचाइयों को नहीं छूता। जो भी गुब्बारा आसमान तक पहुँचा करता है वह उस गुब्बारे में भरी जाने वाली गैस और ताक़त के कारण ही आसमान की ऊँचाइयों को छुआ करता है। उस बच्चे ने पूछा कि इसका मतलब यह हुआ कि अगर मैं काले रंग का हूँ तो भी आसमान की ऊँचाइयों को छू सकता हूँ? गुब्बारे बेचने वाले ने कहा – बेटा! कोई भी गुब्बारा आसमान तक पहुँचता है तो इसलिए कि मैंने उसमें हीलियम गैस भरी है और अगर तुम भी अपनी ज़िंदगी में ऐसी कोई ताक़त भर डालो तो तुम्हारी जिंदगी भी आसमान जैसी ऊँचाइयों को छू सकती है। 10 For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लड़का तो वहाँ से चला जाता है लेकिन जिंदगी का एक पैगाम हम सब लोगों के लिए छोड़ जाता है कि कोई भी व्यक्ति अपने रंग, रूप और जाति के कारण महान नहीं होता, व्यक्ति अपने कर्मों के कारण ही उत्कृष्ट या निकृष्ट हुआ करता है। ____ मैं जिस व्यक्ति की कहानी सुना रहा हूँ वह ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो बचपन में एक काला-कलूटा, हब्सी जैसा चेहरा लिए हुए दुनिया के बाल मेले में पहुँचा था लेकिन जब उसने जीवन के ज़ज़्बातों को समझ लिया, जीवन के ज़ज़्बों को जगा लिया तो वह बच्चा, बच्चा न रहा, अपने जीवन में संघर्ष पर संघर्ष करते-करते, आगे बढ़ते-बढ़ते वही लड़का दक्षिण अफ्रीका का राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला हो गया। जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है। आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा। जिन लोगों के भीतर आगे बढ़ने का ज़ज़्बा जग जाता है, वे तब तक विश्राम नहीं लेते जब तक उन्हें उनकी मंज़िल हासिल न हो जाए। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अपने रंग, रूप और जाति के कारण छोटा और बड़ा नहीं होता। व्यक्ति के कर्म, गुण और जुझारूपन ही महान व्यक्तित्व के आधार होते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं जो छोटे घर में पैदा होते हैं, लेकिन फिर भी ऊँचाइयों को हासिल कर लिया करते हैं और कई लोग ऐसे होते हैं जो बडे घरों में, अमीर घरों में पैदा होते हैं, लेकिन आगे चलकर ग़रीबी की फटेहाल जिंदगी बिताने को मजबूर हो जाते हैं । अमीर बाप का बेटा अमीर बना, कोई बड़ी बात न हुई। पर ग़रीब घर में पैदा होने वाला बच्चा अमीर बन गया, तो यह उसकी सफलता की कहानी हुई। एक चार्टर्ड एकाउटेंट का बेटा सी.ए. बन गया तो बड़ी बात न हुई क्योंकि जन्म से ही उसने वैसी परवरिश देखी है लेकिन जो बच्चा एक अनपढ़ और गँवार माँ-बाप के घर में पैदा होकर भी सी.ए., एम.बी.ए. या कम्प्यूटर कोर्स में हाई लेवल तक पहुँच गया तो यह हुई इंसान की कामयाबी की इबारत। यह इंसान के अपने पुरुषार्थ का परिणाम है, खण्डप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाने का तरीका है। इंसान को अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को हासिल करना चाहिए और जब तक कोई व्यक्ति सफलताओं को न पा सका, ऊँची इबारतों को, ऊँचे | 11 For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिखरों को न छू पाया तो याद रखिएगा कि गुनगुना पानी कभी भाप नहीं बनता। भाप बनने के लिए पानी को सौ डिग्री सेल्सियस तक उबलना पड़ता है। वही व्यक्ति सफल होता है जो कि अपनी सौ की सौ प्रतिशत ताक़त, अपने पुरुषार्थ, अपने संघर्ष को झोंक देता है, वही व्यक्ति सौ प्रतिशत सफल होता है। अगर कोई बच्चा फेल हुआ, वह केवल 25% अंक लेकर आया तो इसका मतलब यह हुआ कि उसने केवल 25% मेहनत की थी। अगर कोई लड़का पचास प्रतिशत मार्क्स लेकर आता है तो इसका मतलब है उसने केवल 50% ताक़त पढ़ाई में झोंकी थी। अगर कोई लड़का फर्स्ट क्लाब पास होकर 70% प्रतिशत लाता है तो इसका मतलब यह हुआ कि उसने अपनी 70% ताक़त सफलता के लिए लगाई। लेकिन जो बच्चा टॉप टेन में सफल हुआ, इसका मतलब यह है कि उसने अपनी शतप्रतिशत ताक़त पूरे वर्ष अपनी पढ़ाई के लिए झोंक दी। जो व्यक्ति अपनी जितनी ताक़त झोंकेगा उसका उतना ही परिणाम आएगा। अगर कोई कहता है, वह तो एक ग़रीब घर में पैदा हुआ है। वह भला क्या कर सकता है? मैं बता देना चाहूँगा कि इस देश के यशस्वी प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी ग़रीब घर में ही पैदा हुए थे। जो यह सोचते हैं कि वे ग़रीब घर में पैदा हुए थे, मैं उनकी आत्मा को जगा देना चाहूँगा और कह देना चाहूँगा कि इस देश के सबसे गरिमापूर्ण राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भी ग़रीब घर में पैदा हुए। अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भी ग़रीब कुल में ही पैदा होने वाले इंसान थे। ग़रीब घर में पैदा होना कोई गुनाह नहीं है, लेकिन अपने मन को ग़रीब बना लेना अवश्यमेव अपराध है। एक महिला अगर हर पन्द्रह दिन में अपने पति के सामने जाकर अपने हाथ का कटोरा आगे बढ़ाती है और कहती है कि दो हज़ार रुपये हाथ खर्च का देना तो यह डूब मरने की बात है। महिलाएँ स्वाभिमान की जिंदगी जिएँ, कब तक अपने पति के आगे हाथ का कटोरा फैलाती रहोगी? सड़क पर चलने वाला भिखारी कटोरा फैलाये बात समझ में आती है लेकिन आप एम.ए., बी.ए. पढ़ी हैं, फिर भी अगर आपको अपने पति के आगे हाथ फैलाना पड़ता है तो क्या इसे उचित कहा जाएगा? जब पुरुष महिलाओं से पैसा और हाथ खर्चा नहीं माँगते तो महिलाएं अपने पतियों से हाथ खर्चा क्यों माँगे? एक लड़का अगर मेट्रिक में पढ़ रहा है तो वह भले ही माँ-बाप के खर्चे से अपनी पढ़ाई करे, लेकिन जिस दिन वह मेट्रिक पास कर लेता है, उसके बाद उसको ग्यारहवीं की पढ़ाई करनी है तो वह भूल-चूककर भी अपने आगे की 12 | For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढ़ाई के पैसे माँ-बाप से न माँगे । एल.के.जी., यू.के.जी, पहली, दूसरी क्लास के बच्चों की टीचिंग करो, उन्हें पढ़ाओ और उसके द्वारा आपको प्रति माह जो दो हज़ार रुपये प्राप्त हुए, उसमें से एक हज़ार रुपया ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई के लिए काम आ गए। अगर दसवीं पास होने के बाद बच्चा माँ-बाप से पैसे लेकर आगे की पढ़ाई करता है तो इसका मतलब यह हुआ कि बच्चा अपने माँबाप पर बोझ बन रहा है । उसको अपने पाँव पर खड़ा होना आना चाहिए। केवल अपने बच्चों को पढ़ाते ही मत रहो, बल्कि अगर आप रोकड़ बही जानते हैं तो दसवीं करते ही अपने बच्चे को रोकड़ बही लिखना भी सिखा दो । अगर आपकी बच्ची पन्द्रह-सोलह साल की हो गई तो केवल बी. ए. की क्लास ज्वॉइन मत कराओ, उसे खाना बनाना भी सिखा दो । हुनर आना चाहिए। न मेरी ज़िंदगी का कोई भरोसा है और न आपकी जिंदगी का कोई भरोसा है। एक माँ-बाप को जीते-जी अपने बच्चे को पाँवों पर खड़ा होना सिखा देना चाहिए। ज़रूरी नहीं है कि आप आज की तरह कल भी करोड़पति रहें ही । यह तो चक्का है और चक्का घूमता है तो ऊपर वाला कभी नीचे आ जाता है और कभी नीचे वाला ऊपर आ जाता है। इसलिए एक बात हमेशा याद रखना । आपके घर में अगर कोई लड़की है तो उस लड़की के लिए शादी की चिंता बाद में कीजिएगा पहले उसे पढ़ा-लिखा कर नौकरी लगाना शुरू कर दीजिएगा ताकि उसका स्वाभिमान जग सके। उसे अहसास हो कि मैं एक लड़की हो गई तो क्या हुआ, अपने पाँवों पर खड़ी हो सकती हूँ, मैं भी कमा सकती हूँ । 1 बहनो और बिटियाओ, अपने दहेज की व्यवस्था अपने माँ-बाप से मत करवाना, पढ़ाई की व्यवस्था भले ही उनसे करवा लेना, पर अपने दहेज की व्यवस्था खुद अपने बलबूते पर करना । अब वे जमाने लद गए कि जब कहा जाता था कि लड़कियाँ कमाने थोड़े ही जाती हैं । आप लोग बहुत सालों तक दबदब कर रही हैं। अगर आप नहीं कमायेंगे, अगर आप मेहनत नहीं करेंगे तो हर पन्द्रह दिन में हाथ का कटोरा आगे बढ़ाना पड़ेगा और वह जितना दे दे उतने में राजी होना पड़ेगा । आपकी कोई इच्छा होगी तो आप ज़रूरी नहीं है कि उसे पूरा कर भी पायें । हिम्मत तो बटोरनी पड़ेगी । जब भी कोई व्यक्ति हिम्मत बटोरता है, काम बन जाता है। अगर किसी आदमी को फुटबॉल खेलना नहीं आता तो तभी तक नहीं आता है जब तक कि मैदान नहीं मिलता, लेकिन जैसे ही सामने खेलने के लिए मैदान और गेंद मिल जाती है तो अपने आप किक मारना और गोल करना For Personal & Private Use Only 13 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीख जाते हैं, इसलिए अपने बच्चों को भूल-चूककर भी अपने घर का गमला मत बनाओ कि कोई एक दिन पानी न दे तो सूख जाए। अपने बच्चों को जंगल का पौधा बनाओ जिसको कोई पानी देने वाला न मिले तब भी अपने पाँवों पर वह खुद खड़ा हो सके। खुद के बलबूते पर । याद रखना, ग़रीब की कोई इज़्ज़त नहीं होती, उसे हर जगह हेय दृष्टि से, हीन - भावना से देखा जाता है। मेरी समझ से मंदिर की प्रतिष्ठा में सवा करोड़ का चढ़ावा चढ़ाने वाले व्यक्ति से दुनिया में आज तक किसी ने नहीं पूछा होगा कि तुमने पैसा कैसे कमाया है? बस पैसा तूने समाज में लगा दिया, तेरी इज़्ज़त हो गई । ग़रीबी अभिशाप है। दुनिया में गरीबों की कोई इज़्ज़त नहीं होती। ग़रीब का बेटा अगर समझदार होगा और ज्ञान की दो बात कहेगा तो लोग उसे टोकेंगे, चुप करा देंगे और अमीर का बेटा अगर भोला-भाला होगा, मीटिंग में बैठा होगा और नासमझी की बात करेगा तब भी लोग उसे सुनना चाहेंगे, कोई रोक-टोक नहीं । माफ़ कीजिएगा, एक संत होकर मुझे आपको अमीर होने की प्रेरणा देनी पड़ रही है, क्योंकि मुझे संन्यास लिए हुए तीस साल हो गये और इन तीस सालों का तजुर्बा यह है कि समाज में न चरित्र की इज़्ज़त होती है, न गुण की, न ज्ञान की इज़्ज़त होती है, यहाँ पर केवल पैसे की इज़्ज़त होती है । इसीलिए कहूँगा कि हर आदमी अमीर बने, केवल पति के बलबूते पर आपका घर अमीर नहीं हो सकता । बहू भी मेहनत करे, बेटा भी मेहनत करे, पर इज़्ज़त की जिंदगी ज़रूर बनाएँ । ग़रीब घर में पैदा हुए, कोई दिक्कत नहीं, पर अपने आप को अब ग़रीब मत रहने दो। यह प्रगति का युग है, निर्माण का युग है, आने वाली दुनिया में अपनी जगह बनाने का युग है। पहले तो साधन नहीं थे। तब अगर एक जगह से दूसरी जगह धंधा करने के लिए जाना होता, तो कंधे पर चार थान कपड़े के उठा कर ले जाने पड़ते थे। अब ऐसा नहीं है, अब ढेर सारे साधन हैं। हम लोग निठल्ले बैठे हैं इसलिए हम लोग अमीर नहीं बनते। आज से ही अगर अपनी आत्मा को जगा लें और आने वाले केवल दस साल के लिए पुरज़ोर मेहनत करना शुरू कर दें तो दस साल बाद आपके घर का, आपके परिवार का हुलिया ही बदल जाएगा। यक़ीनन । सच्चाई तो यह है कि मैं भी एक सामान्य घर में ही पैदा हुआ। कहते हैं कि हमारे पड़दादों के पास सोने के झूले थे । कहते हैं ऐसा, मैंने नहीं देखा । मेरी माँ कहती थी कि बेटा जब तुम पैदा हुए थे तो तुम्हें पिलाने के लिए दूध के पैसे भी 14 | For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बराबर नहीं हआ करते थे। एक लीटर दूध खरीद कर लाना हो तो हज्जत करनी पड़ती थी। तब कहीं जाकर दूध आता था। मेरी माँ कहती थी कि सात देवर-जेठ, सबके इतने सारे बच्चे वे किन-किनके लिए दूध लाएँ? हम सामान्य ग़रीब घर में ज़रूर पैदा हुए, हमारे घर में हम पाँच भाई थे, पाँच भाई अगर एक घर में पैदा हो गए फिर भी रोजी-रोटी के लिए मोहताज़ होना पड़ता है? एक मज़दूर भी अगर मेहनत करेगा तो रोजाना दो सौ रुपये कमाकर लाएगा। हम अगर ऐसे ही निठल्ले बैठे रहे, ऐसे ही अगर माँद में शेर दुबका रहा तो शेर भी भूखा मर जाएगा। कोई कहता है कि मैं क्या करूँ मेरे पास पैसे नहीं हैं, धंधा कैसे शुरू करूँ? अरे भाई! शुरू नहीं करोगे तो धन आएगा कहाँ से! एक युवक कह रहा था कि मेरे तो बचपन में ही पिताजी का देहान्त हो गया। मैं बता देना चाहता हूँ कि ऑस्कर विजेता ए.आर. रहमान के पिता का देहावसान भी बचपन में ही हो गया था। लेकिन अगर आदमी यह सोच लेगा कि मेरा बाप मर गया, मैं क्या कर सकता हूँ तो कुछ बात नहीं बनेगी। भाई अपने भीतर के पितृत्व को जगाओ, सोचो कि बाप मर गया तो क्या हुआ, मैं तो अभी जिंदा हूँ। मैं अपने पुरुषार्थ को जगाऊँगा और ये अंगुलियाँ गिटार और सितार पर भी क्यों न चलानी पड़े मैं इसके जरिये भी ऑस्कर तक पहुँचूँगा। किसी को बड़ी हीन-भावना महसूस होती है। लड़कियाँ ऊँची एड़ी की चप्पल पहनकर अपने आपको लम्बा दिखाने की कोशिश करती हैं। बहनो! अपने नाटेपन के कारण हीनभावना की ग्रंथि अपने भीतर मत आने दीजिए। जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा-दिल खाक़ जिया करते हैं। स्वयं को बूढ़ा, अपाहिज, मुर्दा-दिल मत बनने दो। हमेशा ऊर्जावान् रहो। जो छोटे कद के हैं, उनसे मैं कहना चाहूँगा कि इस देश का महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर भी छोटे कद का ही है और अगर छोटी उम्र है तो भी चिंता मत कीजिए क्योंकि इस देश की महान टेनिस स्टार सानिया मिर्जा भी छोटी उम्र में ही पूरे विश्व में अपना नाम फैलाने में कामयाब हो गई। जीवन में बस संघर्ष चाहिए, केवल जज़्बा चाहिए क्योंकि रंग-रूप-जाति के कारण कोई व्यक्ति आगे नहीं बढ़ता, आदमी का कर्म और पुरुषार्थ ही आदमी को आगे बढ़ाता है। निरमा वाशिंग पाउडर के मालिक करसन भाई पटेल को मैंने अहमदाबाद की सड़कों पर साइकिल और ठेलागाड़ी पर अपना माल बेचते हुए अपनी आँखों से देखा है, जो 15 For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज निरमा ब्रांड के मालिक हैं। नौकरी करते हो तो भी घबराना मत । मैं तो हमेशा कहा करता हूँ कि नौकरी मत करो और अगर नौकरी करते भी हो तो आठ घंटे वहाँ नौकरी करना, पर चार घंटे व्यापार के लिए समर्पित करना । जैसे-जैसे तुम्हारे व्यापार में तरक्की हो जाए नौकरी को एक तरफ कर देना। किसी और को सर या बॉस कहना हो तो नौकरी करो, दूसरों से सर या बॉस सुनना हो तो मालिक बनो । उद्योग करोगे तो आगे बढ़ोगे, नौकरी करोगे तो आठ-दस हज़ार में ही बुढ़ापे तक की ज़िंदगी जीने के लिए मज़बूर रहोगे । आगे बढ़ो, प्रगति के लिए परिश्रम से बढ़कर और कोई विकल्प नहीं है । हो सकता है कि आज आप केवल नौकरी कर रहे हों। रिलायंस कंपनी के मालिक धीरू भाई अम्बानी भी कभी नौकरी ही करते थे, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िंदगी को नौकरी तक सिमटने न दिया । अगर आप पढ़े-लिखे इंसान हैं, तो मैं कहना चाहूँगा, अपने घर को ग़रीब मत रहने दो, नई कामयाबियों को हासिल करो, नई सफलताओं को हासिल करो । धर्म के पथ पर जा रहे हो तो धर्म के पथ पर ऊँचे बढ़ो, साधना के पथ पर आये हो तो साधना के पथ की ऊँचाइयों को छुओ और अगर विद्यार्जन कर रहे हो तो विद्या में आगे बढ़ो । विद्या कामधेनु की तरह फलदायी है । बस, आसमान छूने की ललक पैदा करो। 'जो चलै सो चरै ।' जो चलेगा सो चरेगा, जो बैठा रहेगा भूखा मरेगा। जो चलता रहेगा वह कहीं-न-कहीं अवश्य पहुँचेगा । 'रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान' । और 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' । करते रहो, करते रहो, करते रहो । सच्चाई तो यह है कि अगर रस्सी भी लगातार पत्थर पर चलती रही तो पत्थर, पत्थर न रहेगा, पत्थर भी घिस जाएगा । वह भी गोल होकर शिवलिंग बन जाएगा। अगर लगातार पानी की बूँद संगमरमर पर गिरती रहें, तो उसमें भी गड्ढे हो जाएँगे। सफलता का एक ही गुरुमंत्र है : मुन्ना भाई ! लगे रहो लगन से । निरन्तर अभ्यास कठिन से कठिन वस्तु को भी सहज-सरल बना देता है । T लक्ष्य न ओझल होने पाए, क़दम मिलाकर चल । मंज़िल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल ॥ हर सफलता के पीछे असफलता की लम्बी फेहरिस्त होती है । सफलता अवश्य मिलती है बशर्ते इंसान सफलता के लिए लगा रहे। मंदबुद्धि लोग भी आगे बढ़ सकते हैं, यह सच है। मैंने कभी नौवीं कक्षा सप्लीमेंट्री से पास की थी। कभी 16 | For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लोग मुझे कहा करते थे, यह मंदबुद्धि लड़का है, लेकिन व्यक्ति मंदबुद्धि मानता रहता है । जिस दिन वह अपनी ज्ञान की चेतना को जगा लेता है, चमत्कार घटित होता है। पेंसिल को तीखा करने के लिए चाकू चलाना पड़ेगा और मेरी पेंसिल को तीखा करने के लिए जो चाकू चले हैं, उसी का यह परिणाम है कि आज देश भर मुझे पढ़ा और सुना जा रहा है। अपनी जिंदगी बड़ी मूल्यवान है। अपने भीतर के ज़ज़्बों को हमें जगाना होगा और जिंदगी को ऊँचाइयों तक ले जाना होगा । आगे से आगे तक बढ़ना होगा । सफलता तो एक सफ़र है, मंज़िल नहीं है । यह तो लगातार बढ़ते रहने का, पाते रहने का नाम है । अगर आपने एक संस्थान खोल लिया है तो वहाँ तक सीमित मत रहो, उसको और आगे बढ़ाओ । यह मत सोचो कि एक दिन मर जाना है, और मरेंगे तो सब यहीं छोड़-छुड़ाकर चले जाना है। मृत्यु की बात मत सोचो, केवल जिंदगी की बात करेंगे। जब तक ज़िंदा हो तब तक अंतिम श्वास तक सृजन करते रहो । सृजन करते रहोगे तो जीवन में जीने का लक्ष्य रहेगा और सृजन ही अगर बंद कर दोगे तो आज मरे या कल मरे क्या फ़र्क पड़ना है। कल भी सुबह उठे थे, फ्रेश हुए, दुकान चले गए, फिर वही कार्य किया, शाम को लौट कर आए और सो गए। कल भी यही किया, आज भी यही कर रहे हैं, कल भी वही करेंगे। अगर हमारे पास कुछ लक्ष्य नहीं है, कुछ और नया करने के लिए नहीं है तो क्या फ़र्क पड़ता है, कल तक जिए, आज तक जिए, दस-बीस साल और जीकर चले गये। मरने की कौन सोचे, यहाँ पर हम तो जिंदगी के गीत गाते हैं, जिंदगी की सोचते हैं। ऊपर वाले स्वर्ग-नरक की कौन चिंता करता है । हम तो अपनी ही धरती को, अपने ही जीवन को स्वर्ग बनाने की कोशिश करते हैं । इसीलिए मैंने कहा था - 'तू ज़िंदा है तो ज़िंदगी की जीत पर यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर । ' तुम्हारी ज़िंदादिली की, जिंदगी की कसौटी इसी में है कि हम लोग, हमेशा जीत पर विश्वास करें, हमेशा आगे बढ़ने पर विश्वास करें। आगे बढ़ते-बढ़ते विफल हो भी जाएँ तो कोई ग़म नहीं । हो गए तो हो गए। जो आदमी चलेगा, वही तो ठोकर खाकर नीचे गिरेगा। जो चलेगा ही नहीं, वह कहाँ गिरेगा? माना मैं यहाँ से वहाँ तक जाऊँगा । जाऊँगा तो खतरा तो है कि कहीं पाँव फिसलकर गिर सकता हूँ। अगर मैं यह सोचूँगा कि कौन खतरा मोल ले पाँव फिसलने का, तो मैं यहीं बैठा रहूँगा । यहाँ बैठा निठल्ला आदमी न तो गिरेगा और न कहीं पहुँचेगा। अगर For Personal & Private Use Only 17 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमें साइकिल चलाना सीखना है तो दो-चार बार साइकिल से गिरना भी होगा। जिस आदमी ने सोचा कि साइकिल चलाना सीखूगा और घुटने छिल गए तो? जहाँ तक दो-चार बार घुटने नहीं छिले, वहाँ आज तक कोई आदमी साइकिल चलाना सीख ही नहीं पाया है। घुड़सवारी सीखने वाले को गिरना भी आना चाहिए। ___ माँ के पेट में कोई मज़बूत नहीं होता है। बच्चा तब मज़बूत होता है जब वह माँ की गोद से उतरकर ज़मीन पर चलता है और चलते-चलते कभी वह गिरता है, कभी लुढ़कता है, कभी माथे पर चोट लगती है। बच्चे का निर्माण ऐसे ही होता है। माँ की गोद में बच्चे बनते थोड़े ही हैं। ज्यादा प्यार से बच्चे केवल बिगड़ते हैं। प्यार करो पर ऐसे जैसे चिड़िया करती है। चिड़िया अंडों को सेती है, उनमें से बच्चे जब निकल आते हैं, उनके पंख निकल आते हैं, तो चिडिया पहला काम करती है अपने सिर का दबाव देकर बच्चे को घौंसले से नीच फेंक देती है। बच्चा नीचे लुढ़कता है। ऊपर से नीचे गिरने वाला बच्चा करेगा क्या? अपने आप उसके पंख खुल जाते हैं। एक बार पंख खुलना ज़रूर आना चाहिए। फिर तो जिंदगी भर खुद ही आसमान की ऊँचाइयों को छूते रहोगे। ___ एक माँ-बाप होने के नाते आप अपने बच्चों से ज़्यादा मोह मत करो, जिंदगी भर उनसे चिपके मत रहो। मोह में अंधे धृतराष्ट्र मत बनो। धक्का दो और उन्हें सबल बनाओ। सामान्यतया गॉड का अर्थ भगवान होता है लेकिन मैं गॉड का अर्थ दूंगा – 'गो ऑन ड्यूटी'IG = GO, O = ON, D = DUTY. अपने बच्चों को उनका कर्तव्य सिखाइए। उन्हें अपनी दुकान पर बाद में बिठाना, उससे पहले पाँच साल के लिए उसे मद्रास या बैंगलोर भेज देना और वह जो पाँच साल में धक्के खाकर छः हज़ार रुपया महीना कमाकर लाएगा तब कुछ दुनियादारी समझेगा। बाप की कमाई का मजा लेता है, दिन भर मोबाइल लगाता है, दिन भर मोटर साइकिल पर पेट्रोल पँकता है। छ: हज़ार रुपया महीना जब उसके हाथ में आयेगा तब उसको पता चलेगा कि महीना भर तक पसीना बहाना किसे कहते हैं और पसीने की कमाई किसे कहते हैं? पाँच साल बाद आप उसको अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दीजिएगा। पर पाँच साल बाद, पहले नहीं। पहले बच्चे को परिपक्व बनने दीजिए। परिपक्वता पैसे से नहीं आती। परिपक्वता परिश्रम से आती है, संघर्ष से आती है। तब वह दुकान आयेगा तो वह 18 | For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समझेगा कि पैसा किसको कहते हैं? मेहनत किसको कहते हैं? कमाया कैसे जाता है? केरियर कैसे बनाया जाता है? व्यक्तित्व के निर्माण के लिए कितनी ठोकरें खाई जाती हैं? किस-किसके आगे जी-हुजूरी करनी पड़ती है। किस-किसको कितना तेल लगाया जाता है, यह आदमी तब वह सीखेगा। अंडे में बच्चा नहीं बनता, बच्चा तो बाद में बनता है। माँ के पेट से शरीर का जन्म होता है। जिंदगी का निर्माण तो जीवन में लगने वाली ठोकरों से हुआ करता है। जिस आदमी को जिंदगी में जितनी ठोकरें लगीं वह आदमी उतना ही पका। जिस घड़े में जितनी बार पानी डाला गया वह घड़ा उतना ही तो पका। अगर आपको लगता है कि अमुक आदमी का पिता जल्दी चल बसा और आज वह चौंतीस साल का है तो समझ लेना इस आदमी में बड़ा दम है क्योंकि वह अपने बलबूते पाँव पर खड़ा हुआ है। खुद का बलबूता कठिन है, इसलिए कहता हूँ कामयाबी कोई मंज़िल नहीं है, यह सफ़र है और हमें इसे सफ़र मानते हुए पूरा करना चाहिए। ऐसा हुआ, कुछ समय पहले की बात है। मैं एक कॉलेज के दीक्षान्त समारोह में शरीक हुआ। पारितोषिक वितरण होना था और उनका आग्रह था कि उनके इस समारोह में मैं अपन हाथों से सारे बच्चों को पारितोषिक दूँ। क़रीब दो हज़ार छात्रछात्राएँ बैठे हुए थे और लगभग डेढ़ घंटे के कार्यक्रम के बाद जब मुझे बोलने के लिए कहा गया तो पता नहीं उस दिन मुझे क्या बात अँची कि मैंने कहा - आज मैं बोलूँगा नहीं, आज कुछ करूँगा। जब यह कहा तो बच्चों में उत्सुकता जग गई। मैंने देखा कि सामने ही एक काँच का बड़ा बर्तन पड़ा था। मैंने काँच के उस बर्तन को अपने पास मंगवाया। मैंने कुछ छात्रों से कहा – 'वो देखो, सामने पत्थर पडे हैं, वे पत्थर उठाकर इसमें डाल दो। सावधानी से डालना, काँच का बर्तन है, कहीं फूट न जाए।' उन्होंने पत्थर उठाकर सावधानी से भर दिए। मैंने कहा, तब तक भरते रहो जब तक तुम्हें गुंजाइश लगती है। पूरे के पूरे पत्थर इसमें डाल दो। काँच का बर्तन पूरा भर चुका है। मैंने कहा - 'देखो, कहीं कोई गुंजाइश हो, तो डाल दो'। उन्होंने कहा - सर! इसमें अब कोई भी गुंजाइश नहीं है। मैंने दो और छात्रों को बुलाया और कहा – 'देखो, क्या इसमें और पत्थर डाले जा सकते हैं?' वे बोले, सर! अब इसमें और पत्थर नहीं डाले जा सकते, अब यह पूरा भर गया है। पीछे से मैंने दो और छात्रों को बुलाया और कहा – ' एक काम 19 For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करो, पीछे जाओ और पूरे रास्ते में जो ये छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हैं उठाकर ले आओ' । तगारी भरकर कंकड़ इकट्ठे हो गए। मैंने कहा - ' ये भी अब इसमें डाल दो'। बड़े पत्थरों के बीच में छोटे-छोटे कंकड़ आते गये और वह फिर भर गया। मैंने कहा – 'देखो,क्या इसमें और भी गुंजाइश है? बोले, साहब! अब इसमें एक भी कंकड़ डालने की गुंजाइश नहीं है।' मैंने कहा - 'अभी भी गुंजाइश है'। एक काम करो – पाँच-सात गिलास बालू के भरकर ले आओ। वे बालू लेकर आ गए। मैंने कहा - 'अब इसे हिलाते रहो और अन्दर डालते रहो।' पाँच-छ: गिलास बालू भी उसमें चली गई'। मैंने पूछा - 'बताओ, क्या अब भी इसमें गुंजाइश है? बच्चों ने कहा -'अब, आप इसमें क्या गुंजाइश देखते हैं? अब तो आपने बालू भी डाल दी, सबसे बारीक चीज़ डाल दी। अब इसमें किसी भी तरह की कोई गुंजाइश नहीं बची।' मैंने कहा - 'मैं जीवन का यही तो पाठ पढ़ा रहा हूँ, कि गुंजाइशों का कभी कोई अंत नहीं होता। ज़रा जाओ उधर और एक बाल्टी पानी उठाकर ले आओ। यह सुनते ही बच्चों ने ताली बजाई। बच्चे बात समझ गए। पानी उसमें डाल दिया गया।' मैंने कहा – 'जिंदगी में मैं यही पाठ इस दीक्षान्त समारोह में आप लोगों को पढ़ाना चाहूँगा कि केवल यह मत समझना कि आप लोगों ने एम.बी.ए.कर लिया है कि बी.ए. कर लिया है तो अब गुंजाइश खत्म हो गई। गुंजाइशें अभी और हैं। गुंजाइशें और संभावनाएँ हम लोगों को न्यौता देती हैं कि आप कहीं तक भी क्यों न बढ़ गये हों, अभी तक कामयाबी की और भी गुंजाइशें बची हुई हैं।' यह देश, यह समाज, यह कुदरत हम लोगों को न्यौता देती है कि आओ, अपनी जिंदगी को बदलो। नये तरीके सीखो, नये ज़ज़्बातों को सीखो, नये ज़ज़्बे जगाओ और अपनी कामयाबी के नये-नये रास्ते तलाशो। दान की रोटी की बजाय, दया का दूध पीने की बजाय, परिश्रम का पानी पीना कहीं ज्यादा अच्छा है। दान की रोटी, दया का दूध पीने की बजाय पुरुषार्थ का पानी पीना अधिक गरिमापूर्ण है। मैं प्रेम की रोटी तो खाता हूँ, पर दान की रोटी नहीं खाता। अगर कोई कह देता है कि साहब आज मैंने सुपात्र दान दिया तो मैं उस रोटी को खाना पसन्द नहीं करूँगा।ओ भैया, दान भिखारी को जाकर देना । गुरु चरणों में केवल समर्पण होता है। वहाँ दान नहीं होता। दान किसी और को जाकर देना । तू मुझे दो रोटी का दान देता है, मैं तेरे जैसे दो सौ लोगों को दान देने की क्षमता रखता हूँ। तेरे जैसे दो सौ लोगों को रोजाना खाना खिलाने की हैसियत है। जब मंदिर बनाने 20 | For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में हर साल लाखों, करोड़ों रुपया खर्च करवा सकते हैं तो क्या इंसानों को खिलाने की हमारे पास ताक़त नहीं होगी। क्या अपना पेट भरने की हमारे पास हैसियत नहीं होगी? भगवान ने हमें कंधे दिए हैं, कमाने के लिए दो-दो हाथ दिए हैं और इज़्ज़त की जिंदगी जीने के लिए भगवान ने यह वाणी, क़लम और बुद्धि दी है। तरस की रोटी नहीं खायेंगे, जो रोटी खायेंगे वो प्रेम और परिश्रम की खायेंगे। जिंदगी हमें बदलनी होगी। जिंदगी जो कमज़ोर हो रही है, हमारे ज़ज़्बात, हमारे ज़ज़्बे जो कमज़ोर हो रहे हैं, हमें उनको बदलना होगा और अपने भीतर दम-खम लाना होगा। सही सोच हो, सही दृष्टि हो, सही हो कर्म हमारा। बदलें जीवन धारा॥ यह गीत जीवन का गीत है, यह गीत सफलता और कामयाबियों की नई मंज़िलों तक पहुँचने का गीत है । यह गीत कम, सफलता की गीता ज़्यादा है। सही सोच हो, सही दृष्टि हो, सही हो कर्म हमारा। बदलें जीवन धारा॥ बेहतर लक्ष्य बनायें अपना, ऊँचाई को जी लें भले न पहुँचें आसमान तक, मगर शिखर को छू लें। शांति और विश्वास लिये हम, दूर करें अंधियारा। बदलें जीवन धारा॥ लोग कहते हैं, गाय दूध देती है। क्या आप भी कहते हैं। बचपन से सबने पढ़ रखा है कि गाय दूध देती है। मैंने सोचा कि गाय दूध देती है, तो देखना चाहिए। मैं गाय के पास जाकर खड़ा हो गया कि गाय हमें दूध देगी, पर उसने नहीं दिया। गाय हमें देती ही नहीं है, जो देती है वह खाने या पीने के काम का नहीं होता। जिंदगी में कोई कुछ नहीं देता, हमारी क़िस्मत हमें कुछ नहीं देती। क़िस्मत से भी दूध निकालना पड़ता है। दूध भी गाय से दुहकर निकालना पड़ता है। केवल क़िस्मत का रोना रोते रहोगे तो कुछ भी नहीं मिलने वाला।'क' से क़िस्मत होती है और क से कर्मयोग। क़िस्मत फल देती होगी, पर हर आदमी क़िस्मत वाला नहीं होता। हमें कर्म करना होगा, कर्म से क़िस्मत के द्वार खोलने होंगे। ऊँचे लक्ष्य, आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत सफलता की जननी है। मैं तो कहूँगा सपने देखो भाई, सपने देखो। जो आदमी जितना ऊँचा सपना | 21 For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देखेगा वह उतना ही आगे बढ़ सकेगा। मैं कुछ नहीं करता, आपको सपने दिखाऊँगा और सपने दिखाकर उन्हें सत्य में कैसे ढाला जाए, बस आपको उस ऊँचाई तक पहुँचाऊँगा। आप लोग केवल रात को सपने देखते हैं, सोयेसोये। रात के सपनों में कोई दम नहीं होता।आँख खुलते ही मैटर फिनिश हो जाता है। मैं वे सपने दिखाता हूँ जो ज़िंदगी बनाए, जो जीवन का निर्माण करें, इंसान को ऊँचा उठाए। मन की शक्ति रखें सुरक्षित, ऐसे स्वप्न सजाएँ। प्रगति के जो दीप जलाए, वही दृष्टि अपनाएँ। बेहतर रखें नज़रिया अपना, बेहतर क़दम हमारा। बदलें जीवन धारा॥ नज़रिया कैसा हो? हमेशा आधा गिलास भरा हुआ देखो, खाली मत देखो। हमेशा फूलों पर गौर करो, काँटों पर नज़र मत डालो। सभी पंथ-परम्पराओं के रास्ते जुदा होते हैं,पर मंज़िल सबकी एक होती है। बेहतर रखें नज़रिया अपना, बेहतर क़दम हमारा। बदलें जीवन धारा॥ सही सोच हो, सही दृष्टि हो, सही हो कर्म हमारा। बदलें जीवन धारा॥ एन्जॉय एव्हरी मोमेन्ट। जीवन के हर पल का आनन्द लीजिए, क्योंकि जो पल बीत जाएगा वह वापस नहीं आने वाला। रूठे हुए देवता को मनाया जा सकता है, पर बीते हुए समय को वापस नहीं लौटाया जा सकता। एन्जॉय एव्हरी मोमेन्ट। मेहनत को हम दीप बनायें, लगन को समझें ज्योति ॥ पत्थर में से हीरा जन्मे, और सागर में मोती। एक चौबीस-पच्चीस वर्षीया बहिन मेरे पास आई और कहने लगी कि प्रभु मेरी आपबीती सुनेंगे तो आपकी आँखों में आँसू आ जायेंगे। मैंने पूछा - 'बहिन, क्या हो गया आपको?' बहिन बोली – 'साहब, सात महीने हो गए, मेरे पति गुजर गए। ससुराल से यह कहकर निकाल दिया गया कि मनहूस है, हमारे बेटे को खा गई। अपने पति को खा गई। मेरे माँ-बाप नहीं हैं, केवल एक छोटा भाई है, जिसकी अभी तक शादी भी नहीं हुई है। बड़ी ग़रीबी में पलकर बड़ी हुई, शादी 22 | For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुई, ख़ुश थी कि चलो अब मेरा जीवन आनंद से बीतेगा। पर मेरी बदकिस्मती कि मेरा पति चल बसा। मेरे पास एक छोटी-सी बच्ची है, तीन साल की। अब आप बताइए, मैं क्या करूँ?' अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने किराये का एक कमरा लिया है, पर किराया चुकाने के लिए मेरे पास अब पैसे नहीं बचे। दो सोने की चूड़ियाँ थीं, मैंने बेच दीं। उससे छ: महीने गुज़ार दिए। मैंने कहा -'बहिन, आप मुझसे क्या चाहती हैं?' बोली, 'साहब! पन्द्रह दिन के राशन की व्यवस्था हो जाए।' मैंने कहा – 'हो जाएगी बहिन।' उसने जो कहानी बताई, मैंने दो-चार लोगों से पता किया तो पता लगा बात सच है। मैंने कहा - बहिन, तुम पन्द्रह दिन की छोड़ो, मैं जिंदगी भर की ज़वाबदारी अब अपने कंधे पर लेता हूँ। पर बहिन, तुम इस तरह से माँगती रहोगी तो आज मुझसे माँगा, कल किसी और के सामने हाथ फैलाना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि अगर मैंने तुम्हारी ज़वाबदारी अपने कंधे पर ले ली है तो तुम अब इस तरह से माँगती फिरो। माँगना पाप है। मेरे जैसा व्यक्ति यही मानेगा। मैं संत बन गया। संत कुछ लोगों से पैसा माँगते हैं, मैं नहीं माँगता। मैं अपने संत वेश को बेचता नहीं हूँ। किसी से पैसा नहीं माँगता। बहुत इज़्ज़त की जिंदगी जीते हैं और ईश्वर ने जो हमारी औकात और ताक़त बनाई है, उसे जनहित में लगाते हैं। हम लेते नहीं हैं। अगर आपने यहाँ से बीस रुपये की किताब भी खरीदी है तो उसमें पाँच रुपया हमने लगाया है। घाटा खाकर सेवा करने वाले लोग आपने नहीं देखे होंगे। जैसे कोई व्यक्ति एक मंदिर बनाता है, एक करोड़ रुपया खर्च करता है, पर पचास लोग वहाँ पर दर्शन करने के लिए नहीं जाते। मैं मानता हूँ कि एक करोड़ का उपयोग पचास लोग करते हैं। और हमारी कोई एक किताब छपती है पचास हज़ार रुपये खर्च आता है। उन दो हजार प्रतियों को पढ़ने वाले दस हज़ार होते हैं। एक किताब अपने आप में घर-घर पहुँचने वाला एक मंदिर ही है जो लोगों के तन-मन को पावन करता है। हम चाहें तो किताबें लोगों को नि:शुल्क भी बाँट सकते हैं, पर उसकी क़ीमत फोकटिया जितनी होती है। भले ही कोई आदमी अपना नाम मोफतलाल क्यों न रख ले पर इससे वो मुफ़्त का होता नहीं है, बड़ा क़ीमती होता है। मैंने उस बहिन से कहा – 'यह रोज़-रोज़ माँगना बंद करो, मैं अगर आपको | 23 For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहीं नौकरी लगवाऊँ तो आप काम कर लोगी?' बोली, 'साहब, मुझे नौकरी पर कौन रखेगा? आठवीं पास हूँ मुझे कौन लगाएगा।' मैंने कहा - 'ठीक है, काम करते हुए शर्म तो नहीं आती?' बोली – 'शर्म नहीं आयेगी।' मैंने कहा - 'झाड़ पोंछे लगवाऊँ तो?' बोले - शर्म नहीं आयेगी?' मैंने हाथो-हाथ एक स्कूल में फोन करवाया और कहा, 'एक बहिन जी को भेजता हूँ, उन्हें चपरासी की नौकरी पर लगवा देना।' उन्होंने कहा - 'साहब, पहले से ही पूरे चपरासी हैं, आवश्यकता नहीं है।' मैंने कहा, 'मैं किसी को चपरासी नहीं बना रहा हूँ। मैं किसी को स्वावलम्बी बनाकर आत्मनिर्भर इंसान बनाना चाहता हूँ। मैं किसी को भिखारी बनते हुए नहीं देख सकता।' बोले, 'आप कहना क्या चाहते हैं?' मैंने कहा, 'नौकरी पर तुम वहाँ रखो, पैसा मैं दिला दूंगा। तुम पैसे की चिंता मत करना। कल को उसकी बेटी को बड़ी होने पर यह न लगे कि मैं धर्मादे की रोटी खाकर पली हूँ, उसको यह लगे कि माँ ने मुझे मेहनत करके पढ़ाया और तैयार किया है।' खैर ! नौकरी रख ली गई। पहला महीना पूरा होते ही वह दो हज़ार रुपया लेकर हमारे पास आई और आकर कहने लगी - यह मेरे पहले महिने की तनख्वाह है, आपके चरणों में समर्पित है। मैंने कहा - बहिन, हमें नहीं चाहिए। आप इन दो हज़ार रुपयों में से पाँच सौ रुपये अपने कमरे का किराया चुकाना। एक हजार रुपया खाने-पीने पर खर्च करना। और पाँच सौ रुपया इस महीने बचा लेना, पाँच सौ रुपया अगले महीने बचा लेना और इस साल नौवीं की पढ़ाई का फार्म भर देना।' उसने ऐसा ही किया। उसने फिर से पढ़ाई शुरू की। सारी पढ़ाई पूर्ण की, बी.ए., बी.एड.,एम.ए., पी.एच.डी., की और आज वह राजस्थान में एक सम्मानित कॉलेज में लेक्चरार है। समाज जागे, इंसान जागे और अपने आप को बनाए। अपने आप को नहीं बना सकते तो जीने का क्या अर्थ है? मात्र धरती पर भारभूत हैं। वही व्यक्ति समाज में किसी के आगे जाकर हाथ फैलाये जो विकलांग है, अपाहिज है, अंधा है। अंधे को दान दे देने में कोई दिक्कत नहीं। कोई 85 वर्ष की वृद्ध विधवा महिला है तो उसे राशन-पानी दो, पर इसके अलावा किसी को दान मत दो। उसको इतना सहयोग कर दो कि वह आत्मनिर्भर बन सके, अपने पाँवों पर खड़ा हो सके। 24 | For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेहनत को हम दीप बनायें, लगन को समझें ज्योति। पत्थर में से हीरा जन्मे, और सागर में मोती। बाधाओं से डरना कैसा, मिलता स्वयं किनारा॥ बदलें जीवन-धारा॥ बाधाएँ किसकी जिंदगी में नहीं आती? याद रखिए ऐसे व्यक्ति को जिसने इक्कीस साल की उम्र में पार्षद का चुनाव लड़ा, मगर हार गया। तेईस साल की उम्र में शादी की मगर सत्ताईस साल की उम्र में तलाक हो गया। अट्ठाईस साल की उम्र में दुकान की, लेकिन तीस साल की उम्र में दिवाला निकल गया। बत्तीस साल की उम्र में उसने एम.एल.ए. का चुनाव लड़ा मगर हार गया। बयालीस साल की उम्र में कांग्रेस से चुनाव लड़ा फिर वह पराजित हो गया। सैंतालीस साल की उम्र में उस व्यक्ति ने उपराष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा, पर फिर हार गया। वही व्यक्ति बावनवें वर्ष में अमेरिका का राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन बना। मेहनत को हम दीप बनायें, लगन को समझें ज्योति। पत्थर में से हीरा जन्मे, और सागर में मोती। मोती कहाँ मिलते हैं, सागर में मिलते हैं। पर किसी को भी एक डुबकी में मोती नहीं मिला करते। कोई भी आदमी सेना में भर्ती हो जाए तो एक ही दिन में सेनापति नहीं बन जाता। सेनापति बनने के लिए संघर्ष और अनुभवों के लम्बे दौर से गुजरना पड़ता है। बाधाओं से डरना कैसा, मिलता स्वयं किनारा। बदलें जीवन धारा॥ __ जो लोग बूढ़े हो गए वे जवान हों। अपने आप को बूढ़ा मानना ही, मौत को निमंत्रण देना है। बूढ़ा आदमी केवल एक मिनट के लिए बने, केवल एक मिनट के लिए। और बूढ़ा उस दिन बनना जिस दिन तुम्हें मौत आ जाए। इसके अलावा बुढ़ापे का क्या काम? जब तक जिओ, ऊर्जावान बनकर जिओ। मैं देखता हूँ मेरे सामने एक नब्बे वर्ष के बुजुर्ग बैठे हुए हैं। ये लगातार पन्द्रह दिन से हमारे पीछे लगे हुए हैं। इस उम्र में बोलते हैं, साहब, मेरे पास चार बीघा जमीन है, उस पर प्राकृतिक चिकित्सालय खोलूँगा। उसका शिलान्यास आपके कर-कमलों से करवाऊँगा। ग़ज़ब का जज़्बा है उनमें । इन दादाजी से प्रेरणा लिया करो। मुर्दे की तरह क्या जीना? जिओ तो ऐसे जिओ कि अगर कोई कुलदेवता भी हमारे घर में आ जाए तो लगे कि जिंदा आदमी बैठा है। मंदिर के माधवजी मत बनो। पत्थर के | 25 For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिवलिंग मत बनो। मंदिर जी के न तो महावीर जी हिलते हैं, न महादेव जी हिलते हैं । वे केवल समाधि लगाए बैठे रहते हैं। अपने को पता है कि हम न महावीर जी हैं, न महादेव जी हैं । हम तो साधारण इंसान हैं और साधारण इंसान तो कुछ करेगा तो ही पता चलेगा कि वह जिंदा है। ___आप जितनी तालियाँ अभी बजा रहे हैं, आदमी रोज़ाना इतनी तालियाँ बजा ले तो कभी बीमार ही नहीं पड़ेगा। सारा एक्यूप्रेशर ख़ुद ही कर लेगा। आदमी बीमार ही इसलिए पड़ता है कि वह कुछ करता नहीं है। हमारा संकल्प हो : मैं बूढ़ा नहीं होऊँगा, ख़ुद को बूढ़ा नहीं मानूँगा, केवल एक मिनट के लिए बूढ़ा होऊँगा और मर जाऊँगा। कर्म स्वयं ही बने प्रार्थना, बल हो नैतिकता का। पहले 'क' आता है पीछे 'ख' आता है। 'क' का मतलब है करो और 'ख' का मतलब है पीछे खाओ। मुफ्त का मत खाओ। भगवान ने तो कर्मयोग की ही प्रेरणा दी है। पहले करो, पीछे खाओ, कर्मयोग से जी मत चराओ। काम भी ऐसे करो कि वह प्रार्थना हो। स्वयं को भाग्यवादी नहीं, कर्मयोगी बनाओ। भाग्यवादी कुछ होने का इंतजार करता है, कर्मयोगी हर हाल में कुछ कर दिखाते हैं। भाग्यवादी कहते हैं कि समय से पहले, भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता। मैं कर्मयोगी हूँ। मैं कहूँगा - कर्मयोगी अपना भविष्य खुद लिखते हैं। कर्म स्वयं ही बने प्रार्थना, बल हो नैतिकता का। सबसे प्रेम सभी की सेवा, धर्म हो मानवता का॥ 'चन्द्र' धरा को स्वर्ग बनाएँ, घर-घर हो उजियारा। बदलें जीवन धारा॥ सही सोच हो, सही दृष्टि हो, सही हो कर्म हमारा। बदलें जीवन धारा॥ ऐसा हुआ - हिलेरी क्लिंटन अपने पति बिल क्लिंटन के साथ कहीं जा रही थीं। एक शहर से दूसरे शहर की तरफ कि बीच में पेट्रोल पंप आया और पेट्रोल पंप पर गाड़ियों में पेट्रोल भरवाने के लिए गाड़ियों का काफिला रुक गया। पेट्रोल पंप का मालिक निकल कर आया क्योंकि अमेरिका का राष्ट्रपति पेट्रोल भराने के लिए उसके पंप पर आया है। हिलेरी क्लिंटन बाहर निकल कर आई और उसने जैसे ही देखा कि इस पेट्रोल पंप का मालिक तो उसके बचपन का दोस्त है । पेट्रोल 26 | For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंप के मालिक ने जैसे ही हिलेरी क्लिंटन को देखा – दोनों लोग मिले, हिलेरी क्लिंटन साईड में चली गई और दोनों आराम से गप्पे-शप्पे करने लगे। हमारे यहाँ हिन्दुस्तान में लोग अविश्वास को ज़्यादा जीते हैं, विश्वास को कम जीते हैं। वहाँ पर लोग विश्वास से ज़्यादा जीते हैं । यहाँ पर तो अगर कोई महिला किसी से बात करने लग जाए तो पति भी सोचने लग जाता है - ऐ क्या बात है? मामला कुछ गड़बड़ है क्या? हिलेरी क्लिंटन पेट्रोल पंप के मालिक से थोड़ा बतियाने लगी। पन्द्रह-बीस मिनट बात की और जब पता चला कि गाड़ी में पेट्रोल भर गया है तो आ गई कार के पास। बिल क्लिंटन को मज़ाक सूझी। उन्होंने मज़ाक में कहा - यह तो अच्छा है कि तेरी शादी मेरे साथ हो गई तो तू राष्ट्रपति की पत्नी बन गई। अगर इस पेट्रोल पंप के मालिक के साथ होती तो केवल पेट्रोल पंप की मालकिन बनकर ही रह जाती। हिलेरी क्लिंटन ने कहा - सर ! क्षमा करें। सच्चाई तो यह है कि अगर मेरी शादी पेट्रोल पंप के मालिक के साथ हुई होती तो आज अमेरिका का राष्ट्रपति आप नहीं, यह होता। ___ इसे कहते हैं विश्वास, इसे कहते हैं ज़ज़्बा, जीत का जज़्बा, अपने आपका जज़्बा। याद रखिए जीत के लिए एक ही बुनियादी चीज़ चाहिए और वह है जीत का जज्बा। सफलता के लिए एक ही चीज़ चाहिए और वह है सफलता का विश्वास। विश्वास हो तो सफलता तो क्या, भगवान भी मिल सकते हैं। संदेह और डर है जहाँ, विफलता की कहानी है वहाँ । मन से संदेह को, हीन भावनाओं को, डर को निकाल फेंकें। विश्वास रखिए जो चोंच देता है, वो चुग्गा ज़रूर देता है। जो पुरुषार्थ करता है, उसे अपने पुरुषार्थ का परिणाम अवश्य मिलता है। हाँ यह संभव है कि किसी को सफलता पहले चरण में मिलती है तो किसी को दसवें चरण में, पर अगर मन में धुन सवार हो तो इंसान ऐवरेस्ट पर भी ध्वज फहरा सकता है और चन्द्रलोक की भी यात्रा कर सकता है। वैज्ञानिकों ने कोई एक ही दिन में न तो बिजली का आविष्कार किया, न हवाई जहाज का, न मोबाइल का. न टी.वी. का। ऐडीसन ने 9,999 दफ़ा असफलता का सामना किया, पर दस हज़ार वीं दफ़ा में बिजली से जलने वाले बल्बों का आविष्कार करने में सफलता पा ही ली। आज अगर कोई व्यक्ति किसी पत्थर को तोड़ना चाहे तो ज़रूरी नहीं है कि | 27 For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहली चोट में ही पत्थर टूट जाए, पर तुम लगातार-लगातार-लगातार चोट करते जाओ, पत्थर अपने आप लगातार-लगातार-लगातार कमज़ोर होता जाएगा और आखिर दसवीं चोट में पत्थर टूट ही जाएगा। सफलता के लिए वैज्ञानिक रूप से खुद को तैयार करें। अच्छी तकनीक अपनाएँ, सफलता का विश्वास भीतर जगाएँ, पूरे दिल से, पूरे मन से परिश्रम करें, 100 में से 100 प्रतिशत नम्बर आने की पूरी-पूरी गारंटी है। ईश्वर उन्हीं के साथ होते हैं जो सफलता के लिए परिश्रम और कर्मयोग करते हैं। आप जहाँ हैं वहाँ से चार क़दम आगे बढ़ाओ, अभ्यास की आवृत्ति और बढ़ाओ, यह भी एक साधना है, सफलता अवश्य मिलेगी। सार इतना ही है कि 36% शक्ति लगाने वाले को 36% परिणाम मिलेगा और 100% शक्ति लगाने वाले को 100% का परिणाम मिलेगा। तब तक रुको मत, जब तक मंज़िल तक पहुँचने का सुकून न मिल जाए। हज़ारों मंज़िलें होंगी, हज़ारों कारवां होंगे। निग़ाहें हमको ढूँढेगी, न जाने हम कहाँ होंगे। आज तुम किसी को आदर्श बनाओ, कल कोई तुम्हें आदर्श बनाएगा। आज तुम किसी को अपनी मशाल बनाओ, कल कोई और तुम्हें अपनी मशाल और मिसाल दोनों बनाएगा। कहीं न पहँचे तब तक तुम छोटे हो, पहँच गए तो छोटा भी कोई सचिन कहलाएगा और कोई चन्द्रप्रभ । भविष्य आपका है, बस वर्तमान को क़दम उठाने की ज़रूरत है। मैं तो केवल आपकी सोई चेतना को जगा रहा हूँ, जैसा कि कृष्ण ने अर्जुन की चेतना को जगाया था, बाकी महाभारत आपको जीतना है। अपनी ओर से प्रेमपूर्वक इतना ही निवेदन है। 28 | For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _12 1 सिर्फ़ H 2 एक मिनट में 43 बदल सकती है जिंदगी जीवन मूल्यवान है। मेरे लिए मेरा जीवन मूल्यवान है और आपके लिए आपका जीवन । हर व्यक्ति के जीवन का मूल्य है, इसीलिए जीवन की सार्थकता का पाठ पढ़ रहे हैं। हम में से जो व्यक्ति जीवन का मूल्य समझ लेगा, वह हर कोई व्यक्ति जीवन के प्रत्येक दिन और प्रत्येक पल का सार्थक उपयोग करेगा। जीवन मरने के लिए नहीं है। मृत्यु मज़बूरी का नाम है। जीवन जीने के लिए है। जीवन प्रभु के घर से मिला उपहार है, प्रसाद है। जिन्हें जीने की कला आ जाती है, उनके लिए हर सुबह ईद का त्यौहार है, हर दोपहर होली का पर्व है और हर रात दिवाली का आनन्द है । प्रश्न है : क्या हम अपने जीवन से संतुष्ट हैं? क्या हर जीवन में आनन्द-दशा और उत्सव-दशा है। क्या आपको लगता है कि उत्सव हमारी जाति है और आनन्द हमारा गौत्र? सोचो, हम अपने जीवन के मूल्यों को कितना प्रतिशत हासिल कर पाए हैं? अथवा हम और कितना हासिल कर सकते हैं? कहते हैं : एक गुरुकुल के कुलपति ने बुढ़ापा सामने आता हुआ देखकर अपने शिष्यों के सम्मुख यह घोषणा की कि अब वे अपने जीवन को आत्मकल्याण और प्रभु के दिव्य प्रेम में समर्पित करेंगे। गुरु ने अपनी ओर से | 29 For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय और तिथि भी निर्धारित कर दी। जिस दिन गुरु रवाना होने वाले थे, शिष्यों ने अपनी ओर से गुरुकुल के कुलपति से अनुरोध किया - भगवन् ! आप तो जा रहे हैं लेकिन जाने से पहले गुरुकुल का नया कुलपति नियुक्त करके गुरुकुल का दायित्व किसी-न-किसी को अवश्य सौंप जाएँ। कुलपति ने कहा - यह निर्णय भी मैं संन्यास लेने से पाँच मिनट पूर्व ही करूँगा। कुलपति संन्यास के दिन स्नानध्यान से निवृत्त होकर बीच आँगन में आ गए। सारे शिष्य भी आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर कुलपति के संन्यास के कार्यक्रम में शरीक हो रहे थे। सभी लोगों को इस बात की इंतज़ारी थी कि इतने सारे शिष्यों में से गुरुदेव न जाने किसको कुलपति नियुक्त करेंगे। कुलपति ने एक नज़र से सारे शिष्यों को देखा और कहा - मैं नया कुलपति का निर्णय करूँ उससे पहले तुम लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मेरा प्रश्न यह है कि दुनिया में लोहा ज़्यादा मूल्यवान है या चाँदी? सभी शिष्यों ने तपाक से एक स्वर में जवाब दिया - चाँदी ज़्यादा मूल्यवान है। गुरु ने सारे शिष्यों की ओर एक नज़र डाली। गुरु ने एक शिष्य ऐसा पाया जो मौन था। उसने कोई जवाब न दिया। गुरु ने उससे पूछा - वत्स! तुमने कोई जवाब नहीं दिया। क्या तुम इन सबके जवाब से सन्तुष्ट नहीं हो? शिष्य खड़ा हुआ, अदब से हाथ जोड़े और गुरुदेव से अनुरोध करने लगा - भंते! मुझे यह कहने के लिए क्षमा करें कि लोहा चाँदी से ज़्यादा मूल्यवान होता है। यह सुनते ही सारे शिष्य हँस पड़े। कहने लगे कि हमें पहले से ही पता था कि यह बुद्ध बुद्ध ही रहेगा।अरे, यह तो सारी दुनिया जानती है कि लोहा और चाँदी में से चाँदी ज्यादा मल्यवान होती है। गुरु ने उसको ध्यान से देखा और कहा - क्या तुम मुझे बता सकते हो कि तुमने लोहे को ज़्यादा मूल्यवान किस आधार पर कहा? शिष्य ने कहा - भंते ! मेरी समझ से दुनिया में मूल्य किसी वस्तु का नहीं होता। मूल्य होता है उस वस्तु में रहने वाली सम्भावना का। चाँदी मूल्यवान है यह तो सारी दुनिया जानती है, लेकिन चाँदी अपने मूल्य को न तो घटा सकती है और न ही बढ़ा सकती है। पर लोहा? लोहे को पारस का स्पर्श मिल जाये तो लोहा, लोहा नहीं रहेगा। लोहा, सोना बन जाएगा। गुरुदेव! मूल्य वस्तु का नहीं होता, मूल्य होता है वस्तु में रहने वाली सम्भावना का। गुरु ने उस शिष्य को अपने क़रीब बुलाया। आसन से खड़े हो गए और कुलपति के पद पर उसे नियुक्त करते हुए स्वयं 30| For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संन्यास के लिए निकल पड़े। हममें से आप या हम क्या हैं, मूल्य इस बात का नहीं है । मूल्य इस बात का है कि हम और आप क्या हो सकते हैं ! कौन आदमी क्रोधी है वो जाने, कौन महिला कमाती है या घर में रोटी-सब्जी बनाती है यह भी वो जाने।किस आदमी का कैसा स्वभाव है, कौन आदमी कितना धनी या ग़रीब है ये सारी व्यवस्थाएँ वो जाने । हम वर्तमान में क्या हैं, मूल्य इस बात का नहीं है, मूल्य इस बात का है कि हम अब और क्या हो सकते हैं । जहाँ तक आप पहुँचे, वह आपका यथार्थ हुआ। हम और आगे कहा पहुँच सकते हैं, यह बात मूल्यवान हुई। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन मूल्यवान है, मेरा जीवन मेरे लिए मूल्यवान है और आपका जीवन आपके लिए मूल्यवान है। जीवन मूल्यवान है इसीलिए कहना चाहूँगा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का मूल्य अख्तियार करना चाहिये। जैसे मिट्टी की समझ रखने वाला मिट्टी का मूल्य अर्जित करेगा। कचरे का मूल्य समझने वाला कचरे का मूल्य अर्जित करेगा। और तो और, दुनिया में कोई भी चीज़ जिसका मूल्य मिल सकता है व्यक्ति उस मूल्य को अर्जित करता है। यही बात मैं जीवन के लिए निवेदन करना चाहँगा कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन का मूल्य अर्जित करना चाहिए। मिट्टी, मिट्टी रहती है लेकिन मिट्टी में भी अगर गुल खिलाने की कला आ जाए तो इसी मिट्टी में से फूल भी खिल जाते हैं। बीज, बीज रहता है, वही बीज वटवृक्ष बन जाता है। जिसे लोग गंदगी कहते हैं और नगरपालिका के ट्रेक्टर के द्वारा उसे शहर के बाहर फेंक दिया करते हैं, अगर उसी गंदगी का ठीक से इस्तेमाल करने का तरीक़ा आ जाए तो गंदगी, गंदगी नहीं रहती। वही गंदगी खाद बनकर किसी फूल के लिए सुगन्ध का आधार बन जाया करती है। जैसे गंदगी को सुगन्ध में बदला जा सकता है, गंदगी के भी मूल्य को अर्जित किया जा सकता है, ऐसे ही हमें भी अपने जीवन का मूल्य अर्जित कर लेना चाहिए। इंसान की समझदारी इसी में है कि इंसान सोचे कि वह अपने जीवन का मूल्य प्राप्त कर रहा है या केवल ऐसे ही दिन बीतते जा रहे हैं। मेरे भाई ! किसी दिन को व्यर्थ मत जाने दो। हर दिन का मूल्य अर्जित करो, क्योंकि सबका जीवन निर्धारित वर्षों का, निर्धारित महीनों का, निर्धारित दिनों का है। जितने दिन हम लिखाकर लाये हैं उनमें से एक दिन भी आगे नहीं बढ़ा सकते। जीवन एक तय समय-सीमा का है। इसलिए किसी भी दिन को जाने मत दो, दिन का जो मूल्य है | 31 For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह प्राप्त करो । ताश के पत्ते में दिन को मत जाने दो। गप्पे-शप्पे में दिन पूरा मत करो। जीवन एक रुपये के सिक्के की तरह है। एक रुपये के सिक्के में चार चवन्नियाँ होती हैं । लगभग दो चवन्नियाँ पूरी हो गई हैं। दो बाकी हैं। सोचो, आपने चवन्नी का क्या उपयोग किया? क्या हासिल किया? चवन्नी का परिणाम हाथ में हो।दिन गुज़रे, तो आपके हाथ में दिन का परिणाम हो। दिन का मूल्य सब अपने-अपने हिसाब से प्राप्त करते हैं । पेट्रोल पम्प पर काम करने वाला बॉबी अपने हिसाब से दिन का मूल्य प्राप्त करता है और दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपति बिल गेट्स अपने हिसाब से उस दिन का मूल्य अर्जित करते हैं । दिन वही है, जीवन वही है, लेकिन मूल्य अपने-अपने हिसाब से सबने अख्तियार किये। जीवन तो ऐसे लगता है जैसे कोई बाँस का टुकड़ा हो । जीवन जीने की कला न आये तो यह जीवन केवल एक बाँस का टुकड़ा भर रहता है, पर जीने की कला आ जाए तो यही बाँस का टुकड़ा बाँसुरी बन जाया करता है। जीवन का मूल्य और जीवन की समझ हर इंसान के पास होनी चाहिए। जीवन की समझ न होने के कारण ही लोग बाँस के टुकड़े का उपयोग आपस में लड़ने-लड़ाने के सिवा और कुछ नहीं करते। या फिर कोई मर जाए तो अर्थी सजाने के लिए बाँस का उपयोग किया करते हैं। बाकी तो लोग बाँस को अशुभ और अपशकुन के रूप में लेते हैं, लेकिन जीने की कला न आये तभी तक यह अपशकुन है । घर से बाहर निकले और निकलते ही बिल्ली आ गई तो...? घर से निकले और निकलते ही सामने कोई छींक खा गया तो?... तो बोले अपशकुन हो गया। अब तक जीने की कला न आई इसलिए अपशकुन नजर आया। सच्चाई तो यह है कि जो आदमी पौधे को देखकर काँटों पर गौर नहीं करता, काँटों पर खिले हुए गुलाब के फूल पर गौर करता है उसके लिए अगर सामने बिल्ली भी आ जाए तो मन में खटास नहीं आती। बिल्ली आ जाए तो भी प्रणाम करते हुए कहता है, धन्यवाद प्रभु! आज तूने इस रूप में आकर दर्शन दिए। साधुवाद दो और श्रीप्रभु का नाम लेते हुए आगे बढ़ जाओ। बिल्ली का प्रभाव ख़तम हो जाएगा। कोई आया, छींक खाई और छींक खाते ही आपके मन में खटास आ गई कि अरे यार! पहले कौर में ही मक्खी आ गिरी। हमने अपनी मानसिकता को नेगेटिव बनाया इसलिए परिणाम ऐसा निकला। तब हमारा अगला क़दम उस छींक के भय से भरा हुआ होगा, वहीं अगर बाहर निकले और बाहर 32/ For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकलते ही किसी ने छींक कर दी तो समझ लो यह छींक, छींक नहीं शकुन रूप है, तो उसका छींकना भी किसी मंदिर की घंटी बजने के समान मंगलकारी हो जाएगा। तब कोई छींक दुष्प्रभाव नहीं दिखाती । मैं भी निकलता हूँ, बिल्ली मेरे सामने भी आती है, पर जैसे ही बिल्ली आती है मैं मुस्कुरा देता हूँ, धन्यवाद समर्पण करते हुए कहता हूँ - थैंक्यू । और आगे बढ़ जाता हूँ । मैंने कभी भी सामने आती हुई काली बिल्ली को देखकर अपने क़दम वापस नहीं लौटाए। सामने कोई छींक बैठा तो कभी उसका बुरा नहीं माना। कोई छींका तो छींका। वह ग़लती उसकी थी। अपन अपने दिमाग को क्यों प्रभावित करें? मैं तो श्रीप्रभु का नाम लेता हूँ, आगे बढ़ जाता हूँ। जब जीवन ही तुझे समर्पित है तो जीवन में मिलने वाले हर परिणाम भी तुझे ही समर्पित है। अच्छे आएँगे परिणाम तो अच्छे का स्वागत है, बुरा आएगा तो बुरे का स्वागत है । यह तो तय है कि सिक्का उछलेगा तो या तो चित गिरेगा या पट गिरेगा। बिल्ली आएगी तब भी वही बात है, चूहा आ जायेगा तब भी वही बात है और चूहे पर बैठकर गणेश जी आ जायेंगे तब भी वही बात है। उल्लू आ जाये तो मानते हैं अपशकुन हो गया और उल्लू पर लक्ष्मी जी आ जाये तो मानते हैं कि शकुन हो गया। ये सब हमारी अपनी मान्यताएँ हैं। अगर हम अपनी सोच, दृष्टि, समझ को पॉज़िटिव बनाते हैं, तो जीवन का हर पहलू सकारात्मक परिणाम लिए हुए हो जाता है । ऐसा हुआ। एक बिटिया पहाड़ी पर चढ़ी चली जा रही थी। उसने अंगोछे को झूला बना लिया । अपने छोटे भाई को उस झूले में डाल दिया और उसे लिये पहाड़ी पर चढ़ने लगी । आराम से चढ़ती चली जा रही थी कि इतने में ही किसी और पथिक ने उसको टोकते हुए कहा लगता है तुम्हारे पास भार कुछ ज़्यादा है। उसने उस पथिक को देखा और ऊपर आँख उठाकर कहा भैया ! माफ कीजियेगा । आपके लिए यह भार होगा, मेरे लिए तो भाई है । - अगर आदमी भार को भार समझेगा तो जिंदगी भार है, पर अगर इंसान जिंदगी को प्रभु का वरदान समझेगा तो जिंदगी भार नहीं, भार को पार उतारने वाला भारत बन जाएगा। सब कुछ इंसान की समझ पर निर्भर करता है । हम लोग अपने जीवन का कैसा परिणाम निकालेंगे, यह हम पर निर्भर करेगा । मैंने कहा जीवन केवल एक बाँस के टुकड़े की तरह है, पर अगर अँगुलियाँ साधनी आ जाएँ, अगर क़दम उठाने आ जाएँ तो संगीत का आनन्द और सुबह की रोशनी For Personal & Private Use Only 33 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारी आँखों में होगी । माना दुनिया में पेट करोड़ों हैं, पर हाथ भी तो भगवान ने दोगुने दिये हैं । फिर किस बात की व्यक्ति चिन्ता करे। हम पुरुषार्थ करेंगे, हम नये सपने देखेंगे, हम नये लक्ष्य बनाएँगे, संघर्ष करेंगे और जिंदगी को नया और सार्थक परिणाम देंगे। प्रकृति, हमें हर रोज नया दिन देती है, नई रात देती है, 24 घंटे हर रोज़ देती है । वह जिंदगी देती है, जिंदगी में हर रोज़ एक नया दिन देती है। उसने आपको पत्नी दी, पति दिया, माँ-बाप दिये, भाई-बहन दिये, बंगला दिया, गाड़ी दी, कार दी, स्कूटर दिये, सुख-साधन दिये । वह सबको देती ही देती है। हर रोज 24 घंटे भी देती है। अगर आपके यहाँ कोई मज़दूर काम कर रहा है और रोजाना वह 200 रुपये की मज़दूरी लेता है, पर 10 मिनट भी वह ऐसे ही आराम करने के लिए बैठ जाए तो आपका मिज़ाज़ कैसा होगा? चार गालियाँ ठोकेंगे और कहेंगे कि मुफ़्त का पैसा लेता है क्या। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि हम उसको पैसे देते हैं । आधे घंटे की क़ीमत हमने समझी है 10 रुपया । यह उसकी क़ीमत है आधे घंटे की। आप तो ऑफिसर हैं, सेठ हैं। आपकी क़ीमत तो मज़दूर के घंटे की क़ीमत से कई गुना ज्यादा है । आप झाडू लगाते हैं और चार तिनके झाड़ू में से निकल जाते हैं तो आप झाडू की रस्सी खौलकर वापस वे तिनके उसमें डालते हैं, क्यों? क्योंकि हमने झाड़ू के एक-एक तिनके की क़ीमत चुकाई है । बहूरानी अगर कह भी दे मम्मी जी अब चार तिनके गिर गए तो क्या हुआ, फेंक दें। मम्मी झट से कह देगी, बेटा ! पैसा मुफ़्त में नहीं आता। झाडू पूरे 30 रुपये में खरीद कर लाई हूँ, ऐसे अगर चार-चार तिनके रोज़ फेंक दिए तो झाडू तीन दिन में ही ख़तम हो जाएगा। इस स्वार्थ भरी दुनिया में केवल पैसे की क़ीमत आँकी जाती है । यहाँ वक़्त की, समय की क़ीमत नहीं आँकी जाती। समय इंसान को मुफ्त में मिलता है। मैं तो प्रभु से कहूँगा कि भगवान, आने वाले कल में ऐसी व्यवस्था भी कर देना कि अगर इंसान को वक़्त भी चाहिए तो वक़्त की वसूली ज़रूर करना, क्योंकि मुफ़्त का तो अखबार भी मिल जाए तो उसकी क़ीमत नहीं होती । 2 रुपया दे दो तो सुबह से लेकर साँझ तक अखबार को पढ़ते और सहेजते रहेंगे और मुफ़्त का अखबार मिल जाए तो उसी पर चाट-पकोड़ी खाना शुरू कर देंगे, क्योंकि मुफ़्त की क़ीमत इतनी ही होती है। मैं भी अगर आप लोगों को मुफ़्त में सुना रहा हूँ तो मुझे पता है कि मेरी क़ीमत इतनी है, वहीं अगर मैं अमेरिका चला जाऊँ और अगर 34 | For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेरे वक्तव्य को सुनने के 10 डॉलर की फीस भी निर्धारित कर दी जाए, तो मेरा हर वचन, हर शब्द आपके लिए बेशक़ीमती हो जाएगा। आख़िर आदमी ने उसके पैसे दिए हैं। बहुत से नामी-गिरामी संतों ने मुफ़्त की क़ीमत समझ ली, सो जो कुछ उन्होंने दुनिया को सिखाया, उसकी क़ीमत वसूली। बस, क़ीमत देते ही वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है । वक़्त की भी वसूली होनी चाहिए। जिंदगी में एक साल की क्या क़ीमत होती है यह तो कोई उस विद्यार्थी से पूछे जिसने साल भर पढ़ाई की, पर परीक्षा देने से रह गया। एक महिने की क़ीमत क्या होती है, यह तो कोई ऐसी माँ से पूछें जिसका बेटा नौ माह की बजाय आठवें महिने में ही पैदा हो गया। जिंदगी में एक सप्ताह की कीमत क्या होती है, यह वही व्यक्ति बता सकेगा जो कि साप्ताहिक अखबार निकालता है, पर इस सप्ताह प्रिंट करने में विलंब हो गया तो उसका अखबार पोस्ट होने से ही रह गया। एक दिन की क़ीमत क्या होती है, यह उस मजदूर से पूछो जिसने दिन भर मेहनत की मगर मालिक ने पैसा देने से इन्कार कर दिया। एक घंटे की क़ीमत क्या होती है, यह कोई सिकंदर से पूछे जिसने कहा था अगर मेरी जिंदगी केवल एक घंटे के लिए बढ़ा दी जाए तो मैं अपने शरीर के भार जितना सोना तोलकर दे सकता हूँ । एक मिनट की क़ीमत क्या होती है यह ऐसे व्यक्ति से जाकर पूछो जो वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हुए आतंकवादी हमले से एक मिनट पहले बाहर निकल गया। एक सेकंड की क़ीमत क्या होती है, यह कोई ऐसे धावक से पूछे जो कि ओलम्पिक में केवल एक सेकंड के कारण स्वर्ण पदक की बजाय कांस्य पदक पर अटक गया। जिसने वक़्त की क़ीमत समझी है, उसी ने वक़्त का सही और पूरा उपयोग किया है। चूँकि भगवान ने हम लोगों को मुफ़्त का वक़्त दे रखा है तो अभी जैसे साढ़े नौ बजे इस समय पंडाल पूरा भरा है, पर जिन्होंने वक़्त की क़ीमत समझी, जो सत्संग के वचन की क़ीमत समझते हैं वे पौने नौ से पाँच मिनट पहले पहुँच जाते हैं। जिन्होंने ईश्वरीय चित्र के आगे दीप प्रज्वलन को अपना सौभाग्य समझा, वे पहले पहुँचेंगे। जिन्होंने प्रार्थना को प्रभात का पुष्प समझा वे पहले पहुँच गए। जिन्होंने समय की कीमत न समझी वे लेट-लतीफ चलते हैं । सोचो भाई ! समय तो आगे बढ़ रहा है कहीं हम तो ठहर नहीं गए हैं! हम भी आगे बढ़ रहे हैं या जहाँ हैं वहीं अटके पड़े हैं ! For Personal & Private Use Only 35 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन में संतोष केवल तब कीजिएगा जब आपके पास अमीरायत आ जाए। जब तक अमीरायत न आए तब तक संतोष नहीं। तब तक केवल पुरुषार्थ-हीपुरुषार्थ करते रहिएगा। जिंदगी में अंतिम श्वास तक पुरुषार्थ करते रहो। जिसके पास जीवन के सपने होंगे, ऊँचे लक्ष्य होंगे, वही ऊँचा पुरुषार्थ कर सकेगा। जीवन में जब तक पुरुषार्थ है तब तक अंतिम श्वास तक भी जीने का आनंद है। जीना एक स्वर्णिम अवसर है। इस अवसर को सार्थक करो। अब तक मरे नहीं हैं, केवल इसलिए जी रहे हैं, तो सचमुच केवल टाइम पास हो रहा है। एक 70 वर्ष के व्यक्ति के पास न जीने का मकसद है, न कोई लक्ष्य है, न कोई कार्य, बस जी रहा है। रोजाना रोटी खा लेता है, सो जाता है । दिन गुज़र रहे हैं, टाइम पास हो रहा है। विदेशों में लोग धर्म तो कम करते हैं, पर जीवन का सदुपयोग ज्यादा करते हैं। इसलिए वहाँ का 70 वर्ष का व्यक्ति भी प्रतिदिन कर्म करता है और जब तक कोई व्यक्ति कर्म नहीं करता तब तक वह रोटी भी नहीं खाता। मुफ़्त की रोटी मत खाओ, अपने घर के लिए कोई-न-कोई आहुति ज़रूर दो। अगर आप एक दादा हैं तो भी आहुति दो, बड़ी माँ हैं तो भी आहुति दो, एक बच्ची हैं तो भी आहुति दो। बच्ची घर में झाड़ लगा सकती है, दादाजी बाजार से घर में सब्जियाँ ला सकते हैं। पड़ दादाजी और कुछ नहीं कर सकते तो पोते को प्यार से खिला-पिलाकर अच्छे संस्कार तो दे सकते हैं । कुल मिलाकर आहुति होनी चाहिए। बिना आहुति के रोटी खाना अपने लिए अपराध या पाप समझो। माना हम संत बन गए और संत बनने के बाद मेहनत करना हमारे लिए ज़रूरी नहीं है, पर हम लोग 24 घंटे में से 12 घंटे प्रतिदिन मेहनत करते हैं। जब तक मेहनत नहीं कर लेते समाज की मुफ़्त की रोटी खाना अपने लिए पाप समझते हैं। संत बन गए तो इसका मतलब यह नहीं है कि अब हम मुफ़्त की रोटी खाएँगे। किसी की दो रोटी तभी खाओ जब उसके बदले में तुम उसको बीस गुना लौटाने की ताक़त रखते हो। अगर ताक़त नहीं रखते तो कृपा करके किसी की भी मुफ़्त की रोटी मत खाओ, क्योंकि वह तो खिला-खिला कर तिर जाएगा, पर खा-खा कर तुम कहाँ डूबोगे? वह तो खिला-खिलाकर पुण्य अर्जित कर रहा है, सोचो मुफ़्त की खाकर तुम कहीं अपने पर कर्ज तो नहीं चढ़ा रहे ! इसलिए कहीं पर कोई जीमनवारी हो, स्वामी वात्सल्य हो, तो या तो मुफ्त की खाने मत जाना और अगर जाते हो तो पहले 101 की रसीद कटाना, फिर वहाँ पर भोजन करना। इस मुफ्त खाने की आदत ने हमारे हिन्दुस्तान को विकलांग कर दिया। धर्म तक को 36 For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपाहिज बना डाला कि लड्डू मिलेंगे तो लोग इकट्ठे होंगे। जीमण होगा तो भीड़ जमा होगी। जीमण नहीं तो टाँय-टाँय फिस्स । सारे पूजा-प्रतिष्ठा महोत्सव फेल | अपने देश और अपनी संस्कृति को इतना मुफ़्त का मत बनने दीजिए। अपने धर्म को इतनी हल्की किस्म का मत होने दीजिए कि जीमण के आधार पर ही लोग इकट्ठे होंगे । अरे, कब तक सिक्के बाँट-बाँट कर लोगों को इकट्ठा करते रहोगे? कब तक टॉफियाँ बाँट-बाँट कर बच्चों को प्रलोभन देते रहोगे? हर रोज़ प्रभुजी चौबीस घंटे देते हैं। ये चौबीस घंटे हमारे लिए किसी मालवाहक ट्रक की तरह हैं। अब हम इनमें मिट्टी भरें कि हीरे, यह हमारी समझ पर निर्भर करता है। ईश्वर हमें हर रोज़ 1440 मिनट देता है : 24 ×60 =1440 | मुझे भी, आपको भी, आपकी पत्नी को भी, आपके बच्चे को भी । कुदरत बिल क्लिंटन को भी यही 1440 मिनट देती है, बिल गेट्स को भी, बॉबी को भी और बबलू को भी । कुदरत कोई फ़र्क नहीं करती। सबको एक जैसा समय देती है अग्नि का काम है जलना । वह अमीर के घर में भी जलती है, गरीब के घर में भी जलती है। गरीब की रोटी भी सेकती है, अमीर की रोटी भी सेकती है । परिणाम निकालने वाले पर निर्भर करता है कि कौन आदमी उसका कैसा परिणाम निकालता है । I मैंने कहा बॉबी, आप लोगों को पता है यह बॉबी कौन है ? अमेरिका की एक क्लॉस में दो लड़के साथ पढ़कर निकले थे एक बॉबी और दूसरा बिल, दोनों को कुदरत ने जीवन दिया, दोनों को कुदरत ने हर रोज चौबीस घंटे दिए, दोनों को ही हर रोज 1440 मिनिट मिले। दोनों ही एक क्लास में थे, दोनों ही मध्यमवर्गीय घर I पैदा हुए थे, पर बॉबी आज भी एक पेट्रोल पम्प में काम करने वाला मैनेजर भर है और बिल अमेरिका का राष्ट्रपति बन गया - बिल क्लिंटन । जीवन सबको एक ही मिलता है, वक़्त सबको एक ही मिलता है, पर परिणाम सबके लिए जुदे-जुदे हो जाया करते हैं । कोई व्यक्ति जिसने छोटे सपने देखे, अपने जीवन में ज़ज़्बे न जगा पाया, वह कहीं काँच साफ करते मिल जाएगा, कहीं नौकरी करते मिल जाएगा, लेकिन जिसने जीवन में ऊँचे सपने देखे, ऊँचे लक्ष्य बनाए, ऊँचा पुरुषार्थ किया, ऊँचे गेम खेले वह गरीब या नौकर न रहा । अरे, नौकरी करके जिंदगी गुज़ारने से तो अच्छा है घास खोद कर खाइए, पर कहीं किसी के यहाँ नौकरी करने मत जाइए। लघु उद्योग कीजिए, धंधा कीजिए। अगर यह सोचते हो कि For Personal & Private Use Only 37 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैसा नहीं है तो धंधा कैसे करें, अरे भाई ! धंधा करोगे ही नहीं तो पैसा आएगा कहाँ से? नौकरी करोगे तो जिंदगी भर नौकर रहोगे, पर व्यापार करोगे तो आज नहीं कर कल, कल नहीं तो परसों, बॉस बनोगे। तुम्हें किसी को बॉस कहने की ज़रूरत नहीं रहेगी।तुम खुद बॉस बनोगे। सिंधी लोगों से प्रेरणा लो। सिंधियों के लिए कहावत है : सिंधी कभी भीख नहीं माँगेगा। हिन्दुस्तान का बँटवारा हुआ, तो सिंधी शरणार्थी बनकर हिन्दुस्तान आए। आए तब तो शरणार्थी बने, लेकिन मेहनत करके वे पुरुषार्थी बन गए। ज्योंज्यों जीवन की समझ आ रही है, वे पुरुषार्थी से परमार्थी होते जा रहे हैं। यह शुभ सुकून है। मेंहदी का रंग दस दिन रहता है, पर मेहनत का रंग पूरी जिंदगी को खुशहाल करता है। इसलिए कहता हूँ परिश्रम करो। हर आदमी अमीर बने, गरीबी अभिशाप है। हर आदमी को अमीर बनना चाहिए। अपरिग्रह का धर्म अमीर बनने के बाद धारण कीजिएगा। बेचारे गरीबों को क्या प्रेरणा देते हो अपरिग्रह धारण करने की। उनके पास अभी त्यागने जैसा कुछ नहीं है। पहले महावीर की तरह राजकुमार बनो, बुद्ध की तरह सम्पन्न बनो, उसके बाद अगर त्याग कर संन्यासी भी होना हो तो हो जाना क्योंकि उस त्याग को ही त्याग कहा जा सकेगा। उस त्याग से ही आनंद होगा। हमने त्यागा, किसको त्यागा? वैभव को त्यागा। कुछ था ही नहीं हो क्या त्यागा? 7000 रु. महीना कमाने वाला क्या त्यागेगा? आज अगर आपके यहाँ कोई लॉ इंस्टीट्यूट चलाते हैं, नर्सिंग इंस्टीट्यूट चलाते हैं, कोई फैक्ट्री चलाते हैं, वे अगर कुछ त्याग करें तो वह त्याग कहलाएगा, पर पहले अपन किसी स्तर तक पहुँचें तो सही। पहुँचे ही नहीं उससे पहले त्याग की बात आ गई। हर आदमी सम्पन्न बनें, हर व्यक्ति अमीर बने। नौकरी में संतोष मत करो, कम्पोडरी में तृप्त मत हो जाओ। परिश्रम करो, पढ़ाई करो। कुछ ऐसे बनो कि तुम पर लोग फ़ख़ कर सकें। __ गरीबी अभिशाप है, व्यक्ति के लिए, समाज के लिए, देश के लिए। गरीब आदमी को कोई नहीं पूछता, गली का कुत्ता भी नहीं। न घर में, न बाहर, कहीं नहीं। उसी को पूछा जाएगा जिसके पास अंटी में माल होगा। इसलिए मालदार बनो।अंटी में माल होगा तो लोग पूछेगे। इसलिए ईमानदारी से मेहनत करके माल कमाओ, पहले इज़्ज़त कमाओ। उसके बाद त्याग के पथ पर आयेंगे। इसीलिए तो कहता हूँ कि अगर भगवान हमें रोज़ 24 घंटे देता है तो यह हम लोगों पर निर्भर 38 For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करता है कि उन 24 घंटे में क्या करते हैं और क्या नहीं करते हैं। फालतू मत बैठो। 12 घंटे मेहनत करो, फिर चाहे वो 12 घंटे दिन के हों चाहे रात के। पर मुफ़्त की मत खाओ। मेहनत करेंगे, बुद्धि से मेहनत करेंगे, तन से मेहनत करेंगे, मन से, वाणी से मेहनत करेंगे। जो क्षेत्र हमें मिले हैं, उस क्षेत्र में मेहनत करेंगे। जिंदगी खण्डप्रस्थ की तरह है। मेहनत और पुरुषार्थ से इस खण्डप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाने का जज़्बा अपने भीतर जगाओ। विश्वास रखो ईश्वर हमारे साथ है। ईश्वर मेरे और आप सब लोगों के साथ है, ईश्वर उन लोगों के साथ है जो मेहनत करके खुद को और दुनिया को सुकून देते हैं। ठंडे पड़े लोगों पर ईश्वर मेहरबान नहीं होता। ईश्वर निकलता है भाग्य देने के लिए। ईश्वर को लगता है कि वह आदमी तो ऐसे ही पड़ा है आलसी टटू की तरह, उसे देकर भी क्या करूँगा। अगर कोई आदमी आँख बंद करके सोया है और सूरज उसके लिए उग भी जाएगा तो वह करेगा क्या? एक कुत्ता कार के पीछे दौड़ता है, भौंकता है। सवाल यह है कि वह भौं-भौं कर रहा है, कार के पीछे दौड़ रहा है, अब अगर वह कार को पकड़ भी लेगा तो करेगा क्या? न कोई लक्ष्य है, न कोई परिणाम है, बस भौंक रहा है। हम जी रहे हैं, तो जीने का मक़सद तय करो। जिंदगी की अंतिम साँस तक अपनी जिंदगी से परिणाम प्राप्त करते रहो। जीवन मूल्यवान है । समय आगे बढ़ रहा है, लगातार आगे बढ़ रहा है, पर कहीं हम तो ठहर नहीं गए हैं? वही गुटखा-तम्बाकू, टॉफी की पुरानी दुकान, वहीं जा रहे हैं, धक्के खा रहे हैं, कमाई हो रही है, तो भी जा रहे हैं, नहीं हो रही है तो भी जा रहे हैं। ज्योतिषियों के चक्कर काट रहे हैं, यह सोचकर कि कहीं कोई ग्रह-गोचर ठीक हो जाए। अरे भाई, हटाओ इन जन्म-कुंडलियों का चक्कर । ज्योतिषियों के चक्कर बहुत हो गए। ज्योतिषियों से तुम्हारा भला होगा कि नहीं होगा, उनका भला ज़रूर हो जाएगा। तुम्हारे वहाँ जाने से उनको ज़रूर 100-200 की फीस मिल जाएगी। ज्योतिष के भरोसे कम रहो और पुरुषार्थ की रेखा बड़ी करो। अपने सपनों को जगाओ, जीवन में कुछ कर गुज़रने का ज़ज़्बा, संकल्प अपने भीतर पैदा करो। अपनी परंपरा वालों से भी कहता हूँ कि भाई दुनिया बढ़ रही है, समय बढ़ रहा है, लेकिन जैनियों में भी कई महाराज कहते हैं माइक नहीं लगाएँगे, कुछ कहते हैं हम टेन्ट के नीचे भी नहीं बैठेंगे, कुछ कहते हैं हम एक-दूसरे से मिलेंगे तो हाथ भी नहीं जोड़ेंगे। अरे, दुनिया कहाँ पहुँच रही है और आप ऊल-जलूल 39 For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - बातों में अटके हो। समय इतना आगे बढ़ रहा है और हम जहाँ थे वहीं के वहीं ठहरे हुए पड़े हैं। ज़रा सोचो कि जो चार आदमी साथ चल रहे थे उनमें से एक पीछे रह गया और तीन अगर आगे चलते रहे तो पीछे वाला क्या करेगा? दुनिया बढ़ रही है, समय बढ़ रहा है। अपने जीवन को गति दो । समाज, धर्म और देश को गति दो। आपके दादा जी ग़रीब थे । थे, क्योंकि पढ़े-लिखे नहीं थे । आपके पिताजी नौकरी करते थे । करते थे, क्योंकि उनके लिए कोई एप्रोच करने वाला नहीं था। लेकिन इस प्रगतिशील युग में आपके पैदा होने के बावजूद अगर आपका घर ग़रीब रहता है तो यह विचारने जैसी बात हुई । आपके जैसा पढ़ालिखा इंसान होने के बावजूद आप गरीब हैं। इसका मतलब आप आलसी हैं। दादा जी स्कूल नहीं गए, पापाजी आठवीं पास थे लेकिन बेटे को उन्होंने पढ़ा लिखा कर एम.बी.ए. करवाया, सी.ए. करवाया ताकि अपने घर का कायाकल्प हो सके और हम एम.बी.ए. कर चुके तब भी निकम्मे बैठे हैं। मुफ़्त की रोटी मत खाओ, मुफ़्त का खाना अपने लिए पाप समझो। जीवन एक यज्ञ है। इसके लिए आहुति दी जानी चाहिए। समय बढ़ रहा है, समय के साथ हम भी आगे बढ़ें, हमारा घर भी आगे बढ़े, हमारी सम्पन्नता भी आगे बढ़े, हमारी शिक्षा भी आगे बढ़े। बस, एक ही बात कि रुको मत। रुकना मौत है, चलना ही जीवन है 1 जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो ॥ जिंदगी में नई ऊर्जा भरी जा सकती है। अपन चाहें तो एक मिनट में जिंदगी बदली जा सकती है । बदलना चाहोगे तो अभी बदल जाओगे और नहीं बदलना चाहोगे तो किसी का पिता अपने पुत्र को भी, जूते मार कर भी आज तक नहीं बदल पाया है। मैं मुझको बदलूँगा । आप अपने आपको बदलेंगे । स्वयं का रूपांतरण ही जीवन की सबसे बड़ी पहल है । जीवन के लिए उसूल बना लो कि चलै सो चरै । गाय चलेगी तो जंगल में घास चरेगी और चलेगी ही नहीं तो क्या चरेगी। आप बैठे रहोगे तो भूखे मरोगे, कुछ करते रहोगे तो पाओगे । निठल्ले बैठे रहोगे तो भूखे प्यासे मरोगे। शेर को भी गुफा में बैठे-बैठे शिकार नहीं मिलता, बाहर निकलना पड़ेगा। किसी चींटी को देखो और देखकर समझो कि दिन भर वह कितनी मेहनत करती है, एक-एक कण के लिए। किसी चिड़िया को देखो तो समझ में आ जाएगा कि एक चिड़िया चार दानों के लिए कितनी मेहनत करती है । आप चाहे पुत्र हों या पापा, अथवा दादा, जब 40 | For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तक अपने घर के लिए आहूति न दे दो तब तक घर में रोटी मत खाना । क्यों जी! बारह खड़ी में पहले क्या आता है? पहले 'क' आता है फिर 'ख' आता है। 'क' का मतलब होता है पहले करो और 'ख' का मतलब है पीछे खाओ। चलने वाला मंज़िल पाता, बैठा पीछे रहता है। ठहरा पानी सड़ने लगता, बहता निर्मल होता है। पाँव दिये चलने के खातिर, पाँव पसारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो। याद कीजिए कछुए और खरगोश की कहानी । यह तो सारी दुनिया जानती है कि दोनों में खरगोश जीतेगा, पर जब मेहनत करते-करते कोई बुद्धू कालीदास भी महाकवि बन सकता है और कल का तुलसिया महाकवि तुलसीदास बन सकता है तो फिर हम लोग कुछ क्यों नहीं हो सकते। दुनिया में लोहे का काम करने वाला लोहार कहलाता है और चमड़े का काम करने वाला चमार कहलाता है। लेकिन जब तक काम को ऊँचाई न दो तब तक आप लोहार और चमार कहलाएँगे, पर अगर अपने काम को आखिरी ऊँचाई पर पहुँचा दो तो इसी दुनिया में लोहे का काम करने वाला कोई व्यक्ति टाटा कहलाता है और जूतों का काम करने वाला कोई बाटा कहलाता है। अरे ज़िद करो, दुनिया बदलो। एकलव्य ने ज़िद की, तो द्रौण की मिट्टी की मूर्ति से भी धनुर्विद्या सीख ली। शाहजहाँ ने ज़िद की तो ताजमहल खड़ा कर दिया। महात्मा गाँधी ने ज़िद की, तो देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करवा दिया। मैंने ज़िद की तो मैं कुछ बन गया। आप भी अगर कुछ बनने की ज़िद कर लें तो आपकी भी दुनिया बदल सकती है। ___ खरगोश और कछुए की कहानी को याद करो, ,खरगोश तो पहुँचेगा। अरे, मैं क्या कहूँ बुद्ध भी कह देगा कि खरगोश पहले पहुँचेगा, पर विश्वास रखो कछुआ भी पहुँच जाएगा। मैंने देखा है, कभी अहमदाबाद की सड़कों पर ठेला लेकर उसमें लिक्विड वाशिंग पाउडर बेचने वाला केवल एक रुपये में एक शीशी बेचने वाला व्यक्ति ही आगे बढ़ते-बढ़ते निरमा सर्फ का मालिक बन जाता है। जिसके पास किसी समय अपने कमरे का किराया देने जितना पैसा नहीं था, वही रामपाल सोनी आज संगम ग्रुप का मालिक अरबपति और खरबपति बना हुआ है। विश्वास रखो भाई कि ईश्वर हमारे साथ है। जिसने हमें जन्म दिया है वह हमेशा हमारे साथ है लेकिन अपने पाँवों में जंग मत लगने दो। हाथ में हथकड़ियाँ या - 41 For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चूड़ियाँ पहनकर मत बैठो। अगर तालाब में गिर गए हो तो तब भी चिन्ता मत करो। हाथ-पाँव चलाते रहो, चलाते रहो। तब तक चलाते रहो जब तक साँस है। अंतिम चरण तक विश्वास रखो - ईश्वर हमारे साथ है। ईश्वर उनके साथ है जो पुरुषार्थी हैं, जो अपना भाग्य खुद लिखते हैं। तेज दौडने वाला खरहा दुपहर चल कर बैठ गया। धीरे-धीरे चलकर कछुआ देखो बाजी मार गया। चलो कदम से कदम मिलाकर दर किनारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो। आज से यह संकल्प कर लो कि अब हम निठल्ले नहीं जियेंगे। मुफ़्त की नहीं खाएँगे। हम कर्म करेंगे। जीवन में कर्म का कल्पवृक्ष लहराएँगे। श्रेष्ठ कर्म ही व्यक्ति का श्रेष्ठ धर्म है। कर्म ही कामधेनु है और कर्म ही कल्पवृक्ष । जब कोई लोहे का काम करके टाटा बन सकता है और जूतों का काम करके बाटा बन सकता है, तो फिर हम निठल्ले क्यों बैठे रहें। करो, करने वाले को पूछा जायेगा, बैठने वाले को कोई नहीं पूछेगा। हिम्मत बटोरो। हम भी अगर अपने उपाश्रयस्थानकों में बैठे रहते, तो हमें भी पूछने वाला कोई नहीं होता। इस दुनिया में कोई किसी को नहीं पूछता, पूछने के लिए तुम्हें अपनी ताक़त को संजोना पड़ेगा। पूछने के लिए तुम्हें अपने दिल के ज़ज़्बों को जगाना पड़ेगा। कुछ ऐसा करो कि फोकस हर हाल में तुम पर हो। इसके लिए हिम्मत बटोरनी पड़ेगी और मैदान में आना पड़ेगा। क्या बिस्तर पर सोकर कोई आदमी तैरना सीख सकता है? घर में निठल्ले बैठे लोगों के घर लक्ष्मीजी नहीं आती। गाँधीजी अगर राष्ट्रपिता बने तो कुछ करना पड़ा। कभी इस देश में इमली के बीज इकट्ठे कर-करके एक आना पाव में बेचने वाला व्यक्ति, उन्हीं पैसों से किताबें खरीद करके पढ़ाई किया करता, और बढ़ते-बढ़ते अपने ज़ज्बों के कारण इतना बढता चला गया कि वह व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं रहा, वह व्यक्ति इस देश का महान वैज्ञानिक भी बना और देश का सबसे गरिमापूर्ण व्यक्तित्व, सबसे गरिमापूर्ण राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम बना। आज जिस चन्द्रप्रभ को देशभर में पढ़ा और सुना जाता है, उसका अतीत यह है कि उसने कभी 9वीं कक्षा सप्लीमेंट्री परीक्षा से पास की है। जब नौवीं कक्षा में मेरे सप्लीमेंट्री आई थी तब मेरे क्लास टीचर ने मुझसे कहा था - बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे पिता बीमार हैं । मैंने कहा, यस सर । क्लास टीचर ने कहा - क्या 42 | For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुमको पता है कि तुम्हारे पिता को सात साल से लकवा है? क्या तुम्हें पता है कि तुम पाँच भाई हो? मैंने कहा - हाँ, सर। तब तुम्हें यह भी पता होगा कि तुम्हारे पाँच भाइयों में कमाने वाला एक बड़ा भाई ही है। मैंने कहा - जी हाँ । तो बोले - मैं तुम्हें बता देना चाहता हूँ कि तुम्हारा बड़ा भाई मेरा दोस्त है, पर हमारे साथ वह केवल इसलिए चाय-पानी-नाश्ता नहीं करता कि वह कहता है कि अगर मैं अपने दोस्तों के साथ चाय-पानी-नाश्ता करने में अपनी नौकरी का पैसा खर्च कर दूंगा तो अपने छोटे भाइयों को पढ़ा-लिख कर कैसे तैयार करूँगा? मैं अपने छोटे भाइयों की फीस कैसे जमा करवा पाऊँगा। जो भाई अपने पेट पर पट्टी बाँधकर तुम भाइयों को पढ़ाना चाहता है, उस भाई को तुम यह परिणाम देते हो? वह जिंदगी का अंतिम दिन था। मेरा गुरु कोई धर्म शास्त्र नहीं है, मेरी जिंदगी का पहला गुरु वह क्लास टीचर है जिसने मेरी आत्मा को, मेरी चेतना को जगाया। मुझे पार्थ बनाया। अगर हम आज हज़ारों लोगों से रोज़ मुख़ातिब होते हैं तो केवल एक क्लास टीचर और लाइफ़ टीचर का दायित्व पूरा कर रहे हैं ताकि आपकी सप्लीमेंट्री में पडी, सोई हुई आत्मा जग जाए, चेतना जाग्रत हो जाए, लोग अपना दायित्व समझें । मैं नौवीं कक्षा में ज़रूर सप्लीमेंट्री से पास हुआ, लेकिन उसके बाद किसी भी क्लास में फर्स्ट क्लास से नीचे पास होना, मेरे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने के समान रहा। गरीबी अभिशाप है। हम सब सुख, शांति, समृद्धि और खुशहाली की ओर बढ़े। दुखीराम नहीं, सुखीराम बनें। धरती चलती तारे चलते, चाँद रात भर चलता है। किरणों का उपहार बाँटने, सूरज रोज़ निकलता है। हवा चले तो महक बिखेरे, तुम भी प्यारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो, हिम्मत हारे मत बैठो।। प्रकृति की हर चीज गतिशील है। सब चल रहे हैं, अपने-अपने कार्य में गतिशील हैं। धरती-चाँद, तारे, सूरज सभी चल रहे हैं। फिर हम ही रुके हुए क्यों हैं? हमारी भी साँस, धड़कन, नब्ज, सब चीजें चल रही हैं, फिर प्रगति का पथ क्यों अवरुद्ध है? चींटी से मेहनत करना सीखो, बगुले से एकाग्रता का पाठ पढ़ो, मकड़ी से कार्य-कुशलता का गुण सीखो। कुछ करने का ज़ज़्बा हो तो चींटियों के भी पंख लग जाते हैं । हममें भी कुछ ज़ज़्बा हो तो हम भी शिखर तक तो पहुँचेंगे। ऊँचा लक्ष्य बनाओ, चाँद तक न भी पहुँचे, पर शिखर तक अवश्य पहुँचेंगे। ऊँचा | 43 For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्ष्य, ऊँचा पुरुषार्थ, ऊँचा विश्वास यानी इसी का नाम है : सफलता। जीवन में कुछ करना है तो, मन को मारे मत बैठो। आगे-आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो।। पाँव दिये चलने की खातिर, पाँव पसारे मत बैठो। दूर किनारे मत बैठो। ज़िंदगी को केवल एक मिनट में बदला जा सकता है। आगे बढ़ने का हौंसला बुलंद कर लो तो एक मिनिट में ऊँचाइयों के रास्ते पर कदम बढ़ाया जा सकता है। मैं साधुवाद दूँगा भाई श्री सुरेश जी, दिनेश जी डोसी को, साधुवाद दूंगा सुजानमलजी चौपड़ा की मणिधारी टीम को जो 700 किलोमीटर से पैदल चलाकर हमें जोधपुर से इन्दौर लाने में सफल हुए। हमारा यहाँ आना महत्त्वपूर्ण नहीं है, न ही हमारा यहाँ से चले जाना महत्त्वपूर्ण होगा। महत्त्वपूर्ण है हमारे जाने से पहले हज़ारों दीयों का यहाँ जल जाना। लोगों की जिंदगी में नये ज़ज़्बे जगे, लोगों को नई दिशाएँ मिलीं, नया उत्साह जगा, लोग अपनी ऊँचाइयों को छूने के लिए प्रयत्नशील हुए। हमारा यहाँ आना निश्चित तौर पर सार्थक हुआ। अभी भी अनेक लोग हैं जो निश्चेष्ट पड़े हैं। मैं चाहूँगा कि हर व्यक्ति अपनी संकल्प-शक्ति को जगाए, इच्छा-शक्ति को जागृत करे, मन को ऊर्जावान बनाए। एक दफ़ा मैं किसी पहाड़ी पर बैठा हुआ था कि इतने में ही एक युवक मेरे पास आया और दुआ-सलाम करके कहा कि मुझे आपसे एक सवाल पूछना है कि दुनिया में सबसे कठोर चीज़ क्या है? मैं पहाड़ी पर बैठा था। मैंने जवाब में कहा - जिस पत्थर पर मैं बैठा हूँ यह पत्थर सबसे कठोर है। उसने कहा, क्या पत्थर से भी कोई कठोर चीज़ होती है? मैंने कहा - पत्थर से भी कठोर चीज़ लोहा है जो पत्थर को भी तोड़ डालता है। उस युवक ने कहा, क्या लोहे से भी कोई कठिन चीज़ होती है? मैंने कहा – हाँ, लोहे से भी कठिन चीज़ है पानी जो कि आग को भी बुझा दिया करता है। वह चौंका। उसने पुनः पूछा – क्या पानी से भी कोई कठिन चीज़ होती है? मैंने कहा - हाँ, पानी से भी कठिन चीज़ है इंसान का संकल्प। अगर संकल्प जग जाए तो इंसान पानी की धाराओं को भी मोड़ दिया करता है। इंसान हाँ, यह इंसान का संकल्प है जिसके चलते कोई भगीरथ बनकर स्वर्ग में रहने वाली गंगा को भी धरती पर लाने के लिए मजबूर कर दिया करता है। यह 44 For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंसान का संकल्प है जो जिंदगी में अगर पैदा हो जाए तो सौ-सौ पहाड़ों को काट सकता है, सौ-सौ पहाडों को लाँघ सकता है। बँद, बँद होती है, पर उन्हीं बँदों से बाँध बन जाता है। उसी बाँध से बिजली पैदा होती है और उसी बिजली से बड़ेबड़े कल कारखाने चलते हैं। ताक़त को तो बटोरना पड़ता है। बूंद की कोई ताक़त नहीं होती, पर बूंद अगर बूंदों से मिल जाए तो उसी से बाढ़ आ जाया करती है। देने के नाम पर तो भगवान ने हमें केवल दो हाथ दिये हैं, दो पाँव दिये हैं और इन हाथों और पाँवों में कोई बहुत बड़ी ताक़त नहीं है। न तो हम किसी गोरैया की तरह आसमान में उड़ सकते हैं, न ही किसी चीते की तरह दौड लगा सकते हैं. न ही कोई बाज की तरह हमारी आँखें तीखी हैं और ही किसी चीते की तरह हमारे नाखून तीखे हैं। न ही हम बंदर की तरह इधर-उधर उछल-कूद कर सकते हैं। अरे, हमारे शरीर की औकात क्या, एक छोटा-सा बिच्छू, एक छोटा-सा जन्तु भी अगर काट खाये तो ऊपर से नीचे तक हिल जाते हैं। इंसान के शरीर की तो कोई ताक़त और औकात नहीं है, पर इंसान को भगवान ने जो ताक़त और औकात दी है, उस एक ताक़त और औकात के चलते वह पूरी दुनिया पर राज करता है, सारे जीव-जन्तुओं में श्रेष्ठ कहलाता है और सारी दुनिया का नवनिर्माण करने में लगा हुआ है । वह ताक़त है हमारी सोच, हमारी समझ, हमारा विश्वास, हमारा ज़ज़्बा। जब तक ये जगेंगे तब तक इंसान आगे बढ़ेगा। कई लोग 30 साल की उम्र में भी सफेद बाल वाले हो जाते हैं और कई लोग 90 साल की उम्र में भी काम करते हुए देखे जाते हैं। कई लोग 30 साल की उम्र में ही कुर्सियों के गुलाम हो गए हैं । आज की बहुओं को साड़ी पहनते भी जोर आता है, जबकि उनकी सासू और दादी सास को बुहारी लगाते भी तकलीफ नहीं होती। मेरी बहनों! काया बाई का ज्यादा लाड़ मत करो, नहीं तो यह माथे चढ़ जाएगी। इससे हमेशा मेहनत करवाते रहो, नहीं तो बुढ़ापे में कोई एक गिलास पानी पिलाने वाला भी नहीं मिल पायेगा। याद रखो जो चलै सो चरै। अपने संकल्पों को, अपनी इच्छा-शक्ति को मज़बूत करो। अगर कोई व्यक्ति शराब पीता है, कोई नहीं छुड़ा पाया उसे, लेकिन वही व्यक्ति अगर अपने भीतर संकल्प जगा ले तो छोड़ सकता है। खुद को सुधारना खुद के हाथ में है। मुझे स्वयं को सुधारना है' - यह संकल्प-बोध जग जाए तो उसी क्षण सुधरने के द्वार खुलने लग जाते हैं । व्यक्ति खुद ही अगर सुधरना न चाहे, तो फिर उसे कौन सुधार सकता है? ऐसे लोगों को डॉक्टरों के पास ले 45 For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाओ, शायद वह हार्ट या कैंसर का डर बैठाकर सुधारने में सफल हो जाए। कुल मिलाकर, व्यक्ति सुधरना चाहिए, फिर चाहे वह हमारी प्रेरणा से सुधरे, या किसी डॉक्टर की प्रेरणा से। पिछले साल की बात है। मैं किसी एक खास विषय पर बोल रहा था। उस विषय पर बोलते हुए मैंने कहा कि सोचो आप अपने बच्चों के लिए क्या वसीयत छोड़ कर जा रहे हो? क्या आप यही वसीयत छोड़कर जाना चाहते हैं कि वे एक शराबी बाप के बेटे कहलायें? क्या आप यही वसीयत छोड़कर जाना चाहते हैं कि आपका बच्चा आपके खाए गुटखों के खाली पाउच उठाए और चाटे। सोचो आप अपने पीछे क्या वसीयत छोडकर जाना चाहते हैं? अगले दिन, पता नहीं एक आदमी को क्या जची कि वह झोला भरकर शराब की बोतलें ले आया और लाकर सामने रख दीं। मैंने कहा - मरवाओगे क्या? मैं कोई भैरूजी-भोपाजी थोड़े ही हूँ जो शराब की बोतलें चढ़ा रहे हो? वह कुछ न बोला। बस, बोतलें खोल-खोल कर हमारे सामने गिराता रहा - मिट्टी पर, ज़मीन पर । मैंने कहा, भाई यह क्या कर रहे हो? बोला – साहब आपने जो बात कही, वह मेरे दिल और दिमाग में उतर गई। मैं अपने बच्चों के लिए वसीयत में ये सब छोड़कर नहीं जाऊँगा। इसलिए आज से ही शराब का त्याग करता हूँ। सचमुच, वह व्यक्ति बदल गया। न केवल बदल गया, बल्कि एक नेक और सत्संग-प्रेमी व्यक्ति बन गया।आज वो व्यक्ति हमारे बहुत क़रीब है। एक मिनट में बदल सकती है जिंदगी अगर आदमी अपने भीतर ज़ज़्बा जगा ले। ब्राह्मी और सुंदरी गई भाई को यह कहने के लिए कि भैया! हाथी पर बैठे रहने से केवलज्ञान नहीं होता और जब बाहुबली अपने छोटे भाइयों को जो संत बने हुए होते हैं, नमन करने के लिए क़दम आगे बढ़ाते हैं कि पहला क़दम बढ़ाते ही उनको परमज्ञान हो जाता है। जिंदगी को बदलने में, केवलज्ञान को पाने में कितना वक़्त लगा? केवल एक मिनिट। पति कहता है चलने में देर हो रही है अजी जल्दी आओ। पत्नी कहती है, 'बस, एक मिनिट में आई।' हालाँकि आती नहीं है वह दस मिनिट तक, पर कहती है 'बस, एक मिनिट में आई।' पिताजी कहते हैं, 'बेटा रवाना हो अब।' बेटा कहता है, बस, एक मिनिट में आया।' हमारी जुबान पर बैठा हुआ एक मिनट । हम कहते हैं बस! एक चुटकी में काम हुआ। पर क्या कोई चुटकी में काम 46/ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता है? हक़ीक़त में एक चुटकी में ही काम हो जाता है। एक मिनट में ही। पूर्व जन्म में संत बन करके भी जो अपना निस्तार नहीं कर पाया, वही चंडकौशिक साँप महावीर का केवल एक मिनट का सत्संग पाकर बदल गया और ऐसा बदला कि जो संत होकर भी न बदल पाया, उसने साँप होकर अपना उद्धार कर लिया। चंडकौशिक को कितने मिनट लगे? सिर्फ एक-दो मिनट। महावीर ने केवल इतना ही कहा – 'हे जीव! अब तो शांत हो।' जो लोग ज्यादा गुस्सा करते हैं वे घर पर पेन से एक तख्ती पर लिखकर टाँग दें – 'हे जीव! अब तो शांत हो।' कब तक हो-हल्ला करता रहेगा? बच्चा गाली निकालता है, समझ में आता है कि वह बारह साल का नादान बच्चा है, उसमें अक्ल नहीं है। पर आप तो वयस्क हैं, बड़े हैं। आपको तो क्रोध नहीं करना चाहिए। आज आप महावीर के उपदेश तख्ती पर लिखकर घर ले जाकर टाँग दें। अगर आपको लगता है कि पापा ज़्यादा चिल्लाते हैं तो पापा से कुछ मत कहो । केवल घर पर एक पुढे पर मार्कर पेन या कम्प्यूटर प्रिंट से लिख देना – 'हे जीव! अब तो शांत रह ।' जैसे ही पापाजी को गुस्सा आए तो और कुछ मत करना, बस तख्ती की तरफ इशारा कर देना। अरे, जब चंडकौशिक बदल गया, तो क्या पापा नहीं बदलेंगे? पापा तो चंडकौशिक नहीं हैं, वे तो आपके प्रिय पापा हैं। पापा एक बार देखेंगे तो और गुस्सा करेंगे, दूसरी बार देखेंगे, थोड़ा झल्लायेंगे, तीसरी बार में ऊँ-ऊँ करके रह जायेंगे, चौथी बार में ठंडे ही हो जायेंगे। बस, एक ही बोध - 'हे जीव! अब तो शांत रह।' हम अपनी-अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त करें। दुनिया में कोई किसी को बदलने के लिए लिए नहीं आता। हम ही ख़ुद को ख़ुद बदलेंगे। हम अगर निर्णय कर लें कि मैं बदलूँगा, निश्चित तौर पर बदलूँगा। कल नहीं आज, आज नहीं अभी, अभी नहीं यहीं। यहीं पर ही बदल कर जाऊँगा। बुद्ध से अंगुलीमाल बदल गए, महावीर से चंडकौशिक बदल गया, चन्द्रप्रभ से जयकिशन बदल गया, तो आप क्यों नहीं बदल सकते। आप कमजोरियों को छोड़ना चाहोगे, तो कमजोरियों को छोड़ दोगे। कमियों को छोड़ना चाहोगे तो कमियों को छोड़ दोगे। बस केवल भीतर ज़ज़्बा जगाओ। भीतर ज़ज़्बा हो तो, कमियाँ जीती जा सकती हैं। घर की गरीबियाँ दूर की जा सकती हैं। सामने यह गणेशजी का चित्र है, इसे देखकर प्रेरणा लीजिए। गणेश जी का 47 For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बड़ा सिर हमें बड़ी सोच रखने की प्रेरणा देता है। गणेश जी के बड़े कान हमें दूसरों की बातों को धैर्यपूर्वक सुनने की शिक्षा देते हैं। गणेश जी की बड़ी नाक इज़्ज़त बढ़ाने की सीख देती है। गणेश जी का बड़ा पेट हमें बातों को हज़म करने की नसीहत देता है। गणेश जी के हाथ में रखा लड्डू इस बात की प्रेरणा देता है कि अच्छा खाओ, अच्छा जिओ । लड्डू कहता है : कठिनाइयाँ हैं तो क्या हुआ, लड्डू की तरह जीवन में मिठास लाओ और आगे बढ़ो । कार्य को इस तरह करो कि असफलता असंभव हो जाए । विद्यार्थी हो और टॉप टेन में आने का सपना है, तो पहले साल, पहले दिन से ही मेहनत करना शुरू कर दो। अगर हमारे सपने छोटे होंगे, अगर हमारे लक्ष्य छोटे होंगे, तो फर्स्टक्लास, सैकण्ड क्लास आओगे। आजकल पूछता कौन है फर्स्ट क्लास और सैकण्ड क्लास वालों को। कोई अगर बी. कॉम है, बी. ए. पास है तो रुक मत जाना। क्योंकि रुकने का नाम जिंदगी नहीं है, समय आगे बढ़ रहा है । कहीं हम ठहर तो नहीं गए हैं। एम.बी.ए. करो, सी.ए. करो, कम्प्यूटर कोर्स करो । नये-नये कोर्स कीजिए, नये कीर्तिमान स्थापित कीजिए । आगे से आगे बढ़ते जाइए। बिटियाओ, बहनो! शादी भी कर ली है तो घर में केवल फुल्के, रोटी, पापड़ मत सेंको, क्योंकि ये काम तो घर में कोई बाई भी कर सकती है । आप एम.ए. पास हैं, एम.बी.ए. पास हैं तो इस नाते कुछ और भी करो, देखो वक़्त आपको पुकार रहा है। भारत अपने नवनिर्माण के लिए आप सबको निमंत्रण दे रहा है। वक़्त कह रहा है आने वाला कल प्रगति का कल है । निठल्ले मत रहो । जब लोहे का काम करके कोई व्यक्ति टाटा बन सकता है और जूतों का काम करके कोई व्यक्ति बाटा बन सकता है तो हम अपनी जिंदगी में कुछ भी क्यों नहीं हो सकते हैं? बस, भीतर में केवल ज़ज़्बा चाहिए, भीतर में इच्छा-शक्ति चाहिए । आग तुम्हारे भीतर है, बस उस ज्योति कलश को जगाने की ज़रूरत है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए एक रास्ता अवश्य है, वह कौन-सा है उसे ढूँढें, देखें, और मंज़िल पाएँ । विश्वास रखिए : सुई के छेद से भी स्वर्ग को देखा जा सकता है । बस, अपनी ओर से इतना ही अनुरोध है । 48 | For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रतिभा को निरवारें पेंसिल की तरह - हर माँ-बाप का यह सपना होता है, उनकी यह दिली तमन्ना रहती है कि उनके बच्चे बुलंदियों को छुएँ । वे अपने स्वयं का भविष्य भी अपने बच्चों में देखते हैं, अपना समाज और अपना देश भी उन्हें अपने बच्चों में ही दिखाई देता है। जो बच्चे माँ-बाप के सपनों को समझ लेते है, अपने जीवन को गंभीरता से ले लेते हैं, वे प्रकृति के द्वारा मिली हुई अपनी प्रतिभा का उपयोग करके निश्चित ही आसमानी ऊँचाइयों को छुआ करते हैं, लेकिन जो बच्चे माँ-बाप के सपनों को नहीं समझते, ग़लत आदत, ग़लत सोहब्बत, ग़लत परिवेश में चले जाया करते हैं, वे न केवल अपने केरियर को, बल्कि अपने जीवन को भी गर्त में डाल देते हैं। वे माँ-बाप के नाम को भी चुल्लू भर पानी में डुबो बैठते हैं, लेकिन जिन्होंने जीवन को गंभीरता से लिया है, माता-पिता के सपनों को अपना सपना बनाया है, वे धरती के चाहे जिस कोने में क्यों न चले जाएँ, खुद भी गौरवान्वित होंगे और अपने माता-पिता, समाज, धर्म और देश को भी गौरवान्वित करेंगे। बात की शुरुआत मैं एक खास व्यक्तित्व के साथ करूँगा। एक व्यक्ति एक महाविद्यालय में सहायक लेक्चरार के रूप में कार्यरत हुआ। साल भर तक उसने बच्चों पर मेहनत की और बच्चों ने भी दिल लगाकर पढ़ाई की। आखिर परीक्षाएँ सम्पन्न हुईं। जब परीक्षा के परिणाम आने वाले थे तभी कॉलेज के प्रिंसिपल ने 49 For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उस लेक्चरार को अपने पास बुलाया और कहा – ये ज़रा रोल नम्बर नोट कर लो, इस कॉलेज के मालिक के बेटे के नम्बर हैं। ज़रा इसकी कॉपी को ध्यान से देख लेना और अगर कहीं कोई कमी लगे तो पूरी कर देना। हालाँकि सुनते ही वह सन्नाटे में आ गया कि कॉलेज के प्रिंसिपल इस तरह की टिप्पणी कर रहे हैं, पर वह मौनपूर्वक निकल पड़ा और जब परीक्षा के परिणाम आए तो प्रिंसिपल यह देखकर चौंक पड़े कि कॉलेज के मालिक का बेटा अनुत्तीर्ण घोषित किया गया। प्रिंसिपल थोड़ा-सा ताव में आया और उसने झट से उसी लेक्चरार को अपने पास बुलाया और कहा – मैंने तुमसे कहा था कि कॉलेज के मालिक के बेटे की कॉपी ज़रा ढंग से चैक कर लेना और कोई कमी हो तो दूर कर देना, पर तुमने ऐसा नहीं किया। लेक्चरार बोला - सर ! मैंने बिल्कुल बराबर कॉपी चैक की है और जितने अंक पाने का वह हक़दार था, मैंने उसे बिल्कुल उतने ही नम्बर दिए हैं। प्रिंसिपल ने कहा - क्या तुम्हें पता है कि अगर तुमने कॉलेज के मालिक के बेटे को अनुत्तीर्ण कर डाला तो तुम्हारी नौकरी चली जाएगी? लेक्चरार मुस्कुराया और कहने लगा कि सर, मुझे पहले से ही पता था कि अगर मैंने सही-सही अंक दिए तो कॉलेज से मेरी नौकरी जा सकती है। प्रिंसिपल ने कहा - जब तुम्हें पता है कि नौकरी जा सकती है तो फिर तुमने ऐसा क्यों किया? तुम्हें इसे अंक बढ़ाकर दे देने चाहिए। अब भी कॉपी ले जाओ और नम्बर बढ़ाकर नया प्रमाण-पत्र तैयार कर दो। उसने कहा - सर! माफ करें, मैं ऐसा करके उन विद्यार्थियों के साथ अन्याय नहीं कर सकता जिन्होंने साल भर मेहनत की है। प्रिंसिपल ने कहा – तो फिर तुम्हें नौकरी से जाना पड़ेगा। लेक्चरार बोला - सर ! मुझे पहले से ही पता था इसलिए मैं अपना इस्तीफा अपने साथ लेकर आया हूँ। प्रिंसिपल ने कहा - बेवकूफ़! तू अपना इस्तीफा तो लेकर आया है, एक छोटी-सी बात के चक्कर में तू इतनी अच्छी नौकरी को छोड़कर जा रहा है। अरे, मैं था जो मैंने तुम्हें नौकरी दिला दी।आज की तारीख में नौकरी मिलती कहाँ है? और तू मेरे ही विरोध में जा रहा है? अरे ज़रा सोच कि अगर तू यहाँ से नौकरी छोड़कर चला गया तो आखिर जाएगा कहाँ? दर-दर की भीख माँगता फिरेगा। उसने कहा -सर, माफ़ कीजिए, आज सुबह ही मैंने निर्णय कर लिया है कि जब मैं यहाँ नौकरी से छूट्रॅगा तो छूटते ही सबसे पहले अमेरिका जाऊँगा। प्रिंसिपल बोले - अमेरिका? प्रिंसिपल ने कहा कि तू अमेरिका तो चला जाएगा, परन्तु वहाँ तुम्हें नौकरी कौन देगा? लेक्चरार ने कहा - सर, माफ़ कीजिएगा सवाल यह नहीं है कि वहाँ मुझे नौकरी कौन देगा? 50 | For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सवाल यह है कि वहाँ मुझे नौकरी पाने से कौन रोकेगा? जिस व्यक्ति के पास अपनी प्रतिभा होती है वह चाहे देश में रहे चाहे विदेश चला जाए वह जहाँ भी रहेगा हर जगह इज़्ज़त पाएगा, समृद्धि के ख़ज़ाने खोलेगा और अपने माँ-बाप का नाम भी रोशन करेगा। जिनके पास अपना टेलेंट नहीं होता, अपना टारगेट नहीं होता वे लोग ही या तो ट्रेनों में भर-भर कर सरकारी नौकरियों को पाने के लिए मोहताज़ रहा करते हैं, या फिर समाज के सामने जाकर अपने लिए चंदा या दान माँगा करते हैं। जिनके पास अपना टेलेंट होता है, अपनी प्रतिभा होती है, वे तो जहाँ रहेंगे वहाँ कमाएँगे; जहाँ जाएँगे वहाँ स्थापित होंगे । जैसे सोने का सिक्का भारत में सोने का सिक्का कहलाएगा, वैसे ही कोई व्यक्ति अगर उसे यूरोप लेकर जाएगा तो वहाँ भी वह सोने का सिक्का कहलाएगा। मेरे भाई! अपनी जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो अपने टेलेंट को जगाओ ! तुम हज़ार का नोट बनो। अगर मैं आपसे पूछूं कि मैं आप सारे लागों को एक-एक हज़ार का नोट देना चाहता हूँ। कितने लोग ले लेना चाहेंगे? शायद सारे ही लोग ले लेना चाहेंगे। हज़ार का नोट भला कौन छोड़ेगा ? हज़ार का नोट मानो कि मेरे हाथ में है और मैंने उस हज़ार के नोट को हाथ में लेकर मुट्ठी में बिल्कुल तोड़ मरोड़ दिया, मुट्ठी में बाँधकर उसे सलों में भर दिया है, पर ज़रा मुझे बताओ कि जिस नोट को मैंने मरोड़ दिया है, उस नोट की अब क़ीमत कितनी होगी? एक हज़ार। एक नोट जो बिल्कुल न्यू ब्रांड था लेकिन मैंने उसको मुट्ठी में डाला, मरोड़ डाला फिर भी उसकी क़ीमत एक हज़ार की ही रहेगी, वही हज़ार का नोट अगर नीचे ज़मीन पर डाल दूँ और उसके ऊपर मिट्टी डाल दूँ, दो घंटे के बाद मिट्टी हटाऊँ और वह नोट निकालूँ तो उसकी क़ीमत कितनी रहेगी? एक हज़ार । जिंदगी में यही तो सीखने की बुनियादी बात है कि अपने-आप को हज़ार का नोट बना लो ताकि कोई प्रिंसिपल की तरह मरोड़ डाले तब भी तुम्हारी क़ीमत वही रहे और अगर कोई मिट्टी डाल दे तब भी तुम्हारी क़ीमत वही रहे, तुम्हारी क़ीमत कभी कम नहीं होनी चाहिए । अमीर आदमी तभी तक पूछा जाएगा, जब तक उसके पास पैसा रहेगा और एक मुख्यमंत्री की पूछ तभी तक रहेगी, जब तक वह पद पर रहेगा, लेकिन जिसके पास अपना टेलेंट है, अपनी प्रतिभा है, वह चाहे पद पर रहे चाहे पद से उतर जाए; उसकी क़ीमत उस हज़ार के नोट जैसी ही बनी रहेगी । For Personal & Private Use Only - | 51 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक सज्जन मेरे पास आए, गुलाब का गुलदस्ता साथ लेकर। उन्होंने उसे मुझे भेंट चढ़ाया और पूछने लगे – गुरुदेव! मुझे अपना जीवन किस तरीके से जीना चाहिए, ताकि मेरे टेलेंट का सही उपयोग हो सके। मैंने कहा - मैं आपसे जीवन की बात तो बाद में करूँगा, उससे पहले आपसे एक सवाल करूँगा - आप गुलाब के फूलों का जो गुलदस्ता मेरे सामने लेकर आए हैं ज़रा मुझे बताइए कि इस समय खुशबू किसकी आ रही है? जी, गुलाब के फूल की। मैंने कहा – मान लो आप यही गुलदस्ता, यही गुलाब के फूल ले जाकर किसी मंदिर में चढ़ा देंगे, तब ख़ुशबू किसकी आएगी? जी, गुलाब के फूल की। मैंने कहा - चलो मान लो यही फूल आप किसी अर्थी पर चढ़ा दें, कब्रिस्तान या श्मशान में लेकर जाकर चढ़ा दें वहाँ ख़ुशबू किसकी आएगी? जी, गुलाब के फूल की। मैंने कहा - मानो आप घर जा रहे हैं और घर जाकर आपने यह गुलदस्ता फ्रीज में रख दिया वहाँ खुशबू किसकी आएगी? जी गुलाब के फूल की। मैंने कहा - मानो मैंने आपसे कहा कि इस गुलाब के गुलदस्ते को ले जाकर अकुड़ी में फेंक आओ और तुम फेंक भी आए, पर वहाँ ख़ुशबू किसकी आएगी? उसने कहा, जी, वही गुलाब के फूल की। मैंने कहा – जीवन का केवल इतना-सा पाठ सीखना है कि जैसे गुलाब का गुलदस्ता, गुलाब का फूल अगर कहीं ले जाकर रख दिया जाए, अनुकूल या प्रतिकूल चाहे जैसी परिस्थिति होने पर भी ख़ुशबू गुलाब के फूल की ही आएगी, ऐसे ही अगर हम लोग अपने-आप को गुलाब का फूल बना लें, तो चाहे चित गिरें या पुट, हम तो गुलाब के फूल की तरह महकते रहेंगे। अपने-आप को गुलाब का फूल बना लें यही जीवन जीने की कला है। ___ जीने के लिए अपने टेलेंट का, अपनी प्रतिभा का उपयोग करें। इंसान की प्रतिभा ही इंसान की सबसे बडी दौलत है: इंसान की प्रतिभा ही इंसान के व्यक्तित्व का मूल आधार है। इंसान की प्रतिभा ही उसके केरियर को बनाती है, समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है। जब तक इस देश के पास प्रतिभा रहेगी, यह देश हमेशा बुलंदियों को छूता रहेगा और जिस दिन हमने अपनी प्रतिभा को गिरवी रखना शुरू कर दिया, उसी दिन से हमारा देश चार क़दम पीछे चला जाएगा। यहाँ केवल प्रतिभा की ताक़त काम आती है। हज़ारों साल पहले भी टेलेंट पूजा जाता था, आज भी पूजा जाता है और भविष्य में भी पूजा जाएगा। राजा तभी तक पूछा जाता है, जब तक वह अपनी सीमा में रहता है, एक धनवान व्यक्ति की इज़्ज़त तभी तक होती है, जब तक उसके पास धन की पोटली है, लेकिन 52 | For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्वान व्यक्ति जहाँ भी जाएगा, पूजनीय ही बनेगा । 1 आज की तारीख में टेलेंट की बहुत इज़्ज़त है । हमारे वर्तमान युग की सबसे महान् उपलब्धि यही है कि आज का हर युवक, हर व्यक्ति अपने-अपने टेलेंट को तराशने में लगा हुआ है, अपने-अपने केरियर को बनाने में लगा हुआ है । पहले के ज़माने में पिता अस्सी साल का हो जाता तब भी बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करना पड़ता था । बाप अगर किसान है तो बेटे भी किसान बनते, बाप अगर मुनीम है तो बेटे भी मुनीम बनते, लेकिन अब ज़माना बदल गया है । जितना महान युग आज हमारे समय में आया है, उतना महान युग अतीत के इतिहास में कभी नहीं आया । आज का युग, आज का इंसान जितना सुखी हुआ है, जितना स्वतंत्र हुआ है, जितना आज़ाद और समृद्ध हुआ है इतना पहले कभी नहीं हुआ। पहले ज़माने में सम्पन्न सेठ, साहूकार गिनती के होते थे गाँव में, शहर में कोई दस-बीस - पचास कारें दिखाई देती थीं । दस-बीस - सौ बग्गियाँ नज़र आती थीं। आज का युग जितना सुखी है, जितना समृद्ध है, उतना पहले नहीं था। पहले ज़माने में कोई एक व्यक्ति राजा होता था, कोई एक व्यक्ति नगर- सेठ होता था, आज तो नगर को छोड़ो, गाँव को छोड़ो, हर गलीगली और मौहल्ले-मौहल्ले में आपको नगर-सेठ नज़र आ जाएँगे। ऐसा सुखीसमृद्ध युग कभी नहीं आया। आज जिस तरह से हम लोग प्रगति के पथ पर बढ़े चले जा रहे हैं, केवल बीस साल तक यह दुनिया इसी तरह प्रगति के पथ पर चलती रही तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जो उपलब्धियाँ पिछले पाँच हज़ार साल में यह दुनिया उपलब्ध नहीं कर पाईं, केवल बीस साल में यह दुनिया उपलब्ध कर जाएगी। यह युग लड़ने-लड़ाने का युग नहीं है । यह युग टूटनेतोड़ने का युग नहीं है। यह युग बनने और बनाने का युग है। आपस में गले लगने का युग है। यह एक-दूसरे को समर्थन देकर आगे बढ़ने-बढ़ाने का युग है । हर व्यक्ति अब बढ़ सकता है और बढ़ने का जो आधार है वह व्यक्ति का अपना टेलेंट है, व्यक्ति की अपनी प्रतिभा है । मानता हूँ आरक्षण के मुद्दे ने हमारे देश की अनेक-अनेक प्रतिभाओं को विदेश में जाने को मज़बूर किया। मैं जानता हूँ आरक्षण इस देश के लिए उपयोगी न बन पाया। हालाँकि नज़रिया तो यह था कि गरीब तबके के लोगों को ऊपर लाया जाए। वे जातियाँ, जिन्हें समाज में हल्की नज़र से देखा जाता है, उन For Personal & Private Use Only | 53 Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जातियों को ऊपर उठाया जाए। इस लिहाज़ से आरक्षण का मुद्दा लागू किया गया था, लेकिन गरीबों को पूरा सहयोग नहीं मिल पाया, केवल जातियों को समर्थन मिल गया और परिणाम यह निकला कि हमारा देश अब धर्म के नाम पर कम चलता है, संस्कृति के नाम पर कम चलता है। अब हमारा देश केवल जातियों के नाम पर चलता है। सारे चुनाव, सारी राजनीति अब जातियों पर आकर सिमट गई है। अगर यह देश, देश का कानून, देश की राजनीति समय रहते देश में बढ़ रहे जातीयकरण पर अंकुश न लगा पाई तो आने वाले समय में न कोई हिन्दू रहेगा और न मुस्लिम और जैन रहेगा, न कोई सिक्ख और ईसाई रहेगा। तब इस देश में केवल या तो जाट रहेंगे, या कुम्हार रहेंगे, या राजपूत रहेंगे, मेघवाल रहेंगे, ओसवाल रहेंगे, अग्रवाल रहेंगे, माहेश्वरी रहेंगे। धर्म मिट जाएँगे, पंथ मिट जाएँगे, इंसान मिट जाएँगे, केवल जातियाँ भर रह जाएँगी। हमारा देश पिछले पचास साल में यह समझ पाने में तो सफल रहा है कि देश के लिए साम्प्रदायिकता एक ज़हर है। उस ज़हर को काटने का बहुत प्रयास किया गया। साम्प्रदायिकता का जुनून तो कम कर दिया गया, पर जातियों का जुनून बढ़ा दिया गया। यह देश के लिए घाटे का सौदा है। लोकसभा, विधानसभा, हाईकोर्ट बैठकर ठंडे मिजाज से सोचें कि आने वाले दस साल के बाद वह अपने देश के लिए किन्हीं प्रतिभाओं का निर्माण और पोषण करना चाहता है या केवल जातियों का निर्माण करना चाहता है। अगर देश में प्रतिभाएँ मूल्यवान न रहीं तो प्रतिभाएँ विदेशों में चली जाएँगी। विश्व भारत का लोहा मानता है और मानता है कि जितनी प्रतिभाएँ इस देश में हैं उतनी पूरे विश्व में और कहीं भी नहीं है। बिल गेट्स को जब अपना निजी सचिव एवं सलाहकार नियुक्त करना था, तो उसने इंटरनेट पर प्रतिभाओं का इन्टरव्यू लेना शुरू किया, पूरे विश्व की प्रतिभाओं का इन्टरव्यू लिया। लेकिन जब चयन हुआ तो एक भारतीय व्यक्ति का चयन हुआ। जब एक भारतीय व्यक्ति का चयन हुआ तो अमेरिका जैसे देश में यह मूल्यांकन किया गया कि अमेरिका में कितने भारतीय आ चुके हैं। चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो, विज्ञान का क्षेत्र हो, व्यापार का क्षेत्र हो, 20 प्रतिशत संख्या भारतीयों की होती चली जा रही है। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू. बुश ने अपने देशवासियों से कहा था - अमेरिकावासियो ! जागो, नहीं तो भारत की ये प्रतिभाएँ एक दिन अमेरिका पर कब्जा कर लेंगी। पूरा विश्व जार्ज बुश के इस वक्तव्य से परिचित है। भारत में प्रतिभाएँ हैं, आने वाला कल उनका होगा जिनके 54 | For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास प्रतिभा है। मैं इसीलिए आप लोगों के बीच बैठकर आने वाले कल के भारत का निर्माण कर रहा हूँ, आने वाले कल के समाज का निर्माण कर रहा हूँ और इसके लिए आपके भीतर छिपी प्रतिभाओं को जगा रहा हूँ। मैं प्रतिभाओं को जागृत कर रहा हूँ। मैं जोश जगा रहा हूँ, आपकी आत्मा जगा रहा हूँ, वही काम कर रहा हूँ जो काम कभी भारत में विवेकानंद ने किया, जो काम कभी महाभारत के मैदान में, कुरुक्षेत्र में अर्जुन की सोई हुई चेतना को जगाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने किया था । याद रखिएगा, अगर हम अपनी औकात न बना पाए, अगर हम अपने पाँव पर खड़े न हो पाए, अगर हम अपना केरियर न बना पाए, अगर हम अपना टेलेंट न जगा पाए तो गली का कुत्ता भी हमें नहीं पूछेगा। समाज के लीडर तो क्या पूछेंगे ? कोई एम.