SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करो, पीछे जाओ और पूरे रास्ते में जो ये छोटे-छोटे कंकड़ पड़े हैं उठाकर ले आओ' । तगारी भरकर कंकड़ इकट्ठे हो गए। मैंने कहा - ' ये भी अब इसमें डाल दो'। बड़े पत्थरों के बीच में छोटे-छोटे कंकड़ आते गये और वह फिर भर गया। मैंने कहा – 'देखो,क्या इसमें और भी गुंजाइश है? बोले, साहब! अब इसमें एक भी कंकड़ डालने की गुंजाइश नहीं है।' मैंने कहा - 'अभी भी गुंजाइश है'। एक काम करो – पाँच-सात गिलास बालू के भरकर ले आओ। वे बालू लेकर आ गए। मैंने कहा - 'अब इसे हिलाते रहो और अन्दर डालते रहो।' पाँच-छ: गिलास बालू भी उसमें चली गई'। मैंने पूछा - 'बताओ, क्या अब भी इसमें गुंजाइश है? बच्चों ने कहा -'अब, आप इसमें क्या गुंजाइश देखते हैं? अब तो आपने बालू भी डाल दी, सबसे बारीक चीज़ डाल दी। अब इसमें किसी भी तरह की कोई गुंजाइश नहीं बची।' मैंने कहा - 'मैं जीवन का यही तो पाठ पढ़ा रहा हूँ, कि गुंजाइशों का कभी कोई अंत नहीं होता। ज़रा जाओ उधर और एक बाल्टी पानी उठाकर ले आओ। यह सुनते ही बच्चों ने ताली बजाई। बच्चे बात समझ गए। पानी उसमें डाल दिया गया।' मैंने कहा – 'जिंदगी में मैं यही पाठ इस दीक्षान्त समारोह में आप लोगों को पढ़ाना चाहूँगा कि केवल यह मत समझना कि आप लोगों ने एम.बी.ए.कर लिया है कि बी.ए. कर लिया है तो अब गुंजाइश खत्म हो गई। गुंजाइशें अभी और हैं। गुंजाइशें और संभावनाएँ हम लोगों को न्यौता देती हैं कि आप कहीं तक भी क्यों न बढ़ गये हों, अभी तक कामयाबी की और भी गुंजाइशें बची हुई हैं।' यह देश, यह समाज, यह कुदरत हम लोगों को न्यौता देती है कि आओ, अपनी जिंदगी को बदलो। नये तरीके सीखो, नये ज़ज़्बातों को सीखो, नये ज़ज़्बे जगाओ और अपनी कामयाबी के नये-नये रास्ते तलाशो। दान की रोटी की बजाय, दया का दूध पीने की बजाय, परिश्रम का पानी पीना कहीं ज्यादा अच्छा है। दान की रोटी, दया का दूध पीने की बजाय पुरुषार्थ का पानी पीना अधिक गरिमापूर्ण है। मैं प्रेम की रोटी तो खाता हूँ, पर दान की रोटी नहीं खाता। अगर कोई कह देता है कि साहब आज मैंने सुपात्र दान दिया तो मैं उस रोटी को खाना पसन्द नहीं करूँगा।ओ भैया, दान भिखारी को जाकर देना । गुरु चरणों में केवल समर्पण होता है। वहाँ दान नहीं होता। दान किसी और को जाकर देना । तू मुझे दो रोटी का दान देता है, मैं तेरे जैसे दो सौ लोगों को दान देने की क्षमता रखता हूँ। तेरे जैसे दो सौ लोगों को रोजाना खाना खिलाने की हैसियत है। जब मंदिर बनाने 20 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003864
Book TitleKaise Khole Kismat ke Tale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy