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________________ धनुष की तरह लोगों को आनन्द देती नज़र आती हैं। लोग कहते हैं कि उनके घर में ए.सी. नहीं है। मैं कहता हूँ, 'घर में ए.सी. रहे या डी.सी. पर जिसका दिमाग़ ए.सी. हो गया उसके द्वारा तो प्रेम और शांति की हमेशा महक बिखरेगी। आत्मीयता और आनंद के ही फूल बिखरते हुए नज़र आएँगे।' आज अपने घर को नहीं, अपने दिमाग़ को ए.सी. बनाओ। अपने मिज़ाज़ को ठंडा रखो। मैं आईसक्रीम नहीं खाता, क्योंकि मुझे आईसक्रीम खाने की कभी ज़रूरत ही नहीं हई। मैंने केवल एक ही काम किया, भगवान मिले या न मिले, मोक्ष मिले या न मिले, स्वर्ग मिले या न मिले, पर अपना अंतरमन सदा शांत, शीतल, निर्मल रहना चाहिए, बस । अन्तर्मन शान्त-निर्मल है, तो फिर कौन चिंता करे कि भगवान मिले या नहीं। अब भगवान मिले तो वेलकम, न मिले तो भी उनकी मर्जी । अपना राम तो अपने में मस्त ! अपनी मस्ती, सबसे सस्ती। हैल्थ सीक्रेट देते हुए मैंने कभी कहा था – 'पाँव रखो गरम, पेट रखो नरम और माथा रखो ठंडा । फिर अगर घर में आता है डॉक्टर तो मारो उसको डंडा।' ये गुण जिसके अन्दर है कि पाँव गरम है, पेट नरम है, तो बीमारियाँ आएँगी कहाँ से? माथा रखा है ठंडा। अब गुस्सा ही नहीं करते, तनाव ही नहीं रखते, चिंता ही नहीं पालते। खीज ही नहीं रखते तो बीमार होंगे कहाँ से? तो मिजाज़ ठंडा हो, फ्रीज की तरह ठंडा। कूल, कूल! ___ ऐसा हुआ संत तुकाराम की पत्नी ने अपने पति से कहा - ज़रा खेत चले जाओ ओर कुछ गन्ने तोड़ लाओ, भूख लग रही है। संत तुकाराम रवाना हो गए। सुबह गए, दो किलोमीटर दूरी पर खेत था लेकिन शाम को लौटकर आये। पत्नी झल्लाई हुई थी कि सुबह के गये, अभी तक नहीं आए, पूरा दिन बीत गया। डंडा लेकर खड़ी हो गई आने दो, ख़बर लेती हूँ। साँझ को करीब 6 बजे तुकाराम जी धीरे-धीरे आ रहे थे, बच्चे पीछे-पीछे चल रहे थे, सब गन्ना चूस रहे थे। तुकाराम आए तो पत्नी ने देखा कि एक ही गन्ना लाए हैं । उसे इतना गुस्सा आया कि बुराभला कहने लगी। तुकाराम जी ने कहा - भाग्यवान, बुरा क्यों मानती है। वहाँ से तोड़कर तो गट्ठर का गट्ठर लाया था, पर चौपाल पर बच्चों ने मुझे घेर लिया। कहने लगे – ' गुरुजी, गन्ना दीजिए, गन्ना दीजिए। अब बच्चों को कैसे मना करता? बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं, सो बच्चों को बाँट दिया। एक गन्ना बच गया सो ले आया।' पत्नी झल्लाई हुई तो थी ही, गन्ना खींचा और संत तुकाराम जी की पीठ पर दे मारा। गन्ने के दो टुकड़े हो गए । तुकाराम जी ने कहा - बड़ा अच्छा 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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