पी. हमें मंच पर तो क्या बुलाएगा, कोई छुटभैय्या भी नहीं पूछेगा। माता सरस्वती किसी के भी घर पर तो आरती उतारती हुई आएगी नहीं और कहेगी नहीं कि बेटा पी ले, संजीवनी औषधि की तरह पी ले, ब्राह्मी की घुट्टी की तरह पी ले, की जन्मघुट्टी की तरह पी ले, यह ज्ञान पी ले, यह केरियर पी ले। नहीं, यहाँ पर वे ही लोग पाते हैं जो अपनी-अपनी प्रतिभा, अपने-अपने टेलेंट को समझते हैं, जागृत करते हैं। सारे लोग अपने-अपने टेलेंट को पहचानें । कहते हैं : नागौर नरेश के पास किसी समय यह समस्या आ गई कि अपने प्रधान मंत्री पद के लिए किसका चयन किया जाए। उन्होंने कई प्रतिभागियों का चयन किया और आखिर निर्णय पर पहुँचे कि जोधपुर के सिंघवी जी को अपना प्रधान मंत्री नियुक्त किया जाए। नागौर की एक खास जाति के लोग एकत्रित होकर आए और कहने लगे - राजन् ! बाहर के नगर के व्यक्ति को प्रधान मंत्री नियुक्त किया जा रहा है, क्या हमारे शहर में कंगालियत आ गई है? हमारे यहाँ देखिए यह महानुभाव, नाम नहीं लूँगा उनका, बड़े ज्ञानी हैं, बड़े वैदुष्य प्रतिभा सम्पन्न हैं । आप इन्हें नियुक्त करें। नागौर नरेश ने कहा- भाई मैं किसी के दबाव में आकर कोई काम नहीं करूँगा, काबिलियत है तो मुझे ऐसा करने में कहाँ ऐतराज होगा ! परीक्षा करनी चाहिए। राजा बोले- कल सुबह आ जाइएगा । अगले दिन सुबह राजा उम्मीदवारों को नवरत्नों से सजी हुई एक - एक डिबिया थमाई और कहा - इस डिबिया को लेकर तुम दोनों यहाँ से जाओ । एक व्यक्ति जाए जयपुर राजा के पास और एक व्यक्ति जाए उदयपुर महाराणा For Personal & Private Use Only | 55 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के पास । दोनों को डिबिया मिल गई । न कोई पैगाम, न कोई संदेशा । बस, डिबिया उठाओ और निकल जाओ । आगे माथा अपना खुद का लड़ाओ । माता-पिता का काम है आपको जन्म देना, लेकिन जन्म देने के बाद आपको क्या बनना, यह आप पर निर्भर है। ईश्वर अगर हम लोगों को धरती पर भेज देते हैं पर इसके बाद क्या बनना है संगीतकार बनना है कि जेबकतरा, यह तुम पर है। जो बनना चाहो वह बनो । दोनों रवाना हो गए। वे जो नागौर के महानुभाव थे, गए जयपुर राजा के पास और जाकर कहा कि हमारे महाराज ने आपके लिए यह अनमोल भेंट भेजी है। डिबिया ली, उन नवरत्नों से सजी हुई डिब्बी को खोला तो अन्दर एक और सोने की डिबिया मिली। उस सोने की डिबिया को जैसे ही खोला कि खोलते ही चौंक पड़े, अरे नागौर नरेश ने क्या हमारा अपमान किया है? अरे सोने की डिबिया में राख भेजी है। उठाकर सीधा उसे आदमी के मुँह पर फेंका और धक्के देकर बाहर निकाल दिया गया । वह भी बड़ा पशोपेश में आ गया कि राजा ने मेरे साथ न जाने कैसी मज़ाक की है? ऊपर तो नवरत्न सजाकर डिबिया दी, अन्दर सोने की डिबिया और भीतर में भर दी राख । धक्का खाना पड़ा। काला मुँह करवा कर आ गया । सिंघवी जी गए उदयपुर के राणा के पास और वहाँ जाकर उन्होंने भी डिबिया भेंट की। नवरत्नों से सजी हुई डिबिया । खोला गया तो अन्दर सोने की डिबिया, पर उसे खोला गया तो अन्दर राख । राख देखते ही राणा भी आग बबूला हो उठे तुम्हारे राजा ने हमारा अपमान किया है, सो हमें भेंट में राख भेजी है। अब सिंघवी माथा घूमा। एक सेकण्ड के लिए उन्होंने सोचा और झट से परिस्थिति को सम्भालते हुए कहा - अरे राजन् ! महाराणा साहब ! यह राख नहीं है । अरे यह तो हमारी कुलदेवी भुआल माता की रक्षा है, रक्षा । अरे महाराज ! आप सोचिये तो सही कि क्या नागौर जैसे छोटे से नगर का राजा क्या कोई उदयपुर के महाराणा को राख भेजेगा? यह तो हमारे महाराज ने बड़ी कृपा की है। हमारे भुआल माता के जो पुजारी हैं उन्होंने पूरे सवा साल तक साधना की थी तब कहीं जाकर वह रक्षा प्रकट होकर आई है। महाराज यह बड़ी चमत्कारी राख है । कोई भी निःसंतान व्यक्ति अगर इसको गंगाजल में घोलकर पी ले तो नि:संतान को भी संतान हो जाती है । ओह ! महाराणा ने कहा - अच्छा ऐसी बात है? तब तो बहुत - बहुत साधुवाद 56 | For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्हारे नागौर-नरेश को। और झट से गंगाजल मंगवाया गया, उसमें वह राख मिलाई गई और महाराजा उसे घोकर पी गये। नागौर-नरेश के नाम पर महाराणा ने गले का नवलखा हार निकालकर भेंट दिया और दस हज़ार सोनैया उन सिंघवीजी को भी उपहार में मिल गए। नागौर नरेश के पास वे वापस चले आए। गए दो लोग थे, पर क्या आप बता सकते हैं कि प्रधानमंत्री कौन बना? सिंघवी जी बने। प्रतिभा तो अतीत में भी पूजी जाती थी, आज भी पूजी जाती है, कल भी पूजी जाएगी। उम्र का ख्याल हटा दो। छोटे हो तो छोटे, बड़े हो तो बड़े। टेलेंट तो उसी समय जाग्रत हो जाता है जिस समय आदमी अपने टेलेंट को एक्टिव कर लेता है। (जनसभा में से एक बुजुर्ग महानुभाव से पूछा-) आपकी उम्र क्या है? साठ साल। साठ साल के हो, तो ख़ुद को बूढ़ा मत समझना। अभी तो यह सप्ताह ऐसा गुज़रा कि सारे बुजुर्ग भूल गए कि हम बूढ़े हैं और जो मुर्दे जैसे बने हुए थे उनको लगता है हम भी कुछ कर सकते हैं। अभी शहर में सारे बुजुर्गों में नई ज़वानी आ गई, नया जोश आ गया। सब कहते हैं कि अभी हम बूढ़े कहाँ हैं? अब तो आपने जगा दिया। अब आत्मा जग गई है, अब चेतना झंकृत हो गई है। बूढ़ा तो आदमी को एक मिनट के लिए होना चाहिए, वह भी तब जब आदमी की मौत आती है। केवल एक मिनट के लिए बूढ़ा होना चाहिए, बाकी का कैसा बुढ़ापा? एन्जॉय एवरी मूमेन्ट । जीवन एक स्वर्णिम अवसर है। हर पल आनंदित रहो, हर समय एक्टिव रहो। निष्क्रिय जीवन काम का नहीं होता और सक्रिय जीवन आदमी के लिए वरदान बना करता है। निठल्ला बैठा रहना अच्छा तो लगता है, पर निठल्ले बैठने का कोई परिणाम नहीं आया करता। परिणाम तभी आता है जब कुल्हाड़ी उठाओगे, काम करने के लिए निकल पड़ोगे। सचिन तेंदुलकर मात्र उठारह वर्ष की उम्र में महान क्रिकेटर बन गए। मात्र अठारह वर्ष की उम्र में स्टार टेनिस सानिया मिर्जा वर्ल्ड कप के क़रीब पहुँच गई थी। मात्र 21 वर्ष की उम्र में न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत खोज डाला था। मात्र 17 वर्ष की उम्र में गेलिलियो ने लटकते हुए लेम्प का आविष्कार कर लिया था। मात्र बाईस वर्ष की उम्र में पियेरे ने उत्तरी ध्रुव की खोज कर डाली थी। मात्र पन्द्रह वर्ष की उम्र में छत्रपति शिवाजी ने अपनी जिंदगी का पहला किला फतह कर लिया था, और मात्र 25 वर्ष की उम्र में नेपोलियन इटली पर अपने देश का ध्वज फहराने में सफल रहा था। कोई भी व्यक्ति अगर अपने टेलेंट को जगाता है, अपने को एक्टिव करता है तो उम्र नहीं देखी जाती। जग जाओ तो सत्तर की उम्र | 57 For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी बचपन है, न जगो तो सतरह की उम्र भी बुढ़ापा है। अभी-अभी इंदौर में आने के बाद एक खबर पढ़ने को मिली कि एक बुजुर्ग आदमी जिसकी उम्र 70-72 वर्ष की है, उसने विश्व रिकार्ड बनाया है. किस चीज़ का विश्व रिकार्ड? 35 साल से लगातार 10वीं की परीक्षा दे रहा है और आज भी वह दसवीं में फेल हो रहा है। उस डोकरे को, उस बुजुर्ग को एक बार मेरे पास ले आओ। भले ही जो अब तक 35 साल से फेल होता जा रहा है अगर वह आदमी एक बार मेरे पास आ जाए, तो जो 72 वर्ष तक फेल होता रहा, वह 73वें वर्ष में पास हो जाएगा। हाँ, अगर किसी ने यह ठान ही लिया कि उसे तो फेल होने का विश्व रिकॉर्ड बनाना है तो बात अलग है। ___ 'क' से क़िस्मत होती है, 'क' से ही कर्मफूटा होता है, 'क' से ही करोड़पति होता है और 'क' से ही कृष्ण होता है। सब कुछ 'क' से ही होता है, पर परिणाम जुदा है। 'भ' से भारत भी होता है और 'भ' से भ्रष्टाचार भी होता है। 'र' से राम भी होता है और 'र' से रावण भी होता है। राशि एक है, अक्षर एक है, पर परिणाम अलग-अलग हैं । हम भी अगर अपने टेलेंट को जगा लें तो कोई संगीतकार बन सकता है, कोई शिल्पकार बन सकता है, कोई एम.बी.ए. बन सकता है, कोई चार्टर्ड एकाउंटेंट बन सकता है। अगर टेलेंट को न जगाया तो हममें से ही कोई आदमी डाकू बनेगा, कोई जेबकतरा बनेगा, कोई आतंकवादी बनेगा, कोई उग्रवादी बनेगा।खुद को क्या बनाना है, यह खुद पर ही निर्भर करता है। केवल अपने टेलेंट को जानने, समझने और उसको किसी पेंसिल की तरह तीखा और नुकीला करने की ज़रूरत भर है। पेंसिल हमें कुछ सिखाती है। पेंसिल के कुछ नियम हैं, कुछ सिद्धांत हैं, कुछ उसूल हैं । जीवन का निर्माण पेंसिल के द्वारा किया जा सकता है। पेंसिल को अगर उपयोगी बनाना है तो सबसे पहला नियम है समर्पण का। समर्पण यानि कि इसको किसी दूसरे के हाथ में सौंपना होगा। जैसे पेंसिल को सौंपा जाता है, इसी तरह हमें भी अपने जीवन को किसी योग्य गुरु को सौंपना होगा। माँ के पेट से केवल बच्चा पैदा होकर आता है। बाकी के लिए तो खुद को ही कुछ-न-कुछ करना पड़ता है। याद रखो - गाय दूध देती नहीं है। गाय से दूध निकालना पड़ता है। जो देती है वह न पीने के काम आता है और न ही खाने के। जो काम आता है उसे तो निकालना पड़ता है। निकालो तो पीने के काम का होता है। 58| For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला नियम यह कि अगर पेंसिल को उपयोगी बनाना है तो अपने आपको समर्पित करो; दूसरों के हाथों में अपने आप को सौंपो। दूसरा नियम - पेंसिल को अगर उपयोगी बनना है तो सहनशीलता को विकसित करना पड़ेगा, क्योंकि गुरुजी के हाथों में जाते ही पेंसिल की छिलाई होगी। पेंसिल का दूसरा नियम, हमें सहनशीलता सिखाता है। सहन करने के लिए तैयार रहो। गुरुजी डंडा भी मारेंगे तब भी, झेलने को तैयार रहो। पहले के ज़माने में अगर कोई बच्चा पढ़कर आता तो तीसरी की गणित का पढ़ा हुआ पहाड़ा आज भी इस 70 की उम्र में सुना जा सकता है, पर आपने दो साल पहले भी एम.बी.ए. में कौन-कौन-से फार्मूले पढ़े थे वे आप आज नहीं सुना सकते। क्योंकि छिलाई नहीं हुई, केवल पढ़ाई हुई। हम छोटे थे तो गणित के पहाड़े बोलाए जाते थे, एक ग़लती हो जाती तो मुर्गा बनाया जाता, दूसरी बार ग़लती हो जाती तो किताबों का बस्ता पीठ पर रख दिया जाता था। मुर्गा बने रहो 15 मिनट तक।और अगर बस्ता नीचे गिर गया तो पीछे से एक बेंत जोर से आकर पड़ती, हिल जाता आदमी। वे जो बेंतें खा-खाकर पढ़लिखकर तैयार हुए वे 80 साल के हो जायेंगे तब भी, जैसे बेंतों को भूलना कठिन होता है वैसे ही तीसरी क्लास की पढ़ी हुई पढ़ाई को भी भूल नहीं पाएंगे। __ अगर बीज को केवल पानी ही पानी मिलता रहे, धूप न मिले तो बीज सड़ जाएगा। बीज को अगर वट वृक्ष की ऊँचाई तक ले जाना है तो उसको धूप की मार भी सहन करनी होगी। पहला नियम समर्पण, दूसरा सहनशीलता। तीसरा है - स्वनिहित शक्ति। पेंसिल के भीतर ही पेंसिल की ताक़त रहती है, पेंसिल के बाहर नहीं। पेंसिल के अन्दर क्या है? शीशा। शीशा अन्दर है। हमारी भी प्रतिभा कहीं बाजार से खरीद कर नहीं आती। हमारी प्रतिभाओं को कहीं किताबों से घोट-घोट कर ठंडाई की तरह नहीं पिया जाता। प्रतिभा हर व्यक्ति के भीतर है। सबकी अपनी-अपनी प्रतिभा होती है। बच्चों को देख लो, आप अपने बेटे-पोते को देख लो किसी के घर में पोता बड़ा सयाना होता है, किसी के घर में पोता दिन भर रोता रहता है। किसी के घर में पोता पेंसिल उठाकर दीवारों पर रगड़ता रहता है। किसी के घर में पोता चूना खोदता है और खाता रहता है। किसी के घर में बच्चा कैसा निकलता है तो किसी के घर में कैसा! सबकी अपनी-अपनी प्रतिभाएँ हैं । पूत के पाँव तो पालने में ही पता चल जाते हैं। ऐसा हुआ। एक पिता ने सोचा कि देखू, अपने बेटे की प्रतिभा कैसी है? सुना है कि पूत के पाँव पालने में पता चल जाते हैं, देखता हूँ कैसा है इसका टेलेंट? | 59 For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केरियर कैसा बनेगा? सो पहचानने के लिए पिता बीयर की बोतल लेकर आया और एक कप बीयर प्याले में डाल दी, बगल में एक फिल्मी हीरोइन का फोटो भी रख दिया। एक पेन भी रख दिया और रामायण के सुन्दर-कांड का गुटखा भी ले जाकर रख दिया। और फिर बेटे से कहा कि देखो बेटा जाओ, वे देखो सामने इतनी चीजें रखी हैं, जो तुम्हें सबसे ज्यादा पसंद आए उसे उठा लो। बेटा ठुमकठुमक करता हुआ निकल पड़ा और जब वहाँ पहुँचा तो उसने सबसे पहले प्याला उठाया और पी गया। अभिनेत्री का फोटो उठाया जेब में डाल दिया। पेन उठाया, उसे भी जेब में डाल लिया और रामायण का गुटका हाथ में लिये पिता के पास चला आया। पिता ने कहा यह छोरा ज़रूर आगे जाकर नेता बनेगा, इसके लक्षण ऐसे ही दिख रहे हैं। चारों चीजें इसको पसंद जो हैं। सबके अपने-अपने नेचर, अपने-अपने टेलेंट होते हैं। हमें अपने टेलेंट को पहचानना होगा। पेंसिल हमें सिखाती है कि तुम्हारी ताक़त तुम्हारे अपने भीतर है। पेंसिल हमें चौथी नसीहत देती है कि ग़लती होना मुमकिन है इसलिए पेंसिल के ऊपर एक रबर और रखा जाता है, जो हमें सिखाता है सुधार, संशोधन । ग़लती हो सकती है इसलिए जैसे ही ग़लती हो जाए, रबर घिसो और उसे ठीक कर लो। अपनी ग़लती को जिंदगी भर के लिए अपने साथ ढोते मत चलो। अगर जिंदगी भर उस ग़लती को बरकरार रखोगे तो ये ग़लतियाँ जिंदगी भर हमें परेशान करती रहेंगी। जैसे ही ग़लती का एहसास हुआ, एहसास होते ही उसे सुधार लिया। लड़के से ग़लती हो जाए तो आप क्या करते हो? ग़लती का एहसास होते ही उसका कान मरोड़ते हैं। आपको भी जैसे ही अपनी ग़लती का एहसास हो जाए तो झट से अपना कान मरोड़ लीजिएगा। खुद का अनुशासन खुद पर लागू कीजिए और इस तरह ग़लती को अपनी जिंदगी में से बाहर निकाल दीजिए। पेंसिल के ऊपर रबर इसीलिए रखा जाता है ताकि ग़लती सुधारी जा सके।पेंसिल का पाँचवाँ नियम - वह जो कुछ लिखती है, जैसा लिखती है वही आने वाले कल के लिए पद-चिन्ह बना करता है। __ तुम हमेशा ऐसी चीजें लिखकर जाओ कि आने वाला कल तुम्हारे पदचिन्हों का अनुसरण कर सके। या तो अपनी जिंदगी में सौ किताबें लिख डालो, ताकि लोग तुम्हें पढ़कर अपनी जिंदगी संवार सकें या फिर ऐसा जीवन जी जाओ किलोग तुम पर सौ किताबें लिखे,दो में से एक रास्ता अवश्य हो।मैंने कहा या तो अपनी तरफ से सौ किताबें लिख जाओ ताकि ये दुनिया तुमसे प्रकाश पा सके या 60/ For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फिर ऐसी महान जिंदगी जी जाओ कि लोग तुम पर सौ किताबें लिख सकें। अपने टेलेंट को, अपनी प्रतिभा को ऐसा ज़रूर बना लो। आप लोग परिवार में रहते हैं तो मैं कहना चाहूँगा कि परिवार का माहौल ऐसा बनाएँ कि वह प्रतिभा के अनुरूप हो, प्रतिभा को जगाने के अनुरूप हो। अमुमन महिलाएँ कहती हैं - साहब, हमारा बच्चा दिन भर टी.वी. के आगे पड़ा रहता है, ये आम शिकायतें मिलती हैं। मैं कहना चाहूँगा कि वह दिन भर इसलिए टी.वी.के आगे पड़ा रहता है क्योंकि आपके घर में उसके मनोरंजन और ज्ञान-प्रतिभा को जगाने के लिए अन्य जो साधन चाहिए वे नहीं हैं। हर घर में एक लाइब्रेरी, हर घर में एक मिनी पुस्तकालय ज़रूर होना चाहिए। हर घर में चलचित्र कथाएँ रखो, रंगीन किताबें रखों, कहानियों की किताबें रखो। बच्चों को अगर मन के अनुरूप विषय मिलेंगे, किताबें मिलेंगी तो कौन आदमी टी.वी. के पास जाकर चिपकेगा? हम अपने घर के बच्चों की प्रतिभा को जगाने वाले साधन रखते नहीं हैं, तो वह टी.वी. के डिब्बे के आगे जाकर चिपकेगा। लोग कहते हैं कि साहब हमारे बच्चे चॉकलेट बहत खाते हैं तो भाई अपने घर में रोजाना ले देकर दो फल्के बनाते हो और लौकी की सब्जी बनाकर रख देते हो तो अब वह चॉकलेट या पिज्जा नहीं खाएगा तो क्या करेगा? थोड़ा टेस्ट चेंज करो। कभी इडली बनाओ, कभी डोसा बनाओ, कभी पिज्जा बनाओ।कभी ये करो कभी वह करो। बच्चे को याद भी नहीं आयेगा कि बाजारू चॉकलेट या पिज्जा खाया जाए। चॉकलेट खाने से दाँत खराब होते हैं. पर घर में करे क्या? मम्मी ले देकर वही लौकी की सब्जी बनाती है। अब वो आज का छोरा लौकी खाए? जो गायों को नहीं खिलाते वह बच्चों को खिलाते हो, तो फिर वो इधर-उधर की चीजें खाएगा। टमाटर की खट्टी-मीठी सब्जी बनाकर देखो, भिंडी की कुरकुरी सब्जी बनाकर देखो और बहत सारी सब्जियाँ हैं, बनाकर देखो तो सही बच्चों को कैसे भाती है? बच्चों का खाना बच्चों के हिसाब से होना चाहिए। जीवन केवल एक रंग से नहीं बनता। क्या एक रंग से इन्द्र-धनुष बन जाता है? इन्द्र-धनुष को बनाने के लिए कई तरह के रंग समाविष्ट करने पड़ते हैं। आपके बच्चे आपसे किसी तरह की जिज्ञासा करे तो यह मत कहना कि जा अपने बाप से पूछ, माथा खा गया।अरे भाई वह आपसे जिज्ञासा कर रहा है। आपने एक बार उसे डाँट दिया तो दुबारा वह पूछेगा नहीं, परिणाम यह निकलेगा कि बच्चे के भीतर उसका जो टेलेंट जग रहा था, प्रतिभा जग रही थी, ज्ञान की जो प्यास जग | 61 For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही थी, हमने उसके ज्ञान की पूर्ति की नहीं और परिणाम क्या निकला? बच्चे इसी कारण से मंदबुद्धि, जड़बुद्धि बनते हैं, क्योंकि माँ-बाप उनकी जिज्ञासाओं की पूर्ति नहीं करते। आप ऐसा कीजिए बहिन जी कि अगर आपको ज़वाब आता है तो दीजिए, नहीं तो यह कहिए बेटा, यह तेरा सवाल मुझे नहीं आता, कल तेरे पापा से पूछकर बताऊँगी।अगर पापा से पूछा और पापा से भी संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो बेटे की चिमटी भरने की बजाय कहिए बेटा कल मैं तेरी मैडम से पूछूगी और फिर बताऊँगी, और कोई न मिले तो मुझे आकर पूछ लीजिएगा, पर बच्चे की प्रतिभा की, उसके टेलेंट की हत्या मत कीजिएगा। बच्चा आपसे जिज्ञासा रख रहा है, उसकी जिज्ञासाओं की पूर्ति कीजिए। जिज्ञासा प्रतिभा-जागरण की पहली सीढ़ी है। ___ अपने बच्चे के टेलेंट को आगे बढ़ाने के लिए उनको विद्यालय बेहतर से बेहतर दीजिए, अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करवाइए, क्योंकि बेहतर शिक्षा नींव का काम करती है। बहुत अच्छे-अच्छे विद्यालय हैं। हमारी जो सरकारी स्कूलें हैं उनकी हालत तो बहुत पतली होती जा रही है। हमारे देश में विद्यालय तो खूब बन गए। देश का 30 प्रतिशत धन केवल शिक्षा पर खर्च हो रहा है, लेकिन कोई भी आदमी अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहता। विद्यालय तो बन गए, विद्यालय की बिल्डिंग बन गई, विद्यालय में टीचर भी चले गए, मगर पढ़ने-पढ़ाने का वहाँ स्तर नहीं है। लोग समझते हैं, सरकारी स्कूल में कच्ची बस्ती के लोग पढ़ते हैं। हाँ, हमारे देश को अगर केवल कच्ची झोंपड़ बस्ती को ही पढ़ाना है तो सरकारी स्कूल जैसी चल रही है, वैसी ही चलने दो, पर अगर लगता है कि हमें अपने देश के आने वाले कल का निर्माण करना है तो सरकारी स्कूलों को अपना स्टैण्डर्ड उतना ही ऊँचा करना पड़ेगा, जितना कि किसी दिल्ली पब्लिक स्कूल, किसी क्रिश्चियन स्कूल, किसी हाई लेवल के स्कूल का स्टैण्डर्ड है। स्कूलों का मूल्यांकन भी सरकार को करना चाहिए। पता नहीं मध्यप्रदेश या अन्य प्रदेशों में क्या व्यवस्था है? राजस्थान में तो मैंने देखा कि वहाँ पर स्कूलों में रोजाना भोजन खिलाया जाता है। मास्टरों का काम वहाँ पर यह रह गया कि बच्चों के लिए दलिया बनाओ, रोटी-दाल बनाओ और खिलाओ। मैं सरकारों से पूछना चाहूँगा कि आपने विद्यालय खोले हैं कि भोजनशाला खोली है? अगर लगता है कि बच्चों को स्कूल तक बुलाने के लिए अन्न देने से ही कच्ची बस्ती के बच्चे 62 | For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आएँगे तो नियम और भी बनाये जा सकते हैं कि महीने में 30 दिन जिसकी हाज़िरी रहेगी उस बच्चे को हर महीने 10 किलो गेहूँ उपलब्ध होगा। जितना कम आओगे उतना गेहूँ कम होता चला जाएगा। वैसे भी सरकारी मास्टर काम-धाम करते नहीं, ऊपर से खोल दी भोजनशाला। पढ़ाई तो हो गई चौपट । और सरकारी मैडमें तो सर्दी के मौसम में लेकर बैठ जाती हैं ऊन के गोले और स्वेटरें बनाना शुरू कर देती हैं । यह हाल है! हमारे सरकारी स्कूलों का स्टैण्डर्ड ऊँचा होना चाहिए। उनमें कसावट होनी चाहिए। हमारे देश में छोटा परिवार सुखी परिवार का जो नियम बना है, बहुत अच्छा है। इसका परिणाम यह आ रहा है कि हर माँ-बाप अपने बच्चों पर पूरी ताक़त झोंक रहे हैं और दो बच्चों के निर्माण के लिए अपनी पूरी आजीविका, पूरी ताक़त लगा देते हैं। जो कच्ची झोंपड़ बस्ती के लोग हैं, न केवल उनसे बल्कि मैं तो मुस्लिम भाइयों से भी कहूँगा हो सकता है धर्म भले ही हमें रजा न देता हो लेकिन फिर भी अगर ये सारी दुनिया छोटा परिवार सुखी परिवार का उसूल अपनाती है तो ऐसा करने से अपने देश का, आपके बच्चों का सही निर्माण होगा। बच्चों के जीने का स्तर सुधरेगा। अब अगर एक पिता के सात-नौ-दस बच्चे हैं तो वो किसकिस पर ध्यान दे? कमाता तो वही मेहनत करके है। एक बच्चा, दो बच्चे अधिक से अधिक तीन बच्चे होंगे तो परिणाम यह निकलेगा कि आप भी सुखी रहेंगे, घर पर स्कूटर भी होगा, कार भी होगी। मकान भी खरीद सकेंगे और अपने बच्चों का टेलेंट भी सही ढंग से विकसित कर सकेंगे।अगर ऐसा नहीं करेंगे तो जनसंख्या तो बढ़ती जाएगी, पर आपके घर का, आपके जीवन का स्टैण्डर्ड कमज़ोर बना रहेगा। अगर स्टैण्डर्ड को ऊँचा करना है तो छोटा परिवार सुखी परिवार का मंत्र अपनाइए। __ आओ हम लोग अपने टेलेंट को जगाते हैं। बच्चे, जिनके लिए कभी माँ-बाप ने सपना संजोया था और सपना संजोकर सोचा था कि हम अपने बच्चों के रूप में अपना भविष्य बनाएँगे, मैं उन बच्चों का भविष्य बनाने की कोशिश कर रहा हूँ। बच्चो ! माँ-बाप के उन गीतों को याद करो जो उन्होंने आप लोगों के लिए गाए थे, अपन लोगों के लिए जो सपने देखे थे, माँ-बाप के द्वारा देखे गए उन सपनों को याद करो। माँ-बाप ने किस परिस्थिति में हम लोगों को पढ़ाने-लिखाने के लिए अपनी कुर्बानियाँ दी हैं उन कुर्बानियों को याद करो। | 63 For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'चंदा है तू, मेरा सूरज है तू।' मेरी माँ ने कभी मुझे यह गीत सुनाया था, लोरियाँ सुनाई थीं और लोरियाँ सुना-सुना करके मेरे व्यक्तित्व का निर्माण किया था। बहनो! आपके पास में भी आपके बच्चे बैठे हैं । उनको सुनाइए यह गीत, क्योंकि इस गीत के आधार पर प्यार भरी लोरियाँ सुनाकर हम लोग अपने टेलेंट पर गौर करेंगे और नये कल का निर्माण करेंगे। चंदा है तू, मेरा सूरज है तू, हाँ मेरी आँखों का तारा है तू। जीती हूँ मैं बस ये देख के, इस टूटे दिल का सहारा है तू। तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीपक कहूँ या तारा। मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा। चलिये अपन अपने-अपने टेलेंट को जगाते हैं, अपना टेलेंट बनाते हैं। टेलेंट जगाने की ए-बी-सी-डी सीखिए। सबसे पहले हर कोई व्यक्ति अपने बौद्धिक विकास पर ध्यान दे। हर व्यक्ति, हर छात्र-छात्रा शिक्षा के प्रति गंभीर हो । याद रखें दिमाग एक पैराशूट की तरह हुआ करता है, जो तभी काम करता है जब हम उसे खोलते हैं। हम अपनी बुद्धि पर, अपने बौद्धिक विकास पर गौर करें, बुद्धि को हम तीखी और प्रखर करें। चीज़ अगर याद न रहती हो, तो कुछ नुस्खे अपनाये जा सकते हैं। याद करने के लिए तीन फार्मूले अपनाइये। यह फार्मूला है थ्री आर का फार्मूला। पहला आर हमें कहता है - रीडिंग। कोई भी चीज़ हमें याद करनी हो तो पहला फार्मूला है मन लगाकर पढ़ो। दूसरा फार्मूला है रिवाईजिंग। जो पढ़ा है उसे दोहराओ भी। तीसरा फार्मला है राईटिंग। जो आपने पढा है, जिसे दोहराया है, उसे एक बार लिख भी डालो। पढ़ लेते हो, दोहरा लेते हो, लिख लेते हो, वो बात अपने-आप याद हो जाती है। यह थ्री आर का फार्मूला है। अपने बौद्धिक विकास के लिए अखबारों में रोजाना आने वाली पहेलियों से थोड़ा माथा लड़ाओ, शब्दों से माथा लड़ाओ, अक्षरों से, अंकों से माथा लड़ाओ। गणित के बहुत सारे फार्मूले होते हैं, रोज नई-नई तकनीकें पैदा हो रही हैं । आप भी अपने भीतर टेक्नोलॉजी डेवलप करें। अक्षरों के साथ खेलें, शब्दों के साथ खेलें । शब्दों के साथ जितना खेलेंगे, शब्द-ज्ञान उतना ही परिपक्व होगा। जी.के. की किताबें पढ़ो, जनरल नॉलेज बढ़ेगा।ऑक्सफोर्ड, लिम्का बुक, गिनीज बुक देखो, नये कीर्तिमान बनाने की प्रेरणा जगेगी। 64|| For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दों के साथ खेलने के लिए टीचर का एक शब्द याद कीजिए। जब हम लोग कॉपी में बराबर सही लिख कर आते थे तो मास्टर जी नीचे क्या लिखते थे? वेरी गुड। हम शब्द लेते हैं Good जिसका मतलब होता है अच्छा और हिन्दी में गुड का मतलब होता है - मीठा। Good के आगे अगर एस लगा दो तो क्या बन जाएगा? Goods यानी सामान। गुड में से अगर ओ हटा दो तो बन जाता है - God. गॉड यानी भगवान। गॉड में से डी हटा दो तो बन जाता है - Go. गो यानी जाओ। इस तरह शब्दों से खेलो। ढेर सारे ऐसे शब्द ढूँढे जा सकते हैं, बनाये जा सकते हैं। अपनी बुद्धि हमेशा तीखी करते रहो। यह बुद्धि तो पेंसिल है भाई। जितना छीलोगे उतना यह पेंसिल नये-नये चित्र बनाएगी और छीलोगे नहीं तो फिर पड़े रहो। यह तो बुद्धि है। यूज़ करोगे तो न्यूज़ बनेगी। लोग अपने शरीर को ताक़त देने के लिए दिन में चार दफ़ा काजू-बादाम खाते हैं, दूध पीते हैं, चाय पीते हैं, कॉफी पीते हैं, पर बुद्धि को कितना माल देते हैं? बुद्धि खाने से नहीं बढ़ती, बुद्धि तो उपयोग करने से बढ़ती है। जितना उपयोग करोगे यह बुद्धि उतनी ही आगे बढ़ेगी। बुद्धि तो लोहे की तरह है। उपयोग करोगे तो काम आएगी और उपयोग नहीं करोगे तो जंग लग जाएगी। दुनिया की हर समस्या का समाधान इंसान के दिमाग में होता है । याद रखो, जहाँ पर समस्या है, वहीं पर समाधान छिपा हुआ है। जहाँ से समस्या पैदा होती है, वहीं पर ही समाधान की किरण छिपी हुई रहती है। बौद्धिक विकास पर ध्यान दें, अपने टेलेंट को जगाने के लिए जीवन के पाठ सीखें। याद रखो इंग्लिश की कहावत जो आप लोगों ने बचपन में पढ़ी है : 'Early to bed and early to rise makes a man healthy wealthy and wise.' अगर हम रात को जल्दी सोते हैं और सुबह जल्दी उठते हैं तो ऐसा करना स्वस्थ, बुद्धिमान और धनवान होने का तरीका है। ये सब जीवन के पाठ हैं - लेसन ऑफ द लाइफ, मैनेजमेंट ऑफ द लाइफ। जीवन का यह प्रबंधन है और प्रबंधन की यहीं से शुरुआत कर लेनी चाहिए और वो है अरली ट बेड एंड अरली टू राइज मेक्स ए मैन हैल्दी, वैल्दी एंड वाइज। जिनको याद नहीं है याद कर लो ताकि कल से ही अपने बच्चों में यह चीज़ ढाल सको और अपने जीवन में कर सको। | 65 For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगला सूत्र : काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च। अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थीः पंच लक्षणं॥ जो व्यक्ति विद्या अर्जन कर रहा है उसके पाँच लक्षण हैं। पहला है काकचेष्टा। उसकी कोशिशें कौए की तरह होनी चाहिए। कौए को कोई एक्सीडेंट में मरा हुआ नहीं देख पायेगा, इतना चतुर और सावधान रहता है। बको ध्यानं - बगुले की तरह ध्यान होना चाहिए, श्वान निद्रा - कुत्ते की तरह नींद होनी चाहिए। कुत्ता एक चुटकी में ही रात में जग जाया करता है, इसलिए घर के लोग सो जाते हैं, पर कुत्ता हमेशा जगा हुआ रहता है। वह सोकर भी जागरूक रहता है। विद्यार्थी को भी, कुत्ते की तरह नींद लेनी चाहिए। यूँ नहीं कि पड़ गये तो अब सुबह 11 बजे ही उठेंगे। सुअर की नींद मत सोओ भाई, कुत्ते की नींद सोओ। अल्पाहारी - पढ़ाई अगर करनी है तो डटकर मत खाओ, थोड़ा-थोड़ा खाओ। ज्यादा खाओगे तो आलस पैदा होगा, प्रमाद आएगा और थोड़ा-थोड़ा खाओगे तो एनर्जी मिलेगी, पर एक्टिव रहोगे। गृहत्यागी - अगर सही में पढ़ना चाहते हो तो घर का मोह छोड़ दो। घर में नहीं पढ़ सकते, किसी छात्रावास में चले जाओ। वहाँ पर दिन भर सुबह से लेकर रात तक पढ़ाई होगी क्योंकि सारे छात्र ही पढ़ाई करते हुए नज़र आएँगे तो अपने आप पढ़ाई होगी। घर में रहोगे तो मटरगश्ती याद आएगी, स्कूल-गुरुकुल में रहोगे, तो पढ़ना-लिखना याद आएगा। जैसा वातावरण, वैसा परिणाम! मैं इसीलिए कहता हूँ कि अगर अपने बच्चों को कमाना सिखाना हो, पाँवों पर खड़ा करना हो तो उनको घर से बाहर निकालो और पढ़ाई करना सिखाना हो तो भी घर से बाहर निकालो। घर में आएगा तो बोलेगा कि मम्मी यह सब्जी नहीं भाती, वह सब्जी नहीं भाती, पर छात्रावास में रहेगा तो ठंडी सब्जी भी खानी पड़ेगी। जो नहीं भाती है वह सब्जी भी चलानी पड़ेगी। यही तो जीवन को जीने का तरीका सीखना हुआ कि सब चीज़ों से समझौता करो और ज्ञान का अर्जन करो। इसीलिए तो पहले जमाने में बारह-बारह साल तक गुरुकुल में बच्चे रहते थे और वहाँ से जो पढ़कर निकलते, उनको टक्कर देने वाले लोग फिर दुनिया में कहीं नहीं होते थे। बारह साल जमकर पढ़कर आये हैं। यहाँ तो कभी बर्थडे मनाना याद आता है, कभी आइस्क्रीम खानी याद आती है। ले देकर सारे छोरे पैसों का हलाल करते हैं। अपने केरियर का निर्माण नहीं करते । केवल मटरगश्ती में ही 66| For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी पढ़ाई के दिनों की इतिश्री कर बैठते हैं। ___ जीवन के पाठ सीखो। मैं तो कहूँगा हिन्दुस्तान में पढ़ाई के जो तरीके हैं उन्हें जीवन-सापेक्ष बनाया जाना चाहिए। असे अनार, आ से आम, इ से इमली, ई से ईख, उ से उल्लू, ऊ से ऊन यह पूरा हिन्दुस्तान यही पढ़ाई करके आया है इसलिए सब लोगों को याद यही है। मुझे नहीं पता कि अ से अनार, आ से आम, इ से इमली, ई से ईख, उ से उल्लू सीखने से क्या मिला इस देश को। मैं चाहूँगा इस देश में अब नई पढ़ाई की तकनीकें विकसित की जाएँ। वही बीस साल, तीस साल पुरानी किताबें आज भी चल रही हैं। अरे उस समय लोगों में अक्ल कम थी, सो असे अनार पढ़ाते थे। आ से आम सिखाते थे, अब तो अक्ल आ गई। ___अब तो घर-घर में एम.बी.ए., चार्टर्ड एकाउन्टेंड लोग बैठे हैं, पूरा देश अब तो पढ़ लिख गया। तीस साल पहले मैं भी जो किताबें पढ़ता था वही देख रहा हूँ आज भी है। लगभग वैसी की वैसी जबकि दुनिया कहीं-की-कहीं पहुंच गई। हमारे यहाँ पर जो लोग एम.एल.ए. और एम.पी. बनकर देश को चलाने के लिए जाते हैं, पता नहीं उनका ग्रेजुएट होना क्यों ज़रूरी नहीं है । एम.एल.ए. अगर कोई व्यक्ति बन रहा है तो कम-से-कम उसका ग्रेजुएशन तो होना ज़रूरी है। वह आदमी देश को क्या चलाएगा जो अब तक ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन न कर पाया। ऐसे अनपढ़ों को विधानसभा और लोकसभा में मत भेजो । उनको भेजना है तो किसी गौशाला में भेजो ताकि वहाँ अपनी सेवाएं दे पाएँ। जैसे चुनाव आयोग वाले लिखते हैं कि चुनाव में इतना ही खर्च कर सकोगे अथवा दो बच्चों से ज़्यादा होंगे तो चुनाव के लिए योग्य नहीं माने जाओगे तो मैं चाहूँगा कि भारत का चुनाव आयोग, मेरी इस बात पर ज़रूर गौर करे कि इस देश में एम.एल.ए. के पद पर वही खड़ा हो सकेगा जो कम-से-कम ग्रेजुएट तो पास हो ही। अनपढ़ लोगों को हमारी लगाम मत थमाइए क्योंकि ये नेता हमारे देश को चलाते हैं और देश में हम भी हैं। हम अपनी लगाम ऐसे लोगों के हाथ में नहीं सौंपना चाहते तो अशिक्षित या अपराधी हों। भला, जब ऑफिसर का पढ़ा-लिखा होना ज़रूरी है, वो ऑफिसरों पर हुकुम चलाने वाला शिक्षा के स्तर से योग्य क्यों न हो? शिक्षित और शिक्षा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। शिक्षा ही हर समाज और देश की नींव है। बेहतर होगा शिक्षा की तकनीकें बदल दी जाएँ। अब स्कूलों में अन्न मत भेजो। हर स्कूल में कम्प्यूटर भेजो, ताकि हर बच्चा आने वाले कल के लिए अन्तरिक्ष तक पहुँचने के काबिल बन सके। अगर आपको दान देना है तो 67 For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्कूल में केवल बच्चों की ड्रेसें मत देते रहिए। ऐसे कम्प्यूटर या नई-नई तकनीकों को स्कूलों में भेजिए जिससे बच्चों की प्रतिभाएँ सही तौर पर मुखर होकर आएँ। अब विद्या का युग आ गया है। खूब विद्यालय बनाओ, उच्च विद्यालय बनाओ, भले ही कोई व्यक्ति इससे व्यापार ही क्यों न करे। व्यापार करेगा आदमी तो कमाएगा तो सही। कपड़े का व्यापार करेगा तो भी कमाएगा और किरयाणे का व्यापार करेगा तो भी कमाएगा। भले ही तुम एज्यूकेशन के नाम पर कमा लो, पर हाई लेवल की तकनीकें इस मानव-समाज को समर्पित करो। अब तक आप लोगों ने अ से अनार की वर्णमाला सीखी है। मैं आप लोगों को जीवन की वर्णमाला सिखा देता हूँ। अब तक आपने पढ़ा है - असे अनार, आ से आम, इ से इमली, उ से उल्लू। मैं जो तकनीक दे रहा हूँ वह वर्णमाला जीवन की है। अ से अदब करो। आ से आत्मविश्वास रखो। इ से इबादत करो, ई से ईमानदार बनो। उ से उत्साह रखो। ऊ से ऊर्जावान बनो। ए से एकता रखो। ऐ से ऐश्वर्यवान बनो। ओ से ओजस्वी बनो। औ से औरों की सेवा करो। अं से अंगप्रदर्शन मत करो। __इसी तरह क से कर्म करो, ख से खरे बनो, ग से गरिमा रखो, घ से घमण्ड मत करो। च से चरित्रवान बनो, छ से छलो मत, ज से जलो मत, झ से झगड़ो मत।ट से टकराओ मत, ठ से ठगो मत, ड से डरो मत, ढ से ढलना सीखो। त से तत्पर बनो. थ से थको मत, द से दया करो, ध से धर्म करो, न से नरम बनो।पसे परिश्रम करो, फ से फर्ज़ निभाओ, ब से बलवान बनो, म से महान बनो। य से यकीन करो, र से रहम करो, ल से लक्ष्य प्राप्त करो, व से वचन निभाओ। ष से षडयंत्र मत रचो,श से शर्म करो, स से समय के पाबंद बनो। ह से हँसमुख बनो, क्ष से क्षमा करो, त्र से त्राहि मत मचाओ और ज्ञ से ज्ञानी बनो। यह हुई जीवन की वर्णमाला, अपने बच्चों को पढ़ाओ। अगर कोई बच्चा केवल जीवन की यह वर्णमाला भी जीवन में चरितार्थ कर ले तो समझ लेना कि जीवन की एम.बी.ए. हो गया। शिक्षा केवल वह नहीं है जो हमें एम.ए. करवाए। सच्ची शिक्षा तो वह है जो हमें एम.ए. के साथ एन भी बनाए। एम ए एन = मैन यानी मनुष्य बनाए। इंस्टीट्यूट में जाकर आप एम.बी.ए. करेंगे। यानी बिजनेस मैनेजमेंट सीखेंगे। बिजनेस मैनेजमेंट बाद में सीखें, पहले लाइफ मैनेजमेंट तो सीख लें। बिजनेस 68/ For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैनेजमेंट लाइफ मैनेजमेंट का हिस्सा है। बिजनेस में सुपर बनो, पर लाइफ मैनेजमेंट में भी उतने ही जागरूक और सफल बनो। भले ही दूसरे लोग कपड़े और पहनावे से सभ्य कहलाते हों, पर आप अपने आचरण और चरित्र से स्वयं को सभ्य बनाएँ। अच्छा लक्ष्य रखें, अच्छा व्यवहार करें, अच्छी और मीठी भाषा का इस्तेमाल करें। विश्वास रखें, ईश्वर सदा उनके साथ रहता है जो जीवन का सहीसार्थक उपयोग करते हैं । सुख और समृद्धि की रोशनी सबके लिए है, बस ज़रूरत है अपनी प्रतिभा की खिड़की खोलने की। लोग अपने दुखों के गीत गाते हैं, होली हो या दिवाली, सदा मातम मनाते हैं। मगर दुनिया उन्हीं की रागिनी पर झूमती है, जो जलती चिता पर बैठकर वीणा बजाते हैं। भले ही प्रिंसिपल हमें इस्तीफे के लिए मज़बूर क्यों न करे, पर उस युवा लेक्चरार की तरह हम खुद पर आत्मविश्वास रखें। जिसके पास प्रतिभा है, काबिलियत है, वह देश में रहे या विदेश में, सर्वत्र सम्मानित होगा। वह धनवान भी होगा और महान भी। आओ, अपने टेलेंट के प्रति गंभीर बनो। नया टारगेट बनाओ। आने वाला कल तुम्हारा होगा। | 69 For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जितनी बड़ी सोच उतना बड़ा जादू किसी समय श्री भगवान के समक्ष उनका प्रिय शिष्य पहुँचा और अनुरोध करने लगा – भंते ! आपका धर्म बड़ा दिव्य है, आपके धर्म का पथ बड़ा कल्याणकारी है। मैं आपके प्रेम और शांति के पथ को, करुणा और अहिंसा के मार्ग को अंग-बंग और कलिंग देशों तक पहुँचाना चाहता हूँ।' भगवान ने अपने प्रिय शिष्य को एक नज़र से देखा और कहा – वहाँ के लोग बड़े क्रूर, निर्दयी और हत्यारे किस्म के हैं, तुम ऐसे देशों में जाने का भाव त्याग दो। शिष्य ने कहा – 'भंते ! मुझे पता है कि वहाँ के लोग निर्दयी हैं , क्रूर हैं, लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। बस, इसीलिए मैं वहाँ जाना चाहता हूँ।' भगवान अपने शिष्य की बात सुनकर चौंके। वे कहने लगे - अगर तुम्हारी इच्छा है तो मैं तुम्हें मना तो नहीं करूँगा, लेकिन तुम जाओ, उससे पहले मैं तुमसे एक प्रश्न अवश्य पूछ लेना चाहूँगा। प्रश्न यह है कि अगर तुम ऐसे देशों की तरफ गए और वहाँ के लोगों ने तुम्हारे साथ ग़लत या अभद्र व्यवहार किया तो तुम्हारे मन में क्या होगा? शिष्य मुस्कुराया और कहने लगा – 'भंते ! आप मुझसे प्रश्न पूछते हैं? मेरे मन 70 For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में होगा कि ये लोग कितने भले हैं जो मेरे साथ केवल ओछा व्यवहार करते हैं, ग़लत और अभद्र व्यवहार करते हैं, कम-से-कम मुझे थप्पड़, मुक्का तो नहीं मारते !' भगवान आधे मिनिट के लिए चुप हुए और फिर कहने लगे ' अगर ऐसा है तो मेरा अगला प्रश्न है कि अगर उन्होंने तुम्हें थप्पड़ और मुक्के मारे, तो तुम्हारे मन में क्या होगा?' शिष्य फिर मुस्कुराया और कहने लगा 'भगवन् ! तब मेरे मन में यह होगा कि ये लोग कितने भले हैं जो केवल थप्पड़ और मुक्का ही मारते हैं, तीर, बरछी और भाला तो नहीं चलाते ?' भगवान को इस जवाब की उम्मीद नहीं थी। भगवान ने तब कहा कि मेरा अंतिम प्रश्न है कि वहाँ के लोगों ने अगर तुम पर तीर, बरछी और भाला ही चला दिए और अगर तुम्हारे प्राण लेने को ही उतारू हो गए तो तुम्हारे मन में क्या होगा? शिष्य ने गौरव से सिर ऊपर उठाते हुए कहा - 'भंते! तब मेरे मन में होगा कि मैं भगवान के जिस प्रेम और शांति के पथ को आगे बढ़ाने के लिए अंग, बंग और कलिंग जैसे अनार्य देशों की तरफ निकला था मैं उस पथ को स्थापित करने में पूरी तरह सफल हुआ। अपने शरीर व प्राणों का त्याग करते समय ये भाव होंगे कि हे प्रभु! मैं आपका वह शिष्य साबित हुआ जो आपके प्रेम और शांति के मार्ग को स्थापित करने में काम आया।' और तब श्री भगवान अपने शिष्य के सिर पर हाथ रखते हुए कहते हैं - 'जिस व्यक्ति के भीतर विपरीत हालात में भी इस तरह का धैर्य और शांति का भाव रहा करता है वही मेरे प्रेम और शांति के मार्ग को जन-जन तक पहुँचाने में सफल हो सकता है ।' तब भगवान ने कहा - 'जाओ वत्स ! मैं तुम्हें अनुमति देता हूँ, क्योंकि तुम जैसे शांत, प्रबुद्ध लोग धरती पर जहाँ-जहाँ जाएँगे, वहाँ हर जगह प्रेम और शांति की स्थापना करेंगे।' शिष्य वहाँ से निकल पड़ा श्री भगवान का आदेश और आशीर्वाद लेकर। शिष्य तो वहाँ से निकल पड़ा लेकिन जीवन का एक बुनियादी पाठ, एक महत्त्वपूर्ण पैग़ाम हम सब लोगों के लिए छोड़कर चला गया कि अगर किसी भी व्यक्ति के जीवन में विपरीत हालात आ जाए तो उन विपरीत हालातों में भी अपने धैर्य और शांति को बरकरार रखना चाहिए । इसी का नाम है 'सकारात्मक सोच'। - कोई अगर मुझसे पूछे कि समारात्मक सोच क्या है तो मैं कहना चाहूँगा कि किसी के द्वारा उपेक्षा दिये जाने के बावजूद हमारे द्वारा अगर उसका सम्मान किया जाता है, अपमान दिये जाने के बावजूद अगर हमारे द्वारा सद्व्यवहार लौटाया जाता है, तो इसका नाम है सकारात्मक सोच । सकारात्मक सोच और नकारात्मक | 71 For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोच इंसान के भीतर दो तरह की धाराएँ चलती हैं, दो तरह की सोच और विचारधाराएँ चलती हैं। एक है 'सकारात्मक' और दूसरी है नकारात्मक'। जहाँ-जहाँ सकारात्मक धाराएँ बहती हैं वहाँ-वहाँ व्यक्ति के साथ जीवन का प्रसाद और पुरस्कार जुड़ते हैं और जहाँ-जहाँ नकारात्मक धाराएँ बहती हैं वहीं-वहीं पर जीवन में विषाद और अवसाद हमें घेर लिया करते है। ईर्ष्या, क्रोध, तनाव, चिन्ता, अहम् ये सब व्यक्ति के नकारात्मक सोच और नकारात्मक विचार-धाराओं के परिणाम हैं। प्रेम, शांति, करुणा, आनंद, भाईचारा, एक दूसरे को निभाने की सद्भावना इसी का नाम है 'सकारात्मक सोच'। अगर कोई मुझसे पूछे कि मेरे जीवन के स्वस्थ, प्रसन्न और मधुर रहने का सीधा सरल राज क्या है तो मैं ज़वाब दूंगा कि मेरी सकारात्मक सोच ही मेरे स्वस्थ, प्रसन्न और सदाबहार मधुर रहने का आधार है। शायद आज तक दुनिया में अनेक-अनेक तरह के मंत्र बने होंगे। किसी ने नवकार मंत्र बनाया, किसी ने गायत्री मंत्र बनाया या किसी ने कोई और मंत्र बनाया होगा। मैं नहीं जानता कि दुनिया में किस व्यक्ति को कौन से मंत्र का जाप करने पर कौन-सा फायदा हुआ, लेकिन मैं जिस मंत्र की बात कहता हूँ, जो मंत्र सारी दुनिया को दिया करता हूँ, वह आज तक कभी निष्फल नहीं हुआ, आज तक कभी व्यर्थ साबित नहीं हुआ और वह मंत्र, महामंत्र है 'सकारात्मक सोच' का मंत्र। शायद और कोई मंत्र का जाप करो तो आपको संदेह हो सकता है कि मैंने अब तक एक लाख जाप कर लिया, मगर फिर भी परिणाम न आया। अरे, मैं तो कहूँगा कि एक लाख की बात छोड़ो, यदि सकारात्मक सोच को कोई व्यक्ति 3 मिनट के लिए भी अपना लेता है तो वह अपने आने वाले 30 मिनट को आनंददायी बना लेता है। जो अपने 30 मिनट को सकारात्मक बना लेता है वह अपने 30 घंटों को सुखदायी बना लेता है। जो अपने 30 घंटों को सकारात्मक बनाता है वह अपने 30 दिनों को सफल बनाता है। जो व्यक्ति 30 दिनों को सकारात्मक बनाता है वह अपने 3 वर्षों को सार्थक बनाता है और जो आदमी 3 वर्षों को सकारात्मक बनाता है वह अपनी जिंदगी के 30 सालों को सकारात्मक बनाने में सफल हो जाता है। जिस आदमी ने अपने 30 साल सकारात्मकता को समर्पित कर दिये उसके पास कभी क्रोध, ईर्ष्या, तनाव, चिंता की छाया भी नहीं मंडरा सकती।शायद और कोई मंत्र का जाप करेंगे तो उस जाप को करने के लिए आपको घंटों तपना पड़ेगा, जपना पड़ेगा, पर सकारात्मक सोच के मंत्र को अपनाने 72| For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के लिए करना - धरना कुछ नहीं है, केवल अपनी मानसिकता को तैयार करना है, केवल अपने एटीट्यूट को, केवल अपने दृष्टिकोण को तैयार करना होगा और यही एकमात्र दृष्टिकोण ऐसा होगा जो हर हालात में, हर परिस्थिति में, हर वातावरण में, हर मौसम में आपको सुखी रखेगा, मधुर रखेगा, आनंदपूर्ण रखेगा। सकारात्मक दृष्टिकोण हर विपरीत हालात में भी विजय प्राप्त करने का रास्ता आपको अपने-आप सुझा देगा । एक बार 1 से 9 तक के अंक क्रमश: खड़े थे। किसी बात को लेकर 9 के मन में ईगो पैदा हो गया। उसने आव देखा न ताव, 8 के गाल पर थप्पड़ दे मारा। 8 को बुरा लगा। वह अपने बड़े भाई 9 को तो मार न पाया सो अपना गुस्सा उसने 7 पर निकाला। उसने 7 के गाल पर चाँटा जड़ दिया। 7 ने अपना गुस्सा 6 पर निकाला, 6 ने 5 पर, 5 ने 4 पर, 4 ने 3 पर, 3 ने 2 पर और 2 ने 1 पर अपना गुस्सा निकाला । 1 के गाल पर जैसे ही चाँटा पड़ा वह चकरा गया। उसके बगल में 0 था । उसने गुस्सा करने की बजाय थोड़ा-सा सकारात्मक चिंतन किया कि अगर मैंने 0 के चाँटा मारा तो मेरी भी वही हालत होगी जो बाकी सब अंकों की हुई । 1 ने थोड़ासा धीरज रखा। वह 0 के पास गया और उससे हाथ मिलाते हुए उसके पास जाकर खड़ा हो गया। सबका घमंड़ चूर हो गया । सब नीचे जमीन पर लुढ़के थे । क्योंकि सामने 1 और 0 मिलकर 10 का अंक खड़ा था । सकारात्मक सोच का मंत्र हमें सिखाता है कि हम भी आपस में मिलें। न तो अकेले 1 की क़ीमत है और न ही अकेले 0 की । क़ीमत है तो 10 की। सोच अगर सकारात्मक है तो बंद रास्तों में भी सूरज की रोशनी आने के लिए द्वार खुला रहता है । कहते हैं कि अगर इंसान की क़िस्मत फूट जाए तो उसके जीवन के निन्यानवें द्वार बन्द हो जाते हैं, पर एक द्वार ईश्वर फिर भी उसके लिए खुला रखता है । मैं कह देना चाहता हूँ कि हमारी ज़िंदगी के निन्यानवें द्वार अगर बन्द भी हो जाएँ, काका भी रूठ जाए, दादा भी रूठ जाए, घरवाली भी नाराज़ हो जाए, बेटे भी छोड़ कर चले जाएँ, तब भी अपनी जिंदगी में एक दरवाज़ा हमेशा खुला रखो और वह है सकारात्मक सोच का दरवाज़ा। अपनी सोच का यह दरवाज़ा हमेशा खुला रखिए। अगर यह एक द्वार खुला है तो समझो जीवन के शेष 99 द्वार खुले ही हैं । सकारात्मक सोच जीवन की 99 प्रतिशत समस्याओं का समाधान निकालने में एक अकेली समर्थ है। जो व्यक्ति जितना ज़्यादा सकारात्मक सोच का मालिक बनेगा वह उतना ही स्वस्थ- सफल होगा, मधुर रहेगा, आनंदपूर्ण होगा। For Personal & Private Use Only 73 Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मक सोच से बढ़कर कोई धर्म नहीं होता और नकारात्मक सोच से बढकर कोई अधर्म नहीं होता। सकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पुण्य नहीं होता और नकारात्मक सोच से बढ़कर कोई पाप नहीं होता। यह तो वह मंत्र है, वह दिव्य रास्ता है जिस पर चलने वाले हर व्यक्ति को रोज़ाना फूल ही फूल नज़र आते हैं। भला लड़ाई तो तब होगी जब हम आधे गिलास को खाली देखेंगे, पर वहाँ पर तो हमेशा समझौता ही समझौता होगा जहाँ पर हम आधा गिलास को सदा भरा देखेंगे। अगर बहरानी के पीहर से दो किलो मिठाई आई और अगर हम कहेंगे, 'अरे! भेजा क्या है? केवल दो किलो मिठाई भेजी है।' हमारी यह नकारात्मक सोच हमारी बहरानी के मन में खटास घोल देगी और वहीं अगर हम कहेंगे 'अरे! देखो भई, देखो। लाख रुपये की बेटी दे दी, पढ़ा - लिखाकर तैयार करके हमें बेटी दी और ऊपर से रोजाना मिठाइयाँ भी भेजते रहते हैं।' बहरानी जैसे ही इन शब्दों को सुनेगी तो कहेगी, अहो ! मेरे पापा कितने अच्छे हैं ! जो केवल दो मिलो मिठाई के आने पर भी कहते हैं कि कितना-कितना माल भेजा है। अरे इतना सम्पन्न घर है, इनके लिए दो किलो मिठाई की क्या औकात? फिर भी यह मेरे पापा का सकारात्मक दृष्टिकोण, मेरे पापा के सकारात्मक व्यवहार का परिणाम कि ये मेरी तारीफ़ कर रहे हैं, दो किलो मिठाई की भी प्रशंसा कर रहे हैं।' मिठाई वही है, दो किलो। दो किलो को हम ढाई किलो कर नहीं सकते, पर अगर हम अपनी सोच को, अपनी भाषा को सकारात्मक बना लें तो उसी दो किलो मिठाई से हम घर को ख़ुशहाली से भर सकते हैं, नहीं तो वही दो किलो मिठाई पाकर हम घर में खटास और ज़हर घोल बैठते हैं। जिंदगी में चाहने के नाम पर एक ही तो चीज़ चाहिए कि हमारी सोच ठीक हो जाए, बाकी किसी के घर में कोई कमी नहीं है। धर्म के रास्ते भी आपको ढेर सारे सुझाए गए हैं - सामायिक, पूजा, प्रार्थना, प्रतिक्रमण, पर एक ऐसा रास्ता है जिसके अभाव में हमारी सामायिकें व्यर्थ हो जाती हैं। जिसके अभाव में बहरानी कहती है -'क्या मम्मीजी सामायिक करके आये हैं। सामायिक करके आते ही घर में झगड़ा शुरू कर देती है। यानी हमें सामायिकों का रास्ता तो खूब मिल गया, पर जब तक सकारात्मक सोच का रास्ता नहीं मिलेगा, सामायिक ( एक प्रकार का व्रत जिसमें एक घंटे तक समता-भाव की आराधना होती है।) करके भी तुम आलोचना के पात्र बनोगे। प्रतिक्रमण करके भी अपने पापों को दोहराते रहोगे। पूजा करके भी दूध में पानी मिलाने का धंधा करते रहोगे। 74| For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन में प्रेम और मिठास घोलने के लिए, रिश्तों को एक-दूसरे के क़रीब लाने के लिए अगर कोई रास्ता हर हाल में, हर रूप में, हर परिस्थिति में हम लोगों को अख्तियार कर लेना चाहिए तो वह है सकारात्मक सोच का रास्ता । अगर बड़े-बुज़र्ग डाँट दे तो बुरा मत मानना । अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा? अब अगर ग़लती होने पर मुझे मेरी मम्मी नहीं डाँटेगी तो क्या सड़क चलता हुआ कोई दूसरा आदमी हमें टोकेगा । हमारी ग़लतियों को सुधारने का काम तो हमारे अभिभावक और बुजुर्ग ही करेंगे। हाँ, अगर नकारात्मक सोच ला बैठे तो घर टूट जायेगा, रिश्तों में खटास आ जाएगी, सासू और बहू के बीच में कैंचियाँ चलने लग जाएँगी और तब लगेगा कि जब देखो तब मम्मी हमेशा टू-टू, टीं-टीं कुछ-न-कुछ करती रहती है। प्रभु मेरे, बड़े अगर डाँटें तो सकारात्मक सोच रखिये कि अब अगर बड़े-बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेंगा ? अगर छोटे बच्चों से ग़लती हो जए तो सीधा थप्पड़ मारने की बजाय सकारात्मक सोच रखिएगा कि अब छोटे बच्चों से ग़लती नहीं होगी तो किससे होगी। I छोटे बच्चों से, बहूरानियों से ग़लती होनी स्वाभाविक है । अब आपकी बहू कोई सासू माँ तो है नहीं, 60 वर्ष का उसके पास अनुभव नहीं है। आपका बच्चा 18 साल का बच्चा है। हम उसकी 60 साल के साथ तुलना क्यों करते हैं? आपके पास जितना अनुभव है उतना उसके पास थोड़े ही है। छोटे बच्चों की ग़लतियों को माफ़ कर दो और बड़े अगर डाँट दें तो उनके प्रति सहज भाव लाओ कि बड़े बुजुर्ग नहीं डाँटेंगे तो कौन डाँटेगा। ये जो दोनों हालातों में हमारी सोच को ठीक रखने का काम है, इसी का नाम है 'सकारात्मक सोच' । सकारात्मक सोच यानी बड़ी सोच और बड़ी सोच का जादू हमेशा बड़ा ही होता है । - लोग अगर सकारात्मक सोच के इस एक पथ को अपना लेते हैं तो तन-मनजीवन सब पर इसका सीधा प्रभाव पड़ेगा। सबसे पहले तो हमारी सेहत, हमारे स्वास्थ्य, हमारी मानसिकता पर सकारात्मक सोच का सीधा प्रभाव पड़ता है । गुस्सा करोगे तो क्या होगा ? आँखें लाल होंगी, स्मरण शक्ति कमज़ोर होगी, पेट की पाचन क्षमता दुर्बल हो जाएगी। ये सब हैं नकारात्मक सोच के परिणाम और नकारात्मक सोच ने हमारे स्वास्थ्य पर सदा दुष्प्रभाव ही डाला है। चिंता, तनाव, क्रोध, डिप्रेशन, भूलने की आदत - ये सब नकारात्मक सोच के परिणाम हैं। अगर इंसान अपने दिमाग से नकारात्मक सोच को हटाने में सफल हो जाए तो दुनिया की - For Personal & Private Use Only 75 www.jaindelibrary.org Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधी समस्या तो खुद-ब-खुद हल हो जाए। सकारात्मक सोच रखेंगे तो आपका दिमाग़ आपके नियंत्रण में रहेगा, आप मन और वाणी से शांत और प्रफुल्लित रहेंगे। आप जो कुछ कहेंगे उस बात में दम होगा। जैसे ही घर में विपरीत हालात बने बस एक निर्णय कर लीजिए, एक संकल्प कर लीजिए 'पॉजिटिव थिंकिंग'। हर हालत में पॉजिटिव थिंकिंग। अब यदि विपरीत हालात बन रहे हैं, पर वे विपरीत हालात आप पर किसी तरह का असर न डाल पाएँगे। आप पहले भी शांत-स्वस्थ-शीतल थे, बाद में भी वैसे ही बने रहेंगे। यही तो जीवन की जीत है। यही तो आत्म-विजय है, यही सफलता की पहली सीढी है। सफलता की सीढी यह कि विपरीत हालात में भी आप शांत रहें, धैर्यशाली रहें। विपरीत क्षणों में धैर्य रखना यही सकारात्मक सोच है और यही जीवन की जीत। ज़रा सोचकर बताओ कि अगर कोई व्यक्ति सागर में अंगारा फेंकेगा तो क्या होगा? क्या आग लग जाएगी? नहीं, अंगारा बुझ जायेगा। अब तक अगर आग सुलगती रही तो इसलिये कि हमने अपने आप को सागर और सरोवर न बनाया, अपने आपको हमने पेट्रोल और डीजल की टंकी बनाकर रखा, तो परिणाम यह हुआ कि छोटी-सी बात हुई और घर में हंगामा हो गया। सास-बहू में अनबन हो गई, दो में से एक व्यक्ति अगर चन्द्रप्रभ सागर हो जाये तो सामने वाला अगर अंगारा फेकेगा तो अंगारा बुझ जायेगा और हम अगर अपने-आपको डीजल की टंकी, पेट्रोल की टंकी बनाकर रखेंगे तो छोटा-सा निमित्त, एक छोटी-सी टिप्पणी हमारा घर, हमारा परिवार, हमारे रिश्तों को धूल - धूसरित कर देगी। अरे भाई, झगडा मोल मत लो। इस दुनिया में पता नहीं, कब किस गधे को भी बाप बनाना पड़ जाए। नफरतों के उतारो छिलके, नहीं तो गिर पड़ोगे फिसल के। आदमी के भीतर ताक़त चाहिये और वह ताक़त सकारात्मक सोच की होनी चाहिए। विपरीत हालात में मात्र 10 मिनट के लिए भी सकारात्मक सोच को अपनाओगे तो भी सफल होओगे, आधे घंटे तक के लिए अपनाओगे तो बाज़ी जीत जाओगे। सोच को जो जितना सकारात्मक बनाएगा, वह उतना ही प्रतिशत सफल होगा। शत-प्रतिशत सफलता पाने के लिए हमें 200% सकारात्मकता अपनानी चाहिए। जीवन में सकारात्मक सोच का मंत्र अपनाओ। सकारात्मक सोच व्यक्ति को राम बनाती है और नकारात्मक सोच इंसान को रावण। सकारात्मक सोच 76 For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंसान को गांधी बनाती है, नकारात्मक सोच व्यक्ति को गोड्से। रावण अगर सकारात्मक सोच का मंत्र अपना लेता तो वह रावण नहीं, बल्कि राम के चरित्र को चरितार्थ कर लेता। कहते हैं : जब राम और रावण के बीच युद्ध की वेला आई तो रामजी ने अपनी ओर से राम-सेतु का निर्माण प्रारंभ करवाया। आप सबको याद होगा कि जब राम-सेतु का निर्माण हो रहा था जब वानर लोग राम-नाम लिखे पत्थरों को पानी में डालते थे और पत्थर तैरने लग जाते थे। यह खबर लंका तक पहुँची तो लंकावासियों में बड़ा विद्रोह पैदा हो गया कि राम के नाम में जब इतनी ताक़त है कि पत्थर पर राम का नाम लिख दो तो पत्थर तैरने लग जाता है, तो फिर उस राम में कितनी बडी ताक़त होगी। सभासद रावण के पास पहुँचे और जाकर कहने लगे – राजन् ! लंकावासी विद्रोह पर उतर सकते हैं । उनको लगता है कि राम के नाम में जब इतनी बड़ी ताक़त है तो स्वयं राम में कितनी अधिक ताक़त होगी। राजन! अगर आप चाहते हैं कि लंका में विद्रोह न हो तो आपको भी अपना नाम पत्थर पर लिखना होगा और पत्थर को पानी में तैराना होगा। रावण हिल गया सुनते ही। अब तक ताक़त तो बहुत बटोरी, पर रावण के नाम में इतनी ताक़त नहीं थी जिससे पत्थर पर रावण लिखा जाये और पत्थर को पानी में छोड़े और पत्थर पानी में तैरने लग जाये। सभासदों ने कहा - राजन् ! सोच लीजिये एक मिनट के लिए। रावण ने एक मिनट धैर्य से सोचा ओर सोच कर कहा कि ठीक है, हम भी पत्थर को पानी में तिरायेंगे । बुला लो सारे लंकावासियों को समुद्र के तट पर, कल सुबह चलते हैं। अगले दिन सुबह सारे लंकावासी रावण की जय-जयकार करते हुए पहुँच गये समुद्र-तट पर। मन्दोदरी राजमहल में खडी-खडी सोच रही थी कि राम का पत्थर तैरता है, बात समझ में आती है क्योंकि राम के पीछे शील की शक्ति है, सत्य और धर्म की ताक़त है, पर रावण के नाम का पत्थर तैरेगा कैसे? वह भी उत्सुकतावश देखने लगी। रावण पहुँच गया, पत्थर उठा लिया, पत्थर के ऊपर रावण का नाम लिख दिया गया, रावण ने हाथ जोड़े और पत्थर को पानी में छोड़ दिया।क्या हुआ? डूब गया? अगर डूब जाता तो रावण का समापन उसी क्षण हो चुका होता, पर पत्थर डूबा नहीं, तैर गया। जैसे ही पत्थर तैरा कि रावण की जय-जयकार हो गई। रावण गर्वोन्नत होकर अपने दस चेहरों को लिये वापस राजमहल में आया। आखिर उसके नाम का पत्थर जो तिर गया था। | 77 For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रावण सीधा मन्दोदरी के महल में पहुँचा। मन्दोदरी ने कहा -'राजन् ! मैं आपकी आरती उतारती हूँ, आपके सम्मान में मोतियों के चौक पुराती हूँ कि आपके नाम का पत्थर भी तैर गया, पर राजन् ! मुझे ज़रा यह समझा दीजिए कि आखिर इसमें क्या रहस्य है जिसके चलते वह पत्थर पानी में तैर गया?' रावण ने कहा, प्रियतमे ! अब तुमसे क्या सच छिपाना। सच्चाई तो यह है कि नाम तो मैंने पत्थर के ऊपर रावण लिखा था, लेकिन जब पत्थर को पानी में छोड़ा तो मैंने पत्थर से मन-ही-मन कहा – हे पत्थर ! तुम्हें राम की सौगंध है अगर तुम पानी में डूब गए तो। बस यह कहते हुए मैंने पत्थर को पानी में छोड़ दिया और पत्थर पानी में तिर गया। __पत्थर तो पानी में तिर गया, लेकिन हमारे लिए जीवन का पैग़ाम दे गया कि अगर कोई रावण भी राम के प्रति केवल दो-पाँच मिनट के लिए भी सकारात्मक सोच बना लेता है तो उसके नाम का पत्थर भी पानी में तैर सकता है। अगर कोई व्यक्ति अपने दुश्मन के प्रति भी दस मिनट के लिए सकारात्मक सोच बना ले, तो क्या दुश्मनी खत्म नहीं हो जाएगी? दो भाई-भाई जिनका कोर्ट में केस चल रहा है, वे ज़रा दो पल के लिए पॉजिटिव होकर सोचें तो लगेगा कि मैं किसके साथ दुश्मनी पाल रहा हूँ। बड़ा भाई पिता के समान होता है, उन्होंने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया है । अथवा छोटा भाई संतान के बराबर होता है। क्या फ़र्क पड़ता है, दो पैसे एक के पास ज्यादा गए या दूसरे के पास। आखिर घी गिरा तो मूंग में ही। राम ने कहा था - अयोध्या का राजा राम बने या भरत, इससे क्या फ़र्क पड़ता है। राम राजा बनेगा तब भी राजसुख सभी भाई भोगेंगे और भरत बना तो भी सभी भाई राजसुख भोगेंगे। काश, हमारी सोच सकारात्मक हो जाए तो कोर्ट केस खत्म हो जाए, फिर से प्रेम-मोहब्बत के द्वार खुल जाएँ। सोचो, सोचकर सोचो कि हमें नकारात्मक सोचना चाहिए कि सकारात्मक सोचना चाहिए। हमें कौनसी सोच का मालिक बनना चाहिए – 'सकारात्मक' या नकारात्मक'? गाँधीजी के तीन बंदर सबको याद हैं। पहला बंदर कहता है - बुरा मन सुनो। दूसरा बंदर कहता है - बुरा मत देखो और तीसरा बंदर कहता है - बुरा मत बोलो। गाँधीजी के ये तीन बंदर हैं। सभी लोग तीन बंदरों की इन मुद्राओं को बनाएँ और इन तीन प्रतीकों के आधार पर अपने जीवन में प्रेरणा लें। गाँधीजी के तीन बंदर तो हो गए, पर चन्द्रप्रभ के चार बंदर हैं । यह चौथा बंदर सिर पर अपनी 78 For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगुली लगाए है जो कहता है - बुरा मत सोचो। गाँधी के तीन बंदर कहते हैं – बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो। पर चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर दिमाग पर अपनी अंगुली रखकर बोलता है, बुरा मत सोचो। अगर चन्द्रप्रभ का चौथा बंदर लागू किया जाता है तो गाँधीजी के तीनों बंदर सार्थक होंगे। अगर चौथा बंदर नहीं है तो तीनों के तीनों बंदर. बंदर ही रहेंगे। पैदाइश भी बंदर की, आदि रूप भी बंदर का, आज भी बंदर ही हैं। इसीलिए आज चन्द्रप्रभ के चार बंदरों की ज़रूरत है। चौथा बंदर हमें सिखाता है कि बुरा मत सोचो। अगर आप बुरा नहीं सोचेंगे तो बुरा सुनेंगे भी नहीं, बुरा बोलेंगे भी नहीं, बुरा देखेंगे भी नहीं। अब गाँधीजी के तीन बंदर नहीं, चन्द्रप्रभ के चार बंदरों की चर्चा करो। आज हम शुरुआत ही यहीं से कर रहे हैं कि बुरा मत सोचो। क्यों न सोचें बुरा? इसलिए मत सोचो, क्योंकि हमारे शब्द ही हमारा व्यवहार बनते हैं। अपने व्यवहार के प्रति जागरूक रहो क्योंकि हमारा व्यवहार ही हमारी आदत बनता है। अपनी आदतों के प्रति जागरूक बनो, क्योंकि हमारी आदतों से ही हमारे चरित्र का निर्माण होता है। चरित्र को ठीक करना है तो व्यवहार को, आदतों को ठीक करना होगा और शब्दों को ठीक करने के लिए हमें अपनी सोच को, अपने दिमाग को ठीक करना पड़ेगा। ___ भेजा, भगवान ने भेजा है। भेजे को ठीक से उपयोग करो। अगर भेजा नहीं है, तो मुझसे कहो, मैं थोड़ा-सा भेजा भेज दूं। मैं आपके भेजे को ही ठीक कर रहा हूँ। चन्द्रप्रभ के चार बंदर भेजे को ही ठीक करने के लिए हैं। ये बंदर इतना ही नहीं कहते कि बुरा मत सोचो, बल्कि ये यह भी कहते हैं कि सोचो, अच्छा सोचो। चलो, मैं इन बंदरों को और नये अर्थ दे देता हूँ। पहला है – 'बुरा मत सुनो'। मैं आपको इसका दूसरा अर्थ दे देता हूँ। यह कान पर अंगुली है। जिसका मतलब है 'बहरे बनो'। मुँह के ऊपर हाथ रखा हुआ है, 'गूंगे बनो' । आँख के ऊपर हाथ रखा हुआ है, जिसकी प्रेरणा है, अंधे बनो' । जब-जब भी कोई हमें हतोत्साहित करे, जब-जब भी कोई हमें, निंदा-आलोचना की बात सुनाये, हमें हल्की बात कहने लगे तब-तब बहरे बनो। जब-जब भी किसी दृश्य को देखकर हमारी आँखें विचलित हो जाती हैं, हमारा मन भटक जाता है, तब-तब 'अंधे बनो'। जब-जब भी हमारे शब्द किसी के लिए आग में घी डालने का काम करते हैं तबतब 'गूंगे बनो।' | 79 For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऐसा हुआ - एक सज्जन मेरे पास साँझ के वक़्त आए और कहने लगे - साहब ! मैं बड़ा पशोपेश में हूँ, बड़ी मुसीबत है मेरे सामने, और मुसीबत यह है कि मैं और मेरी पत्नी दोनों के बीच में कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब तू-तू, मैं-मैं न हुई हो।कभी मैं आग-बबूला हो जाता हूँ तो कभी वह लाल-पीली हो जाती है। कोई सीधा-सा मंत्र बता दीजिए जिससे पति-पत्नी के बीच में वापस गोटी फिट हो सके। मैंने कहा - भाई ! ठीक है, सीधा-सादा मंत्र दे देता हूँ। पर जो मंत्र है उसके लिए थोड़ी परीक्षा देनी पड़ेगी। उसने कहा – 'जो आप कहेंगे सो मैं करने के लिए तैयार हूँ।' मैंने कहा – 'बस, तब फिर घर जाओ और जब भी लगे घर में घरवाली चिल्लाने लगी है, तब-तब गूंगे बनो।' बोले, इससे क्या होगा? मैंने कहा, 'तू जा तो सही। जब मेरे 'रिस्क' पर 'इश्क' कर रहे हो तो फिर तुम क्यों चिंता करते हो? तब मैं सोचूँगा। तुम जाओ घर और जाकर मेरा एक ही मंत्र ध्यान में रखो कि पत्नी गुस्सा करे तो 10 मिनिट के लिए गूंगे बनो।' __ मैं लोगों को धर्म के मंत्र कम देता हूँ। जीवन के मंत्र ज्यादा देता हूँ। मुझे पता है कि लोगों को धर्म का मंत्र शायद बाद में चाहिए, पहले जीवन का मंत्र ज़रूरी है। वह जैसे ही घर पहुँचा कि घर वाली तो तैयार थी। घरवाली ने जाते ही कहा -पाउडर, लिपिस्टिक लाए? उसे लगा, अरे यार भूल गया मैं तो, पर अब अगर कुछ बोल बैठा तो गई भैंस पानी में। तभी उन्हें चन्द्रप्रभ का मंत्र याद आ गया - गूंगे बनो। बस, अब होंठ बन्द । अब घरवाली चिल्लाये जा रही है कि दिन भर से मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ और एक आप हैं जिनके आने का कोई पता नहीं है। दिन भर मैं यहाँ पर झाड़-पोंछे करती रहती हूँ। आप मेरे लिए लिपिस्टिक, पाउडर, क्रीम भी नहीं ला सकते और मन में आए सो बोलती गई। दो मिनिट बोली, पाँच मिनिट बोली, दस मिनट बोलकर चुप हो गई। वापस सामने से कोई ज़वाब नहीं मिल पाया। बोल-बोल कर कोई कितना बोले। पति को लगा, अरे वाह ! गुरुजी का मंत्र काम कर गया। जो एपिसोड रोज़ाना दो घंटे चला करता था, आज केवल दस मिनट में ही पूरा हो गया। सोचा, गुरुजी के मंत्र में है तो बड़ा दम। रात को दोनों सो गए। एक का मुँह उधर, एक का मुँह इधर। क्योंकि आज घरवाली को गुस्सा आया हुआ था। सोए-सोए रात को घरवाली को लगा, 'अरे ! मैंने फालतू ही अपने बालम जी को जालम जी कहा। यह मैंने ठीक नहीं किया। बेचारे आए थे ऑफिस से, मैंने उनकी कुशलक्षेम भी 80/ For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं पूछी, पानी तक का नहीं पूछा और आते ही अपनी लिपिस्टिक, पाउडर की हो - हुल्लड़बाजी करने लग गई। रात को ग्यारह बजे पत्नी ने किसी को फोन लगाया। उसने उससे पूछा कि आज रास्ता जाम तो नहीं था। तभी जवाब मिला हाँ-हाँ आज तो लाल फीता वालों ने बहुत बड़ा जुलूस निकाला था। सो दो-ढाई - तीन घंटे तक जाम रहा। पत्नी को लगा कि मेरा पति ज़रूर उसमें फँस गया होगा । नहीं तो हमेशा वक़्त पर आता है। आते समय काम करके लाता ही है । आज वह फँस गया। मैंने उल्टा-सुल्टा कह दिया । नहीं-नहीं, मुझसे ग़लती हो गई । ' सॉरी, मैंने अगले दिन सुबह जैसे ही वह उठी, उसने पतिदेव से कहा कल आपको मन में आए वैसा बोला, आप मुझे माफ़ करिएगा। मुझे होश नहीं रहा था। मैं मन में आए वैसा बोलती चली गई। पति मुस्कुराया और कहने लगा 'कोई बात नहीं । हो जाता है, कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है, हो गया सो हो गया ।' पत्नी ने कहा - 'हो गया सो तो हो गया, यह बात तो मेरे समझ में आ गई, पर एक बात मेरी समझ में न आई कि आज तक मैं एक शब्द बोलती थी तो आप चार शब्द सुनाते थे, पर कल रात को आपको मैंने दस मिनिट तक भला-बुरा कहा, पर फिर भी आप चुप रहे। आखिर इसका कारण क्या है?' बोले 'कारण - वारण कुछ नहीं है । गुरुजी ही इसका कारण है । ' बोली - मतलब? पति बोला - गुरुजी ने कल मंत्र दिया था - 'गूँगे बनो' । सो मैंने घर आते ही जैसे ही तू चिल्लाने लगी मैं गूँगा बन गया, कुछ नहीं बोला । - For Personal & Private Use Only 4 1 पत्नी को लगा 'यार! इस मंत्र में तो बड़ा दम है ।' उसने कहा - 'मैं भी इस मंत्र को अपनाऊँगी।' तो पत्नी ने भी इस मंत्र को अपना लिया। पति ने कभी टेढ़ा शब्द कह दिया, पत्नी गूँगी। पति कहता 'अरे, जवाब तो दे'। अब वो इशारे में वापस ज़वाब देती? जवाब एक ही होता - मुँह पर अंगुली । पाँच-सात दिन तक तो कभी ऊँ तो कभी आँ। सातवें दिन जब कोई बात हुई तो फिर पत्नी ने कहा ऊँ । और ऊँ कहते ही दोनों हँस पड़े। सात दिन उनका चाहे जैसा बीता होगा पर सात दिन के बाद उनकी जिंदगी हमेशा के लिए ख़ुशहाल बन गई । इसलिये मैंने कहा कि ये बंदर केवल हमसे इतना ही नहीं कहते कि बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सोचो। ये बंदर हमसे यह भी कहते हैं कि बहरे बनो तब, जब कोई हमें निंदा-आलोचना के टेढ़े शब्द कहने लगे। तब कुछ सुनो ही नहीं, ध्यान ही मत दो। जब भी कोई ग़लत दृश्य नज़र आ जाए तब अँधे बनो और जब भी कोई टेढ़ा शब्द हमें कहने को आ जाए और हमें गुस्सा आने लगे तब | 81 - Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गूंगे बनो। चौथा बंदर कहता है 'अज्ञानी बनो' । ज्यादा ज्ञानी बनोगे तो ऊखल में माथा डालते ही मूसल आ पड़ेगा। इसलिये मंत्र ले लो – 'मुझे नहीं मालूम' । पापा पूछेगे, 'फाइल कहाँ है?' मुझे नहीं मालूम और अगर आपने कह दिया पापा वहाँ है तो बोलेंगे – 'बेटा लाकर दे'। तो सबसे बढ़िया मंत्र है, मंत्रों का मंत्र है - 'मुझे नहीं मालूम'। ___ मैं आपको बताऊँ हमारे यहाँ कई तरह के माथापच्ची के काम होते होंगे, पर मुझ पर कोई दायित्व नहीं है, कोई जवाबदारी नहीं है। क्यों नहीं है? कोई आता है, साहब! ये काम है। मैं कहता हूँ 'मुझे नहीं मालूम'। सीधा-सादा, सौ झंझटों से बचाये रखने का मैंने जो मंत्र अपना रखा है, वह है - मुझे नहीं मालूम। आप चाहें तो आप भी अपना सकते हैं । मैंने तो अपना रखा है। मैं कहता हूँ- 'भाई, मुझे नहीं मालूम, उनसे पूछो। बस, इतना कहते ही बला टली। नहीं तो माथा फोड़ी तुम्हें करनी पड़ेगी सो पहले में ही पतंग काट दो, भई मुझे नहीं मालूम, ऊपर जाओ, उधर जाओ। सबको आगे की तरफ भेजते रहो।' एक घर में पाँच लोग सोए हुये थे। किसी ने दरवाजा खटखटाया, एक ने सुना, पर वह सिर ढंक कर सो गया। दूसरे ने भी इधर-उधर देखा। अरे यार, कोई देख ही नहीं रहा है तो वह भी माथा ढककर के सो गया। तीसरे ने भी गौर नहीं किया। चौथे ने कहा – 'कौन है?' बोले – 'मैं हूँ, दरवाजा खोलो।' उसने पाँचवें से कहा – 'भैया ये हैं, दरवाजा खोलूँ?' बोले - 'जो बोले सो कुंडा खोले।' जैसे ही गये बीच में बोलने के लिये कि उसका सरदर्द आके सिर आ गया। सावधान! सामने वाला मूसल लिये तैयार है। कभी भी ऊखल में माथा आ सकता है। इसलिए मुक्त रहने के लिए अज्ञानी बनो। संकट की घड़ी में ये चारों बातें बड़ी उपयोगी हैं। सो ज़्यादा हस्तक्षेप मत करो। ज़्यादा मगज़मारी मत करो। होने दो, जो होता है उसको होने दो। कोई फटी जींस पहनता है तो पहनने दो, कोई बरमूडे में घूमता है तो घूमने दो। अपना क्या जाता है। टाँगे उसकी दिखती हैं, मर्यादाएँ उसकी भंग होती हैं। 'तू तेरी संभाल'। तुम तो तुम्हारी सोचो। तू मेरी संभाल, छोड़ शेष जंजाल । सरपच्ची में हाथ मत डालो। एक ही मंत्र याद रखो – 'तू तेरी संभाल'। चन्द्रप्रभ के चार बंदर जीवन की यही बुनियादी नसीहत हम सब लोगों को दे रहे हैं । नसीहत हमें पहले दौर पर सिखा देती है कि आज के बाद मुझे सकारात्मक 82 For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोचना है या नकारात्मक सोचना है। सकारात्मक सोच का प्रभाव सेहत पर भी पॉजिटिव होगा, रिश्तों पर भी पॉजिटिव पड़ेगा, व्यापार में भी पॉजिटिव होगा, राजनीति में जा रहे हो तब भी पॉजिटिव होगा। सकारात्मक सोच के मेरे कई 'अमृत वचन' ऐसे हैं जो राजस्थान सरकार ने अपनी प्रत्येक ऑफिस में, प्रत्येक कलेक्ट्रेट में उनकी तख्तियाँ टाँग रखी हैं। सकारात्मक सोच से किस तरह से लोगों के रिश्ते सुधरे हैं, किस तरह से लोगों का जीवन सफल और धन्य हुआ है। यह बात तो अनेक ऑफिसर्स बता देंगे। इसलिए 'सकारात्मक सोचो' । सोचिये वही जिसे बोला जा सके और बोलिये वही जिसके नीचे हस्ताक्षर किये जा सकें।हर बात मत सोचिये। वे नासमझ होते हैं जो कहते हैं हूंडी लिखो।अरे, ज़बान मज़बूत होती है, ज़बान ही पलट डालोगे तो फिर कागज़ पर लिखे दस्तख़तों में दम ही क्या रह जाएगा। अपने द्वारा वही बोलो, जिसके नीचे मानो हमने दस्तख़त कर दिया है। अपने मुँह से बोल दिया यानी पत्थर की लकीर हो गई। बोलने से पहले दस दफ़ा सोचो, पर बोलने के बाद निकल गया सो निकल गया, पत्थर की लकीर हो गई। हो गया सो हो गया। कह दिया सो कह दिया। तो बोलो वही कि मानो हमने कोर्ट में खड़े होकर साइन कर दिये हों और सोचो वही जिसे बोलने की ताक़त रखते हो। यदि एक दूसरे के बीच में यह तालमेल अगर हम बिठाते हैं तो हमारी सोच, हमारी वाणी और हमारे आचार-व्यवहार तीनों में एकरूपता होगी। ज़रा सोच कर बताइये कि क्या सोच, शब्द और आचरण तीनों में एकरूपता का नाम ही धर्म नहीं है? क्या धर्म इसके अलावा कुछ कहता है कि जहाँ हमने कथनी और करनी दोनों को एक कर डाला। अब इसके अलावा धर्म का कौन-सा स्वरूप बचता है। आओ, हम लोग अपनी सोच को ठीक करते हैं, दिमाग पर गौर करते हैं और दिमाग को अन्दर से ठीक करते हैं। सारे लोग चेहरे को ठीक करने के लिए तो दिन भर लगा देते हैं। हर महिला के पर्स में पेपर-सोप होता है। जैसे ही कहीं मिलने के लिए जाना है झट से बाथरूम में गये एक पेपर-साबुन घिसी, मुँह रगड़ा और ये लीजिये नई दुल्हन की तरह तैयार । चेहरे को चमकाने के लिए इतना कुछ करते हैं, धन को कमाने के लिए हम लोग सुबह से लेकर रात तक गधा खाटणी' करते रहते हैं, जरुरत से ज्यादा मेहनत करते रहते हैं पर अपने दिमाग को, जिन विचारों से, जिस सोच से प्रेरित होकर हम अपना सारा जीवन जिया करते हैं उस सोच को ठीक करने के लिए हम कितना ध्यान देते हैं? लोग कपड़ों पर तो प्रेस 83 For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करते हैं, कपड़े चकाचक पहनते हैं। आजकल तो लोगों पर नेतागिरी का ऐसा चसका चढ़ गया है कि सारे लोगों के कपड़े सुपर वाईट ड्राईक्लीन में धुले हुए कलफ दिये हुए, प्रेस किये हुए चकाचक दिखते हैं । ऐसा लगता है, मंच पर खड़ा कर दो तो वही प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जी दिखाई देने लग जायेगा, कोई राहुल गाँधी दिखाई देने लगता है। लोग इतने चकाचक रहने लगे गये हैं। मैं जिस बारे में आप लोगों को सचेत कर रहा हूँ वह है भीतर वाली चीज़ को चकाचक करो। इस भीतर वाली चीज़ में दम होना चाहिए। भीतर में है अगर दम, तो दम मारो दम, जो कुछ बोलोगे हर कुछ में होगा दम। ___ नगर पालिका शहर का कचरा साफ़ करती है, हम मानव-पालिका हैं, हम इंसानों के भीतर जमे कचरे को साफ करते हैं। बाहर का प्रदूषण धुंए का है, शोरगुल का है, भीतर का प्रदूषण दूषित विचारों का है, ईर्ष्या, क्रोध, वैमनस्य जैसे दूषित भावों का है। कृपया अपनी ब्रेन-वाशिंग कीजिए। अपनी मेंटेलिटी ठीक कीजिए। रोज़ ध्यान कीजिए, ताकि मानसिकता निर्मल हो। सत्संग में अच्छे विचारों के बीज मिलते हैं। दिमाग चार बीघा जमीन की तरह है। इसमें अगर अच्छे बीज बोओगे, तो अच्छे विचारों की फ़सल लहराएगी, नहीं तो झाड़झंखाड़ पैदा होते रहेंगे। आओ, सोच को अच्छा करें। ___ पहली बात, सोच को ठीक करने के लिए सबसे पहले आपके दिमाग़ में जो कुछ अब तक भरा हुआ है, उसे पहले बाहर निकाल फेंको। सबसे पहले तो जिनके प्रति अभी तक विरोध है उस विरोध को निकाल फेंको। जिनके प्रति द्वेष की ग्रंथियाँ बाँध रखी हैं, उन ग्रन्थियों को निकाल फेंको। केवल गुरु महाराजों के पास जाने का हुजूम इकट्ठा मत करो। सबसे पहले तो दिमाग़ में जो कचरा भरा है उसे निकाल फेंको। अब क्या होगा अगर आपने सत्संग सुन भी लिया, पर भीतर वही-का-वही कचरा भरा पड़ा है तो। गंदे प्याले में अगर अमृत भी डालोगे तो अमृत भी गंदा हो जाएगा। अगर नेगेटिव सोच के साथ गुरुजनों के पास चले भी गये, तब भी उनकी अच्छाइयाँ आप नहीं देखेंगे। उनके एक घंटे तक बोले शब्दों में अगर एक हल्का शब्द निकल गया तो उस एक शब्द की आप चिमटी भरते रहेंगे।'ओपन द डोर' पहले भीतर जो कचरा भरा पड़ा है, उसे निकालो। मैं तो कहूँगा, आप शाम को दुकान से घर भी जाएँ तो सीधा घर में मत घुस जाइएगा, क्योंकि आपके पास कई तरह के कचरे भरे पड़े हैं। इसलिए पहले घर के बाहर 84 For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रखे डस्टबिन में अपने-आप को खाली कर लीजिएगा। ज़रा बताओ कि आपकी जेब में कुछ कचरा-पचरा पड़ा है, कुछ खाली पाउच पड़े हैं तो आप उन्हें जेब में सहेज-सहेज कर रखेंगे या बाहर फेंक देंगे? बाहर फेंक देंगे। तो, साँझ को घर जाओ तो सीधा घर घुसने की बजाय एक मिनट के लिए सीढ़ी पर खड़े हो जाओ और जेब में कोई फालतू काग़ज हो तो निकाल कर डस्टबिन में फेंको। घर में कहाँ लेकर जायेंगे। पाउच हो, रद्दी काग़ज हो, कचरा हो इधर-उधर का, वो बाहर निकाल फेंको। इतना ही नहीं, कचरे के साथ-साथ दिमाग़ में भी जो दिन भर की दुकानदारी में थोड़ी-बहुत ख़ीज, थोड़ा बहुत गुस्सा, क्रोध, थोड़ी-बहुत टेंशन, थोड़ी-बहुत चिंता भरी पड़ी हैं, इन्हें दिमाग़ में से निकाल कर बाहर फेंद दो। खाली हो जाओ। सबसे पहले तो अपना दिमाग़ ठीक कर लो, ताकि मैं जो मंत्र बताऊँगा वह आपके लिए उपयोगी बन सके। पहला मंत्र है : अपनी सोच को सकारात्मक और बेहतर बनाने के लिए, सृजनात्मक और रचनात्मक बनाने के लिए - सबसे पहले अपने मिज़ाज़ को अपने दिमाग़ को ठंडा रखो। लोगों के जीवन में धर्म -आराधनाएँ तो खूब होती हैं पर साल में एक दिन भी मिजाज़ ठंडा नहीं होता। पर्युषण में लोग कहते हैं 'यह आत्म-शुद्धि का पर्व है'। पर जिनका मिजाज़ ही गर्म है वह पर्युषण पर्व में मंदिर और स्थानक में चले भी जायेंगे तो वहाँ जाकर भी वही हो-हल्ला, हुल्लडबाजी करेंगे, कर्म काटेंगे तो नहीं उल्टा बाँधकर वहाँ से आ जाएँगे। अरे, अपने जीवन भर के कर्म काटने के लिए हम मंदिर, स्थानक और गुरुजनों के यहाँ जाते हैं, पर वहाँ जाकर जो कर्म बाँध कर आ जाते हैं, सोचो, वे लोग अपने कर्मों को काटने के लिए कहाँ जाएँगे? सच्चा धर्म है : मिलाज़ को शांत-शीतल करो। लोगों ने अपने घरों में एयरकंडीशनर लगा लिया है, लोग अपने घरों को तो ए.सी. बनाते जा रहे हैं, पर अपने दिमाग को? दिमाग को हीटर बनाते जा रहे हैं। क्या ग़ज़ब है घर ठंडा, दिमाग़ गर्म! दिमाग़ ठंडा करने में तो ए.सी. नाकारे साबित हो रहे हैं। ___ मैं आप में से ही एक महिला का जिक्र करूँगा, जिनका नाम है चन्द्रप्रभा जी चोरड़िया। उनके मकान में पंखा या ए.सी. नहीं चलता, लेकिन मैंने उस सम्पन्न महिला को कभी गुस्से में नहीं देखा। जब भी उस महिला को बात करते हुए पाया, हमेशा गुलाब के फूल की तरह महकती, चिड़िया की तरह चहकती और इन्द्र 85 For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धनुष की तरह लोगों को आनन्द देती नज़र आती हैं। लोग कहते हैं कि उनके घर में ए.सी. नहीं है। मैं कहता हूँ, 'घर में ए.सी. रहे या डी.सी. पर जिसका दिमाग़ ए.सी. हो गया उसके द्वारा तो प्रेम और शांति की हमेशा महक बिखरेगी। आत्मीयता और आनंद के ही फूल बिखरते हुए नज़र आएँगे।' आज अपने घर को नहीं, अपने दिमाग़ को ए.सी. बनाओ। अपने मिज़ाज़ को ठंडा रखो। मैं आईसक्रीम नहीं खाता, क्योंकि मुझे आईसक्रीम खाने की कभी ज़रूरत ही नहीं हई। मैंने केवल एक ही काम किया, भगवान मिले या न मिले, मोक्ष मिले या न मिले, स्वर्ग मिले या न मिले, पर अपना अंतरमन सदा शांत, शीतल, निर्मल रहना चाहिए, बस । अन्तर्मन शान्त-निर्मल है, तो फिर कौन चिंता करे कि भगवान मिले या नहीं। अब भगवान मिले तो वेलकम, न मिले तो भी उनकी मर्जी । अपना राम तो अपने में मस्त ! अपनी मस्ती, सबसे सस्ती। हैल्थ सीक्रेट देते हुए मैंने कभी कहा था – 'पाँव रखो गरम, पेट रखो नरम और माथा रखो ठंडा । फिर अगर घर में आता है डॉक्टर तो मारो उसको डंडा।' ये गुण जिसके अन्दर है कि पाँव गरम है, पेट नरम है, तो बीमारियाँ आएँगी कहाँ से? माथा रखा है ठंडा। अब गुस्सा ही नहीं करते, तनाव ही नहीं रखते, चिंता ही नहीं पालते। खीज ही नहीं रखते तो बीमार होंगे कहाँ से? तो मिजाज़ ठंडा हो, फ्रीज की तरह ठंडा। कूल, कूल! ___ ऐसा हुआ संत तुकाराम की पत्नी ने अपने पति से कहा - ज़रा खेत चले जाओ ओर कुछ गन्ने तोड़ लाओ, भूख लग रही है। संत तुकाराम रवाना हो गए। सुबह गए, दो किलोमीटर दूरी पर खेत था लेकिन शाम को लौटकर आये। पत्नी झल्लाई हुई थी कि सुबह के गये, अभी तक नहीं आए, पूरा दिन बीत गया। डंडा लेकर खड़ी हो गई आने दो, ख़बर लेती हूँ। साँझ को करीब 6 बजे तुकाराम जी धीरे-धीरे आ रहे थे, बच्चे पीछे-पीछे चल रहे थे, सब गन्ना चूस रहे थे। तुकाराम आए तो पत्नी ने देखा कि एक ही गन्ना लाए हैं । उसे इतना गुस्सा आया कि बुराभला कहने लगी। तुकाराम जी ने कहा - भाग्यवान, बुरा क्यों मानती है। वहाँ से तोड़कर तो गट्ठर का गट्ठर लाया था, पर चौपाल पर बच्चों ने मुझे घेर लिया। कहने लगे – ' गुरुजी, गन्ना दीजिए, गन्ना दीजिए। अब बच्चों को कैसे मना करता? बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं, सो बच्चों को बाँट दिया। एक गन्ना बच गया सो ले आया।' पत्नी झल्लाई हुई तो थी ही, गन्ना खींचा और संत तुकाराम जी की पीठ पर दे मारा। गन्ने के दो टुकड़े हो गए । तुकाराम जी ने कहा - बड़ा अच्छा 86 For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया भागवान जो गन्ने के दो टुकड़े कर दिए। ला, एक तू चूस ले और एक मैं चूस लेता हूँ। विपरीत वातावरण बन जाने पर भी अपने मिज़ाज़ को ठंडा रखना, अपने भीतर धैर्य और शांति को बरकरार रखने का नाम है – 'सकारात्मक सोच।' सोच को सकारात्मक रखने के लिए पहला काम क्या करो? मिज़ाज़ को ठंडा रखो। दूसरा काम : सोच को पोजिटिव बनाने के लिए, हमेशा दूसरों के गुण देखो। कभी किसी के अवगण मत देखो। जब भी देखो, हमेशा ख़ासियत देखो,खामियाँ मत देखो। दनिया में कोई भी आदमी ऐसा नहीं है जिसमें चार ख़ामियाँ न हों। महावीर जी में भी चार कमियाँ थीं। अगर कमियाँ नहीं थीं तो क्यों उनको संन्यास लेना पड़ा और क्यों उनके कानों में कीलें ठोके गये? राम जी में भी चार कमियाँ थीं. और नहीं थी तो धोबी ने रामजी को क्यों धोया? सीताजी को वनवास क्यों दिलवा दिया? हर आदमी में दो कमियाँ होती हैं। अगर हम केवल कमियों पर गौर करते रहे तो किसी का भी सदुपयोग नहीं कर पाएँगे। सबमें दो कमियाँ हैं, आप कहेंगे - मेरी बह क्या है? छातीकटा है। आपने एक कमी देख ली ओर एक कमी को लेकर ऐसे पकड़ बैठे कि बहू से हाथ धो बैठे। सासूजी में भी दो कमी है। ऐसा नहीं है कि केवल बहूरानी में ही कमी है, सासजी में भी दो कमियाँ ज़रूर होंगी। अरे भाई-बहनो! कमियाँ सबमें हैं, पर कमियों पर गौर करना ‘कमीणायत' है। लोग पूछते हैं, वे वैश्य लोग, इतने पैसे वाले क्यों हो जाते हैं? ये इसलिए पैसे वाले हो जाते हैं क्योंकि ये कमीनियत का काम कम करते हैं और विशेषताओं को देखकर वैश्य होने का काम ज्यादा करते हैं। जो विशेषता देखे, वही वैश्य ! जो कमियाँ देखे, वह कमीण! जो खूबियाँ / ख़ासियत देखे, वह खूबसूरत ! इसलिए जब भी देखो हमेशा अच्छाइयों को देखो, जब भी अपने पास बिठाना हो अच्छे लोगों को बिठाओ। बैठना हो किसी के पास जाकर, तो अच्छे लोगों के पास जाकर बैठो। कबीर का कहना है - निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय॥ मैं कबीर के दोहे को बदलूँगा और कहूँगा – 'अच्छे नियरे राखिये।' निंदक को छोड़ो, कोई निंदा कर रहा है, तो कर रहा है, अपन कहाँ तक ध्यान देते रहेंगे। मैं तो कहूँगा, निंदक की भाषा हटाओ। | 87 For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छे नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय । हिम्मत दे, प्रेरित करे, जीत की राह सुझाय । ऐसे लोगों को पास रखो जो हिम्मत दें, हौंसला बढ़ाए, विजय का पथ दरशाए । जो सत्प्रेरक का काम करें, ऐसे लोगों को अपना मित्र बनाओ। अच्छे लोगों के पास बैठो। अच्छे लोगों की ख़िदमत करो, अच्छे लोगों की सोहबत करो । कमियाँ मत देखो, अपने पिता की दो कमियाँ मत देखो कि मेरे पिता ने हमें तब ये दो बातें कही थीं । अरे, दो बातों पर तो हम इतना ग़ौर कर रहे हैं, पर पिताजी ने जो हम पर अब तक 98 उपकार किए, पिताजी 98 दफ़ा हमारे काम आए, हम उसे क्यों भूल जाते हैं । हम सीधी कानूनी धारा नं. 2 क्यों लगा देते हैं ? आदमी केवल 2 के चक्कर में 98 को गँवा देता है । जब भी मूल्य देना हो तो यह मत देखो कि उन्होंने हमसे वे दो कटु बातें कहीं। यह मत देखो कि अहो ! मेरी जेठानी ने आज दो लोगों के बीच मुझ पर टिप्पणी कस दी, बल्कि यह देखो कि मेरी जेठानी बहुत अच्छी है, इसने मेरी डिलेवरी करवाई थी, यह मेरे बच्चों को संभालती है, जब मेरा दूसरा बच्चा हुआ तो मेरे पहले बच्चे को लगातार छह महीने तक मेरी जेठानी ने ही संभाला था, मेरे सर्जरी से बच्चा हुआ था, और इसी ने ही मेरा बच्चा संभाला था। पॉजिटिवनेस, पॉजिटिवनेस, पॉजिटिवनेस - हर हाल में पॉजीटिवनेस । हर हाल में अपने-आप को सकारात्मक रखो । तीसरी बात याद रखो, अपने दिमाग में सदा अच्छे विचारों के बीज बोओ। हमारा दिमाग़ उपजाऊ ज़मीन की तरह है। अच्छे बीज बोओगे, अच्छी फसलें निकलकर आएँगी । बुरे बीज बोओगे, तो बुरी फ़सलों का सामना करना पड़ेगा । अगर आप लोग हमारे पास सत्संग के लिए आ रहे हैं, तो हम लोग आपके दिमाग़ में केवल अच्छे बीज बोने का काम करते हैं । इस विश्वास के साथ कि हमारा दिमाग़ उपजाऊ खेत की तरह है, उसमें अगर हम अच्छे बीज बो देंगे तो आने वाले कल को इसमें से अच्छी फसलें निकलकर आयेंगी और अगर हम इसमें अच्छे बीज नहीं बोयेंगे, तो बुरे बीजों की उपज कैसे होती है, यह तो हमको पता ही है । पहले से ही हमारे भीतर बुराइयाँ भरी पड़ी हैं, बुरे बीज बोए हुए पड़े हैं। तभी तो भिखारी को देख कोई भी जल्दी से दस का नोट नहीं निकालता, बल्कि भिखमंगा और मुफ़्तखोर कहते हुए गालियाँ ही निकालता है। हमारे भीतर 88 | For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग़ालियाँ भरी पड़ी हैं। किस आदमी के भीतर कितनी ग़ालियाँ भरी पड़ी हैं, एक बोतल शराब पिला दी जाए तो एक घंटे में पता चल जाएगा कि उसका असली स्वरूप क्या है? केवल एक घंटे में । वह जो बोलने लगेगा वही उसका असली चेहरा होगा, अवचेतन का प्रकट रूप। शराबी लोग जितनी भी ग़ालियाँ निकालते हैं, वे सब कहाँ से आ रही हैं? भीतर से। वे सबके भीतर हैं। हो सकता है, आपने कभी गाली न निकाली हो । पर आपमें से और हममें से कोई भी यह नहीं कह सकता कि उसे ग़ालियाँ याद नहीं हैं, पर बुरे बीज तो हमारे भीतर पहले से बोये हुए पड़े हैं। हमें उन फ़सलों को काटना होगा और अच्छे बीज हमें अन्दर बोने होंगे। ___ आज मैं जो भी कुछ बोलता हूँ, उसकी क़ीमत आपको कंकड़ की तरह नज़र आती होगी, लेकिन आपके भावी जीवन में मेरी यही बातें किन्हीं हीरों का काम करेंगी। आपकी जिंदगी में जब-जब विफलताओं की वेला आएगी, जब-जब बाधाएँ आएँगी तब-तब आपके लिए मेरी बातें चमत्कार का काम करेंगी। तब वे आपके लिए रोशनी का काम करेंगी। आज ये वचन कंकड़ की क़ीमत के लगते हैं, लेकिन ये तब आपके लिए हीरों की क़ीमत के हो जाएँगे। मुझे पता है, महावीर जीवित रहे. तो लोगों ने कान में कीलें ठोंकी, जीसस जीवित रहे, लोगों ने सलीब पर चढ़ाया। मैं भी रहँगा मेरे विचार, मेरे चिन्तन का मूल्य नहीं रहेगा, लेकिन जब मैं चला जाऊँगा तो मेरे यही विचार, मेरे वचन लोग वैसे ही उपयोग करेंगे जैसे लोग किसी महावीर और बुद्ध के, राम और कृष्ण के वचनों का संदर्भ दिया करते हैं और जीवन के लिए प्रेरणा लिया करते हैं। लोग मेरे वचनों का उपयोग करेंगे, पर हमारे यहाँ दिक्कत यही है कि यहाँ इंसान की पूजा जीते-जी नहीं, मरने के बाद होती है। मरने के बाद पूजने वाले मंदिर जाते हैं और जो जीवित लोगों का सम्मान करते हैं, वे जीवित इंसान में ही भगवान देख लिया करते हैं। सार बात इतनी सी है कि अपनी सोच को सकारात्मक बनाओ।आखिर जैसी सोच होगी, वैसा ही लक्ष्य होगा। जैसा लक्ष्य होगा, वैसा ही पुरुषार्थ होगा और जैसा पुरुषार्थ होगा, वैसी ही सफलता होगी। 'पॉजिटिव थिंकिंग इज दा बैक बोन ऑफ एनी सक्सेसफुल प्रोडक्ट।' हर ऊँची सफलता के लिए सकारात्मक सोच मेरुदंड का काम करती है। मेरुदंड इसलिए कि सोच ही शब्द, व्यवहार और चरित्र बनती है। सोच में ही महान सपने छिपे रहते हैं । बड़ी सोच का बड़ा जादू | 89 For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और छोटी सोच का छोटा जादू। मेरे पास अगर कोई देवदूत आए और मुझे कोई जादू की छड़ी देते हुए कहे कि तुम सबसे पहले इससे क्या करोगे तो मेरा जवाब होगा - इंसानियत का भला। मैं लोगों की सोच बदलना चाहूँगा, सोच को सौम्य और निर्मल बनाना चाहूँगा क्योंकि सोच अच्छी तो दुनिया अच्छी! सोच चाहे जीवन से जुड़ी हो, चाहे परिवार, समाज या व्यापार से, सोच को शालीन, प्रेमपूर्ण और मधुर रखो। दूसरे शब्दों में यही सकारात्मक अन्तर-दशा है। अच्छी सोच अच्छे जीवन का आधार है। आपके टूटे हुए रिश्ते फिर से जुड़ सकते हैं, मन में घर कर चुकी हीन भावनाएँ दूर होकर आप फिर से आत्मविश्वास से भर सकते हैं बशर्ते आप सकारात्मक सोच अपनाने के प्रति सकारात्मक हों। आपके दो सकारात्मक क़दम आपके जीवन में नया सवेरा ला सकते हैं। 90 For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोलिए ऐसे कि र बन जाए हर काम एक महान दार्शनिक हुए हैं संत कन्फ्यूशियस। वे 90 वर्ष के वृद्ध हो चुके थे और उन्होंने अपने शिष्यों के सामने यह घोषणा की कि वे कल सुबह जीवित समाधि ग्रहण कर लेंगे। शिष्यों ने गुरु के वचन को अटल समझते हुए कहा कि गुरुदेव! यदि आपने यह तय कर ही लिया है कि कल सुबह आप जीवित समाधि ग्रहण करेंगे, तो समाधि लेने से पहले अपने जीवन का अंतिम पैग़ाम हमें ज़रूर देकर जाएँ। गुरु ने अपने सारे शिष्यों को एक नज़र से देखा ____ और कहा - अंतिम पैग़ाम, अंतिम संदेश कल सुबह ही दूंगा। जैसे ही अगले दिन सुबह समाधि लेने के लिए गुरु ज़मीन में उतरने लगे, उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि ज़रा मेरे मुँह की तरफ ग़ौर करो। सारे शिष्यों ने मुँह की ओर गौर किया। गुरु ने कहा - मैं अपना मुँह खोलता हूँ, ज़रा मुझे बताओ कि मेरे मुँह में तुम्हें क्या-क्या नज़र आता है? गुरु ने यह कहते हुए अपना मुँह खोल दिया। शिष्यों ने कहा - गुरुदेव! आपके मुँह में हमें जीभ दिखाती देता है। गुरु ने पूछा - क्यों भाई दाँत नहीं दिखाई देते? शिष्य मुस्कुराये और कहने लगेगुरुदेव! आप भी कैसी बात करते हैं ! 90 वर्ष की उम्र में दाँत भला कोई रहा करते हैं? गुरु ने पूछा – क्या तुम बता सकते हो कि दाँत क्यों नहीं हैं और जीभ अभी तक क्यों है? शिष्यों ने कहा - भगवन् ! दाँत इसलिए गिर जाते हैं क्योंकि दाँत 91 For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कड़क हुआ करते हैं और जीभ अभी तक इसलिए है क्योंकि जीभ हमेशा नरम रहा करती है। गुरु ने कहा - बस, मैं समाधि लेने से पहले जिंदगी का अंतिम पैग़ाम यही देकर जा रहा हूँ कि पूरी दुनिया में मेरी यह बात फैला दी जाए कि जो आदमी कड़क भाषा बोलता है, वो दाँतों की तरह होता है, वो जल्दी गिर जाता है, पर जो जीभ की तरह नरम भाषा का इस्तेमाल करता है लोग उसका अंतिम श्वास तक साथ निभाया करते हैं। ___ इस मीठी और प्यारी कहानी का सार इतना-सा है कि हम अपनी भाषा की कड़कई छोड़ें और जीभ की तरह सरल, विनम्र और मधुर भाषा का उपयोग करें। मधुर भाषा यानी व्यक्ति-व्यक्ति के बीच बनाया जाने वाला सुन्दर और मधुर सेतु। मधुर भाषा यानी हर शब्द-शब्द में फूलों का गुलदस्ता। मधुर भाषा यानी केशरचन्दन-केवड़े का शर्बत। शांत-विनम्र-मधुर भाषा यानी जीवन के समस्त सकारात्मक भावों का जीने का आधार । सचमुच, यह एक ऐसा झरना है जिसमें संसार के सारे सुख समाये हैं। यदि कोई व्यक्ति अपनी जिंदगी में बोलने की कला सीख ले, अगर उसे बोलने की कला आ जाए तो जीवन की 78% समस्याएँ तो खुद-ब-खुद हल हो जाएँ। इंसान की जिंदगी में लोकप्रियता पाने का, रिश्तों को बनाने का, समाज के नव-निर्माण का अगर कोई आधार है तो वो इंसान की जबान ही है। जब तक इंसान को बोलने की कला न आए तब तक इंसान दुनिया में स्थापित नहीं हो सकता। तैरने की कला सीख कर वह डूबता हुआ तो बच सकता है, खाना बनाना सीख कर भूखे मरने से बच सकता है, पर बोलने की कला सीख कर पूरी दुनिया में दम खम के साथ स्थापित हो सकता है। कुल मिलाकर आदमी यह तो देखता है कि मेरे दाँत गिरते चले जा रहे हैं, पर कोई आदमी इस बात पर गौर नहीं करता कि आखिर मेरे दाँत क्यों गिरते जा रहे हैं। जीभ मेरे दादा के अंतिम साँस तक काम आई थी, मेरे पिता के भी अंतिम साँस तक काम आई और मेरे भी काम आ रही है, अंतिम श्वास तक जीभ साथ देती है। जीभ इसलिए साथ देती है क्योंकि वो नरम है और दाँत इसलिए गिर जाते हैं क्योंकि वे कड़क हैं । मुँह में बत्तीस दाँत दिखाई देते हैं, पूरी बत्तीसी। ये बत्तीस दाँत ऐसे लगते हैं जैसे कि हमारे मुँह के इर्द-गिर्द हिफ़ाज़त के लिए पूरी सेना खड़ी हो । जीभ सेनापति की तरह है। जीभ अगर ठीक से इस्तेमाल करते रहे तो बत्तीसी आपकी सुरक्षित रहेगी, पर अगर जीभ का 92|| For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थोड़ा-सा भी ग़लत इस्तेमाल किया तो यह बत्तीसी बाहर निकल आएगी। चौराहे पर दो युवक आपस में गुत्थम-गुत्था हो रहे थे। एक ने तैश में आकर कहा - अब अगर तू कुछ बोला तो ऐसा चूसा मारूँगा कि बत्तीसी बाहर निकल आएगी। दूसरे ने कहा – जा रे जा! तू क्या बत्तीसी बाहर निकालेगा। मैंने अगर चूंसा मारा तेरी चौसठी निकल आएगी। तीसरे ने तभी बीच में टोकते हुए कहा - भाई दाँत ही बत्तीस होते हैं तो तू चौसठ कैसे तोड़ेगा? उसने कहा - मुझे पता था तू ज़रूर बीच में बोलेगा।सो बत्तीस इसके और बत्तीस.....! सावधान! जुबान के प्रति सावधान।शरीर विज्ञान की व्यवस्था देखो कि जीभ पर लगी चोट सबसे जल्दी ठीक होती है, पर जीभ से लगी चोट सबसे देरी से ठीक होती है। हमें जीवन की बुनियादी सीख ले लेनी चाहिए कि इंसान की जुबान में ही अमृत होता है और इंसान की जुबान में ही ज़हर होता है। इंसान की जुबान में ही गुलाब के फूल खिलते हैं और इंसान की जुबान से ही काँटे बोए जाते हैं। सरदारों की कटार कमर में लटकती होगी, पर इंसानों की कटार तो इंसानों की जुबान पर ही रहा करती है। कटार का घाव शायद दो-पाँच, दस दिन में मिट सकता है, पर जुबान का घाव सौ साल बीत जाए तब भी इंसान अपने जिगर से निकाल नहीं पाता। माँगने के नाम पर केवल दो वचन ही माँगे थे कैकयी ने, लेकिन जब तक भरत जिया भरत की आत्मा में उनके वे दो वचन तब तक हमेशा सालते रहे, जलाते रहे, जीते-जी उसकी आत्महत्या करवाते रहे। आज जब हम लोग अपना केरियर बना रहे हैं तो केरियर निर्माण का पहला दृष्टिकोण यही है कि धर्म की बात, अध्यात्म की चर्चा हम बाद में करेंगे, पहले इंसान अपने घर में पलने वाली ग़रीबी को तो दूर कर ले, अपने जीवन में समृद्धि के ख़ज़ाने तो खोल ले, पहले इज़्ज़त की जिंदगी तो बना ले। भला जब समाज में ही अपने को कोई नहीं पूछता, तो भगवान की डगर पर कौन पछेगा? तो पहले अपन लोग अपनी नींव ठीक कर लेते हैं। क्योंकि मंदिर में आदमी चौबीस घंटे नहीं रहता, पर परिवार और समाज में आदमी चौबीस घंटे रहता है। भगवान के घर में बाद में इज़्ज़त बनाएँगे, पहले लोगों के बीच में इज़्ज़त कमा लें। इसलिए व्यक्तित्व-निर्माण के लिए आज जिस बिन्दु पर आपको केन्द्रित कर रहा हूँ, वो है बोलने की कला। मनुष्य और चिंपाजी दोनों के जींस बिल्कुल एक जैसे हैं। जब वैज्ञानिकों ने | 93 For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंपाजी वन-मानुष और मनुष्य के जींस का पता लगाया तो पाया कि दोनों के जींस 98% एक जैसे हैं, लेकिन दो प्रतिशत जींस अलग हैं। वे जो दो प्रतिशत जींस अलग हैं उन्हीं दो प्रतिशत ने एक को इंसान बना दिया और दूसरे को केवल बंदर बना कर रख दिया। उस दो प्रतिशत जींस का ही यह परिणाम है कि इंसान सोच सकता है, बोल सकता है, किसी भी बिन्दु को समझ सकता है। ईश्वर ने इंसान को सोचने और बोलने की अद्भुत क्षमता प्रदान की है। किसी को छुटकी बहू सुहाती है, किसी को बड़की बहू सुहाती है। वजह, दहेज नहीं है। वज़ह बोलने की मिठास या बोलने की खटास है। संबंधों में मिठास या खटास बोली का कारण है। वे जो दुकानें सामने हैं; एक दुकान पर ग्राहक ज़्यादा हैं एक दुकान पर ग्राहक कम हैं, फ़र्क भाग्य का नहीं है। फ़र्क वाणी और व्यवहार का है। एक की अदब ग्राहक को बुलाती है, दूसरे की खड़ी बोली ग्राहक को भगाती है। ग्राहक तो वास्तव में लक्ष्मी जी का पुत्र है । ग्राहक को लौटाने का मतलब लक्ष्मी जी को लौटाना है। समाज में एक आदमी को देखते ही सम्मान मिलता है तो दूसरे को देखते ही दरवाजा बंद कर लिया जाता है। फ़र्क इज्जत का नहीं है। सारा फ़र्क इस जुबान बाई का है। जुबान अगर ठीक से चलती है तो छुटकी, छुटकी होकर भी सुहाती है। जुबान ठीक से न चले, तो बड़की बड़ी होकर भी फूटी आँख नहीं सुहाती। माल भले ही थोड़ा-सा हल्का हो, पर बोलने वाला आदमी थोड़ा वज़नदार है तो ग्राहक दुबारा, तिबारा उसके यहाँ आता है। समाज में भी जो आदमी इज़्ज़त और सम्मान से बोलता है, मधुर और मिठास से पेश आता है, वह समाज में भी सम्मानित और लोकप्रिय हो जाता है। अपने चेहरे को देखिये आपका चेहरा कैसा है? ज़्यादा चमकदार है, ज्यादा गुलाबी है या काला है? जैसा भी है खुद अपने चेहरे को देखिए। एक बात बुनियादी तौर पर बता देना चाहता हूँ कि इंसान की स्मार्टनेस इंसान के केरियर और इंसान की पर्सनलिटी के लिए, केवल 15% से 20% प्रतिशत महत्त्व रखती है, 80% प्रतिशत मूल्य तो वचन और व्यवहार का हुआ करता है। महिलाएं अपने होठों को लिपिस्टिक लगा कर गुलाबी या ग्लिसरीन लगाकर चमकदार बनाया करती हैं। होठों की खूबसूरती तो लिपिस्टिक से बन जाएगी, पर जिंदगी की खूबसूरती के लिए जुबान का खूबसूरत होना अनिवार्य शर्त है। अगर होठों की खूबसूरती ही आकर्षित करती हो, तब तो इसका मतलब यह हुआ कि हम सारे पुरुष किसी को प्रभावित कर ही नहीं सकते 94 For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जबकि सारी महिलाएँ हम पुरुषों से ही तो प्रभावित होती हैं। वज़ह कोई ये गुलाबी होंठ नहीं है। आप ढंग से नहीं बोलती, इसलिए आपको होंठ गलाबी करने पड़ते हैं। हम ढंग से बोलते हैं इसलिए हमें होंठों को गुलाबी करने की ज़रूरत नहीं रहती। अगर होंठों को गुलाबी करने से ही खूबसूरती बढ़ती हो तो सारे लोग कल से हनुमान जी का चेहरा बना लो, होंठ ही क्यों पूरा चेहरा ही रेड एण्ड व्हाईट कर लो। इंसान की खूबसूरती इंसान की जुबान से हुआ करती है। चेहरे की खूबसूरती का मूल्य केवल 20% प्रतिशत है, बाकी सारा मूल्य कहीं और से जुड़ा है। भई गोरा आदमी अच्छा तो लगेगा। गोरी महिला सबको अच्छी लगेगी। ऐश्वर्या राय आ जाएगी तो सबको लुभाएगी, पर इसका मतलब यह नहीं कि शाहरुख बुरा लगेगा। सभी लोग अच्छे लगते हैं, कुल मिलाकर इंसान की जुबान अच्छी होनी चाहिए। बोलने की कला, जब इंसान पैदा होता है तब से बोलना शुरू करता है और मरता है तब तक बोलता ही बोलता रहता है। रात अगर न हो तो इंसान रात भर भी बोलता रहेगा। सच्चाई तो यह है कि जो आदमी दिन में चुप रहता है, रात को वह सपने में भाषण दिया करता है। भाषण पर कोई राशन तो लगता नहीं है। राशन पर भाषण ज़रूर है, पर भाषण पर राशन नहीं है। आदमी बचपन से, जन्म से ऊँ, आँ, ईं बोलना शुरू करता है, थोड़ा-सा बड़ा होता हे तो मी, माँ, मा-मी, थोड़ा और बड़ा होता है तो का-की, जी-जी, थोड़ा और बड़ा होता है तो स्कूल जाता है तब असे अनार, आ से आम, इ से इमली और उ से उल्लू बोलना सीखता है। हाँ, कोई मेरे पास आ जाए, किसी चन्द्रप्रभ की पाठशाला में आ जाए तो असे अदब सीखेगा, आ से आत्म-विश्वास लाएगा, इसे इबादत करेगा, बड़ी ई से ईमानदार बनेगा। स्कूल में उ से उल्लू सिखाया जाता है। मेरे पास उ से उत्साह सिखाया जाता है। जुबान ठीक करेंगे तो वक्तव्य खुद ही ठीक हो जाएगा। इसीलिए कभी महावीर ने भाषा समिति की बात कही थी। भाषा-समिति यानी विवेकपूर्वक बोलो। इंसान को बोलने की कला आनी चाहिए। इंसान भाषा से, इस जुबान से पचास प्रतिशत काम सुधार लेता है और इसी जुबान से पचास प्रतिशत काम बिगाड़ लेता है। अगर इसको ठीक से इस्तेमाल करना आ जाए तो बिगड़े हुए काम सुधर जाते हैं । झगड़े मिट जाते हैं, जो अब तक कैंचियाँ चलती थीं वो सुई-धागे बन जाया करते हैं। मेरे भाई और मेरी बहनों! जुबान को सुई-धागा बनाओ ताकि टूटे हुए दिल फिर से जुड़ सकें। टूटे 95 For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुए दिलों को जोड़ना, टूटे हुए भाइयों को फिर से गले लगाना सच्चा धर्म है और यही हमारे जीवन की सिखावन है। आओ, आज हम बोलने की कला सीखेंगे। बोलने के तौर-तरीकों पर गौर करेंगे। जुबान है केवल ढाई इंच की, होंठ दो इंच के, काया साढ़े पाँच फुट की, पर आज की बात केन्द्रित होगी केवल ढाई इंच पर। कुछ दिन पहले एक सज्जन मेरे पास आए। मैंने देखा कि आज वो गंजे दिखाई दे रहे थे, मैंने उनसे पूछा - भाई साहब! आप गंजे कैसे हो गए? आपके सिर पर तो बाल थे। उन्होंने थोड़ा-सा चेहरा ठीक किया और बोले - जुबान के कारण । मैंने कहा - मैंने आज तक यह कभी नहीं सुना कि कोई आदमी जुबान के कारण गंजा हो जाए। हार्मोन्स की कमी के कारण तो आदमी गंजा होता है, पर आप जुबान के कारण गंजे हो गए! बोले - साहब, इस जुबान के कारण ही गंजा हुआ।जबान चलती रही और सिर पर जूते पड़ते रहे। मैंने देखा कि एक आदमी के हाथ की हड्डी टूट गई। मैंने पूछा – क्यों भाई ! क्या हुआ? हड्डी कैसे टूट गई? बोले - हँस पड़ा था। मैंने कहा - हँसना तो मैं भी सिखाता हूँ, पर आप कहते हैं कि हँस पड़ा था इसलिए हड्डी टूट गई। बोले - किसी पहलवान को देखकर हँस पड़ा था। मैंने कहा – फिर तो हड्डियाँ ही टूटेंगी, और क्या होगा? चलो, ठीक करते हैं अपनी जुबान को। यह नरम तो है, पर मैं इसकी गर्मी को हटा रहा हूँ। अपनी जिंदगी में पलने वाली गरमाहट में से 'ग' को कट मारिये और नरमाहट के 'न' को लाकर जोड़ दीजिए। 'न' का मतलब नम्रता है। गर्मी का 'ग' हटे और नर्मी का 'न' आ जाए तो जिंदगी में जीने और बोलने की दोनों कला अपने आप आ जाया करती है। ___ हाथ की खूबसूरती किससे है? महिलाएँ हाथ की खूबसूरती के लिए सोने की चूड़ियाँ पहनती हैं और पुरुष सोने का ब्रासलेट पहनते हैं। हाथ की खूबसूरती सोने के कंगन और सोने के ब्रासलेट से होती है। गले की खूबसूरती हीरे के हार और सोने की चैन से होती है, पर इंसान की खूबसूरती इंसान की मीठी और मधुर जुबान से होती है। हो सकता है किसी के पास पहनने को सोना और हीरा न हो, जैसे मेरे पास नहीं है, न हीरे हैं, न सोना है, पर जो चीज़ मेरे पास है चाहता हूँ ये सारी दुनियाँ वैसी हो जाए और बोलना सीख जाए तो इंसान को सोना-चाँदी 96/ For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहनने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। जो ना समझ होते हैं वे ज़्यादा सोने की चैनें पहना-पहना कर दिखाते हैं। एक आदमी का दाँत सोने का था। मैंने उनसे पूछा, 'भाई साहब! टाइम कितना हुआ?' वो दाँत दिखाकर बोले 'साढ़े नौ।' मैंने कहा - भाई दाँत मत दिखाओ, दिखाना है तो अपना दिल दिखाओ ताकि पता चल सके कि अन्दर क्या है? सोने का दाँत दिखाने से क्या होगा? दिखाना है तो सोने जैसा दिल दिखाओ। इंसान की जुबान स्वर्णिम होनी चाहिए, दिल गोल्डन होना चाहिए। इंसान की जिंदगी में तीन तरह के अमृत होने चाहिए। हाथ में रखिए दान का अमृत, दिल में रखिए दया का अमृत और जुबान पर रखिए मिठास का अमृत । ये तीन अमृत इंसान के पास होने चाहिए। जिसके पास ये तीन अमृत हैं, सचमुच वह अमृत पीकर अमर है। प्रश्न है मीठा बोलो, अच्छा बोलो, पर कैसे बोलो? क्यों मीठा बोलो? इसलिए मीठा बोलो क्योंकि पहली नियमावली यह सीख ली जानी चाहिए कि कुदरत कुछ नहीं करती, ईश्वर, नियति या भाग्य कुछ नहीं करते। वे तो केवल एक ही काम करते हैं कि जैसे तुम बीज बोते हो वैसा तुम्हें फल वापस लौटाते हैं। ईश्वर अन्य कुछ नहीं करते, वे केवल एक काम करते हैं कि जैसे बीज आप बोयेंगे उसके वैसे ही प्रतिफल वे लौटा देंगे। जैसा आप चाहें वैसा आप अपना उपयोग कर सकते हैं। अच्छे बीज बोओगे, अच्छी फसलें पाओगे। गाली के बदले में गाली लौटकर आएगी और गीत के बदले में गीत लौटकर आएँगे। किसी को सम्मान देंगे तो सम्मान लौटकर आएगा। पहला क़दम ही अगर अपमान का रख दिया तो पहला क़दम ही ग़लत पड़ गया। अपनी ओर से दूसरों को सम्मान देना, दूसरों की ओर से अपने लिए सम्मान पाने का रास्ता खोलना है। जैसा बोलोगे वैसा लौटकर आयेगा। आप बोलेंगे मम्मीजी, लौटकर आयेगा बहूरानी जी। आप बोलेंगे मम्मी वो बोलेगी बह। आप बोलेंगे - ये मेरी सास नहीं, माँ है, तो सास भी ऐसा ही कुछ बोलेगी - ये मेरी बहू नहीं, बेटी है। जैसा बोलेंगे वापस वैसी प्रतिक्रिया लौटकर आयेगी। आप बोलेंगे - बेटा आपने ये काम किया? ज़वाब आयेगा - हाँ मम्मीजी! मैंने ये काम कर दिया। आप बोलेंगे ए छोरा, सामने वाला बोलेगा - के है? अगला भी फिर पंजाबी या हरियाणवी अंदाज़ में ही बोलेगा। ये दुनिया केवल लौटाती है। जैसा बोलेंगे वैसा लौटकर आयेगा। मेरी एक बहुत अच्छी मनोवैज्ञानिक कहानी है कि एक माँ ने अपने बेटे को, उससे ग़लती 97 For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो जाने पर डाँट लगाई, बेटा सामने बोला जा रहा था। मम्मी को आया गुस्सा । उसने दो थप्पड़ मारे । बेटे को तेज गुस्सा आया । वह घर से निकल गया । गाँव के बाहर चला गया। गुस्सा बहुत तेज था । जब भी किसी को गुस्सा तेज आता है तो बच्चे एक ही काम करते हैं, लड़कियाँ अमुमन खाना नहीं खातीं और लड़के घर छोड़कर चले जाते हैं। वो बच्चा भी घर से निकल गया, गाँव से बाहर चला गया जंगल में। गुस्सा इतना तेज था कि आँखें तरेर रहा था। यूँ गुर्रा रहा था मानो ... ! वह चिल्लाया - आई हेट यू, आई हेट यू । जैसे ही वो बोला 'आई हेट यू', जंगल में से वापस प्रतिध्वनि लौटकर आई 'आई हेट यू' । उसने एक बार कहा था आई हेट यू, जंगल में से बार-बार आवाज़ लौटी - आई हेट यू, आई हेट यू । बच्चा घबराया । वह रोने लगा। क्या बात है जंगल में रहने वाले बच्चे मुझसे नफ़रत करते हैं? मैने कहा आई हेट यू तो उन्होंने भी कहा आई हेट यू । लगता है जंगल के बच्चे मुझसे नफ़रत करते हैं । बच्चा घबराया और वापस दौड़कर मम्मी के पास आया। बच्चा माँ से झगड़ा कर कहीं चला जाए, लेकिन दुनिया से जब डरेगा तब माँ के आँचल में आकर शरण लेगा । बच्चा चला आया मम्मी के पास और आकर रोने लगा मम्मी, मम्मी, जंगल के बच्चे मुझसे नफ़रत करते हैं। माँ बोली, क्या हुआ बेटा! तुमने क्या किया? बच्चा बोला मम्मी ! मैंने कहा - आई हेट यू, तो जंगल के बच्चे मुझसे भी कहने लगे आई हेट यू, आई हेट यू । मम्मी ने कहा, 'बेटा घबरा मत, जंगल में जाकर इस बार बोल आई लव यू।' बच्चा जंगल में गया और जोर से बोलने लगा - आई लव यू । जंगल से वापस आवाज़ लौटकर आई - आई लव यू, आई लव यू, आई लव यू । बच्चा ख़ुश हो गया। दौड़ा-दौड़ा मम्मी के पास आया और कहने लगा मम्मी-मम्मी ! अब जंगल के बच्चे मुझसे प्यार करते हैं । - - मम्मी ने बच्चे के माथे पर प्यार से हाथ सहलाते हुए जीवन का बुनियादी पाठ पढ़ाया । माँ ने कहा – बेटा ! जिंदगी का आज पहला पाठ सीख लेना · लाइफ इज़ एन इको, जीवन एक अनुगूँज है। जैसा तुम बोलोगे वैसा ही तुम पर लौटकर आयेगा। अगर कहोगे आई हेट यू तो लौटकर आयेगा आई हेट यू और बोलोगे आई लव यू तो लौटकर आयेगा - आई लव यू । जैसा बोलोगे, वैसा लौटकर आयेगा। हालाँकि सबके बोलने के तरीके अपने - अपने होते हैं, लेकिन जैसा बोलोगे वैसा ही लौटकर आयेगा । सावधान ! कुदरत ने हमें हाथ दिए हैं, पर यह हम पर निर्भर करता है कि इन हाथों का कैसा उपयोग करें। किसी के गाल पर 98 | For Personal & Private Use Only - Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँटा मारते हैं या हाथ में माला लेकर भगवान जी के मंत्र का जाप करते हैं। वह अपने पर निर्भर करता है । हाथ में माचिस की तीली है, तीली से लोगों के घरों का अंधेरा दूर करते हैं या लोगों की झोंपड़ियों में आग लगाते हैं, यह हम पर आधारित है। कुदरत ने हमें लाठी दी है तो लाठी से हम किसी पर प्रहार करते हैं या किसी बूढ़े का सहारा बनते हैं, यह हमारी समझ पर निर्भर करता है। अगर कुदरत ने हमें जुबान दी है तो जुबान का हम सही इस्तेमाल करते हैं या ग़लत, यह सब कुछ हम पर आधारित है । इसलिए वाणी के ऐसे बीज बोओ, जिसके मधुर फल लौटकर आ सकें । यों तो बोलने के तरीके सबके अपने-अपने होते हैं। एक लड़का सड़क से गुज़र रहा था । उसने सामने से एक लड़की को गुजरते देखा तो बोल उठा ऐ मेरी जान। लड़के ने जैसे ही कहा ऐ मेरी जान... लड़की ने झट से कहा, बोल मेरे भाईजान । बोलने के सबके जुदा-जुदा तरीके। एक आदमी किसी नाई की दुकान पर पहुँचा और कहने लगा, क्या किसी गधे की हजामत बनाई है? उसने कहा साहब बनाई तो नहीं है, आप बैठिये कोशिश करता हूँ । तरीके अपने-अपने। एक आदमी किसी होटल में पहुँचा। उसने चार्ट-वार्ट देखा और पूड़ी, मटर पनीर की सब्जी आदि आइटम लिखा दिए। जब सब्जी आई तो मटर पनीर की सब्जी में पनीर तो कहीं नज़र ही नहीं आया। उसने कहा क्यों भाई ! तुम्हारे मटर-पनीर की सब्जी में पनीर तो कहीं नज़र ही नहीं आ रहा है । वेटर ने कहा आज तक आपने गुलाब जामुन में कभी गुलाब देखा है ? न I गुलाब है न जामुन है, पर नाम तो उसका गुलाब जामुन है । - एक सज्जन मेरे पास आए और कहने लगे साहब मेरे तो भाग ही फूटे, मैंने कहा भाई ऐसी क्या बात हो गई जो आपके भाग ही फूट गए। आपका माथा तो बिल्कुल सलामत दिखाई दे रहा है। कहने लगा- साहब, मैंने पहली शादी की, पत्नी मर गई । दूसरी शादी की वह फिर मर गई। तीसरी शादी फिर की 60 साल की उम्र में, वो भी मर गई, अब क्या करें? मैंने कहा- और कुछ नहीं, केवल नारी जाति पर दया करें । जैसा खायेंगे अन्न, वैसा होगा मन । जैसी बोलेंगे वाणी, वैसा मिलेगा पीने को पाणी । आप किस जाति के हैं, किस कुल के हैं यह आपकी जुबान से ही पता For Personal & Private Use Only | 99 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलेगा। कौन व्यक्ति ऊँचा है और कौन गया बीता है यह इंसान की जुबान के आधार पर ही पता चलेगा। आदमी का स्टैण्डर्ड कैसा है? लोग अपने मकानों को बड़ा सजा-धजा कर रखते हैं। अरे भाई, मकान पर स्टैण्डर्ड बना लिया, अच्छी बात है बनाना चाहिए, पर अपनी जिंदगी का स्टैण्डर्ड भी तो बना लो, और इसके लिए अपनी जुबान ठीक करें । जुबान के प्रति सावधान हों, जुबान को मिठास से उपयोग करने का संकल्प हो। भाषा हो इष्ट यानी प्रिय। भाषा हो शिष्ट यानी शालीन और मर्यादा वाली। भाषा हो मिष्ट यानी मीठी-मधुर, नरम । __ऐसा हुआ। मैं अपने मोहल्ले की बात बताता हूँ, हमारे मोहल्ले में एक भाभी थी। थोड़ा-सा डेढ़ आँख से देखती थी। डेढ़ आँख से देखती थी मतलब एक आँख आधी बंद रहती थी। कइयों को लगता था जैसे आँख मारती हो। पर बिचारी करे तो क्या करे, उसकी बीमारी थी। वो डेढ़ आँख से देखती थी। उसका देवर उसे बड़ा छेड़ता था। पता है देवर किसे कहते हैं? जो भाभी को वर दे उसका नाम देवर । उसका देवर थोड़ा शैतान प्रकृति का था। वो हमेशा उसे काणी भाभी कहता था। इस टिप्पणी से उसका जी बड़ा दुखता था। वो हमसे कहती थी, अब मैं क्या करूँ ये जैसा कहते हैं मैं वैसा करने को तैयार हूँ पर जैसे ही दस लोग बैठे रहते हैं, ये स्पेशली मुझे छेड़ता है और कहता है काणी भाभी । मैंने कहा कोई भी आदमी तभी तक छेड़ता है जब तक हम उस छेड़खानी को झेलते हैं। एक बार थोड़ा पलटकर जवाब दे दोगे तो अपने आप टेढ़ा बोलना भूल जाएगा। एक दफ़ा की बात है हम लोग उसके घर बैठे हुए थे। इतने में वो देवर आया और कहने लगा ए काणी भाभी! भाभी बोली- जी। देवर बोला - थोडी छाछ तो पिला। वो बिचारी अन्दर जा रही थी। मुझे बोली - देखा न्! अभी भी दस लोगों के सामने इन्होंने मुझे काणी कहा। मैंने कहा, भाभीजी! आप भी थोड़ा-सा खेल खेल लो। आदमी को जिंदगी में गोटियाँ खेलनी आनी चाहिए। मैंने कहा - अन्दर जाइए। बोली - क्या करना है? मैंने कहा - छाछ के ऊपर का पानी ले आइए । बोली – कहीं कोई मुश्किल खड़ी न हो जाए। मैंने कहा - घबराती क्यों हो? ले आओ। इसे हम अच्छी तरह जानते हैं। दोस्त है हमारा । वो अन्दर गई। सुबह की बनी हुई थी छाछ । उसने छाछ के ऊपर का पानी एक गिलास भरा और लेकर के आ गई। उसने वह पानी देवर को दिया। देवर ने जैसे ही छाछ का पानी देखा कि आगबबूला हो उठा। उठाकर ज़मीन पर फेंक दिया और कहा कि यह छाछ है कि पाणी? मैंने कहा - जैसी तेरी वाणी, वैसा छाछ में पाणी तु 100 For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोलता है भाभी को काणी, तो पीने को मिलेगा पाणी। मैंने भाभी जी से कहा - भाभी जी! इच्छा हो रही है मैं भी थोड़ी छाछ पी लूँ। मैंने भाभी से कहा - भाभीजी आप सचमुच बहुत अच्छी हैं, आपको देख लेता हूँ तो मुझे दिन भर माल खाने को मिलते हैं। वो अन्दर गई, फ्रीज खोला, अन्दर से दही का तपेला निकाला। मस्ती से घोटा, चीनी डाली, गुलाबजल डाला, थोडी-सी केशर डाली और मस्त-मस्त लस्सी लेकर आ गई पिलाने के लिए। वो देवर फिर भड़का - अरे मुझे पिलाती है छाछ का पाणी और इसे पिलाती है दही की लस्सी। मैंने कहा भाई, बुरा मत मान। तू कहेगा भाभी को अच्छी, तो पीने को मिलेगी लस्सी। अगर कहेगा काणी, तो पीने को मिलेगा छाछ का पाणी। अब यह अपन पर निर्भर करता है कि अपन लस्सी पीना चाहते हैं कि छाछ का पानी। मिठास से बोलोगे तभी तो मिठास लौटकर आएगी। मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। संसार कोई रो घर नहीं, कद निकलै प्राण खबर नहीं। मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। आनंद हमारी जाति, उत्सव हमारा गोत्र । हमारी जाति शर्मा नहीं, गुप्ता, बाफना नहीं। हमारी जाति हो आनंद-उत्सव। जीवन में पल-पल उत्सव । एन्जॉय एवरी मोमेन्ट । हमारा केवल एक ही गोत्र हो आनन्दम्।आनन्दम्।आनन्दम्। चार दिनां रो जीणो है संसार, थारी मारी छोड़ कराँ सब प्यार। हिल-मिल रेवो, हँस-खिल जीवो। संसार कोई रो घर नहीं, कद निकलै प्राण खबर नहीं। मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। बच्चो! आज से अगर मम्मी थोड़ा-सा गुस्सा कर दे, तो अन्य कुछ मत कहना। मेरे भाइयो! अगर आपकी पत्नी थोड़ा टेढ़ा बोल दे तो बुरा मत मानना। ए मेरी बहिनो! अगर आपके पतिदेव थोड़ा-सा भी खार खाने लगे तो और कुछ मत कहना। केवल एक काम करना और यह एक लाईन वहीं बैठे-बैठे गाना शुरू कर देना मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। | 101 For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिठास से बोलिए। इसमें आपके घर का कुछ नहीं लगता, फिर भी सारे रिश्तों में मिठास घुल जाएगी। अवगुण छोड़ो गुण री करलाँ बात, जीवन में हो आनन्द री बरसात। मिठास रो, एहसास लो। संसार कोई रो घर नहीं, कद निकलै प्राण खबर नहीं। मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। जिण घर में सब हिल-मिल ने रेवे, उण घर प्रभुजी मोत्यां बरसावे। सब प्रेम रो, प्यालो पीवो ( गीत के बोल सुनकर सैकड़ों लोग झूमने-नाचने लग गए हैं।) मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। मात-पिता ने जाणो थै भगवान, उण री सेवा है प्रभु रो सम्मान। सेवा करो, आशीष लो। संसार कोई रो घर नहीं, कद निकलै प्राण खबर नहीं। मीठो-मीठो बोल थारो काँई लागे, काँई लागे जी थारो काँई लागे। सेवन स्टेप्स में सीखिए बोलने की कला । अब यहाँ से अपनी जुबान को ठीक करते हैं, हजामत करते हैं। किसी नाई की दुकान पर नहीं, इंजीनियरिंग की दुकान पर नहीं। इस दशहरा मैदान में अपनी-अपनी जुबान को ठीक करते हैं । बोलने की कला के सेवन स्टेप्स लें उससे पहले दो बातें निवेदन करूँगा। पहली बात: बोलिए बाद में, सबसे पहले अपनी मुख मुद्रा को ठीक कर लीजिए। चेहरा थोड़ा मायूस है तो पहले उसे ठीक से कर लीजिए। चेहरे को ठीक करने के लिए जो सबसे बेहतरीन तरीका है वह है मीठी मधुर मुस्कान। किसी लड़की से पूछे कि तुम्हारी सगाई हो गई तो शर्म के मारे होंठ गुलाबी हो जाते हैं। ऐसे ही जब आप मुस्कुराते हैं तो मुस्कुराते ही आपके होंठ गुलाबी हो जाते हैं और दिमाग की स्थिति पॉजिटिव हो जाती है। इसीलिए तो फोटोग्राफर के पास फोटो खिंचाने जाओ तो सबसे पहले वह बोलता है - स्माइल प्लीज़ ! ताकि आपका फोटो सुन्दर आए। 102|| For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फोटोग्राफर के पास जब भी कोई नई दम्पति जाती है फोटो खिंचाने के लिए तो फोटोग्राफर लड़के को या लड़की को यह कहना भूलता नहीं है कि थोड़ा मुस्कुरा लीजिए, ( क्योंकि हो सकता है दुबारा मुस्कराने का मौका न मिले।) स्माईल प्लीज़। वह नहीं चाहता कि आपका फोटो किसी भार ढोने वाले जैसा आए। वह चाहता है कि आपका फोटो देवलोक में रहने वाले किसी देवता जैसा आए क्योंकि यदि आप मुस्कुरायेंगे तो फोटो सुन्दर बनेगा और फोटो सुन्दर बनेगा तो अपने घर पर भी तस्वीर बना कर टांगेंगे और कुँवारे हैं तो किसी को पसन्द करने के लिए भी भेजेंगे। भला, जब दो पल मुस्कुराते हैं तो आपका फोटो सुन्दर आता है, यदि आप हमेशा मुस्कुराने की आदत डाल लें तो क्या जीवन खूबसूरत नहीं हो जाएगा? कृपया बोलने से पहले अपनी मुख मुद्रा ठीक कर लें; और मुख मुद्रा ठीक करने का तरीका है चेहरा गुलाब की तरह खिल जाना चाहिए। दुनिया में दो तरह के फूल होते हैं - एक तो होता है अप्रेल फूल और दूसरा होता है गुलाब का फूल। समझ लो चन्द्रप्रभु जैसा फूल । अप्रेल फूल दूसरों को बनाया जाता है, गुलाब का फूल स्वयं को बनाया जाता है। जुबान दूसरों से संबंध बनाती है, पर मुस्कान साथ में हो, तो संबंधों में एक्स्ट्रा मिठास घुल जाती है। इसलिए रिश्तों में मिठास के लिए, वाणी की मधुरता के लिए, मानसिकता को पॉजिटिव बनाने के लिए, प्रभावी व्यक्तित्व के लिए अपने आप को गुलाब के फूल की तरह खिला लीजिए। दूसरी बात : जिनसे आप संवाद करना चाहते हैं पहले उनका अभिवादन कर लीजिए, प्रणाम, जय-जिनेन्द्र या जय श्री कृष्णा कर लीजिए, क्योंकि अभिवादन किसी से भी संबंध जोड़ने का, संबंध बनाने का सबसे सरल और सबसे प्रभावी साधन है। अभिवादन करेंगे तो आपका इम्प्रेशन पड़ेगा। अभिवादन से आप प्रभावी और आकर्षक हो जायेंगे। पहला प्रभाव यह पड़ेगा कि यह व्यक्ति बड़ा शिष्ट, शालीन और सभ्य है। जैसे ही आप हाथ जोड़ेंगे सामने वाला भी हाथ जोड़ लेगा। और तो और, यदि आप अपने ऑफिस में अपने स्टाफ को भी बुलाएँ, तो सीधा ऑर्डर झाड़ने की बजाय, उससे भी पहले नमस्ते कह दीजिए। आप सात दिन करके तो देखिए। इस छोटे से सद्गुण से आपका क्रोध चला जाएगा। आपकी भाषा शालीन और नियंत्रित हो जाएगी। सामने वाले के दिल में आपकी आदर्श और आदरमूलक छवि बनेगी। | 103 For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 याद रखिए : अपनी ओर से दूसरों के प्रति विनम्र होना, उनको भी अपने प्रति विनम्र होने का रास्ता खोलना है। बड़े बुजुर्ग हों तो पाँव छू लें। बराबर का है तो हाथ मिला लें । अपरिचित हैं तो दूर से ही सही, खड़े-खड़े हाथ जोड़ लें । अगर बड़े बुजुर्ग हैं तो पाँव छूकर बाद में बात कीजिएगा। इसमें शरम मत रखिएगा । आजकल लोगों को पाँव छूकर प्रणाम करने में शरम आती है । जाति आपकी कोई भी हो, गोत्र आपका कोई भी हो, लेकिन भीतर से सारे लोग शर्माजी बन गए हैं, सब शरमाते हैं। बड़ों के पाँव छूने में काहे की शरम भाई । गुटखा खाते शरम नहीं आती । उल्ले-सीधे काम करने में शरम नहीं आती और बड़ों के पाँव छूते शरम आती है? शरम न करें, पाँव छूएँ, आगे बढ़ें, नीचे झुकें। नीचे झुकेंगे तो आपके माथे पर, आपकी पीठ पर अगले का हाथ आयेगा, आशीर्वाद मिलेगा । जिंदगी में दुआओं की दौलत बटोरनी चाहिए । अरे, अगर किसी हरिजन से भी कहोगे राम-राम तो वह भी कहेगा - भाई साहब ! सुखी रहो। किसी को भी अगर राम-राम करोगे, प्रणाम करोगे, उसका परिणाम पॉजिटिव ही मिलना है। प्रणाम दूसरे के प्रति पॉजिटिव होने का प्रमाण है । प्रणाम का परिणाम सदा आशीर्वाद ही होता है । आपके प्रणाम के बदले सामने वाला भी आपके प्रति प्रसन्नचित्त और पॉजिटिव बन चुका है। कहते हैं महाभारत के युद्ध में, जब युद्ध की घोषणा हो गई, शंखनाद हो गया, युधिष्ठिर ने कहा – ठहरिये, मेरे रथ को बीच रण प्रांगण में ले जाइए और जैसे ही बीच में ले जाया गया उन्होंने अपनी जूती खोली, हथियार रखे और शत्रु सेना की तरफ नंगे पैर निकल पड़े। पांडवों में खलबली मच गई। हमारे राजा नंगे पैर शस्त्र रखकर क्या आत्मसमर्पण करने जा रहे हैं ? उधर दुर्योधन भी चौंक पड़ा कि यह युधिष्ठिर क्या कर रहा है? सामने आ रहा है, क्या घबरा गया? युद्ध करने से पहले ही हिल गया ! शकुनि ने चुटकी बजाई कि अभी देखते जाओ मेरे खेल में आगे क्या-क्या होता है ! दाद दूँगा युधिष्ठिर को कि वह आगे बढ़ता गया और सबसे पहले भीष्म पितामह के पास पहुँचा। शत्रु-सेना सामने खड़ी थी फिर भी युधिष्ठिर निहत्था भीष्म पितामह के पास पहुँचा। दोनों घुटने टिकाये, सिर नँवाया, भीष्म पितामह को प्रणाम समर्पित किया और युद्ध करने की अनुमति चाही । पितामह युधिष्ठिर की विनम्रता और सद्व्यवहार से अभिभूत हो उठे। हाथ अपने आप ऊपर उठा और प्रसन्नचित्त होकर कहा - विजयी भव । 104 | For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युधिष्ठिर ने फिर गुरु द्रोणाचार्य के पाँव छुए और प्रणाम किया। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा - चक्रवर्ती भव । कृपाचार्य ने भी प्रणाम के बदले ऐसा ही आशीर्वाद दिया। दुर्योधन हिल गया। उसने क्रोध में तमतमाते हुए कहा लड़ तो रहे हैं आप मेरे पक्ष से और विजय की कामना कर रहे हैं अगले के लिए? भीष्म पितामह ने कहा- मूर्ख, अगर यह युधिष्ठिर मेरे सामने न आता तो मैं अपने हाथों से इसका वध करता पर इसने प्रणाम करके चिरायु होने का वरदान मुझसे प्राप्त कर लिया है। ऐसा करके इसने मेरा दिल जीत लिया । यह युधिष्ठिर की महानता है कि युधिष्ठिर युद्ध करने से पहले अपने बड़े-बुजुर्गों को नहीं भूला । अरे मूर्ख तू हमें कहता है कि हमने इसे विजयी होने का आशीर्वाद क्यों दिया? दुर्योधन, अगर तू भी युद्ध करने से पहले अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को प्रणाम करने के लिए जाता तो यह भी तुम्हें वही आशीर्वाद देता जो मैंने उसे दिया है क्योंकि प्रणाम का परिणाम हमेशा आशीर्वाद ही होता है। जब भी हम किसी के प्रति शिष्टता से पेश आते हैं, अभिवादन करते हैं तो अभिवादन के बदले हमेशा अभिनंदन ही लौटकर आता है। बोलना बाद में है, पहले मुख - मुद्रा ठीक कीजिए। उसके बाद प्रणाम कीजिए, अभिवादन कीजिए । अब हम चलते हैं बोलने की तरफ, क्योंकि उससे पहले अगर हम बोल बैठे तो पहला स्टेप ग़लत हो जाता। पहला स्टेप यह है कि अब आप जो भी बोलें, जब भी बोलें, जैसा भी बोलें, अदब से बोलें। यह मत देखिए कि मैं बड़े से बोल रहा हूँ कि छोटे से बोल रहा हूँ । मूल्य अगले का नहीं होता, मूल्य हमारे स्वयं का होता है कि हम अदब से पेश आए कि बेअदब से । मैं तो कहूँगा बड़ों के साथ ही नहीं, अपने बच्चों के साथ भी अदब से पेश आएँ । मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी उनका अदब, उनकी मान-मर्यादा, काण - कायदा । अगर आप सासू से बोलें तब भी अदब से, अगर आप सासू हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि बहू से मनमाने बोलें। सासू हैं तो बहू से अदब से बोलें। जीवन का यह उसूल हमेशा याद रखें कि अदब के बदले में अदब लौटकर आती है और बेअदबी के बदले में बेअदबी ही लौटकर आया करती है । - आजकल एक फैशन चल पड़ी है - हर पति अपनी पत्नी को तुम कहता है । कल ही एक सज्जन पास में बैठे थे घरवाली को तुम कह रहे थे और साली को आप कह रहे थे। जबकि साली छोटी थी। मैंने कहा आप घरवाली को तुम कहते For Personal & Private Use Only | 105 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हा हो और साली को आप कहते हो यह बड़ी ग़ज़ब की व्यवस्था है। शायद आप साली को इसलिए आप कहते होंगे कि कभी घरवाली ऊपर चली जाए तो....। लोग कहते हैं - साली आधी घरवाली होती है। पता नहीं, यह संस्कार आप लोगों ने कहाँ से, किस संस्कृति से प्राप्त किया है कि हम अपनी धर्मपत्नी को तू या तुम कहते हैं। कुत्ते को भी तू कहो तो वो भी आपको इज्जत नहीं देगा। उसे भी प्यार से पुचकारना पड़ता है। ___ बोलने की कला का पहला मंत्र है : जब भी बोलो अदब से बोलो । पत्नी को भी आप कहो। हो सकता है कि आप लोग अब तक तुम कहते रहे हों। जो कहा सो कहा, अब भी ठीक कर लें। अपनी कुलीनता की इबारत लिख लें। आखिर ख़ुद को ठीक कब करेंगे? कोई मुहूर्त निकालकर ठीक करेंगे या जागें तभी सवेरा। तीन दिन थोड़ी असुविधा होगी पत्नी के सामने आप कहते हुए, क्योंकि बरसों पुरानी आदत है तू-तू करने की सो तीन दिन थोड़ा सा अजीब लगेगा लेकिन अगर हम यही संकोच करते रहे तो हम जिंदगी भर अपनी पत्नी को आप कहने का सम्मान नहीं दे पाएँगे। हर पति अपनी पत्नी को आप कहे, यह रेस्पेक्ट है। मैं अपनी ओर से यह पाठ सिखाना चाहूँगा कि रेस्पेक्ट की शुरुआत माँ-बाप से बाद में कीजिए, पत्नी से पहले शुरू कीजिए, क्योंकि वहीं पर आकर आप कमज़ोर पड जाते हैं। सबको हम आप कह देंगे लेकिन पत्नी को आप कहने में हिचकेंगे। आपकी पत्नी आपके घर की लक्ष्मी है और घर की लक्ष्मी को हमें सम्मान देना आना चाहिए। घर की लक्ष्मी को तुम कहकर अपमान न करें। जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ कुल देवता स्वतः रमण करते हैं। हो सकता है 'वो' आपकी पत्नी हो, पर आपके घर की गृहलक्ष्मी भी है और गृहलक्ष्मी को हमेशा सम्मान देना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति सिखाती है : यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमंते तत्र देवताः। जहाँ पर नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी रमण करते हैं। ___ मैं पूजा की बात फिलहाल नहीं कहूँगा, पर तुम से आप कहने की आदत आज से ही शुरू कर देंगे तो समझ लूँगा आपने नारी की पूजा कर ली, लक्ष्मी जी के कृपापात्र बन गए । सम्मान के बदले सम्मान लौटकर आता है और अपमान के बदले में अपमान लौटकर आता है। केवल खुद ही आगे मत आते रहिए। अरे आप तो आगे हैं ही, पिछड़ों को भी आगे लेकर आइए। इसी में ही आपके बड़े 106 For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होने का महत्त्व छिपा हुआ है। अगर घर में दादाजी कोई भी चीज़ लेकर आये हैं तो पहले खुद मत खाओ। आप केला लेकर आए हैं खुद ही अकेले उठाकर छीलना शुरू मत करो, पोता पास में खड़ा है, पहले आधा केला उधर बढ़ा दो और फिर खुद खाओ। खुद खाया सुबह गोबर हो जाता है, औरों को खिलाकर खाया हआ प्रसाद बन जाता है। औरों को खिलाने की आदत होनी चाहिए। अदब, बोलने में भी और व्यवहार में भी। सव्यवहार के नाते भी दूसरों को खिलाइए। अगर दो रोटी है और सामने चार जनें हैं तब भी कहूँगा मिल-बाँटकर खाओ, हिलमिलकर खाओ। रोटी दो हैं तो क्या हुआ और खाने वाले चार हैं तो क्या, आधी-आधी ही सही लेकिन सब मिल बाँटकर खायें। अपनी चीजें, मात्र अपनी चीजें नहीं हैं, सबै भूमि गोपाल की।' सब में बाँटो, बाँट कर खाना सीखो। एक बच्ची थी जो हमारे पास जब भी आती तो पहले हमें धोक लगाती और धोक लगाने के बाद जितने भी पास में बैठे रहते उन सबके भी पाँव छूती थी। मैंने उस बच्ची से कहा – बेटा, आप इतने रेस्पेक्ट से पेश आती हैं, सबको आप बोलती हैं, अगर आपको कोई टॉफी दे दे तो आप पहले पास में बैठे हुए बच्चे को खिलाती हैं फिर आप खाती हैं, आखिर इसका कारण क्या है? वह बोली - गुरुजी, इसमें कोई खास बात नहीं है। मेरे घर में सभी लोग इतने ही आदर से बोलते हैं। सब ऐसे ही हैं। घर का, परिवार का यह संस्कार हमारे भीतर रहना चाहिए। हम जब भी बोलें - विथ रेस्पेक्ट, अदब से बोलें। दूसरा स्टेप : जब भी बोलें पूरे आत्म-विश्वास के साथ बोलें। बगैर किसी डर या झिझक के अपनी बात को कहना ही आत्म-विश्वास है। आत्म-विश्वास जगाने के लिए शोले का डायलॉग याद रखें - जो डर गया, सो मर गया। मैं महाराज बना तो सब कुछ छोड़कर आ गया। फिल्में उसके बाद नहीं देखीं, पर उस फिल्म का डायलॉग ज़रूर याद रह गया - जो डर गया, सो मर गया। बड़ा काम आता है यह डायलॉग। मेरे तो बहुत काम आया है। आप भी याद रखें - शायद आपके भी काम आ जाए। बोलने में भी यह डायलॉग उपयोगी है, बोलने में भी आप पूरे आत्म-विश्वास के साथ बोलिये। पूरे जांबाजी के साथ बोलिये। अगर डर-डर कर बोलेंगे तो भीतर से जबान ही नहीं निकलेगी। ऐसा नहीं है कि हम गूंगे हैं, पर अन्दर से बात निकलती नहीं है, क्योंकि डरा हुआ आदमी अन्दर से निकालेगा क्या? तो जब भी बोलो पूरे आत्म-विश्वास से बोलो। सोचो कि ईश्वर मेरे साथ है, मेरा गुरु मेरे साथ है। मुझे घबराना नहीं चाहिए, भयभीत नहीं - 107 For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होना चाहिए। डर से बाहर निकलो तो ही जीत है। विश्वास जीवन का सबसे मूल्यवान तत्त्व है। जब तक है जिगर में श्वास, तब तक रखो आत्म-विश्वास। अपने आप पर यकीन रखो। मैं ग़लत नहीं होता हूँ, मैं ग़लत नहीं बोलता हूँ, मैं ग़लत नहीं सोचता हूँ, ग़लत व्यवहार नहीं करता हूँ। फिर डर किस बात का? जो डर गया सो मर गया। चाहे भाषण देना हो या इंटरव्यू, बोलते समय अपने पर आत्म-विश्वास होना चाहिए। ऐसा हुआ। एक इंटरव्यू चल रहा था। नौकरी पाने की आशा में कई लड़के इंटरव्यू देने पहुँचे। जैसे ही एक लड़का कक्ष में पहुँचा, इंटरव्यू लेने वाले ने कहा - हाँ जी, आपके शर्ट में बटन कितने हैं? उसने कहा - सात । इंटरव्यू लेने वाले ने पूछा - तुम्हें ऑफिस निकलना है और तुम्हारे शर्ट के ऊपर का बटन टूटा हुआ है। तुम क्या करोगे? उसने कहा - सर, नीचे का बटन खोलूँगा और सुई धागे से हाथोहाथ ठीक कर लूँगा। बोले - अगर उसके नीचे का भी एक बटन टूटा हुआ है तो क्या करोगे? बोला- सर! नीचे का एक और बटन निकाल कर ऊपर लगा लूँगा और शर्ट को पेंट के अंदर डाल दूंगा। इंटरव्यू लेने वाले ने पूछा - फिर भी तुम्हारा एक बटन और टूटा हुआ है तो तुम क्या करोगे? बोले - सर, इसमें चिंता की क्या बात है, पुराना शर्ट खोलूँगा और नया शर्ट पहन लूँगा। इंटरव्यू लेने वाले ने कहा - कल से नौकरी ज्वॉईन कर लेना। __ क्या नौकरी तत्काल लगने का आप कारण समझ गए? क्योंकि उसने आत्मविश्वास पूर्वक ज़वाब दिया। जहाँ पर आत्म-विश्वास पूर्वक ज़वाब दिया जाता है, वहाँ आगे की कहानी अपने आप क्लीयर हो जाती है। ___ तीसरी बात, तीसरा स्टेप : हम अपनी वाणी में दूसरों की प्रशंसा करने की आदत डालें। जब भी बोलना हो हमेशा सामने वाले की पीठ थपथपाते हुए बोलें। याद रखें, चींटी की भी अगर पीठ थपथपाओगे तो वह ना कुछ होते हुए भी सड़क तो क्या पूरा पहाड़ लाँघ जाएगी। बेटा अगर असफल हो जाए तब भी कहें घबरा मत । फेल हो गया कोई बात नहीं। इस बार जमकर मेहनत करना। जो हो गया सो हो गया। अगला साल तुम्हारा होगा। मैं भी तुम पर ध्यान दूंगा। मन लगाकर पढ़ाई करना। अगर उसको डाँटोगे भी, घर से निकालोगे भी तो होगा क्या? वह पास तो होने से रहा, फेल तो हो ही गया। हम उसे वापस प्रोत्साहित करें। कमज़ोर की पीठ थपथपाओगे तो पाँव अपने आप मज़बूत हो जाएँगे। बस 108 | For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पीठ थपथपाइये, तारीफ़ कीजिए । तारीफ़ सुनना घोड़े को ही नहीं, गधे को भी अच्छा लगता है। तारीफ़ करकरके तो आप नकामे आदमी और नकामी बहू से भी फायदा उठा लेंगे । होहल्ला, गाली-गलौच करके केवल मन में डर बैठाया जा सकता है, नहीं जगाया जा सकता। दूसरे में उत्साह जगा देना वाणी- व्यवहार का प्रभावी परिणाम है । उत्साह चौथा स्टेप : जब भी बोलो हमेशा श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल करो । जब भी बोलने का मौका आए, तो जो मन में आए उसे मत बक देना । हमेशा अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए बोलिएगा, क्योंकि हमारी वाणी में ही हमारी बुद्धि की आत्मा छिपी होती है । हमारी वाणी के द्वारा ही पता चलता है कि यह आदमी कितना बुद्धिमान और कितना बुद्ध है। बुद्धि का इस्तेमाल हमेशा ढंग से करें। एक सज्जन मेरे पास आए और बोले - जीवन जीने का सही तरीका क्या है? कैसे मैं स्तरीय जीवन जीऊँ। मैंने कहा - भाई, यह जवाब तो मैं आपको बाद में दूँगा, पहले यह काम करो। ये देखो मेरे पास में चिड़िया के छोटे-छोटे पंख पड़े हैं । इन पंखों को इकट्ठा कर लो। उसने छोटे-छोटे पंखों को इकटठा कर लिया। बोलेअब क्या करना है? मैंने कहा - इनको ले जाकर चौराहे पर छोड़ कर आ जाओ । वह चला गया, वे पंख वो वहाँ जाकर छोड़कर आ गया। वह लौटकर आया तो बोला - अब क्या करना है? मैंने कहा - अरे भाई मुझसे ग़लती हो गई । वे पंख उपयोगी थे। वापस जाओ और पंख इकट्ठे कर ले आओ। वो वहाँ पहुँचा तो उसे पंख मिले ही नहीं । चौराहे पर कोई पंख मिलते हैं क्या ! सारे पंख हवा में उड़उड़ा कर फुर्र हो गए। एकाध पंख बड़ी मुश्किल से ढूँढ-ढूँढा कर लाया । बोला, साहब वहाँ से तो सारे पंख उड़ गए। मैंने कहा - यही जीवन जीने का सही तरीका है कि बोलने से पहले चार बार सोचो, क्योंकि बोला हुआ शब्द चिड़िया के पंखों की तरह होता है । निकल गया तो निकल गया, उड़ गया तो उड़ गया। उसे वापस समेटा नहीं जा सकता । 1 तुलसी मीठे वचन से, सुख उपजे चहुँ ओर । वशीकरण यह मंत्र है, तजिये वचन कठोर ॥ मिठास से बोलना और बोधपूर्वक बोलना संसार का सबसे अच्छा वशीकरण मंत्र है । अत: जब भी बोलो सम्भल कर बोलो, श्रेष्ठ बुद्धि का - - For Personal & Private Use Only | 109 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस्तेमाल करते हुए बोलो, चलो एक छोटी-सी कहानी कहता हूँ ऐसा हुआ। एक राजा को पता चला कि अमुक आदमी बड़ा मनहूस है। कोई भी व्यक्ति उसका मुँह देख ले तो दिन भर रोटी खाने को नहीं मिलती। राजा को लगा कि यह कोई अंधविश्वास है, ऐसा होता नहीं है। बोले, उसे पकड़कर लाओ। राजा की आज्ञा थी, सो पकड़ कर लाया गया। राजा ने सुबह उठते ही सबसे पहले उसी का मुँह देखा। सचमुच, दिन भर राजा को खाना नसीब न हुआ। शिकार में गए तो वहाँ भटक गए। लौटकर आए तो रानी ने बीमार होने की बात कही।खाने बैठे तो पहले कौर में ही मक्खी आ गिरी। राजा को लगा सचमुच, वो आदमी बड़ा मनहूस है। फाँसी पर चढ़ाने का आदेश हुआ, पर जैसे ही फाँसी पर चढ़ाने की वेला आई तो उससे पूछा गया कि तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? उसने कहा कि मेरी अंतिम इच्छा राजा और न्यायाधीश दोनों को मेरे सामने लाया जाये। अब अंतिम इच्छा का सवाल आ गया तो उन्हें बुलाना पड़ा। उसने कहा कि राजा ने अगर मुझे फाँसी की सजा सुनाई है तो मैं फाँसी पर चढ़ने को तैयार हूँ, क्योंकि राजा का आदेश है । मैं कौन होता हूँ विरोध करने वाला लेकिन न्यायाधीश से मेरा अनुरोध है कि मुझे फाँसी पर चढ़ाया जाए इससे पूर्व इस राजा को फाँसी पर चढ़ा दिया जाए। ___न्यायाधीश ने कहा - अरे बुद्धू, तुम्हें मालूम है तुम क्या कह रहे हो? राजा तुम्हें मार डालेगा। मनहूस ने कहा - वह तो मुझे पहले से ही पता है। मुझे राजा से कोई मतलब नहीं है, मैं तो अपने को बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। न्यायाधीश बोले, मालूम है तू क्या कह रहा है? राजा को तू कह रहा है कि फाँसी पर चढ़ा दो, बोलो क्या जुल्म किया है राजा ने? मनहूस बोला, राजा मुझसे ज़्यादा मनहूस है। पूछा गया, किस आधार पर तुम यह कहते हो? बोला – राजा ने मेरा मुँह देखा तो राजा को रोटी खाने को नहीं मिली, पर मैंने आज सुबह उठते ही इस राजा का मुँह देखा सो मुझे फाँसी मिल रही है। न्यायाधीश ने कहा - ऐ मनहूस! तू भाग्य का मारा तो है, पर है बड़ा बुद्धिमान । तेरा तर्क इतना पुख्ता है कि राजा के पास भी अब तुझे छोड़ने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। ___जब भी संकट की वेला आ जाए, विपदा की वेला आ जाए, बाधाएँ आ जाए, तब-तब अपनी श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल कीजिएगा। श्रेष्ठ बुद्धि हर संकट का पासा पलट देगी। 110 For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँचवीं बात है : बोलते समय कभी किसी की खिल्ली न उड़ाएँ । कभी किसी की निंदा न करें, आलोचना न करें। क्योंकि आज आप उसका उपहास करेंगे, कल वह आपका उपहास करेगा। आज हम किसी की मज़ाक उड़ायेंगे, कल वह हमारी मज़ाक उड़ायेगा । इसीलिए कहता हूँ, कभी किसी की खिल्ली न उड़ाएँ। निंदा न करें। निंदा करने वाले भाई-बहिन अपनी जीभ पर नियंत्रण लायें । निंदा करने से अगले का पाप तो धुल जाएगा पर वह पाप हमारे मत्थे चढ़ जाएगा । भाई-बहिनो ! चतुर्दशी का उपवास करना या मत करना, एकादशी का व्रत करना या मत करना, पर जिस दिन हमारे मुँह से किसी की निंदा या आलोचना हो जाए तो उस दिन उस निंदा के प्रायश्चित के लिए व्रत ज़रूर कर लीजिएगा । इसलिए कभी भी किसी की भूल - भूलकर खिल्ली न उड़ाएँ। जो व्यक्ति जीवन में किसी की निंदा करने का पाप नहीं करता, उस व्यक्ति का अपने केवल इस एक पुण्य के बल पर देवलोक का सौधर्म इन्द्र बनना तय है । हो सकता है आपके जीवन में बहुत सारी विशेषताएँ हों, लेकिन कमी यह है कि हम लोग पीठ पीछे एक-दूसरे की टीका - टिप्पणी करते रहते हैं, एक-दूसरे की टाँग खिंचाई करते रहते हैं। आगे तो ख़ुद बढ़ते नहीं हैं और जो आगे बढ़ता है उसकी टाँग पीछे खींच लिया करते हैं। टाँग खिंचाई पाप है। कृपया केकड़े न बनें कि जो दूसरा आगे चल रहा है उसकी टाँग खींच कर पीछे ले आए। मछली बनें, जो कोई दूसरा आगे बढ़ रहा है, उसके आगे कूदकर आगे बढ़ जाएँ । हमें आगे बढ़ने का अधिकार है, पर किसी की टाँग खिंचाई करने का अधिकार नहीं है । कल की घटना है : दो-तीन व्यक्ति हमारे पास बैठे हुए थे । एक व्यक्ति ने कहा - साहब ! पिछली दफ़ा एक गुरुजी आए थे। समाज में उनके प्रवचन के बाद जीमण रखा गया था । पाँच सौ लोगों का भोजन बनाया गया था, पर क्या करें, हज़ार लोग जीम कर चले गये । बगल में बैठा था दूसरा आदमी । उसने कहा, खाना ही ऐसा बना था कि पन्द्रह सौ जीम जाते तो भी बचा हुआ रहता । यह है अपन लोगों की प्रवृत्ति । कृपया छिलके मत उतारो। प्रशंसा होती है तो कर लो, अन्यथा सबसे मीठी चुप । आदमी को केवल बोलना ही नहीं, बल्कि मौन रहना भी आना चाहिए। बोलना अगर चाँदी है, तो मौन रहना सोना है । बोलने की कला का छठा स्टेप : कभी किसी के लिए गाली-गलौच न करें। साला कहना है तो घरवाली के भाई को साला कहें। हर किसी को स्साला For Personal & Private Use Only 111 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्साला न कहें। क्योंकि गाली देते एक हैं, उलटे गाली अनेक। जो तू गाली दे नहीं, तो रहे एक की एक॥ गाली दोगे तो बदले में गाली लौट कर आयेगी और गाली नहीं दोगे तो गाली वहीं मिट जाएगी। इसलिए गाली नहीं सम्मान की भाषा बोलें। प्रभु ने हमें हाथ दिये हैं, जुबान दी है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इनका कैसे उपयोग करते हैं। इन हाथों से हम माला भी फेर सकते हैं और भाला भी चला सकते हैं। इस जुबान से हम गाली भी दे सकते हैं और गीत भी गा सकते हैं। भला जब इस जुबान से सत्य का सम्मान किया जा सकता है तो हम किसी के लिए सत्यानाश की भाषा क्यों बोलें! मीठो-मीठो बोल थारो कांई लागे। हमेशा मीठे मधुर वचन बोलें। मिठास से तो हाथी को भी वश में किया जा सकता है और कड़वाहट से नीम-करेला ही कहलाओगे। ___ बोलने की कला के संदर्भ में अंतिम बात - सातवाँ स्टेप : जो भी मुँह से शब्द बोलो, उस शब्द को मूल्य दो। याद रखना शब्द ही ब्रह्म है, शब्द ही साधना है, शब्द ही पूजा है, शब्द ही प्रार्थना है, शब्द ही धर्म है, शब्द ही मर्यादा है । इसलिए अपने मुँह से कोई भी शब्द बोलो तो अपने शब्द को मूल्य दो और कहे हुए शब्द और लिए हुए संकल्प को हर हालत में निभाओ। इसलिए कहावत है मर जाणा, पर बात रखणी। मर जाना कबूल है, पर हमने जो शब्द मुँह से कह दिया उसकी आन रखना हमारा धर्म है। सोचो वही जो बोला जा सके और बोलो वही जिसके नीचे हस्ताक्षर किए जा सकें।अपनी जुबान को मन में आये वैसे पलटो मत । संत की जुबान एक होती है। सर्प की जुबान दो होती है, रावण की जुबान दस होती है, शेषनाग की जुबान हज़ार होती है लेकिन जो बात-बात में अपनी जुबान पलटता रहता है अभी कुछ कहा, कल कुछ कहा, पता नहीं वह शेषनाग से भी कितना बड़ा नागराज है, जो बात-बात में अपनी जुबान पलटता रहता है। प्राण जाय पर वचन न जाई । हमारे कहे हुए शब्दों को, हमारी कही बात को अगर हम ही मूल्य न देंगे, तो कौन देगा। बात को दिया गया वज़न आदमी को वज़नदार बनाता है। और बगैर वज़न का आदमी दो कोड़ी का होता है। याद रखिए । दाँत कड़क होते हैं इसलिए जल्दी गिर जाते हैं, जीभ नरम होती 112 For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है इसलिए अंतिम चरण तक हमारा साथ निभाती है। बोलो, हमेशा प्रेम से बोलो, अदब से बोलो, मर्यादा से बोलो, आत्म-विश्वास और श्रेष्ठ बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए बोलो। आपकी बोली आपकी पहचान है। आपकी लोकप्रियता की आत्मा है । बोलो ऐसे जैसे पानी में शरबत घुले, दूध में मिश्री डले। अपनी ओर से प्रेमपूर्वक इतना ही निवेदन है । नमस्कार! | 113 For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्म-विश्वास से छुएँ आसमां एक नामी सीमेंट कंपनी में एक व्यक्ति इंजीनियर के रूप में कार्यरत था। संयोग की बात कि उस इंजीनियर का एक्सीडेंट हो गया और एक्सीडेंट में उसके दोनों पाँव अपाहिज हो गए। इंजीनियर का उपचार हुआ, लेकिन उपचार के दौरान न जाने रीढ़ की हड्डी की कौनसी नब्ज दब गई सो उसके हाथ ने भी काम करना बंद कर दिया। एक अपाहिज व्यक्ति किसी भी प्राइवेट कंपनी के लिए भला किस रूप में उपयोगी हो सकता है ! साल-छ: महीने तक तो वह इंजीनियर वहाँ पर काम करता रहा। कंपनी का मैनेजमेंट भी उसकी चिकित्सा कराता रहा, लेकिन लगभग साल-सवा साल के बाद उस व्यक्ति को कंपनी से मुक्त कर दिया गया। वह व्यक्ति अपने गृह-नगर कोटा चला गया। अपने आप को पूरी तरह उसने अपाहिज पाया, लेकिन एक सुबह उठकर जब उसने ईश्वर की प्रार्थना की कि तभी उसे अन्तस् से प्रेरणा मिली कि उसके पाँव तो अपाहिज हैं, उसके हाथ भी अपाहिज हैं, शरीर उसका काम नहीं दे रहा है, लेकिन अभी भी उसका दिमाग़ पूरी तरह से काम दे रहा है। उसने सोचा कि मैं अपाहिज की जिंदगी जीने की बजाय अपनी बुद्धि का श्रेष्ठ इस्तेमाल करूँगा। उसने मोहल्ले के दो बच्चों को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवानी शुरू की। न केवल वह पढ़ाई करवाता बल्कि अपने कठोर अनुशासन में उन बच्चों को तैयार भी करता चला गया। उन दो बच्चों 114 For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में से एक बच्चा इंजीनियरिंग की उच्च स्तर की पढ़ाई करने में सफल हुआ। मात्र छह-सात महीने में स्थिति यह बनी कि उसके पास बारह से तेरह लड़के पढ़ने लग गए। डेढ़-दो साल में लगभग 350 विद्यार्थी पढ़ने आने लगे । आज उस इंजीनियरिंग टीचर के पास पूरे 35000 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं । उस जुझारू व्यक्तित्व का नाम है वी. के. बंसल । उस व्यक्ति ने कोटा में बंसल इंस्टीट्यूट बनाया और कोई भी व्यक्ति अगर बंसल इंस्टीट्यूट में पढ़कर निकलता है तो उसको सीधा 40 से 50 लाख का पैकेज मिलता है, क्योंकि वहाँ से पढ़ा हुआ इंसान केवल पढ़ाई करके नहीं आता, एक गुरु के कठोर अनुशासन में से निकलकर अपने जीवन का निर्माण करके आता है । कौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो । माना कि आसमान बहुत बड़ा है, बहुत ऊँचा है, लेकिन यह तभी तक ऊँचा और विशाल है जब तक व्यक्ति पूरे मन से और तबियत से पत्थर न उछाले । जैसे ही कोई इंसान अपने भीतर किसी बी. के. बंसल की तरह अपने ज़ज़्बे को, , अपने जुनून को जगा लेता है वह भले ही शरीर से अपाहिज क्यों न हो लेकिन धरती में कुआँ खोद सकता है, समुद्र में से तेल निकाल सकता है, अंतरिक्ष में पहुँचकर नये चन्द्रलोक की अभिनव यात्रा संपन्न कर सकता है। आखिर जिसने अपने आपको केवल एक लड़की मानकर सिमटा नहीं लिया, जिसके भीतर एक ज़ज़्बा और जुनून जग गया तो वही लड़की कल्पना चावला बनकर चन्द्रलोक पहुँचने में सफल हो गई । माना कि राजस्थान में केवल रेगिस्तान ही है और जहाँ बालू के अलावा पानी के दर्शन भी नहीं होते, पर अगर कोई व्यक्ति अपने भीतर ज़मीन में से भी कुछ निकालने का जज्बा जगा ले तो बाड़मेर और जैसलमेर जैसे इलाके में जहाँ पर पानी भी कठिनाई से निकलता है, वहाँ भी पेट्रोलियम के कुएँ खोजे जा सकते हैं । इंसान के भीतर चाहिए केवल उसका एक ज़ज़्बा, एक जुनून | ज़िद करो, दुनिया बदलो । किसी भी विद्यालय या महाविद्यालय में कई छात्र एक साथ पढ़ने के लिए जाते हैं, एक ही क्लास में 60 विद्यार्थी एक साथ पढ़ते हैं। 58 बच्चे पीछे रह जाते हैं और 2 बच्चे आगे निकल जाते हैं। एक बच्चा उनमें से टॉप टेन में आने में सफल होता है। आखिर वज़ह क्या है? वज़ह केवल एक ही है कि छात्र ने पहले For Personal & Private Use Only | 115 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिन से ही अपने भीतर यह जुनून पैदा कर लिया था कि मैं टॉप टेन से नीचे नहीं आऊँगा। उसने वैसे ही गहराई से पढ़ाई करनी शुरू की और वह टॉप टेन में आने में सफल हुआ। जिंदगी केवल एक चुनौती है, मेरे लिए भी और आपके लिए भी । जो व्यक्ति जिंदगी को एक चुनौती के रूप में लेगा वह हर व्यक्ति अपनी जिंदगी का परिणाम निकाल ही लेगा। जब तक जुनून और ज़ज़्बा नहीं होगा तब तक व्यक्ति गली में गुल्ली-डंडा तो खेल सकता है, पर सचिन तेंदुलकर नहीं बन सकता । अगर केवल गुल्ली-डंडे ही खेलना हो तो उसके लिए न कोई ज़ज़्बा चाहिए न कोई जुनून । अगर केवल क्लास में पास होना है तो मास्टर जी जितना पढ़ाते हैं उसमें संतोष कर लीजिएगा, पर अगर टॉप टेन में आना है तो गुरु ने जितना सिखाया है, उसमें कभी संतोष मत करना। उस ज्ञान को और आगे से आगे कैसे बढ़ाया जाए इसके लिए अपना पुरुषार्थ शुरू कर दीजिएगा । जीवन में बस जुनून चाहिए, ज़ज़्बा चाहिए। जीवन एक चुनौती है। जुनून के जरिए व्यक्ति इस चुनौती का सामना करता है । जो जीवन को चुनौती मानते हैं वे ही अपनी ज़िंदगी में कुछ बनते हैं। माना किसी का बाप मर गया, यह एक चुनौती है, उसके लिए मानो बचपन में माँ गुज़र गई, यह चुनौती है तुम्हारे लिए। माना हमारा और आपका जन्म किसी ग़रीब घर में हुआ यह भी एक चुनौती है। चुनौती लो और इसको स्वीकार करते हुए अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा बनकर दिखाओ कि आने वाला कल यह न कह सके कि यह बिना माँ-बाप का बेटा है। कोई यह कह सके कि बचपन में इसके माँ-बाप गुज़र गए तो क्या हुआ, इसने अपने पाँव पर खड़े होकर इतनी मेहनत की है कि अपने माँ-बाप का नाम भी रोशन किया है। तुम अपने आप को विद्रोह और विरोध के रूप में मत लो। माना अगर आप पाँच भाई थे, पिताजी गुज़र गए । कुछ भाइयों ने साँठ-गाँठ करके ज़्यादा धन अपने कब्जे में कर लिया। महँगी ज़मीन अपने कब्जे में कर ली और सस्ती ज़मीन आपके हिस्से में डाल दी । तुम भूल रहे हो कि उन्होंने ऐसा करके ज़मीन को तो अपने कब्जे में कर लिया लेकिन दुनियां में कोई भी आदमी किसी के भाग्य को तो नहीं ले सकता। किसी की क़िस्मत को तो नहीं खरीद सकता, किसी के पुरुषार्थ को तो अपने यहाँ पर गिरवी नहीं रख सकता। हम लोग अपने दैनंदिन जीवन में देखते हैं कि हम लोग बन तो चुके संन्यासी । संन्यास तो ले लिया लेकिन हमारी 116 | For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिंदगी में हमारी व्यवस्थाएँ तो देखिए कि दो चाहते हैं तो दस मिलता है। दस चाहते हैं, सौ मिलता है। कहते हैं, कई संतों को तो बराबर खाने को भी नहीं मिलता और यहाँ स्थिति यह है कि कोई खाने वाला नहीं मिलता। __ जब संत बने थे तब सारी चीजें छोड़कर आये थे, पर एक चीज़ अपने साथ लेकर आये, और वह है हमारी अपनी क़िस्मत, हमारा अपना आत्म-विश्वास। अपने कर्म को जगाओ, कर्मयोग को जगाओ। हर व्यक्ति चौबीस घंटे में से 12 घंटे मेहनत अवश्य करे फिर वे बारह घंटे चाहे दिन के हों या रात के। चाहे आप डे ड्यूटी करें या नाईट ड्यूटी करें, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। जो व्यक्ति 6 घंटे मेहनत करता है वह अपने भाग्य का केवल 40 प्रतिशत हिस्सा कमा पाता है। जो व्यक्ति 8 घंटे मेहनत करता है वह व्यक्ति 60 प्रतिशत हिस्सा अपने भाग्य का कमाता है। जो व्यक्ति 12 घंटे मेहनत करता है वह 80 प्रतिशत भाग्य का कमाता है लेकिन जो व्यक्ति 16 घंटे रोज मेहनत करता है वह 100 प्रतिशत अपने भाग्य का फल प्राप्त करने में सफल होता है। परिणाम इस बात पर निर्भर करता है कि हमने अपनी तरफ से अपना कितना पुरुषार्थ किया, कितना कर्म किया। कर्मयोग के हल से ही खंडप्रस्थ को इन्द्रप्रस्थ बनाया जा सकता है। इसीलिए मैं कहा करता हूँ कि बारहखड़ी में पहले क आता है, पीछे ख आता है। क यानी पहले करो,ख यानी पीछे खाओ।कर्मयोग से जी मत चुराओ। कर्म तो कामधेनु की तरह होता है, जो कि हर इंसान को अपना मनोवांछित दिया करता है। इंसान का कर्मयोग तो इंसान के लिए किसी कल्पवृक्ष की तरह हुआ करता है। तुम उससे जो परिणाम पाना चाहो वह हर परिणाम तुम्हें उपलब्ध हो जाया करता है। निठल्ले मत बैठे रहो, निठल्ली जिंदगी मत जीओ। निठल्लापन अपराध है। अगर एक महीने में एक दिन भी निठल्ला बीत जाए तो समझ लेना वह दिन आपके जीवन का व्यर्थ गया। खुद के गाल पर चाँटा मारकर या दस मिनट मुर्गा बनकर उस निठल्लेपन का प्रायश्चित कर लेना, ताकि भविष्य में वह निष्क्रियता दुबारा न दोहराई जाए। खुद-ही-खुद को दण्ड दें कि तीन दिन में मेरे वे दो दिन बेकार गए। मैंने कुछ भी न किया केवल मटरगश्ती में, ताश और केरम खेलने में मैंने वे दो दिन बिता डाले। भगवान ने आलस्य की जिंदगी जीने के लिए हमें जिंदगी नहीं दी है। भगवान ने हमें जिंदगी इसलिए दी है कि धरती पर आए हैं तो कुछ फूल खिलाएँ। कुछ ...| 117 For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृक्ष लगाएँ। पेड़ पर नज़र डालो। उसे देखकर हमेशा सीख लेते रहिएगा कि वह कभी रुकता नहीं है । डालियाँ ऊपर बढ़ती हैं, जड़ें नीचे फैलती हैं। हर दिन पेड़ बढ़ता है, शाखाओं पर शाखाएँ बढाता चला जाता है। पत्ते पर पत्ते बढ़ाता चला जाता है । पेड़ फल भी पैदा करता है, फूल भी पैदा करता है। छाया भी देता है। पेड़ प्रतिपल प्रतिदिन संघर्ष करता है और तब कहीं जाकर आम का पेड़ आमों से आच्छादित होता है। हम भी शाखाएँ बनाएँ, प्रतिशाखाएँ बनाएँ। धीरज धरकर न बैठें। अगर आप लोग 70 साल की उम्र से पार लग गए तो संतोष धारण कीजिएगा, पर जब तक सत्तर साल की उम्र न आ जाए तब तक संतोष नहीं, तब तक केवल पुरुषार्थ करेंगे। फिर वह पुरुषार्थ चाहे भीतर का हो या बाहर का। पुरुषार्थ करो, निठल्ले मत बैठे रहो। याद रखना निठल्ला बैठना अच्छा तो लगता है, पर उस निठल्ले बैठने का कभी कोई परिणाम नहीं आता। __ मैंने अपनी माँ से बचपन में एक कहानी सुनी है कि एक महिला ने अपने पति से कहा था कि तुम दिन भर घर में निकम्मे बैठे रहते हो। बाहर जाओ, कमाकर लाओ। आदमी ने कहा - भगवान ! मैं तो ब्राह्मण हूँ और ब्राह्मण आदमी कमाना नहीं जानता। वो तो यजमानों के भरोसे चलता है। ये कैसी विडम्बना की बात है कि ब्राह्मण माँगना तो जानता है, पर कमाना नहीं जानता। पत्नी बोली - तुम चाहे जो करो पर घर से निकलो। घर में बैठा निठल्ला आदमी तो लड़ाई झगड़ा करेगा या दंगा-फसाद करेगा। खाली दिमाग़ शैतान का घर । खाली बैठे रहोगे तो क्या होगा? कभी बहू को टोकेगे, कभी पोते को डाँटोगे, घर में कुछ-न-कुछ हुज्जत करते रहोगे। निठल्ली बैठी महिला काम की नहीं होती और निठल्ला बैठा आदमी काम का नहीं होता। आप सत्संग सुनने आये हैं और आपकी चप्पल चोरी चली गई, तो पता है कौन लेकर गया? निठल्ला आदमी जो कमाकर नहीं खा सकता। अब वह चोरी करने के अलावा करेगा क्या? अगर किसी ने आपकी पॉकेट मार दी तो उसका मतलब यह हुआ कि वह आदमी मेहनत करके कमाना नहीं जानता। कौन आदमी ऐसा होगा जो चोरी का माल खाना चाहेगा? निठल्ले लोग यह उल्टे काम करते हैं, सक्रिय कर्मयोगी ईमानदारी की जिंदगी जिया करते हैं। निठल्ले शैतान लड़के चलते हैं कोई नई कार दिखी और उसके पीछे से एक पत्थर घिसते हुए निकल गए।क्यों किया? खाली दिमाग़ शैतान का घर । निठल्लों के पास करने के लिए और कुछ तो है नहीं। बनाने का काम तो कर नहीं सकते, सो बिगाड़ने का काम करते हैं। 118 | For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं एक स्कूल के पास से गुजर रहा था, भारत सरकार के समाज कल्याण मंत्रालय ने उस स्कूल का निर्माण करवाया था। हमारे स्कूलों में जिंदगी के पाठ नहीं पढ़ाये जाते। तैमूरलंग, चंगेजखाँ जैसे आतताइयों के पाठ पढ़ाये जाते हैं सो बच्चों ने क्या किया? किसी बच्चे को खरापात सझी होगी और उसने मंत्रालय पर जो बिंदु था उसको मिटा दिया, म के नीचे उ की मात्रा कर दी। अब बताओ तो क्या बन गया? (दबी ज़बान से लोगों ने कहा-) मूत्रालय। निठल्ले लोगों की ऐसी होती हैं करतूतें । वे कोई काम के नहीं होते। घर में भी अगर आपका बेटा, पोता निठल्ला रहता हो तो बोलो उसे कि घर से बाहर जा, कुछ भी काम कर लेकिन घर में फालतू मत बैठा रह। तू यहाँ बैठा रहेगा तो कुछ भी उल्टा-सीधा करता रहेगा। घर से निकाल दो, दस दिन धक्के खायेगा तब अपने आप कमाना सीख जायेगा। महिला ने पति से कह दिया कि घर से बाहर निकलो कुछ भी कमा कर लाओ। खाली हाथ मत आना, कुछ भी लेकर आना, भले ही पत्थर का टुकड़ा लेकर आना पर लेकर आना। इस तरह वह पति निकल गया। साँझ को लौटने लगा दिन भर इधर-उधर भटककर । कमाना-धमाना जानता था नहीं। रोजाना यजमानों के यहाँ चला जाता था।आटा माँगकर ले आता और बस टिक्कड़ जीम लेता। वह साँझ को घर लौटने लगा। उसे काम-धाम तो कुछ मिला नहीं, पत्नी ने कहा था कि खाली हाथ लौटकर मत आना। अब क्या ले जाऊँ घर पर, क्या ले जाऊँ, इसी उधेड़बुन में था कि इतने में देखा कि घर से सौ मीटर की दूरी पर एक साँप मरा हुआ पड़ा था। उसने सोचा यह ठीक है यही ले जाता हूँ। अगले दिन से घरवाली मुझे बाहर भेजेगी ही नहीं। एक ही दिन में ठंडी पड़ जाएगी। सो उसने एक सूखी लकड़ी उठाई और उस मरे हुए साँप को ले आया। आकर घरवाली से कहा - ये लेकर आया हूँ। घरवाली ने कहा - कोई बात नहीं, कुछ-न-कुछ तो लाये हो। घर पर दिन भर निठल्ले बैठने की बजाय कुछ-न-कुछ तो लाये हो भले ही मरा हुआ साँप ही सही। उसने वह लकड़ी ली और अपनी झोंपड़ी के ऊपर उस मरे हुए साँप को फेंक दिया। तुम मेहनत करके लाये हो और मेहनत की कमाई का क्या फल होता है यह तो ऊपर वाला दाता जाने कि मेहनत करने वाले को दाता क्या फल देता है? वह अपना खानापीना करने लग गया। | 119 For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगले दिन सुबह की बात है कि एक बाज उड़ता हुआ जा रहा था, कोई हार चोंच में दबाए। बगल में राजसरोवर में महारानी नहा रही थी। उसने अपने गहने निकाल कर रखे थे, उड़ता हुआ बाज आया, उसने मोतियों का नवलखा हार देखा और झट से पंजे में पकड़ कर उड़ गया। उधर महारानी को उनका नवलखा हार मिल न पाया। बाज ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा था। उसने ब्राह्मण की झोंपड़ी की छत पर मरा हुआ साँप देखा। बाज आहार की तलाश में था। वह नीचे आया, नवलखा हार तो छोड़ गया और साँप अपने साथ लेकर उड़ गया। __ क्या आप समझ गए कि मेहनत कब कौन-सा फल दे देती है? कहानी प्रतीकात्मक है, पर है प्रेरणादायी। कहानी बताती है कि निकम्मे निठल्ले मत बैठे रहो, कुछ-न-कुछ करते रहो। मिट्टी भी खोदोगे तो उसमें भी कमाई कर लोगे। खाखरे का धंधा करोगे तो उससे भी कमाई कर लोगे। घरेलु उद्योगों को महत्त्व दो। अगर लगता है कि आप लाखों नहीं कमा सकते क्योंकि आपके पास धंधा करने के लिए धन नहीं है तो ग़लत सोच रहे हो! घर में चार किलो आटा तो है उससे खाखरे बना लीजिए, और शाम तक बेच डालिए।आप खाखरा बना सकते हैं। घर में मिर्ची, धनिया, हल्दी कूट पीस सकते हैं। छोटे-छोटे कई धंधे हो सकते हैं। आज कोई धंधा आपको छोटा लगता होगा, पर उसे करते-करते आप पैसा कमा लें, तो उसे छोड़ दीजिएगा। तब आप भी एक फैक्ट्री खोल लीजिएगा। जब तक फैक्ट्री खोलने का सामर्थ्य नहीं है, तब तक दुकान खोलो और दुकान खोलने की ताक़त नहीं है तब तक खाखरा बनाने का भी धंधा शुरू कर दो, पर घर में निठल्ले मत बैठे रहो। पापड़ का धंधा आपको छोटा लगता होगा, पर पापड़ के धंधे में ही कोई लज्जत पापड़ के नाम पर अमीर बना हुआ है। साबुन-सर्फ का ठेला चलाकर भी कोई आदमी एक दिन निरमा का मालिक बना हुआ है। जूते-चप्पल में भी कोई बाटा बन सकता है और लोहा-कबाड़ी के काम में कोई टाटा बन सकता है। ऊँचाई पर न पहुँचो तब तक धंधा छोटा है, पहुँच गए तो वही बड़ा बन जाता है। अपने भीतर की सोई हुई चेतना को जगाओ। आज से अपने भीतर इतना ज़ज़्बा तो ज़रूर लगा लो कि यह हाथ का कटोरा अब किसी के आगे नहीं फैलाएँगे। अगर छात्र हैं तो मैं आपसे कहना चाहूँगा कि जिस दिन मैट्रिक पास कर लो उसके बाद भूल-चूक से भी अपने माँ-बाप से अपनी ग्यारहवीं की पढ़ाई के पैसे मत लीजिएगा। छोटे बच्चों की ट्यूशन कर लीजिएगा। इससे आपने जो ज्ञान 120 | For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अर्जित किया उस ज्ञान की पुनरावृत्ति होगी, वह ज्ञान परिपक्व होगा।आप टीचिंग करना सीखेंगे और अपने मासिक खर्चे की व्यवस्था करने में भी खुद सफल हो जायेंगे। इस देश के अगर सारे छात्र 10वीं पास करने के बाद टीचिंग करना शुरू कर दें तो लोगों को कभी बी.एड. करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। दसवीं पास करते ही टीचिंग का काम शुरू कर दिया तो कोई भी बच्चा अपने माँ-बाप के लिए भार नहीं बनेगा और हर कोई बच्चा आने वाली पीढ़ी को तैयार करने में अपनी अहं भूमिका निभाएगा। सोलह साल की उम्र होते ही आप अपने देश के लिए अपनी आहुति अर्पित करने में सफल हो जायेंगे। इसीलिए कहता हूँ- ज़ज़्बा जगाओ, जनन जगाओ। ग़रीब हैं पर अपने मन को ग़रीब मत होने दो। शरीर भले ही पंगु हो, पर मन को पंगु और अपाहिज मत होने दो। अपने मन को मज़बूत रखो। जिन लोगों के भीतर मन की मज़बूती होती है वे लोग ही अपने जीवन की नौका को हँसते-गाते पार लगाने में सफल होते हैं। बाकी तो मन डूबा कि समझो जिंदगी डूबी और मन तिरा कि जिंदगी तिरी। ____ आज की समस्या तन की बीमारियों की कम, मन की बीमारियों की ज़्यादा है। लोग शरीर से बूढ़े बाद में होते हैं, मन से पहले हो जाते हैं, जबकि मन अभी बूढ़ा नहीं हुआ है। साठ के हो गए अब तो क्या कर सकते हैं, अब तो सत्तर के हो गए, अब तो जाने की वेला आ गई। अब तो अस्सी है। बस इंतजारी कर रहे हैं। ले देकर हमारे देश के लोग मौत के बारे में सोचते रहते हैं. ज़िंदगी के बारे में नहीं सोचते । मैं तो केवल जीवन के गीत गाता हूँ। जीवन को स्वर्ग बनाता हूँ,जीवन के पाठ पढ़ाता हूँ और जीवन की गीता लिखता हूँ। मरेंगे, निश्चित तौर पर हम मरेंगे। महावीर भी मरे, राम भी मरे, कृष्ण भी मरे, मैं भी मरूँगा, आप भी मरेंगे। पर मरने से पहले क्यों मरें? बुढ़ापा आयेगा तो आयेगा एक दिन के लिए बूढ़े बनेंगे। मैं तो कहूँगा केवल एक मिनट के लिए बूढ़े बनो। बूढ़े हो गए यानी अब मर-मरा कर पूरे हो जाओ। बुढ़ापे को दस साल तक मत ढोओ। दस साल तो जिंदगी को जीओ।खुद को बूढ़ा मान चुके अगर आज भी अपनी जिंदगी में जवानी का जोश लेकर आ जायें, रोज़ ठुमकना शुरू कर दे, रोज़ अगर डांस करना शुरू कर दें, अपने भीतर जोश जगा दें तो मात्र सत्ताईस दिन में वे अपने बुढ़ापे को पराजित करने में सफल हो जायेंगे। मात्र सत्ताईस दिन में। है अगर दूर मंज़िल तो क्या, रास्ता भी है मुश्किल तो क्या, रात तारों भरी ना मिले तो, दिल का दीपक जलाना पड़ेगा। | 121 For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिंदगी प्यार का गीत है, इसे हर दिल को गाना पड़ेगा। जिंदगी ग़म का सागर भी है, हँस के उस पार जाना पड़ेगा। हर आदमी अपने भीतर जोश जगा ले और यह कहना छोड़ दे कि मैं कुछ नहीं कर सकता। हर शख्स जोश और तबियत के साथ कहे कि मैं हर काम कर सकता हूँ। नासमझ लोगों के लिए होता है असंभव। आलसियों के लिए होता है नामुमकिन। तीर-कमान उठाओ और असंभव पर निशाना लगाओ। जैसे ही निशाना लगेगा असंभव का अनीचे गिर जाएगा और सब कुछ संभव हो जाएगा। महावीर और बुद्ध का प्रसिद्ध वचन है – 'अप्प दीपो भव' अपने दीप तुम खुद बनो। कोई अगर तुम्हारा साथ दे तो ठीक है, नहीं तो अकेले ही अंधेरे से लड़ो।निर्बल से लड़ाई बलवान की, यह कहानी है दीये की और तूफान की। जिसका जितना हो आँचल यहाँ पर, उसको सौगात उतनी मिलेगी फूल जीवन में गर ना मिले तो, काँटों से भी निभाना पड़ेगा। याद रखें, खाली बोरी कभी खड़ी नहीं हो सकती। बोरी को खड़ा करने के लिए उसमें कुछ-न-कुछ भरना पड़ता है। भरने के नाम पर सबसे पहले तो ज़ज़्बा और जुनून ही भरना पड़ता है, आत्म-विश्वास भरना पड़ता है। आत्म-विश्वास से बढ़कर कोई मित्र नहीं होता, आत्म-विश्वास से बढ़कर कोई संबल नहीं होता। आत्म-विश्वास से बढ़कर कोई ताक़त और दौलत नहीं होती।आत्म-विश्वास से बढ़कर कोई संजीवनी नहीं होती। सबकी ताक़त एक ही है और वह है भीतर पलने वाला आत्म-विश्वास । आत्म-विश्वास यानी खुद पर खुद का यकीन । भले ही आपकी छाती 36 इंच की ही क्यों न हो, पर अपने दिल को भीतर से 36 इंच का करना सीखो। शरीर तो मेरा भी कोई ताक़तवर नहीं है, भारी नहीं है। भारी शरीर का कोई मूल्य नहीं होता, असली ज़ज़्बा दिल का चाहिए, भीतर का चाहिए। भीतर में अगर ज़ज़्बा है तो नब्बे साल का बूढ़ा भी कोई बूढ़ा नहीं है वह भी युवा है। नब्बे साल का डोकरा भी छोकरा है, अगर जीना सीख जाए तो! ऐसा हुआ। एक राजा पर किसी दूसरे राजा ने हमला बोल दिया। जिसने हमला किया वह बड़ा शक्तिशाली राजा था। सेनापति ने राजा को समझायामहाराज! आत्मसमर्पण कर दीजिए क्योंकि सामने वाली सेना हमसे दुगुनी है। शस्त्र और हथियार भी अपने से ज्यादा तेज हैं। वे ज़्यादा प्रशिक्षित लोग हैं। राजा को भी लगा कि सेनापति ठीक कह रहा है, जब सेनापति ही ठंडा पड़ रहा है तो 122 | For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी बंदूक किसके ऊपर रखेगा? आत्मसमर्पण की बात आ गई। राज्य में ढिंढोरा पीट दिया गया कि आत्मसमर्पण कल सुबह होगा। तभी साँझ को एक संत आए। संत ने राजमहल में खड़े होकर कहा – महाराज, यह मैं क्या सुन रहा हूँ कि आप आत्मसमर्पण कर रहे हैं? मरने से पहले मर रहे हैं आप! राजा ने कहा - आप कहना क्या चाहते हैं? संत ने कहा - राजन् ! मैं अभी-अभी देवी के मंदिर से आ रहा हूँ। देवी ने मुझे आशीर्वाद दिया है और कहा कि जा, राजा से कह दे कि मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है। तू लड़ाई कर, युद्ध में विजय तेरी होगी! राजा ने सोचा कि यह देवी के आशीर्वाद का प्रसंग कहाँ से आ गया? राजा संत से बोला - क्या सबूत है तुम्हारे पास कि तुम देवी का आशीर्वाद लेकर आये हो, कहीं मैं मारा गया तो? कहीं यह सेना पीछे हट गई तो? राजा ने जैसे ही आशंका जताई कि सेनापति ने भी अपनी तरफ से टिप्पणी की। संत ने कहा - ठहरो, हम अभी सिक्का उछाल कर देख लेते हैं। अगर सिक्का सीधा गिरा तो तुम जीतोगे और अगर सिक्का उल्टा गिरा तो तुम हारोगे। बात पक्की हो गई। संत ने हाथ सीधा जेब में डाला और सिक्का निकाला। सिक्का आसमान में उछाला। सिक्का जैसे ही ज़मीन पर गिरा तो संत ने ताली बजा दी और कहा कि देखो, सिक्का सीधा गिरा है। सेनापति ने कहा - भले ही सिक्का सीधा गिरा हो पर मैं सहमति नहीं रखता उस सामने वाले से मुकाबला करने के लिए। संत ने गरजकर कहा - हट रे सेनापति ! बुजदिल कहीं का। अरे तेरे भरोसे कोई युद्ध जीते जाएँगे? कायरता और नपुंसकता के भरोसे कोई लड़ाई जीती जा सकती है? अलग हट । मैं बनता हूँ सेनापति, आओ हम लोग युद्ध के लिए रवाना होते हैं। राजा ने पूछा - तुम तो संत हो, तुमने तलवार कभी हाथ में उठाई भी है? संत ने कहा - इसका निर्णय तो युद्ध के मैदान में ही होगा। कहते हैं, संत को सेनापति बना दिया गया संत चढ़ गया रथ पर। गुल्लीडंडा भी खेलना आता नहीं होगा, पर जोश जगा दिया सेना में और निकल पड़ी सेना कि देवी का आशीर्वाद साथ में है। अब तक तो सेनापति की बुज़दिली साथ में थी। सेना रणक्षेत्र में पहँची भी न थी कि संत ने कहा- ठहरो, मैं देवी के मंदिर में यज्ञ कर लेता हूँ, पूजा अनुष्ठान कर लेता हूँ और फिर तुम लोगों को बता देता हूँ कि यहाँ पर भी देवी का क्या आशीर्वाद है? बस दो घंटे उसने यज्ञ किया। फिर उसने वही सिक्का निकाला। सेना पूरी उत्सुकता से तैयार हो गई, सिक्का उछाला गया और जैसे ही सिक्का आकर गिरा, सिक्का | 123 For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सीधा गिरा और पूरी सेना में जोश जग गया कि देवी भी हमारे साथ है, सारे देवता भी हमारे साथ हैं। सभी युद्ध के मैदान में पहुँच गए, सामने इतनी भयंकर सेना को देखा, एक बार तो काँप गए। संत को भी लगा कि शायद कुछ गड़बड़ हो रहा है। उसने कहा - ठहरो, एक बार फिर सिक्का उछालकर देख लेते हैं ताकि मन की शंका निकल जाए और उसने युद्ध के मैदान में फिर सिक्का उछाला। सिक्का फिर सीधा गिरा। जैसे ही सैनिकों ने देखा कि अब भी देवी माँ का आशीर्वाद हमारे साथ है, सेना में चार गुनी ताक़त आ गई और भिड़ पड़े। लोग समझते थे महीनों युद्ध चलेगा पर सूर्यास्त नहीं हुआ। उसके पहले जीतकर लौट आए। ___ संत की जय-जयकार होने लगी। संत वापस आया और राजा का अभिवादन किया। राजा ने कहा- सब देवी माँ की कृपा है। संत ने कहा- राजन! यह देवी माँ की कृपा से ज्यादा सैनिकों के भीतर आत्म-विश्वास और जोश की परिणति है। राजा बोले - तुम कहना क्या चाहते हो? उसने जेब में हाथ डाला, सिक्का निकाला, फिर उछाला, सिक्का सीधा आकर गिरा।संत ने राजा से कहा - राजन् ! सिक्का लो हाथ में और उछालो। राजा ने भी उछाला। सिक्का सीधा गिरा। उसने जब सैनिकों को सिक्का दिया और कहा कि सारे लोग मिलकर उछालो । सबने मिलकर सिक्का उछाला। सिक्का सीधा गिरा। सब लोग भौंचक्के रह गए। संत ने रहस्य खोला। कहा - सिक्के को जब भी गिराओगे यह सीधा ही गिरेगा क्योंकि इसमें उल्टे वाला भाग है ही नहीं। इधर भी सीधा है और उधर भी सीधा है, इधर भी भारत है और उधर भी भारत ही है,अब तुम उल्टा लाओगे कहाँ से? सफलता का एक ही राज़ है: अपना सिक्का हमेशा सीधा रखो। मुझे तो कोई अगर सम्मान देने आ जाए, पाँव में चंदन की पूजा करने आ जाए तो भी साधुवादसाधुवाद और अगर कोई जूतों की माला पहनाने आ जाए तो भी साधुवाद... साधुवाद। मुझे ऐसा लगेगा कि तुम मुझे अपने पाँव में झुकने नहीं देते, पर बीस जूते एक साथ लेकर आये तो माथे को तुम्हारे जूतों को लगाने का सौभाग्य मिल गया। ऐसे में आप मुझे प्रणाम करने देते नहीं हैं, कहते हैं - आप संत हैं, आप गरुजी हैं, आप हमें कैसे प्रणाम कर सकते हैं। अपना सिक्का तो हमेशा सीधा ही गिरेगा। चित गिरे कि पुट अपना सिक्का तो सीधा ही दिखाई देगा। क्या करें कि जग जाए आत्म-विश्वास, कि सिक्का उछालने की नौबत ही न आए। जो डरपोक होते हैं वे चोर को देखकर डर जाते हैं, चोर की तो छोड़ो चूहे 124 For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को भी देखकर डर जाते हैं । हिन्दुस्तान की महिलाओं की तो मत पूछो। ये तो छिपकली से भी डरती हैं, छिपकली तो तुमसे डर रही है, तुम उससे डर रहे हो ! अभी दो दिन पहले बगल में किसी घर में साँप आ गया। माँजी आई और कहने लगी कि बापजी मेरे घर में साँप आ गया। मैंने कहा श्रावण का सोमवार है, महादेव जी आ गए। इसमें घबराने की क्या बात है ? वह कहने लगी - रात कैसी निकलेगी। मैंने कहा इतना ही डर है तो किसी को बुला कर निकलवा दो, वह तो ऐसे ही निकल जाता है। अब सपेरे को बुलाकर लाये, 350 रुपये खर्च किए और साँप को बाहर निकाला। मैंने कहा वह भी तो इंसान था । उसने निकाला, तुम भी निकाल सकते थे । नहीं... नहीं... डर लगता है । चूहे और छिपकली से डरने वाला हिन्दुस्तान ! 1 सड़क पर चलता है तो इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ झंडे लेकर चलता है और घर में आता है तो छिपकली और चूहे से भी डरता है । वह हिन्दुस्तान कि जिसके सीने पर कभी महाभारत सरीखे युद्ध लड़े गए थे और जहाँ पर भगवान ने कभी शंखनाद करके भीतर सोया हुआ पुरुषत्व जगाया था। अब फिर से ऐसे ही किसी भगवान की ज़रूरत है जो हिन्दुस्तान की सोई हुई महिलाओं की आत्मा को जगा दे। -- क्या करें कि जग जाए आत्म-विश्वास, छोटे-छोटे कुछ व्यावहारिक प्रयोग लीजिए। अगर हमें अपना आत्म-विश्वास जगाना है, तो पहला काम यह कीजिए कि सुबह जैसे ही आँख खुले, खुलते ही फुर्ती के साथ उठिए । आलसी या मुर्दे की तरह मत उठिए। मम्मी जगाती है - बेटा, उठ रे । हम मुँह बिगाड़ कर कहते हैं ऊं...ऊं, मम्मी फिर कहती है - उठ ना । आप फिर कहते हैं ऊं...ऊं । ऐसे तो कब्रिस्तान के मुर्दे उठते हैं। कृपया ऐसे मत उठो कि विधाता नाराज हो जाए। ऐसे उठो कि घर में रहने वाले लोग चुटकी बजाएँ और आप उठ जाएँ । आखिर हम लोग अलार्म लगा-लगाकर कब तक उठते रहेंगे। खुद के भीतर आत्म-विश्वास लाओ। रात को सोते समय घड़ी को नहीं, अपने तकिये को ही कह दो कि हे तकिया देवता, सुबह साढ़े पाँच बजे जगा देना | आज प्रयोग करके देख लेना कल सुबह आपकी आँख न खुले तो मुझसे कह देना । देवता तो अपने साथ हैं, कोई ऊपर से थोड़े ही बुलाने पड़ते हैं । हमारा आत्म-विश्वास ही हमारा देवता है । जैसे ही सुबह आँख खुले, खुलते ही फुर्ती से उठ जाइए। बिस्तर और तकिये को जितना जल्दी हो सके अपने आप से अलग कर दीजिए। जैसे जूता अगर नया | 125 For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहना हुआ हो, काटने लगता है तो आप उसको कितनी देर तक पहन कर चलते हैं? जल्दी से खोलते हैं कि नहीं? अगर कपड़ा पुराना हो गया है तो आप कितनी देर लगाते हैं उसको हटाने में? ऐसे ही आँख खुलते ही बिस्तर और तकिये को उठाकर एक तरफ रख दीजिए। फुर्ती से उठिए, क्योंकि फुर्ती से उठना आत्मविश्वास जगाने का पहला मंत्र है। अगर आपको लगता है कि आपका बच्चा फुर्ती से नहीं उठता, तो एक लोटा पानी पास में रखो और डाल दो, वह एक ही दिन में सुधर जाएगा, बिस्तर गीला होगा कोई बात नहीं, वैसे भी बचपन में उसने कई बार बिस्तर गीला किया होगा। एक बार और सही । घर में और बिस्तर हैं, लगा देंगे, पर बच्चा तो सुधर जाएगा न् ! फुर्ती से उठो, सुस्त मत रहो । पता है सर्दी में महिलाएँ नहाती हैं दो बजे तक और पुरुष नहाते हैं 9-10 बजे तक । गर्म पानी नहीं हो तब तक नहाते ही नहीं । अरे भाई ! दो लोटे पानी न गिराओ, तभी तक सर्दी रहती है, जैसे ही बदन पर दो लोटे पानी गिरता है, सर्दी भाग जाती है । जब तक गर्म पानी से नहाते रहोगे तब तक सुस्त, सुस्त, सुस्त रहोगे, और जैसे ही ठंडा पानी गिराओगे चुस्त, चुस्त, चुस्त हो जाओगे। सुबह उठो, फ्रेश होओ और नहा लो, नहाते ही फुर्ती आ गई। फुर्ती से उठो, फुर्ती से बैठो, फुर्ती से सभी काम करो । काम करो या न करो, कम से कम सुबह तो फुर्ती से उठ ही जाओ। रात को सोते ही जिसको प्यार की नींद आ जाए और सुबह सूरज उगने से पहले ही जिसकी नींद खुल जाए वह इंसान के रूप में भी कोई देवता ही होता है । बुद्धिमान, धनवान और तंदुरुस्त रहने का पहला मंत्र है : रात को जल्दी सोओ, सुबह जल्दी जागो। लोग मुझसे पूछते हैं कि आपको रात को नींद तो बराबर आई ? अरे भाई ! टेंशन नहीं है, चिंता नहीं, भय नहीं, फिर नींद बराबर क्यों नीं आयेगी ! चिंता तुम्हें है कि कल रोटी क्या बनानी है, हमें किस की चिंता ? मस्त रहो, अपने को कोई चिंता नहीं है, कोई दायित्व नहीं । मस्त रहना, अनांदित रहना - केवल एक ही काम है अपना । सो हर हाल में मस्त रहो । मस्त रहो मस्ती में आग लगे बस्ती में । जो होना होगा सो होगा। सुबह पहला काम : फुर्ती से उठो । T दूसरा काम सुबह 15-20 मिनट टहलने चले जाओ पूरी गति के साथ । धीमे-धीमे मत चलिएगा। पूरी गति के साथ बीस मिनट टहल कर आ जाइएगा या अपने घर की छत पर चले जाइएगा। दस मिनट तक योगासन और दस मिनट तक प्राणायाम कर लीजिएगा । आत्म-विश्वास जगाने के लिए, सोई हुई ऊर्जा और चेतना को फिर से सक्रिय करने के लिए प्राणायाम रामबाण दवा का काम करता 126 For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। साईकिल पर कितने लोगों को ले जा सकते हो आप? दो या तीन। अगर साइकिल की हवा निकाल दें तो खुद को ही नहीं ले जा पाओगे, दो-चार की तो दूर रही। हवा में कदम है, हवा में बड़ी ताक़त है। हवा से अगर टायर-ट्यूब भरकर चार लोगा क. जाया सकता है तो क्या इस काया में हवा भरकर तरोताज़ा नहीं किया जा सकता? शरीर को, दिमाग का, प्राणों को, चेतना को, हृदय को सक्रिय करने का सबसे कारगर तरीका है : प्राणायाम करो। केवल दो मिनट का प्राणायाम करके देखिए कि आपके भीतर ऊर्जा का संचार हुआ या नहीं। केवल दो मिनिट का प्राणायाम करते हैं और यह प्राणायाम है दिमाग़ के टेंशन को दूर करने का। यह माइग्रेन को दूर करने का। भीतर में जमे हुए तनावों को दूर करने का प्राणायाम । जब कोई व्यक्ति टेंशन से उबर जाता है, चिंता से मुक्त हो जाता है, भीतर के दबाव कम हो जाते हैं, तो अपने आप ऊर्जा जाग्रत हो जाती है। हाथों को कंधे के पास लाइए। हाथ की मुट्ठी बाँध लेंगे। साँस लेते हुए हाथों को ऊपर ले जायेंगे और साँस छोड़ते हुए हाथों को वापस नीचे लायेंगे। अब मुट्ठी बाँध लीजिए। पूरी गति से करेंगे। पूरी मस्ती से, पूरे तन-मन से। मुट्ठी बाँध लीजिए। केवल दस बार करके देखेंगे कि हमारे दिमाग़ पर, हमारे शरीर पर कितना सकारात्मक प्रभाव आया। कंधे के बराबर हाथ लाइए। मुट्ठी बाँधिये। ऊपर-नीचे। रिलेक्स । पूरी बॉडी को, दिमाग़ को आधा मिनट रिलेक्स कीजिए। पहला काम मैंने बताया कि फुर्ती से उठो, दूसरा काम प्राणायाम करो। इसका नाम है मस्तिष्क-शुद्धि प्राणायाम। संबोधि-साधना शिविर में प्राणायाम करवाते हैं उसमें से यह प्रयोग आत्म-विश्वास जगाने का प्राणायाम है। तीसरा : कमर को सीधा रखा करो, सीधे बैठने का अर्थ यह नहीं कि अकड़कर बैठो। अपनी कमर की ताक़त स्वयं ही समझ लो और अपनी कमर जितनी सीधी रह सकती है उतनी ही सहज सीधी रखो। आत्म-विश्वास तब तक रहेगा जब तक कमर सीधी रहेगी और जैसे ही झुके कि आत्म-विश्वास भी झुकने लग गया, आप आलस्य में चले गये। नींद आने लग गई। हिन्दुस्तान में जितने सत्संग और प्रवचन होते हैं वहाँ पर आधे लोग झोंके खाते रहते हैं। यहाँ मैं ऐसा होने ही नहीं देता क्योंकि ऐसा होने का मौका ही नहीं मिलता। आदमी का तार से तार इतना जुड़ जाता है कि वह भूल जाता है कि वह कहाँ बैठा है। एक ही तार से | 127 For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तार...। लोग हिप्नोटाईज्म करते होंगे, भाई शब्द भी हिप्नोटाईज्म कर सकता है, बिल्कुल आत्मा से आत्मा जुड़ जाती है। देह की वीणा के तार झंकृत हो जाते हैं। चौथा काम - हमेशा हास्य बोध बनाये रखिए। मुर्दे की तरह मत रहो। रोते मत रहो। रोना ज़िंदगी में तभी चाहिए जब दूसरों की पीड़ा देखो तब आँखों में से आँसू ढुलका देना, बाकी जिंदगी में कभी रोने का क्या काम? अपनी पीड़ा को देखकर रोने लगे तो इसका मतलब आपको अभी तक जीना ही नहीं आया। महावीर स्वामी जी को न जाने कितने संघर्ष, कितने कष्ट झेलने पड़े थे परन्तु फिर भी वे डिगे नहीं। साढ़े बारह वर्ष तक झेलते रहे, लोगों ने कानों में कीलें भी ठोंक दीं, पर वह सख्श डिगा नहीं, अडिग रहे, अविचल रहे और तभी तो उनको परम ज्ञान और कैवल्य ज्ञान मिला। मुर्दे की तरह नहीं जिएँ। आपके चेहरे को देखकर लगना चाहिए कि आप किसी मंदिरजी की मूर्ति नहीं हैं बल्कि आप धरती पर चलते-फिरते भगवान की प्रतिमा हैं। मंदिर में भी भगवान है और मंदिर के बाहर भी भगवान है । वहाँ पर मौन भगवान है और यहाँ पर चलते-फिरते भगवान हैं। अगर आप भी यों ही बैठे हैं, हिलते नहीं, डुलते नहीं। कुछ बोलो तो बतियाते नहीं बस बैठे हैं, तो फिर आपके पास क्या जायें? मंदिर जी में ही चले जायें! वहाँ पर भगवान हैं ही, फिर उनसे बोलेंगे। आपको देखकर लगना चाहिए कि गुलाब का फूल खिल गया। घर पर कोई मेहमान आया तो आप कहेंगे देखो फिर आ गया। वहीं पर यदि आप कहें कि आप आये हैं, अरे भाई बड़ा मज़ा आ गया, एक पाव खून बढ़ गया। हास्य बोध व्यक्ति को अपने भीतर बनाये रखना चाहिए। हँसता हुआ बच्चा अच्छा लगता है और रोता बूढ़ा भी बुरा लगता है। कोई दादाजी ने मुझे बताया कि उनका पोता रोता है तो कितना बुरा लगता है, संभाला ही नहीं जाता, बोलते हैं बहूरानी तू ही ले जा और हँसता है तो इच्छा होती है उसको गोद में लूँ, प्यार करूँ क्योंकि हँसता बच्चा स्वर्ग की किलकारी है। अपने भीतर हमेशा हास्य बोध बनाये रखिए। सुबह भी हँसिए, दोपहर में भी हँसिए, रात को भी हँस लीजिए। आधी रात को अगर आँख खुल जाए तो भी हँस लीजिए। लोग लाफिंग क्लब चलाते हैं, हमें हँसना ही नहीं आता। हमारे देश की महिलाओं को केवल रोना आता है। भाई रोना-धोना छोड़ो। ज़ज़्बा जगाओ, विश्वास जगाओ और हँसने-मुस्कुराने की आदत डालो। किसी भी रूप में हँस लो, पर हँसो। पर किसी दूसरे पर मत हँसिएगा। बाकी दिन भर हँसते रहिएगा। हँसते रहेंगे तो बालम भी अच्छे लगेंगे 128 | For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं तो वे भी जालम जी लगेंगे। हास्य बोध रखो । I ऐसा हुआ कि एक महानुभाव आये और कहने लगे कि साहब हमारा अमेरिका तो बड़ा विचित्र देश है । वहाँ पर तो जितनी शादियाँ होती हैं सारी की सारी ई-मेल से होती हैं। मैं मजाक के मूड में था । मैंने कहा माफ़ करना भाई तुम्हारे यहाँ ई-मेल से होती होंगी, हमारे यहाँ तो आज भी फीमेल से होती हैं। ऐसा हुआ ग़रीब बेकरी वाले के पास एक आदमी गया और जाकर बोलने लगा - क्यों जी कुत्तों के लिए बिस्कुट हैं? अगला भी महागुरु था । उसने कहा -क्यों जी यहीं खायेंगे या पैक कर दूँ? - हँसने का कोई भी बहाना ढूँढा जा सकता है। चुटकुला । हँसने-हँसाने का ही माध्यम है। वातावरण की बोझिलता को दूर करने का सबसे बड़ा ज़रिया है चुटकुला । हताशा, निराशा, चिंता, हीनभावना को दूर करने का सबसे प्रभावी तरीका है : खुद भी मुस्कुराओ और दूसरों को भी मुस्कुराने का अवसर प्रदान करो । हँसना और मुस्कुराना अपने व दूसरों के दुख-दर्द को दूर करने का सबसे प्रभावी और मनोवैज्ञानिक तरीका है । पाँचवीं बात : वीर हनुमान को अपना आदर्श बनाओ। हनुमान जी आत्मविश्वास के प्रतीक हैं । उनके लिए असंभव जैसा कोई काम नहीं है । हनुमान के आते ही असंभव का 'अ' हट जाता है और सब कुछ संभव बन जाता है। सीताजी का अपहरण हो जाने पर उन्हें ढूँढ निकालना असंभव जैसा कार्य था । उस समय न आज जैसी सीबीआई थी, न उपग्रह और सेटेलाइट फोन सुविधा, पर हनुमान जी अकेले ही सम्पूर्ण सीबीई थे । जांबवंत ने उनके सोये हुए पौरुष को जगाया तो परिणाम ये निकला कि जिस सीताजी को स्वयं श्री राम नहीं खोज पाए, वह काम हनुमान ने कर दिखाया। 400 योजन दूर लंबा लंका को भी ढूँढ निकाला और माँ सीता को भी । तब स्वयं राम ने कहा था- मेरे जीवन में हनुमान जैसा हितैषी और कोई नहीं है । मैं तो कहूँगा जब-जब आपका मन कमज़ोर पड़ जाए, हनुमान जी की जय बोलो और कूद पड़ो मैदान में, आपकी नैया कैसे पार लग जाएगी आपको पता ही नहीं चलेगा। मैं भी अनेक दफ़ा हनुमानजी को याद कर लेता हूँ । विश्वास कीजिए हनुमान हर दुर्बल मन के राम हैं। मैंने सुना है : अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा भी हनुमान जी की तस्वीर का लॉकेट पहनते हैं । परिणाम देख लो : जीत For Personal & Private Use Only | 129 Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनकी है। महादेव जी समाधि में बैठे हैं और महावीर जी सिद्ध शिला में। अब काम आएँगे ये हनुमान जी। और वो भी चुटकी में। हनुमानजी का विरोध मत करना, हनुमान जी से पंगा लिया, तो खटिया खड़ी हो जाएगी। आत्म-विश्वास जगाने के लिए गीता भी उपयोगी है। गीता आत्म-विश्वास जगाने का ही शास्त्र है। मुझ पर गीता का उपकार रहा है। एक बार जब मेरा मनोबल दुर्बल हो गया था, गीता के दूसरे अध्याय को पढ़ते हुए मेरी चेतना जागृत हुई थी कि अपने मन की तुच्छ दुर्बलता का त्याग करो। घबराओ : मत, कर्त्तव्यपथ पर कदम बढ़ाओ, मैं तुम्हारे साथ हूँ। मेरे लिए गीता का यह वचन ब्रह्मवाक्य की तरह है कि ईश्वर हमारे साथ है - जीवन में फिर डर किस बात का, भय किसका? हम्पी की कन्दराओं में रहने वाले एक योगी संत हुए हैं : सहजानंदजी। मैं उनकी गुफाओं में रहा हुआ हूँ। वे सिंह-चीते जैसे जानवरों से घिरी उन गुफाओं में निर्भय रहते थे। उनकी निर्भयता से मैं भी अन्तर-प्रेरित हुआ हूँ। ___ मैं आपको इस बात के लिए प्रेरित करूँगा कि मार्ग चाहे सफलता का हो, चाहे केरियर-निर्माण का, चाहे विद्यार्जन का हो या साधना का, हर पुरुषार्थ करते समय विश्वास रखो कि ईश्वर हमारे साथ है। ईश्वर हमारे साथ है : यह सकारात्मक सोच ही आत्म-विश्वास की आधार-शिला है। घबराओ मत, डर के आगे ही जीत है। बिना रिस्क उठाए इश्क नहीं हो सकती और बिना भय भगाए विजय नहीं मिल सकती। लक्ष्य निर्धारित करो, लक्ष्य के प्रति सोच और मानसिकता को सकारात्मक तथा उत्साहपूर्ण बनाओ। पुरुषार्थ करो, प्रभु हमारे साथ है। आज कदमों में खंडप्रस्थ है। तो क्या हुआ, विश्वास रखो प्रभु है तो खंडप्रस्थ भी इन्द्रप्रस्थ बनेगा। आग सबके भीतर है, ज़रूरत है सिर्फ उस आग को जगाने की, आत्मा को झकझोरने की। हज़ारों मंज़िलें होंगी, हज़ारों कारवां होंगे। निगाहें हमको ढूँढेंगी, न जाने हम कहाँ होंगे। न जाने हम कहाँ होंगे। अपनी ओर से इतना निवेदन काफी है। 130 | For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कैसे खोलें किस्मत के ताले श्री चन्द्रप्रभ हर व्यक्ति इस कोशिश में लगा हुआ है कि वह अपने जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छुए। ऐसा करने के लिए व्यक्ति परिश्रम भी करता है लेकिन कोई एक चीज ऐसी है जो बार-बार रोड़ा अटका देती है। वह चीज है इंसान की अपनी किस्मत। यह पुस्तक इंसान की उसी बंद किस्मत के ताले खोलती है और व्यक्ति को देती है एक ऐसी राह जो उसे आसमानी ऊँचाइयाँ देती है। महान राष्ट्र-संत पूज्य श्री चन्द्रप्रभ कहते हैं - किस्मत उस गाय की तरह होती है जो दूध देती नहीं है बल्कि बूंद दर बूंद हमें दूध निकालना होता है। सकारात्मक सोच और पूरे आत्मविश्वास के साथ यदि प्रयास किया जाए तो इंसान की प्रतिभा उसे महान सफलताओं का वरदान दे सकती है। श्री चन्द्रप्रभ की बातें जादुई चिराग की तरह हैं जिनका इस्तेमाल कभी व्यर्थ नहीं जाता। यह पुस्तक निश्चय ही आपके अन्तरमन में एक नई ऊर्जा और उत्साह का संचार करेगी। इसे आप नई पीढ़ी के लिए नये युग की गीता समझिए। महान जीवन-द्रष्टा पूज्य श्री चन्द्रप्रभ देश के लोकप्रिय आध्यात्मिक गुरुओं में अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं। 10 मई, 1962 को जन्मे श्री चन्द्रप्रभ ने 27 जनवरी, 1980 को संन्यास ग्रहण किया / वे विविध धर्मों के उपदेष्टा और महान चिंतक हैं / उनकी जीवन-दृष्टि ने लाखों युवाओं को एक नई सकारात्मक क्रांति दी है। उनके प्रभावी व्यक्तित्व, प्रवचन शैली और महान लेखन ने जनमानस को एक नया उत्साह, उद्देश्य और मंजिल प्रदान की है। उनकी 200 से अधिक पुस्तकें और 500 से अधिक प्रवचनों की वीसीडी जन-जन में ईद का प्रेम, होली की समरसता और दीपावली की रोशनी बिखेर रही हैं। इनके द्वारा जोधपुर में स्थापित संबोधि-धाम बहुत लोकप्रिय है, जहाँ शिक्षा, सेवा और ध्यान-योग के जरिए मानवता के मंदिर में ज्योत से ज्योत जलाई जाती है। 40/ COPL/10160 For Personal & Private Use Only